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Wednesday 25 January 2017 07:08:54 PM
नई दिल्ली। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्र के अड़सठवें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर देश और विदेशों में बसे भारतीयों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं दी हैं। उन्होंने सशस्त्र बलों, अर्द्धसैनिक बलों और आंतरिक सुरक्षा बलों के सदस्यों को गणतंत्र दिवस की विशेष बधाई दी, साथ ही उन वीर सैनिकों और सुरक्षाकर्मियों को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की, जिन्होंने भारत की क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करने और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया। राष्ट्रपति ने कहा कि 15 अगस्त 1947 को जब भारत स्वतंत्र हुआ तो देश के पास अपना कोई शासन दस्तावेज नहीं था, हमने 26 जनवरी 1950 तक प्रतीक्षा की, जब भारतीय जनता ने इसके सभी नागरिकों के लिए न्याय, स्वतंत्रता, समानता तथा लैंगिक और आर्थिक समता के लिए स्वयं को एक संविधान सौंपा, जिसमें भाईचारे, व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता को प्रोत्साहित करने का वचन दिया गया और उस दिन हम विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र बन गए। राष्ट्रपति ने कहा कि भारत के लोगों के विश्वास और प्रतिबद्धता ने हमारे संविधान को जीवन प्रदान किया है और हमारे राष्ट्र के संस्थापकों ने बुद्धिमत्ता और सजगता के साथ भारी क्षेत्रीय असंतुलन और बुनियादी आवश्यकताओं से भी वंचित विशाल नागरिक वर्ग वाली एक गरीब अर्थव्यवस्था की तकलीफों से गुजरते हुए नए राष्ट्र को आगे बढ़ाया है।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि हमारे संस्थापकों के बनाए लोकतंत्र की मजबूत संस्थाओं को यह श्रेय जाता है कि पिछले साढ़े छ: दशकों से भारतीय लोकतंत्र अशांति से ग्रस्त क्षेत्र में स्थिरता का मरूद्यान रहा है, सन् 1951 में 36 करोड़ की आबादी की तुलना में अब हम 1.3 अरब आबादी वाले एक मजबूत राष्ट्र हैं, उसके बावजूद हमारी प्रति व्यक्ति आय में दस गुना वृद्धि हुई है, ग़रीबी अनुपात में दो तिहाई की गिरावट आई है, औसत जीवन प्रत्याशा दुगुनी से अधिक हो गई है और साक्षरता दर में चार गुना बढ़ोतरी हुई है, भारत आज विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेज़ी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था वाला देश है। राष्ट्रपति ने कहा कि हम वैज्ञानिक और तकनीकी जनशक्ति के दूसरे सबसे बड़े भंडार, तीसरी सबसे विशाल सेना, न्यूक्लीयर क्लब के छठे सदस्य, अंतरिक्ष की दौड़ में शामिल छठे सदस्य और दसवीं सबसे बड़ी औद्योगिक शक्ति हैं। उन्होंने कहा कि एक निवल खाद्यान्न आयातक देश से भारत अब खाद्य वस्तुओं का एक अग्रणी निर्यातक बन गया है, देश की अब तक की यात्रा घटनाओं से भरपूर, कभी-कभी कष्टप्रद, परंतु अधिकांश समय आनंददायक रही है।
प्रणब मुखर्जी ने कहा कि जैसे हम यहां तक पहुंचे हैं, वैसे ही और भी आगे पहुंचेंगे, परंतु हमें बदलती हवाओं के साथ तेजी से और दक्षतापूर्वक अपने रुख में परिवर्तन करना सीखना होगा, प्रगतिशील और वृद्धिगत विकास में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की उन्नति से पैदा हुए तीव्र व्यवधानों को समायोजित करना होगा, नवाचार और उससे भी अधिक समावेशी नवाचार को एक जीवनशैली बनाना होगा, शिक्षा को प्रौद्योगिकी के साथ आगे बढ़ना होगा, मनुष्य और मशीन की दौड़ में जीतने वाले को रोज़गार पैदा करना होगा, प्रौद्योगिकी अपनाने की रफ्तार के लिए एक ऐसे कार्यबल की आवश्यकता होगी, जो सीखने और स्वयं को ढालने का इच्छुक हो, हमारी शिक्षा प्रणाली को हमारे युवाओं को जीवनपर्यंत सीखने के लिए नवाचार से जोड़ना होगा। उन्होंने कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था चुनौतीपूर्ण वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों के बावजूद अच्छा प्रदर्शन करती रही है, वर्ष 2016-17 के पूर्वाद्ध में पिछले वर्ष की तरह इसमें 7.2 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई और इसमें निरंतर उभार दिखाई दे रहा है, हम मजबूती से वित्तीय दृढ़ता के पथ पर अग्रसर हैं और हमारा मुद्रास्फीति का स्तर आरामदायक है, यद्यपि हमारे निर्यात में अभी तेजी आनी बाकी है, परंतु हमने विशाल विदेशी मुद्रा भंडार वाले एक स्थिर बाह्य क्षेत्र को कायम रखा है।
खुशहाली और बेहतरी लोकनीति का आधार हो!
