Thursday 3 November 2016 01:53:06 AM
दिनेश शर्मा
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से उनके सरकारी आवास पर देवबंद के मुस्लिम प्रतिनिधियों ने मुलाकात कर उन्हें भरोसा दिया है कि विधानसभा चुनाव में मुसलमान पहले की तरह सपा का साथ देगा और इंशाअल्लाह उनके नेतृत्व में फिर से सपा की सरकार बनेगी। मुसलमान प्रतिनिधियों ने राज्य के विकास तथा खासतौर पर अल्पसंख्यक समुदाय के कल्याण हेतु मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के प्रयासों की सराहना करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अपनी मुंहदेखी प्रशंसा से लबरेज़ मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर कहा कि हम सभी को प्रदेश की गंगा-जमुनी संस्कृति पर फ़ख्र है। उन्होंने कहा कि इस राज्य में सदियों से हिंदू-मुस्लिम सहित सभी धर्मों के अनुयायी सद्भाव के साथ रहते आ रहे हैं। गौरतलब है कि देवबंद के मुसलमानों का यह प्रतिनिधिमंडल लखनऊ में ऐसे वक्त पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मिला है, जब समाजवादी पार्टी में 'चाचा-भतीजे में जंग' छिड़ी है और विधानसभा चुनाव में कुछ ही वक्त बचा है। उत्तर प्रदेश में राजनीति का खेल बड़ा ही विचित्र होने जा रहा है।
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मुस्लिम प्रतिनिधियों से कहा कि उनकी सरकार अल्पसंख्यकों को पूरी सुरक्षा प्रदान कर रही है और उनके उत्थान के लिए कार्य कर रही है। उन्होंने कहा कि सरकार सभी वर्गों के विकास के लिए कटिबद्ध है, सरकार ने मुस्लिमों सहित सभी के भले के लिए विभिन्न प्रकार की योजनाएं एवं कार्यक्रम क्रियांवित किए हैं, जिनका लोगों को लाभ मिल रहा है। मुलाकात के दौरान सपा सांसद किरनमय नंदा, देवबंद के मौलाना जैनुद्दीन काजमी, मौलाना कारी रहनुद्दीन, मुफ्ती इमरान, मुफ्ती शौकत तथा मुफ्ती अब्दुल मुजाहिरी सहित कई मुस्लिम प्रतिनिधि मौजूद थे। माना जाता है कि समाजवादी पार्टी राज्य में सरकार में रहते हुए विघटन के दौर से गुज़र रही है और सबसे बड़ी बात यह है कि समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव सपा को एकजुट रखने में या परिवार के विवाद को खत्म करने में नाकाम ही साबित हुए हैं, ऐसे समय में इन मुसलमान प्रतिनिधियों की मुख्यमंत्री से मुलाकात सपा के कितने काम आएगी और इनका कितना भरोसा है, कहा नहीं जा सकता। सब तरफ कहा जा रहा है कि सपा और सरकार के कई फैसले सपा को नुकसान पहुंचा रहे हैं और यह राजनीतिक कुनबा दूसरों की लगाई आग से झुलसता जा रहा है।
यूपी की राजनीति में यह घटनाक्रम भी गौर करने काबिल है कि मुलायम सिंह यादव परिवार में चल रहे गंभीर घमासान के कारण घबराए सपा के आधार वोट मुसलमानों में अफरा-तफरी को देखते हुए पिछले हफ्ते ही समाजवादी पार्टी के मुस्लिम नेता और सपा सरकार में वरिष्ठ मंत्री मोहम्मद आज़म ख़ान का बयान आया है कि मुसलमान कोई थाली का बैंगन नहीं है और वह भाजपा को हराने के लिए सही समय पर अपना निर्णय लेगा। आज़म खान के इस बयान के तुरंत बाद बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी से सत्ता छीनने के लिए छटपटा रहीं मायावती ने कहा है कि समाजवादी कुनबे में लड़ाई को देखते हुए इस बार मुसलमान अपना वोट बसपा को देगा, जिससे उत्तर प्रदेश में बसपा की सरकार बनेगी। इन दोनों नेताओं के बयान सामने आने के बाद यह समझने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए कि ये दोनों नेता ही सही बोल रहे हैं। इस बार मुसलमान सपा का साथ छोड़ गया है और भाजपा को हराने के लिए वह बसपा के साथ चलने का फैसला कर चुका है, जिससे बसपा अध्यक्ष मायावती को उत्तर प्रदेश की सत्ता में लौटने का पूरा भरोसा है। इसे लेकर यादव समाज में खासी चिंता है, वह सरकार में सपा की वापसी चाहता है, मगर बसपा सरकार नहीं चाहता, चाहे राज्य में भाजपा सरकार आ जाए।
