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Monday 9 January 2017 02:56:50 AM
नई दिल्ली। केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने अपने लेख ‘विमुद्रीकरण-पिछले दो महीने पर एक दृष्टि’ में कहा है कि अब बैंकों के आगे लगने वाली कतारें खत्म हो गई हैं और देश पुर्नविमुद्रीकरण पर आगे बढ़ चला है। उन्होंने कहा कि उच्चतर मूल्य वर्ग के करेंसी नोटों के लीगल टेंडर होने की समाप्ति के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्णय को दो माह बीत चुके हैं, जिसके परिणामस्वरूप उन नोटों का विमुद्रीकरण हो गया है। उन्होंने इस निर्णय और इसके प्रभाव के पीछे के तर्कों का विश्लेषण प्रस्तुत करते हुए कहा कि जब किसी देश की 86 प्रतिशत करेंसी, जोकि उसके सकल घरेलू उत्पाद का 12.2 प्रतिशत है, को बाजार से निचोड़कर बाहर फेंका जाएगा और उसके स्थान पर नई मुद्रा लाई जाएगी तो स्पष्ट तौर पर इस निर्णय के महत्वपूर्ण परिणाम ही होंगे।
वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार के पहले ही दिन से यह एकदम स्पष्ट था कि वह अर्थव्यवस्था और कालेधन के खिलाफ कदम उठाएगी और इस दिशा में भारत सरकार का सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर एसआइटी का गठन करना पहला कदम था। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने ब्रिसबेन में जी-20 देशों के सम्मेलन में भी इसका प्रस्ताव दिया था कि आधार के अपक्षरण और लाभ के हस्तांरतरण की दिशा में सूचना साझेदारी के अंतरराष्ट्रीय सहयोग की गति तेज़ की जानी चाहिए, इस उद्देश्य को अमेरिका के साथ की गई व्यवस्था ने आगे बढ़ाया। उन्होंने कहा कि राजग सरकार ने स्विट्जरलैंड के साथ 2019 से लागू होने वाली व्यवस्था को भी पूरा किया, जिसके तहत स्विट्जरलैंड में रखे गए भारतीय नागरिकों के धन का विस्तृत विवरण और इसी तरह भारत में स्विस नागरिकों के धन के बारे में एक-दूसरे को सूचना देने का प्रावधान है। उन्होंने कहा कि वर्ष 1996 से मॉरिशस के साथ चली आ रही दोहरा कर बचाव संधि पर फिर बातचीत की जा रही है, संधि प्रभावी ढंग से वापसी को बढ़ावा देने वाली है, इस पर पुन: बातचीत हो गई है, इसी तरह की संधियों पर साइप्रस और सिंगापुर के साथ भी फिर से बातचीत हुई। उन्होंने कहा कि भारत के बाहर अवैध संपत्ति से संबंधित कालेधन कानून ने एक खिड़की खोली है, जिसके तहत ऐसे खुलासों के लिए 60 प्रतिशत कर के साथ दस साल की क़ैद का प्रावधान है।
अरुण जेटली ने कहा कि 45 प्रतिशत कर वाली आयकर खुलासा घोषणा स्कीम-2016 बहुत ही सफल रही। उन्होंने कहा कि कालेधन के जरिए खर्च करने पर दो लाख से अधिक के खर्च पर पैनकार्ड अनिवार्य करने से बाधा पैदा हुई है, सन् 1988 में बना बेनामी कानून कभी भी लागू नहीं किया गया, अब इसमें संशोधन कर इसे क्रियांवित किया गया है। उन्होंने कहा कि इस साल जीएसटी लागू होना है, जिससे बेहतर अप्रत्यक्ष कर प्रशासन मिलेगा और कर अपवंचना को और अधिक दक्ष कानून से रोका जाएगा, इस दिशा में उच्च मूल्य वर्ग के नोटों का विमुद्रीकरण करने का निर्णय एक बड़ा कदम था। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा कि वर्ष 2015-16 में कुल जनसंख्या 125 करोड़ में केवल 3.7 करोड़ लोगों ने आयकर रिटर्न दाखिल किया है, जिनमें 99 लाख लोगों ने 2.5 लाख रुपए से अपनी आय कम दिखाई और उन्होंने कोई कर का भुगतान नहीं किया है, 1.95 करोड़ लोगों ने अपनी आय पांच लाख रुपए से कम दिखाई है, 52 लाख लोगों ने अपनी आय पांच से दस लाख रुपए के बीच दिखाई है और केवल 24 लाख लोगों ने अपनी आय दस लाख रुपये से अधिक दिखाई। उन्होंने कहा कि इसके लिए कोई ठोस प्रमाण की जरूरत नहीं कि प्रत्यक्ष और अप्रत्यकक्ष कर दोनों के मामले में भारत अभी भी कर अदा करने के मामले में बड़ा गैर अनुपालन वाला समाज बना हुआ है।
