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Wednesday 28 September 2016 04:42:34 AM
लखनऊ। राज्यपाल राम नाईक ने इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में दैनिक जागरण समाचार पत्र के कुलपति फोरम 'उत्तर प्रदेश में उच्च शिक्षा: वर्तमान और भविष्य' का उद्घाटन किया। राज्यपाल ने कहा कि उत्तर प्रदेश की वर्तमान उच्च शिक्षा से मेरा संबंध कुलाधिपति के तौर पर दो साल दो माह से है, मैंने अब तक जो देखा वह वर्तमान है और भविष्य में क्या करना है, यह देखने का काम शिक्षाविदों और कुलपतियों का है। उन्होंने कहा कि हमारा देश ज्ञानयुक्त समाज के रूप में उभर रहा है, ज्ञानवान समाज के निर्माण में शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान होता है, उच्च शिक्षा के विकास में हमें इसी भूमिका पर विचार करना चाहिए, मगर खेद है कि महाविद्यालयों की स्थापना का दृष्टिकोण बदलकर व्यापार हो गया है। उन्होंने एक सवाल के साथ कहा कि शिक्षकों की गुणवत्ता पर उतना ध्यान नहीं है, जब शिक्षक ही योग्य नहीं होंगे तो उच्च शिक्षा में कैसे सुधार होगा?
राज्यपाल ने कहा कि युवा हमारे मानव संसाधन की दृष्टि से हमारी पूंजी हैं, 2020 में भारत विश्व का सबसे बड़ा युवा देश होगा, उन्हें उचित दिशा-निर्देश देकर देश के लिए अधिक से अधिक उपयोगी बनाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि अगर हम युवाओं को उचित दिशा-निर्देश नहीं दे सके तो यही पूंजी हमारे लिए विकराल रूप धारण कर लेगी। राम नाईक ने कहा कि राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद के 140 विश्वविद्यालयों में किए गए मूल्यांकन में 32 प्रतिशत विश्वविद्यालय ही 'ए' ग्रेड प्राप्त कर सके हैं, वहीं 2780 महाविद्यालयों के मूल्यांकन में मात्र 9 प्रतिशत महाविद्यालय ही 'ए' ग्रेड प्राप्त कर सके हैं। राज्यपाल ने कहा कि शिक्षण संस्थाओं में आधारभूत सुविधाओं की कमी है, उच्च शिक्षा के क्षेत्र में पर्याप्त योग्य शिक्षकों की कमी गंभीर समस्या है, शिक्षकों की कमी का सीधा प्रभाव शिक्षा की गुणवत्ता पर पड़ता है। उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षा की गुणवत्ता के लिए शिक्षक एवं छात्र अनुपात एक अत्यंत महत्वपूर्ण बिंदु है।
राज्यपाल ने कहा कि उच्च शिक्षा में प्रवेश दर वर्ष 2014-15 में मात्र 23.6 प्रतिशत थी, जिसे 2020-21 तक 30 प्रतिशत करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में उच्च शिक्षा में शिक्षकों के लगभग 50 प्रतिशत पद रिक्त हैं, शिक्षकों की कमी पूरी करने के लिए प्रयास किये जाने चाहिएं, योग्य शिक्षकों की संख्या पूरी न होने पर छात्रों से अपेक्षा करना अनुचित है। राम नाईक ने कहा कि नवीन एवं क्षेत्रीय आवश्यकताओं के अनुरूप शोध कार्य होने चाहिएं, शोध एवं नवोन्मेष में राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उच्च्कोटि की श्रेणी में वही शिक्षण संस्थाएं हैं, जिनके यहां नवोन्मेष पर विशेष बल दिया जाता है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के अधिकांश विश्वविद्यालयों एवं उच्च शिक्षण संस्थानों में शोध उनकी प्राथमिकताओं में प्रदर्शित नहीं हो रहा है, सभी विश्वविद्यालयों में शोध एवं नवोन्मेष पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। राम नाईक ने कहा कि देश में 759 विश्वविद्यालय हैं, जिसमें 350 राज्य विश्वविद्यालय हैं, 123 मानद विश्वविद्यालय हैं, 47 केंद्रीय विश्वविद्यालय हैं तथा 239 निजी विश्वविद्यालय है।
राम नाईक ने कहा कि यदि हम उत्तर प्रदेश की बात करें तो राज्य में 27 राज्य विश्वविद्यालय, संस्थाएं, 5 केंद्रीय विश्वविद्यालय, 10 मानद विश्वविद्यालय तथा 24 निजी विश्वविद्यालय हैं। उन्होंने कहा कि विभिन्न उद्योग घरानों ने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में काफी रूचि दिखाई है, जिसके परिणामस्वरूप 6 नए निजी विश्वविद्यालय की स्थापना भी अभी हाल में हुई है, मगर यह जरूरी है कि शिक्षा एक मिशन है, जिसे व्यापार नहीं बनाया जाना चाहिए। राम नाईक ने कहा कि उच्च शिक्षा में महिलाओं की सहभागिता भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है, राष्ट्र स्तर की उच्च शिक्षा की प्रवेश दर में क्षेत्रीय एवं छात्रों के सापेक्ष छात्राओं की प्रवेश दर में काफी अंतर है, उच्च शिक्षा तक सभी की पहुंच के लिए आवश्यक है कि क्षेत्रीय एवं लैंगिक असमानता को दूर किया जाए। उन्होंने कहा कि बीते वर्ष 22 विश्वविद्यालयों के दीक्षांत समारोह में यह अनुभव किया गया कि छात्राओं ने 65 प्रतिशत पदक प्राप्त किए हैं, यह स्थिति देखते हुए महिलाओं को उच्च शिक्षा उपलब्ध कराने की दृष्टि से पिछडे़ एवं ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक से अधिक शिक्षण संस्थान स्थापित किए जाएं। राम नाईक ने कहा कि शिक्षा के लिए शासकीय बजट बढ़ना चाहिए, छात्रसंघ के चुनाव होने चाहिएं, ताकि राजनीति में नई पीढ़ी के नेतृत्व का निर्माण हो।
राज्यपाल ने कहा कि इस तकनीकी युग में हमें अपने पुराने शिक्षा माध्यमों में बदलाव लाना होगा तथा उपलब्ध सूचना तकनीकों का अधिक से अधिक पठन-पाठन में प्रयोग करना होगा। राज्यपाल ने कहा कि ई-गर्वनेंस का प्रयोग किया जाना चाहिए तथा व्यावसायिक शिक्षा और कौशल विकास की आवश्यकता पर बल दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि छात्रों में नौकरी पाने वाले के बदले, नौकरी देने वाले की मानसिकता विकसित करें। उन्होंने कहा कि शैक्षिक संस्थाओं की सम्बद्धता, नियुक्तियों तथा अन्य आधारभूत सुविधाओं के लिए पारदर्शी और समान होनी चाहिए। फोरम में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर गिरीशचंद्र त्रिपाठी, पंडित दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अशोक कुमार ने भी अपने विचार रखे। इस अवसर पर विभिन्न केंद्रीय एवं राज्य विश्वविद्यालयों, सम विश्वविद्यालयों, निजी विश्वविद्यालयों के कुलपति तथा महाविद्यालयों के प्राचार्य और बड़ी संख्या में शिक्षाविद् उपस्थित थे। दैनिक जागरण के संपादक दिलीप अवस्थी ने धन्यवाद ज्ञापन किया।