समाजवादी पार्टी के भड़काऊ नेता मोहम्मद आज़म खान के मुसलमानों पर बयान में एक दहशत भी है कि बसपा की सरकार आने पर उनकी मुस्लिम परस्त और फिरकापरस्त राजनीति का क्या होगा, क्योंकि मायावती किसी के भी दबाव में नहीं काम करती हैं, बहरहाल आज़म खान इस बात से सामान्यहाल दिख रहे हैं कि बसपा और मुस्लिम गठजोड़ से कम से कम उत्तर प्रदेश में भाजपा सत्ता में नहीं आ सकेगी। मोहम्मद आज़म खान हों या समाजवादी पार्टी और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की रथयात्रा या फिर मायावती का सत्ता हांसिल करने का ख्वाब हो, इन सब पर उत्तर प्रदेश की जनता की पैनी नज़र है। अगर उत्तर प्रदेश का मुसलमान भाजपा को रोकने के लिए इस बार सपा को छोड़कर बसपा के साथ जाने का फैसला कर चुका है तो राज्य के दूसरे पिछड़े वर्ग के लोग और खासतौर से यादव समाज भी बहुत करीब से नज़र रखे है और उसके पास भी लोकसभा चुनाव की तरह एक साथ भाजपा के साथ चल देने का विकल्प मौजूद है, जिसके कारण बसपा या मुसलमान भाजपा को सत्ता में आने से नहीं रोक पाएंगे। यादव समाज विधानसभा चुनाव में अभी तक सपा के साथ है, लेकिन वह यह भी देख रहा है कि मुलायम परिवार के झगड़े में यदि बसपा सरकार आ गई तो मायावती सरकार यूपी में यादवों का जीना मुश्किल कर देगी, इसलिए यह पूरी संभावना है कि यादव समाज विधानसभा चुनाव में बसपा को रोकने के लिए भाजपा के साथ जाएगा।
विकास रथयात्रा शुरु करने की पूर्वसंध्या पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मुसलमानों के तथाकथित प्रतिनिधियों से मिलकर यह संदेश देने की कोशिश की है कि मुसलमान पूरी तरह समाजवादी पार्टी के साथ खड़े हैं। आज सवेरे रथयात्रा शुरु होने के पहले समाजवादी पार्टी मुख्यालय पर सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव, सपा के प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल सिंह यादव एवं मुख्यमंत्री अखिलेश यादव एक साथ मंच पर थे, मगर इस सवाल का भी सपा कार्यकर्ता उत्तर मांग रहे थे कि लखनऊ में लगे पोस्टरों में शिवपाल सिंह नज़र क्यों नहीं आ रहे हैं। लखनऊ शहर और वे रास्ते पोस्टरों और होर्डिंग्स से अटे हैं, जहां से विकास रथ निकलना है, उनमें मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव तो छाए हैं, मगर शिवपाल सिंह यादव का फोटो इक्का-दुक्का पोस्टरों में ही देखा जा रहा है। सवाल पूछा जा रहा है कि अखिलेश यादव अपनी पोस्टर ताकत किसे दिखा रहे हैं? समाजवादी पार्टी का पांच नवंबर को स्थापना दिवस भी है और लखनऊ में सपा के प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव जनेश्रवर मिश्र स्मृति पार्क लखनऊ में इस कार्यक्रम के आयोजक हैं, उन्होंने इस आयोजन को सफल बनाने और उसे गुटबाजी से दूर रखने की काफी कोशिश की है, उनके बयान भी ऐसे नहीं हैं, जो कोई चुनौती या टकराव पैदा कर रहे हों। देखना है कि इसके बावजूद समाजवादी पार्टी वाकई में एकजुट दिखाई देती है कि नहीं।
शिवपाल सिंह यादव के समाजवादी पार्टी को चुनाव के लिए संगठनात्मकरूप से तैयार करने के प्रयासों का जहां तक सवाल है तो कोई माने या न माने, उन्होंने सपा को चुनावी मुकाबले में खड़ा रखने के बड़े गंभीर प्रयास किए हैं, मगर अखिलेश यादव तो उनका मतलब कुछ और ही समझते हैं। शिवपाल सिंह यादव जानते हैं कि मुलायम सिंह यादव से बाहर उनकी कोई राजनीतिक ताकत नहीं रह जाती है, फिलहाल तो यही नाम है, जिसकी मुट्ठी बंद रहने से सबका भला है। मुलायम सिंह यादव राजपुत्र की महत्वाकांक्षाओं और कार्यप्रणाली को संयमित रखने में सफल नहीं होने से आहत दिखते हैं, उनकी नज़रों के सामने यदि यह अवहेलना है तो उनके बाद क्या होगा, यह समाजवादी कुनबे के लिए विचारणीय प्रश्न है। अखिलेश यादव अपने पिताश्री की यह रणनीति समझने में बड़ी भूल कर चुके हैं कि उनके पिता अखिलेश के रूप में एक बरगद लगा ही चुके हैं, जिसे कौन चुनौती दे सकता है, लेकिन अगर बरगद ही अपनी गरिमा और महत्व भूल जाए तो इसमें किसका दोष है? राजनीतिक विश्लेषकों का अभिमत है कि कुलमिलाकर यह तय है कि इनका पारिवारिक विवाद तत्काल खत्म नहीं होता है और अखिलेश यादव अपनी ज़िद पर अड़े रहते हैं तो समाजवादी पार्टी का खत्म हो जाना तय है, चाहे अब सपा का मुसलमानों में ही विलय क्यों न हो जाए।