अरुण जेटली ने कहा कि ग़रीबी उन्मूलन, राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक विकास के लिए जरूरी व्यय के मामले पर कर अदा न करने के कारण समझौता करना पड़ा है। उन्होंने कहा कि सात दशक तक देश एक सामान्य भारतीय नकदी और चेक से लेन-देन करता रहा है। उन्होंने कहा कि ‘पक्का’ और ‘कच्चा’ खाता व्यापार की भाषा है, कर चोरी न तो गलत मानी जाती है और न ही अनैतिक, यह जीने का एक रास्ता थी। अरुण जेटली ने कहा कि कई सरकारों ने सार्वजनिक हितों से समझौते के बाद भी इसे सामान्य रूप से चलने दिया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्णय का इरादा एक नया समाज बनाने का है, जो भारत और भारतीयों के खर्च करने की रुपरेखा में परिवर्तन चाहता है, यह स्पष्टरूप से विघ्नकारी कदम है, सभी तरह के सुधारविघ्नकारी होते हैं, ये पीछे से चले आ रही यथास्थिति को बदलते हैं। उन्होंने कहा कि विमुद्रीकरण ईमानदारी के लिए प्रीमियम और बेईमानी के व्यवहार करने वालों को दंडित करना है। उन्होंने कहा कि कागजी मुद्रा एक गुमनाम ब्याज वाला बांड है, इसके साथ कोई नाम या इतिहास संबंधित नहीं होता।
उन्होंने कहा कि अपराध नकदी और बिना नकदी के भी हो सकता है, लेकिन अति नकदी को विनिमय के माध्यम के रूप में भूमिगत अर्थव्यवस्था से मदद की जाती है। उन्होंने कहा कि कर भुगतान के मामले में गैर अनुपालन का परिणाम कर चोरों के पक्ष में और वंचितों तथा गरीबों के विरुद्ध अन्यायपूर्ण संवर्द्धन का निर्माण करता है, हवाला के रास्ते नकदी का पहाड़ टैक्स हैवेन में मूल कागजी मुद्रा से पहुंचता है, नकदी की सुविधा रियल टाइम में पता न लगने योग्य भुगतान है। उन्होंने कहा कि नकदी घूसखोरी, भ्रष्टाचार, नकली मुद्रा और आतंकवाद का निधिकरण करती है। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा कि नैतिक और विकसित समाज सततरूप से अति नकदी से प्रौद्यौगिकी सहायक बैंकिंग और डिजिटल कारोबार की ओर बढ़ चले हैं। उन्होंने कहा कि कागजी मुद्रा कई तरह की बुराइयों के दरावाजा खोलती है, जब सरकारें कर चोरों से अधिक कर संग्रह करने में सक्षम होती हैं तो वे अन्य दूसरों से कम कर जमा करने की बेहतर स्थिति में होती हैं। उन्होंने कहा कि नकदी कम करने से हो सकता है कि अपराध और आतंकवाद खत्म न हो, लेकिन इन्हें गंभीर चोट पहुंचा सकती है। उन्होंने कहा कि राज्यों को बताया गया है कि नकदी के भंडार तब तक अपने आप खत्म नहीं होंगे, जब तक कि सरकारें कागजी मुद्रा की मात्रा कम करने के लिए कोई कदम न उठाएंगी।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उच्च मूल्य वर्ग करेंसी को विस्थापित करने और अंततोगत्वा इसे विमुद्रित करने के निर्णय के लिए साहस और सहनशीलता दोनों की आवश्यकता थी, इस निर्णय के कार्यांवयन में पीड़ा छुपी थी, इससे अल्पअवधि में आलोचना और असुविधा दोनों हो सकती है। उन्होंने कहा कि विमुद्रीकरण की अवधि के दौरान करेंसी की अल्पमात्रा की वजह से आर्थिक कार्यकलापों में कमी का अर्थव्यवस्था पर एक अस्थायी प्रभाव पड़ सकता था, इस निर्णय में गोपनीयता का उच्चस्तर और कागजी करेंसी की भारी मात्रा में छपाई, बैंकों, डाकघरों, बैंक मित्रों एवं एटीएम के जरिए वितरण शामिल हैं। अरुण जेटली ने कहा कि यह तथ्य कि भारी मात्रा में उच्च मूल्य वर्ग करेंसी बैंकों में जमा की गई है, इस धन को वैध नकदी नहीं ठहराता। उन्होंने कहा कि कालाधन अपना रंग केवल इसीलिए नहीं बदल लेता कि इसे बैंकों में जमा किया