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दुनियाभर में लहरा रहा हिंदी का परचम!

चीन रूस अमरीका इंग्लैंड में हिंदी सीखने की होड़

हिंदी के फॉंट हो रहे दुनियाभर में लोकप्रिय

Tuesday 13 September 2016 07:20:12 AM

जगदीप सिंह दाँगी

जगदीप सिंह दाँगी

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जी हां! ये सच है कि दुनियाभर में लहरा रहा है हिंदी का परचम। इस सच्चाई को जो नहीं मान रहे हैं, वो केवल हिंदी और उसको चाहने वालों का मनोबल ही तोड़ रहे हैं। इंटरनेट क्रांति का यह कमाल है कि चीन रूस अमरीका इंग्लैंड में हिंदी सीखने की होड़ है। सचमुच जिन्हें भारत और भारतीय संस्कृति को जानना है, वे हिंदी सीखने और बोलने के पीछे पागल हैं। कंप्यूटर पर हिंदी यूनीकोड के फॉंट दुनियाभर में लोकप्रिय हैं। यूनीकोड के कारण सोशल मीडिया पर हिंदी लहलहा रही है। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत की राजभाषा है हिंदी, यह देश में सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा तो है ही, चीनी भाषा के बाद विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा भी हिंदी है। हिंदी बोलने वाले विश्व की सबसे बड़ी भाषाएं बोलने वालों में शामिल हो गए हैं, यहां तक कि प्रवासी भारतीयों की सांस्कृतिक भाषा भी हिंदी है। दुनियाभर के देशों में हिंदी सीखने और बोलने को बढ़ावा मिल रहा है। कई देशों में हिंदी को प्रमुख विषय के रूप में पढ़ाया भी जाने लगा है। अमरीका, रूस और चीन आदि देशों में आज काफी संख्या में हिंदी बोली और पढ़ाई जा रही है। हिंदी ने अपना वर्चस्व अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका, एशिया, ऑस्ट्रेलिया महाद्वीपों के तिरानवे देशों में फैला रखा है। इसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि हिंदी खु़द-ब-खु़द विश्व के कोने-कोने में पहुंची है।
पीपुल लिंग्विस्टिक सर्वे के अनुसार भारत में 780 भाषाएं बोली जाती हैं तथा भारतीय संविधान में मान्यता प्राप्त भाषाओं की संख्या 22 है। वर्तमान में देश की कुल जनसंख्या में से 65 प्रतिशत लोग हिंदी भाषा को जानने और समझने वाले हैं। मात्र 5 प्रतिशत लोग अंग्रेज़ी भाषा को जानते और समझते हैं; शेष 30 प्रतिशत में गैर हिंदी और अंग्रेज़ी भाषी लोग यानी तमिल, तेलुगू, बांग्ला आदि भाषाओं को जानने वाले हैं। तकनीक के इस दौर में इंटरनेट, टीवी, हिंदी सिनेमा, दूरदर्शन के विभिन्न चैनलों ने हिंदी के प्रचार-प्रसार में अपनी अहम भूमिका का निर्वाह किया है। हिंदी की लोकप्रियता को देखते हुए कई विदेशी चैनलों ने अपने कार्यक्रम हिंदी में प्रसारित करने प्रारंभ कर दिए हैं, इनमें डिस्कवरी, नेशनल ज्योग्राफी जैसे चैनल तो बहुत पहले हिंदी अपना चुके हैं और इस कारण इनको पहले से बहुत ज्यादा लोकप्रियता हासिल हो चुकी है। बीबीसी हिंदी सहित और इजरायल जैसे देश हिंदी न्यूज़ साइट लांच कर चुके हैं। अरब देशों में भी हिंदी का बोलबाला दिख रहा है। इसके अतिरिक्त कई विदेशी फिल्में और धारावाहिक भी हिंदी में आ रहे हैं।
उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी हिंदी अब अपने पंख फैला रही है। देश के कुछ विश्वविद्यालयों ने तकनीक से संबंधित उच्चस्तरीय पाठ्यक्रमों को हिंदी माध्यम में प्रारंभ कर दिया है। आज कंप्यूटेशनल लिंग्विस्टिक्स, इंफ़ॉर्मेटिक्स एवं लैग्वेज़ इंजीनियरिंग जैसे उच्चस्तरीय (स्नात्कोत्तर, एम फिल, पी एच डी) पाठ्यक्रम हिंदी माध्यम में उपलब्ध हैं। विभिन्न कोर इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम भी हिंदी में उपलब्ध हैं। इन सबके बावजूद भी अगर हिंदी के अच्छे दिन महसूस नहीं हों तो फिर क्या कहा जाए? आज इस बात पर गंभीरता से चिंतन-मनन करने की जरूरत है कि और क्या समस्याएं हैं, जो हिंदी की उन्नति में बाधक हैं? उन कारणों को खोज कर उन्हें दूर करने की दिशा में प्रयास किया जाना चाहिए।
भारत देश में हिंदी को उसका वाजिब स्‍थान मिलना चाहिए, जिसकी वास्तव में वह हकदार है। संवैधानिक तौर से हिंदी देश की राष्ट्रभाषा घोषित होनी चाहिए। इस बाबत हिंदी को और अधिक समृद्ध और प्रभावी बनाने के लिए भारत की अन्य भाषाओं को हिंदी से जोड़ने के प्रयास की जरूरत है। हिंदी को देश की राष्ट्रभाषा बनाने के लिए इन 30 प्रतिशत गैर हिंदी और अंग्रेज़ी भाषी लोगों को भी हिंदी से जुड़ने की प्रेरणा देना अनिवार्य है। इन लोगों को यह भी देखना और समझना चाहिए कि दुनियाभर के देशों में हिंदी को कितनी तेजी से बढ़ावा मिल रहा है और कई जगह हिंदी को प्रमुख विषय के रूप में पढ़ाया भी जाने लगा है। राष्ट्रवाद के लिए भी हिंदी के समर्थन में आगे आना चाहिए, क्योंकि अपने ही अपनों को सम्मानित और अपमानित भी कर और करा सकते हैं। जब किसी सम्मानीय का उसके अपने घर में सम्मान होगा, तभी बाहर वाले भी उसे सम्मान की दृष्टि देखेंगे और उसे ससम्मान अपनाएंगे भी।
हिंदी की लोकप्रियता में कुछ दुश्वारियां भी हैं, जिनके कारण हममें से अनेक लोग हैं, जिनमें कुछ शासनकर्ता हैं तो कुछ हिंदी के नाम पर देश-विदेश में तफरीह करने वाले या हिंदी के आसन पर बैठकर पुरस्कार पाने वाले हैं। बहरहाल समय इन सबको रास्ते पर लाएगा। कुछ जरूरी बातें हैं, जिनमें अब देश की सभी सरकारी नौकरियों में अंग्रेज़ी भाषा की अनिवार्यता ख़त्म कर हिंदी भाषा की अनिवार्यता होनी चाहिए। निम्न एवं उच्च शिक्षा का माध्यम एवं पठन-पाठन की संपूर्ण सामग्री का हिंदीकरण होना ज़रूरी है। हम देखते हैं कि भारतीय आभिजात्य वर्ग में हिंदी की अंग्रेज़ी के सापेक्ष उपेक्षा है। देश में आज अधिकांश बच्चे हायर सेकंडरी तक हिंदी माध्यम में पढ़ते हैं, लेकिन उच्च शिक्षा में जाते ही उनका माध्यम अंग्रेज़ी हो जाता है। इससे वह सिर्फ़ और सिर्फ़ अधकचरा ज्ञान ही प्राप्त कर पाता है। जब-तक रोज़गार हिंदी प्रधान नहीं होगा, हिंदी के और भी अच्छे दिनों की प्रतीक्षा करनी होगी।
