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Tuesday 31 January 2017 05:11:15 AM
नई दिल्ली। केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने संसद में पेश किये गए आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 में कहा है कि विकसित देशों में अपनाया गया राजकोषीय सक्रियतावाद भारत के लिए प्रासंगिक नहीं है। संसद में एक फरवरी को पेश होने वाले आम बजट की पूर्व संध्या पर उनके इस आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार भारत का आर्थिक अनुभव एफआरबीएम अधिनियम 2003 के राजकोषीय नीतिगत सिद्धांतों की बुनियादी वैधता को रेखांकित करता है, जिसके तहत प्रति-चक्रीय नीतियों की भूमिका बढ़ाई जा रही है और ऋण पर अंकुश लगाने को कम अहमियत दी जा रही है। वित्तमंत्री अरुण जेटली के आर्थिक सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि भारत के राजकोषीय अनुभव ने राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन अधिनियम 2003 में उल्लेखित राजकोषीय नीति के सिद्धांतों की बुनियादी वैधता को रेखांकित किया है।
आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष 2008-09 में गहराए वैश्विक वित्तीय संकट के बाद से ही अंतरराष्ट्रीय राजकोषीय नीति में व्यापक बदलाव देखा जा रहा है, जिसके तहत अब ऋणों के बजाय घाटे पर विशेष जोर दिया जा रहा है, घाटे के मामले में अपेक्षाकृत ज्यादा सक्रियतावाद की वकालत की जा रही है और स्टॉक (ऋण) की निरंतरता को लेकर उपजी चिंताओं को कम किया जा रहा है। तेजी के दौर में खर्चों पर विशेष ध्यान देने और मंदी के दौर में प्रोत्साहन संबंधी कदम उठाए जाने के मद्देनजर भारत के अनुभव से राजकोषीय घाटे को अंकुश में रखने के नियमों की जरूरत की फिर से पुष्टि हुई है। भारत के अनुभव से स्थिर विकास के बजाय त्वरित विकास पर निर्भर रहने के खतरों के बारे में भी जानकारी मिली है। संक्षिप्त में इसने एफआरबीएम में उल्लेखित राजकोषीय नीतिगत सिद्धांतों की बुनियादी वैधता को रेखांकित किया है। वैसे तो एफआरबीएम के बुनियादी सिद्धांत अब भी वैध हैं, लेकिन वर्ष 2003 में तैयार की गई परिचालनगत रूपरेखा में आज के भारत की राजकोषीय नीतिगत दिशा को देखते हुए इसमें संशोधन करने की जरूरत है, यहां तक कि यह कल के भारत के लिए और भी महत्वपूर्ण है, 21वीं शताब्दी के लिए एफआरबीएम के जरिए यह नया विजन तय करना एफआरबीएम समीक्षा समिति का अहम कार्य होगा।
वित्तमंत्री अरुण जेटली ने संसद में आर्थिक समीक्षा 2016-17 प्रस्तुत की। आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि आर्थिक विकास अब सामान्य हो जाएगा, क्योंकि नए नोट आवश्यक मात्रा में चलन में वापस आ गए हैं और विमुद्रीकरण पर आगे की कार्रवाई की जा चुकी है। चालू वित्त वर्ष में सीपीआई आधारित कोर मुद्रास्फीति दर स्थिर बनी रही और 5 प्रतिशत के औसत के करीब रही। आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि रुपए का प्रदर्शन अधिकांश अन्य उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अच्छा रहा। वर्ष 2016-17 में 13 जनवरी 2017 तक रबी फसलों का कुल क्षेत्र 616.2 लाख हेक्टेयर रहा जोकि पिछले वर्ष के इस सप्ताह की तुलना में 5.9 प्रतिशत अधिक है। वर्ष 2016-17 में इसी समय तक चना दाल का कुल क्षेत्र पिछले वर्ष के इस सप्ताह की तुलना में 10.6 प्रतिशत अधिक ही रहा। भारतीय अर्थव्यवस्था ने अपेक्षाकृत निम्न मुद्रास्फीति दर, राजकोषीय अनुशासन तथा व्यापक रूप से स्थिर रुपया-डॉलर विनिमय दर के साथ मामूली चालू खाता घाटे के साथ एक सूक्ष्म-आर्थिक वातावरण बनाए रखा है। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने संसद में प्रस्तुत आर्थिक समीक्षा में कहा है कि वर्तमान में जारी वैश्विक मंदी के बावजूद यह मजबूती बनी रही है।