गया है, इसके विपरीत यह अपनी गुमनामी खो बैठता है और अब इसे इसके मालिक की पहचान मिल जाती है, इस प्रकार राजस्व विभाग इस धन पर कर लगाने का हकदार बन जाएगा। उन्होंने कहा कि किसी भी सूरत में आयकर अधिनियम के संशोधन में ही इसका प्रावधान है कि अगर कथित धन को स्वैच्छिक रूप से घोषित किया गया या अस्वैच्छिक रूप से इसका पता लगा तो यह विभेदकारी और कराधान के उच्चदरों और आर्थिक दंड के लिए उत्तरादायी होगा। उन्होंने कहा कि आज की स्थिति में पीड़ा और असुविधा की अवधि अब समाप्त होती जा रही है, आर्थिक कार्यकलापों की पुर्नबहाली हो रही है।
उन्होंने कहा कि स्पष्ट रूप से आज बैंकों के पास विकास के लिए उधारी देने हेतु काफी अधिक धन उपलब्ध है, चूंकि यह धन बैंकों के पास निम्न लागत जमाओं की स्थिति में है, इससे ब्याज दरों का नीचे आना तय है, ये दोनों चीजें पहले ही हो चुकी हैं। वित्तमंत्री ने कहा कि लाखों करोड़ रूपए जो बाजार में खुली करेंसी के रूप में प्रचलन में थे, अब बैंकिंग प्रणाली में प्रवेश कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि न केवल इस धन ने अपनी गुमनामी खो दी है, इस पर कर लगाए जाने के बाद इसधन के मालिक इसे अधिक कारगर तरीके से उपयोग करने के हकदार हो जाते हैं, इससे बैंकिंग लेन-देन के आकार और इसके बाद अर्थव्यवस्था के आकार में वृद्धि होना तय है। उन्होंने कहा कि मध्यकालिक एवं दीर्घकालिक स्थिति में जीडीपी अधिक बड़ा और अधिक स्वच्छ होगा। बैंकिंग प्रणाली में प्रविष्ट और आधिकारिक रूप से लेन-देन में शामिल धन प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों ही प्रकार से उच्चतर कराधान की पर्याप्त संभावना पैदा करेगा। उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारें दोनों ही निश्चित रूप से लाभांवित होंगी, अर्थव्यवस्था में नकदी एवं उच्च रूप से डिजिटाइज्ड लेन-देन का उपयोग होगा। उन्होंने कहा कि ऐसे बड़े निर्णय का कार्यांवयन करते समय सामाजिक रूप से कोई बड़ी अराजक स्थिति पैदा नहीं हुई। उन्होंने कहा कि स्वतंत्र मीडिया संगठनों के सभी जनमत सर्वेक्षणों से प्रदर्शित हुआ है कि बड़ी संख्या में लोगों ने सरकार के निर्णय का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि विपक्षी दलों ने संसद का एक पूरा सत्र बाधित कर दिया, उनके विरोध अप्रभावी रहे हैं। उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था में बाधा पड़ने के उनके अतिश्योक्तिपूर्ण दावे गलत साबित हुए हैं।
उन्होंने कहा कि यह दुःख की बात है कि कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी ने प्रौद्योगिकी, बदलाव एवं सुधारों दोनों का विरोध करते हुए एक राजनीतिक स्थिति अपनाने का निर्णय किया, इसने कालेधन के अनुकूल यथास्थिति का पक्ष लिया। अरुण जेटली ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं उनके विरोधियों के दृष्टिकोण में एक सुस्पष्ट अंतर था। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री एक भविष्यदर्शी के रूप में काम कर रहे थे और एक अधिक आधुनिक, प्रौद्योगिकी केंद्रित स्वच्छ अर्थव्यवस्था के बारे में सोच रहे थे, अब वह राजनीतिक निधीयन प्रणालियों को स्वच्छ करने की बात कर रहे हैं, जबकि उनके विरोधी एक नकदी केंद्रित, नकदी पैदा करने वाली और नकदी विनिमय प्रणाली को जारी रखने वाली प्रणाली के पक्षधर हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के बीच का अंतर स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री अगली पीढ़ी के बारे में सोच रहे है, जबकि राहुल गांधी केवल यह देख रहे हैं कि किस प्रकार संसद के अगले सत्र को बाधित किया जा सके।