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Friday 20 January 2017 02:54:38 AM
नई दिल्ली। विश्व पुस्तक मेले में राजपाल एंड सन्ज़ के स्टाल पर सुरेश सलिल की पुस्तक 'कारवाने ग़ज़ल'का लोकार्पण हुआ। इस मौके पर लोकार्पण समारोह के मुख्य अतिथि विख्यात कवि और आलोचक अशोक वाजपेयी ने कहा कि ग़ज़ल, सॉनेट और हाइकू ऐसे काव्य रूप हैं, जिनका दुनिया की सभी भाषाओं में सृजन हुआ। उन्होंने सुरेश सलिल के 'कारवाने ग़ज़ल' को इस संदर्भ में मौलिक संग्रह बताया। इसमें आठ सौ साल के भारतीय ग़ज़ल इतिहास के सभी महत्वपूर्ण ग़ज़लकारों को शामिल किया गया है। उन्होंने कहा कि हिंदी कवियों की ग़ज़लों को भी इस संग्रह में देखना सचमुच महत्वपूर्ण है। उन्होंने स्मृतियों को ताज़ा करते हुए कहा कि राजपाल एंड सन्ज़ की शृंखला में प्रकाश पंडित की पुस्तकों से वे उर्दू शाइरी के प्रशंसक बने थे।
लोकार्पण के आयोजन में कवि मंगलेश डबराल भी आए। उन्होंने कहा कि हिंदी अकादमिक संसार में यह दुर्लभ ही है कि मीर, ग़ालिब और फैज़ के साथ हिंदी कवियों की ग़ज़लों को भी साथ देखा-पढ़ा जाए। मंगलेश डबराल ने इस अनूठे संग्रह के लिए सुरेश सलिल को बधाई देते हुए कहा कि उनके अनुभव भंडार का लाभ लेकर साहित्य को ऐसी दुर्लभ कृतियाँ दी जा सकती हैं। 'कारवाने ग़ज़ल' के संपादक सुरेश सलिल ने ग्रंथ के निर्माण की प्रेरणा और इसकी आवश्यकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हिंदुस्तानी स्वभाव वाली खड़ी बोली की कविता की शुरुआत अमीर खुसरो से हुई। सुरेश सलिल ने इधर के पूंजीवादी समाज और संस्कृति के बीच इंसान की बौनी होती हैसियत को लेकर जदीदी ग़ज़ल की संजीदगी को भी रेखांकित किया।
हिंदी-उर्दू के विद्वान आलोचक डॉ जानकीप्रसाद शर्मा ने अपने सारगर्भित उद्बोधन में ग़ज़ल के इतिहास और इससे जुड़े अनेक विवादों-अपवादों की चर्चा की। उन्होंने कहा कि कभी मान लिया गया था मीर-ग़ालिब के बाद ग़ज़ल में नया लिखना असंभव है, लेकिन बाद की समृद्ध ग़ज़ल परम्परा इसे गलत साबित करती है, जिसकी गवाही सुरेश सलिल की किताब 'कारवाने ग़ज़ल' है। आयोजन के दूसरे भाग में हिंदी साहित्य की चर्चित पत्रिका 'उद्भावना' के ब्रेख्त विशेषांक का लोकार्पण किया गया। आयोजन में ग़ज़लकार रामकुमार कृषक, कथाकार हरियश राय, आलोचक डॉ जीवन सिंह, कवि उपेंद्र कुमार, उद्भावना के सम्पादक अजय कुमार सहित बड़ी संख्या में लेखक, पाठक और युवा विद्यार्थी उपस्थित थे। राजपाल एंड सन्ज़ की निदेशक मीरा जौहरी ने आभार व्यक्त किया।