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि कालेधन को बेकार करते हुए और भ्रष्टाचार से लड़ते हुए विमुद्रीकरण से आर्थिक गतिविधि में कुछ समय के लिए मंदी आ सकती है, लेकिन लेन-देन के अधिक से अधिक नकदीरहित होने से अर्थव्यवस्था की पारदर्शिता बढ़ेगी। उन्होंने कहा किस्वतंत्र भारत में जन्मीं नागरिकों की तीन पीढ़ियां औपनिवेशिक इतिहास के बुरे अनुभवों को साथ लेकर नहीं चलती हैं, इन पीढ़ियों को स्वतंत्र राष्ट्र में शिक्षा प्राप्त करने, अवसरों को खोजने और एक स्वतंत्र राष्ट्र में सपने पूरे करने का लाभ मिलता रहा है, इससे उनके लिए कभी-कभी स्वतंत्रता को हल्के में लेना, असाधारण पुरुषों और महिलाओं के स्वतंत्रता के लिए चुकाए गए मूल्यों को भूल जाना और स्वतंत्रता के पेड़ की निरंतर देखभाल और पोषण की आवश्यकता को विस्मृत कर देना आसान हो जाता है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र ने हम सबको अधिकार प्रदान किए हैं, परंतु इन अधिकारों के साथ-साथ दायित्व भी आते हैं, जिन्हें निभाना पड़ता है। गांधीजी ने कहा था कि ‘आजादी के सर्वोच्च स्तर के साथ कठोर अनुशासन और विनम्रता आती है, अनुशासन और विनम्रता के साथ आने वाली आजादी को अस्वीकार नहीं किया जा सकता; अनियंत्रित स्वच्छंदता असभ्यता की निशानी है, जो अपने और दूसरों के लिए समान रूप से हानिकारक है।’ राष्ट्रपति ने कहा कि भारत के युवा आज आशा और आकांक्षाओं से भरे हुए हैं, वे अपने जीवन के उन लक्ष्यों को लगन के साथ हासिल करते हैं, जिनके बारे में वे समझते हैं कि वे उनके लिए प्रसिद्धि, सफलता और प्रसन्नता लेकर आएंगे, वे प्रसन्नता को अपना अस्तित्वपरक उद्देश्य मानते हैं जो स्वाभाविक भी है।
प्रणब मुखर्जी ने युवाओं पर अपनी बात जारी रखते हुए आगे कहा कि युवा रोजमर्रा की भावनाओं के उतार-चढ़ाव में और अपने लिए निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति में प्रसन्नता खोजते हैं, वे रोज़गार के साथ-साथ जीवन का प्रयोजन भी ढूंढते हैं, अवसरों की कमी से उन्हें निराशा और दुख होता है, जिससे उनके व्यवहार में क्रोध, चिंता, तनाव और असामान्यता पैदा होती है। उन्होंने कहा कि लाभकारी रोजगार, समुदाय के साथ सक्रिय जुड़ाव, माता-पिता के मार्गदर्शनऔर एक जिम्मेवार समाज की सहानुभूति के जरिए उनमें समाज अनुकूल आचरण पैदा करके इससे निपटा जा सकता है। उन्होंने कहा किमेरे एक पूर्ववर्ती ने मेरी मेज पर फ्रेम किया हुआ एक कथन छोड़ा जो इस प्रकार था-‘शांति और युद्ध में सरकार का उद्देश्य शासकों और जातियों की महिमा नहीं है, बल्कि आम आदमी की खुशहाली है।’ उन्होंने कहा कि खुशहाली जीवन के मानवीय अनुभव का आधार है, खुशहाली समान रूप से आर्थिक और गैर आर्थिक मानदंडों का परिणाम है, खुशहाली के प्रयास सतत विकास के साथ मजबूती से जुड़े हुए हैं,जिसमें मानव कल्याण, सामाजिक समावेशन और पर्यावरण को बनाए रखना शामिल है, इसलिए हमें अपनेलोगों की खुशहाली और बेहतरी को लोकनीति का आधार बनाना चाहिए। उन्होंने कहा किसरकार की प्रमुख पहलों का निर्माण समाज के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए किया गया है, स्वच्छ भारत मिशन का लक्ष्य गांधीजी की 150वीं जयंती के साथ 2 अक्तूबर 2019 तक भारत को स्वच्छ बनाना है, ग्रामीण अर्थव्यवस्था की बहाली के लिए मनरेगा जैसे कार्यक्रमों पर बढ़े व्यय से रोज़गार में वृद्धि हो रही है।
लोकसभा के साथ हों विधानसभाओं के चुनाव हों!
राष्ट्रपति ने नरेंद्र मोदी सरकार के अनेक जनकल्याण कार्यक्रमों का प्रमुखता से उल्लेख किया और कहा कि डिजिटल भारत कार्यक्रम डिजिटल ढांचे के सर्वव्यापक प्रावधान और नकदीरहित आर्थिक लेन-देन साधनों से एक ज्ञानपूर्ण अर्थव्यवस्था का निर्माण कर रहा है इसी प्रकार स्टार्ट-अप इंडिया और अटल नवाचार मिशन जैसी पहलें नवाचार और नए युग की उद्यमिता को प्रोत्साहन दे रही हैं, कौशल भारत पहल के अंतर्गत राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन 2022 तक 30 करोड़ युवाओं को कौशलयुक्त बनाने के लिए कार्य कर रहा है। उन्होंने विश्वास के साथ व्यक्त किया कि भारत का बहुलवाद और उसकी सामाजिक, सांस्कृतिक, भाषायी और धार्मिक अनेकता उसकी सबसे बड़ी ताकत है, हमारी परंपरा ने सदैव ‘असहिष्णु’ भारतीय नहीं बल्कि ‘तर्कवादी’ भारतीय की सराहना की है, सदियों से हमारे देश में विविध दृष्टिकोणों, विचारों और दर्शन ने शांतिपूर्वक एक दूसरे के साथ स्पर्द्धा की है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र के फलने-फूलने के लिए एक बुद्धिमान और विवेकपूर्ण मानसिकता की जरूरत है, एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए विचारों की एकता से अधिक, सहिष्णुता, धैर्य और दूसरों का सम्मान जैसे मूल्यों का पालन करने की आवश्यकता होती है, ये मूल्य प्रत्येक भारतीय के हृदय और मस्तिष्क में रहने चाहिएं, जिससे उनमें समझदारी और दायित्व की भावना भरती रहे। उन्होंने आगे कहा किहमारा लोकतंत्र कोलाहलपूर्ण है, फिर भी जो लोकतंत्र हम चाहते हैं वह अधिक हो, कम न हो।
प्रणब मुखर्जी ने कहा कि हमारे लोकतंत्र की मजबूती इस सच्चाई से देखी जा सकती है कि 2014 के आम चुनाव में कुल 83 करोड़ 40 लाख मतदाताओं में से 66 प्रतिशत से अधिक ने मतदान किया। उन्होंने कहा कि हमारे लोकतंत्र का विशाल आकार हमारी पंचायतीराज संस्थाओं में आयोजित किए जा रहे नियमित चुनावों से झलकता है, फिर भी हमारे कानून निर्माताओं को व्यवधानों के कारण सत्र का नुकसान होता है, जबकि उन्हें महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहस करनी चाहिए और विधान बनाने चाहिएं, बहस, परिचर्चा और निर्णय पर पुन:ध्यान देने के सामूहिक प्रयास किए जाने चाहिएं। उन्होंने कहा कि जबकि हमारा गणतंत्र