देवनागरी लिपि आधारित लगभग 12 भारतीय भाषाएं हिंदी के आस-पास हैं एवं इससे काफी मिलती-जुलती भी हैं, जिनमें भोजपुरी, मैथिली आदि प्रमुख हैं। सवाल है कि यह सभी अपनी-अपनी अलग-अलग भाषाओं को हिंदी से पृथक क्यों देख रहे हैं, जबकि अपने प्रोजेक्ट हिंदी में चला रहे हैं। हिंदी की और ज्यादा उन्नति के लिए इन्हें हिंदी से जुड़ना चाहिए, नाकि पृथक होना चाहिए। आज तकनीक बहुत आगे बढ़ चुकी है। गूगल वाइस टाइपिंग रोमन एवं अंग्रेज़ी के लिए मौजूद है तो देवनागरी हिंदी के लिए उसपर काम हो रहा है। मशीनी अनुवाद एक बहुत ही जटिल कार्य है, सीडेक एवं ट्रिपल-आईटी वर्षों से इस प्रणाली के विकास हेतु प्रयासरत है। हां, जब तक सभी भारतीय भाषाओं का मानक एवं पूर्ण कॉर्पस नहीं बनेगा, तब तक मशीनी अनुवाद आधा अधूरा ही रहेगा, यदि सिलसिलेवार एवं एक जुनून के साथ यह कार्य किया जाए तो बहुत जल्द बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है।
सूक्ष्मतम जानकारी से लेकर विशाल जानकारी आज इंटरनेट के माध्यम से कंप्यूटर पर उपलब्ध है, जिसका उपयोग कर व्यक्ति इसका लाभ उठाने को लालायित है, इसमें सबसे बड़ी बाधा है तो भाषा की समझ। इंटरनेट की लगभग 80 प्रतिशत सामग्री अभी अंग्रेज़ी में ही उपलब्ध है। हमारे देश में हज़ारों लाखों नागरिक हैं जो कि सफल व्यापारी, दुकानदार, किसान, कारीगर मिस्त्री, शिक्षक आदि हैं; यह सभी अपने-अपने कार्य क्षेत्र में कुशल एवं विद्वान हैं, लेकिन यह ज़रूरी नहीं है कि यह सब अंग्रेज़ी भाषा के जानकार भी हों। ग्रामीण परिवेश में रहने वाले कृषक, कारीगर जो कि इस देश की उन्नति का मूल आधार हैं, यदि इन्हें और अच्छी तकनीकी जानकारी हिंदी भाषा में मिले तो प्रगति में तेजी आएगी। हमें हिंदी के और अधिक प्रचार प्रसार एवं विस्तार के लिए ज़्यादा से ज़्यादा हिंदी ई-सामग्री को इंटरनेट पर स्थापित करने हेतु कार्य करना चाहिए, ताकि इंटरनेट पर हिंदी सामग्री का प्रतिशत और बढ़ सके।
भारतवर्ष में कुछ विद्वान हिंग्लिश को बढ़ावा दे रहे हैं, जोकि किसी भी तरह से हिंदी के हित में नहीं है। एफएम रेडियो पर आप सुन सकते हैं कि एंकर किस प्रकार से फूहड़ हिंदी बोल रहे हैं। हिंदी के नाम पर हिंग्लिश परोसते हैं और वह भी अभद्र एवं अश्लील सांकेतिक भाषा का सहारा लेकर। इन पर लगाम लगानी चाहिए। हिंदी क्षेत्र के नागरिकों से मेरी अपील है कि हिंदी को उसका वाजिब हक दिलाने के लिए वे प्रयास करें। मैंने अभी तक दो बार विश्व हिंदी सम्मेलनों में शिरकत की और महसूस किया कि सरकार जितना धन हिंदी के नाम पर इन विश्व हिंदी सम्मेलनों की मेज़बानी में खर्च करती है, अगर वह उसका एक चौथाई मात्र खर्च हिंदी के विकास पर खर्च करे तो वह दिन दूर नहीं जब हिंदी की स्थिति और बलवान होगी, लोग हिंदी बोलेंगे, शुद्ध हिंदी बोलेंगे, शुद्ध हिंदी लिखेंगे और सच में हिंदी के और भी अच्छे दिन आ जाएंगे। आईए हम सब हिंदी दिवस मनाएं।
(लेखक जगदीप सिंह दाँगी महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा में एसोसिएट प्रोफ़ेसर के पद पर कार्यरत हैं। सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उनका हिंदी सॉफ़्टवेयर विकास कार्य उल्लेखनीय है। उन्हें अनेक राष्ट्रीय संस्थाओं ने सम्मानित और पुरस्कृत किया है। उनका नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स-2007 एवं लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स-2015 में भी दर्ज किया गया है)।

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