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Thursday 26 January 2017 03:49:16 AM
लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद मायावती ने देशवासियों, देश की सेना और समस्त आंतरिक सुरक्षा एवं सैन्यबलों को 68वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं दी हैं। मायावती ने शुभकामना संदेश में कहा कि भारतरत्न बाबासाहेब डॉ भीमराव अंबेडकर की अथक मेहनत और मानवता के प्रति उनकी ज़बर्दस्त सूझ-बूझ और देशहित की धर्मनिरपेक्ष सोच के फलस्वरूप बना भारत का संविधान आज ही के दिन देश में लागू हुआ था और यही पवित्र संविधान ही देश की जनता की असली विरासत, प्रेरणा और शक्ति है। उन्होंने कहा कि हर वर्ष यही वह दिन होता है कि जब यह आकलन करना चाहिए कि देश को उसके संविधान के अनुरूप मानवीय लक्ष्यों को हासिल करने में कितनी सफलता प्राप्त हुई है, देश में कितनी ग़रीबी और बेरोज़गारी दूर हुई है तथा सामाजिक न्याय और आर्थिक समानता के क्षेत्र में देश ने कितना संतोषजनक काम किया है। संविधान पर मायावती का यह बयान उनके गले की हड्डी बन गया है। सवाल उठा है कि इस विषय पर संघ के नेता बोले तो तूफान मचा दिया गया और मायावती बोलें तो खामोशी?
मायावती ने कहा कि उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड व पंजाब सहित पांच राज्यों में इस समय विधानसभा के आमचुनाव चल रहे हैं और खासकर इन प्रदेशों की आमजनता के लिए यह सही मौका है कि वे सूझ-बूझ से आकलन करे और संविधान को उसकी सही मंशा के मुताबिक काम करने वाली 'सर्वजन हिताय व सर्वजन सुखाय' की सरकार को ही चुने, इसी में देश-प्रदेश और आमजनता का हित निहित है। मायावती का यह बयान उस समय आया है, जब देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं और मायावती स्वयं ही कह रही हैं कि हर वर्ष यही वह दिन होता है कि जब यह आकलन करना चाहिए कि देश को उसके संविधान के अनुरूप मानवीय लक्ष्यों को हासिल करने में कितनी सफलता प्राप्त हुई है, देश में कितनी ग़रीबी और बेरोज़गारी दूर हुई है तथा सामाजिक न्याय और आर्थिक समानता के क्षेत्र में देश ने कितना संतोषजनक काम किया है। अपने इस बयान के आधार पर वे आम जनता से बहुजन समाज पार्टी को चुनाव में जिताने की अपील भी कर रही हैं।
मायावती के इस बयान ने उन्हें खुद को विवादों के कठघरे में खड़ा कर दिया है, क्योंकि यही बात जब आरएसएस प्रमुख और प्रचार प्रमुख ने कहने की कोशिश की तो मायावती, कांग्रेस और आरजेडी नेता ने आरएसएस और भारतीय जनता पार्टी पर हल्ला बोल दिया और विधानसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ दुष्प्रचार किया कि भाजपा आरक्षण को खत्म करने जा रही है। इस दुष्प्रचार का बिहार में भाजपा पर विपरीत असर भी हुआ। मायावती ने आज जो बयान जारी किया है, उसमें उन्होंने यह नहीं बताया कि जब-जब वे उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं, उन्होंने दलित समाज के कितने नए पात्र लोगों को बाबासाहेब के बनाए संविधान की मंशा के अनुरूप रोज़गार और अन्य क्षेत्रों में अवसर प्रदान किए? मायावती इस विषय पर भी नहीं बोलती हैं कि उन्होंने दलित समाज के उन नए पढ़े-लिखे युवक-युवतियों के रोज़गार के लिए क्या किया, जो आरक्षण का लाभ लेने की प्रतीक्षा में बूढ़े हो गए और उन्हें संविधान की मंशा के अनुरूप सरकारी रोज़गार नहीं मिल पाया, जबकि क्रिमिलेयर ही अपने पाल्यों के लिए उस आरक्षण का शत-प्रतिशत लाभ उठाता आ रहा है और बाकी परिवार उस आरक्षण का लाभ उठाने से वंचित हैं, जिससे दलित समाज की जीवनशैली में स्पष्टरूप से भारी असामनता दिखाई देती है।
गौरतलब है कि जब यही बात बिहार विधानसभा चुनाव में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कही थी और यही बात पिछले सप्ताह जयपुर में संघ के वरिष्ठ प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य ने कही तो मायावती, कांग्रेस और आरजेडी प्रमुख लालू यादव एवं देश की अन्य राजनीतिक पार्टियों ने उनके और भाजपा के खिलाफ दलित विरोधी होने या आरक्षण खत्म करने की साजिश रचने का आरोप लगाकर अभियान छेड़ दिया। संघ के इन नेताओं के भी कहने का मतलब यही था जो आज मायावती ने कहा है, बल्कि संघ के नेताओं का साफतौर पर कहना था कि इस बात की समीक्षा होनी चाहिए कि जिनके लिए संविधान में आरक्षण व्यवस्था की गई है, उसके सभी पात्र लोगों को उसका लाभ मिल पाया है कि नहीं, क्योंकि जिनके लिए ये आरक्षण है, उनमें वे ही लोग इसका पूरा लाभ उठाते जा रहे हैं, जो अपने लिए इसका लाभ ले चुके हैं, मगर वे समाज के बाकी उन लोगों को आरक्षण का लाभ मिलने में बड़ी बाधा हैं, जिन्हें वास्तव में इसका लाभ मिलना चाहिए।
संघ नेताओं के कहने की मंशा यही थी कि जिन पात्रों को आरक्षण का लाभ नहीं मिला है, उनको उसका लाभ दिलाया जाए, मगर उनकी बात का मतलब यह निकाला गया कि संघ और भाजपा आरक्षण खत्म कर रहे हैं। यह भी गौरतलब है कि बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर का कहना था कि जो लोग आरक्षण का लाभ उठाकर प्रगति कर चुके हैं, उन्हें दूसरे पात्र लोगों को आरक्षण मिलने का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए, ताकि सभी को इसका लाभ मिल सके, लेकिन यहां तो उल्टा हो रहा है। यहां देखा जा रहा है कि जिन लोगों ने संविधान की इस व्यवस्था का लाभ उठाया है, वे केवल अपने ही बेटी-बेटों और उनके बेटी-बेटों के लिए आरक्षण का लाभ झपट रहे हैं और बाकी दलित समाज के लोग आरक्षण का लाभ पाने को तरस रहे हैं, क्योंकि उनके ही समाज के लोग उनकी प्रगति में मुख्य बाधा बने खड़े हैं। इस क्रिमिलेयर वर्ग को अब तो प्रमोशन में भी आरक्षण चाहिए, उसे इस बात की कोई परवाह नहीं दिखती है कि समाज के बाकी लोगों को भी उस आरक्षण का लाभ मिले, ताकि समाज की जीवनशैली में असमानता खत्म हो, ऐसा ही समाज की राजनीति में भी हो रहा है, जिसमें मायावती एक उदाहरण हैं, जिन्होंने बसपा में दलित समाज से आजतक लीडरशिप नहीं निकलने दी। उनसे सवाल हो रहा है कि मायावती बताएंगी कि उन्होंने कितने दलितों को नेता बनाया?