अपने अड़सठवें वर्ष में प्रवेश कर रहा है, हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि हमारी प्रणालियां श्रेष्ठ नहीं हैं,त्रुटियों की पहचान कीजानी चाहिए और उनमें सुधार लाना चाहिए, स्थायी आत्मसंतोष पर सवाल उठाने होंगे और विश्वास की नींव को मजबूत बनाना होगा। उन्होंने कहा कि चुनावी सुधारों पर रचनात्मक परिचर्चा करने और स्वतंत्रता के बाद के उन शुरुआती दशकों की परंपरा की ओर लौटने का समय आ गया है, जब लोकसभा और राज्य विधान सभाओं के चुनाव एक साथ आयोजित किए जाते थे, राजनीतिक दलों के विचार-विमर्श से इस कार्य को आगे बढ़ाना चुनाव आयोग का दायित्व है। राष्ट्रपति ने कहा कि भयंकर रूप से प्रतिस्पर्द्धी विश्व में हमें अपनी जनता के साथ किए गए वादे पूरा करने के लिए पहले से अधिक परिश्रम करना होगा, क्योंकि गरीबी से हमारी लड़ाई अभी समाप्त नहीं हुई है, हमारी अर्थव्यवस्था को अभी भी गरीबी पर तेज प्रहार करने के लिए दीर्घकाल में 10 प्रतिशत से अधिक वृद्धि करनी होगी, देशवासियों का पांचवां हिस्सा अभी तक गरीबी रेखा से नीचे बना हुआ है, प्रत्येक आंख से हर एक आंसू पोंछने का गांधीजी का मिशन अभी भी अधूरा है।
राष्ट्रपति ने कहा कि हमें अपने लोगों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के लिए और प्रकृति के उतार-चढ़ाव के प्रति कृषि क्षेत्र को लचीला बनाने के लिए और अधिक परिश्रम करना है, जीवन की श्रेष्ठ गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए गांवों के हमारे लोगों को बेहतर सुविधाएं और अवसर प्रदान करने होंगे, विश्वस्तरीय विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों का सृजन कर युवाओं को और अधिक रोज़गार के अवसर प्रदान करने के लिए अधिक परिश्रम करना है, घरेलू उद्योग की स्पर्द्धात्मकता में गुणवत्ता, उत्पादकता और दक्षता पर ध्यान देकर सुधार लाना होगा। उन्होंने कहा किहमें महिलाओं और बच्चों को सुरक्षा और संरक्षा प्रदान करने के लिए और अधिक काम करना है, महिलाओं को सम्मान और गरिमा के साथ जीवन जीने में सक्षम बनना चाहिए, बच्चों को पूरी तरह से अपने बचपन का आनंद उठाने में सक्षम होना चाहिए, अपने उन उपभोग तरीकों को बदलने के लिए और अधिक परिश्रम करना है जिनसे पर्यावरणीय और पारिस्थिकीय प्रदूषण हुआ है, हमें बाढ़, भूस्खलन और सूखे के रूप में प्रकोप को रोकने के लिए प्रकृति को शांत करना होगा। उन्होंने कहा कि हमें और अधिक परिश्रम करना होगा, क्योंकि निहित स्वार्थ अभी भी हमारी बहुलवादी संस्कृति और सहिष्णुता की परीक्षा ले रहे हैं, ऐसी स्थितियों से निपटने में तर्क और संयम हमारे मार्गदर्शक होने चाहिएं। उन्होंने कहा किहमें आतंकवाद की बुरी शक्तियों को दूर रखने के लिए इन शक्तियों का दृढ़ और निर्णायक तरीके से मुकाबला करना होगा, हमारे हितों की विरोधी इन शक्तियों को पनपने नहीं दिया जा सकता।