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय के अग्रिम अनुमानों के अनुसार वर्ष 2016-17 के लिए स्थिर बाजार मूल्यों पर जीडीपी की विकास दर 7.1 प्रतिशत है, जो कि 2015-16 के दौरान 7.6 प्रतिशत थी। यह अनुमान मुख्य रूपसे चालू वित्त वर्ष के पहले सात-आठ महीनों की सूचना पर आधारित है। सरकार का अंतिम उपभोग व्यय चालू वर्ष में जीडीपी विकास का बड़ा वाहक रहा है। जीडीपी अनुपात (वर्तमान मूल्यों पर) में स्थायी निवेश (सकल स्थायी पूंजी निर्माण) 2016-17 में 26.6 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जो कि 2015-16 में 29.3 प्रतिशत था। वर्ष 2017-18 के लिए अनुमान है कि आर्थिक विकास अब सामान्य हो जाएगा, क्योंकि नए नोट आवश्यक मात्रा में चलन में वापस आ गए हैं और विमुद्रीकरण पर आगे की कार्रवाई की गई है। शेष के बारे में संभावना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था 2017-18 में 6 ¾ प्रतिशत से 7 ½प्रतिशत तक वापस आ जाएगी। वित्तीय दृष्टि से अप्रैल-नवम्बर 2016 के दौरान अप्रत्यक्ष करों में 26.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इस दौरान राजस्व व्यय में मजबूत वृद्धि को मुख्य रूपसे सातवें वेतन आयोग के कार्यांवयन तथा पूंजी परिसंपत्तियों के निर्माण के लिए अनुदानों में 39.5 प्रतिशत वृद्धि के कारण बढ़ावा मिला है।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) द्वारा मापी गई मुद्रास्फीति लगातार तीसरे वित्त वर्ष के दौरान नियंत्रण में बनी रही। औसत सीपीआई मुद्रास्फीति दर 2014-15 के 5.9 प्रतिशत से घटकर 2015-16 के दौरान 4.9 प्रतिशत पर आ गई तथा अप्रैल-दिसम्बर 2015 के दौरान 4.8 प्रतिशत पर बनी रही। थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) पर आधारित मुद्रास्फीति दर 2014-15 के 2.0 प्रतिशत से गिरकर 2015-16 में (-) 2.5 प्रतिशत पर आ गई और अप्रैल-दिसम्बर 2016 के दौरान इसका औसत 2.9 प्रतिशत रहा। मुद्रास्फीति दर में खाद्य वस्तुओं के संकीर्ण समूह से अक्सर बढ़ावा मिलता है और इनमें दालों की खाद्य मुद्रास्फीति में बड़ी भूमिका रही है। सीपीआई आधारित मुद्रास्फीति दर चालू वित्त वर्ष के दौरान स्थिर बनी रही है और इसका औसत लगभग 5 प्रतिशत रहा है। जहां तक व्यापार का प्रश्न है तो नकारात्मक निर्यात वृद्धि का रुझान 2016-17 (अप्रैल-दिसम्बर) के दौरान कुछ हद तक परिवर्तित हुआ और निर्यात 0.7 प्रतिशत बढ़कर 198.8 बिलियन तक पहुंच गया। वर्ष 2016-17 की पहली छमाही के दौरान चालू खाता घाटा 2015-16 की पहली छमाही के 1.5 प्रतिशत से घटकर जीडीपी के 0.3 प्रतिशत पर आ गई। सितम्बर 2016 के आखिर में भारत का विदेशी कर्ज 484.3 अरब डॉलर था जो कि मार्च 2016 के आखिर के स्तर की तुलना में 0.8 अरब डॉलर कम रहा।
कृषि क्षेत्र के 4.1 प्रतिशत की दर से बढ़ने की उम्मीद है, जो कि 2015-16 के दौरान 1.2 प्रतिशत थी। औद्योगिक क्षेत्र की वृद्धि दर 5.2 प्रतिशत रहने का अनुमान है जो कि 2015-16 के दौरान 7.4 प्रतिशत थी। सेवा क्षेत्र के 8.9 प्रतिशत की दर से बढ़ने की उम्मीद है। वैश्विक स्तर पर सुस्ती छाई रहने के बावजूद भारत अपेक्षाकृत कम महंगाई, राजकोषीय अनुशासन एवं सामान्य चालू खाता घाटे के साथ-साथ आम तौर पर स्थिर रुपया-डॉलर विनिमय दर के वृहद आर्थिक परिदृश्य को बरकरार रखने में सफल रहा है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की तेज आवक और विदेशी पोर्टफोलियो निवेश की शुद्ध आवक सीएडी के वित्त पोषण के लिहाज से पर्याप्त रहीं, जिसके परिणामस्वरूप वित्त वर्ष 2016-17 की प्रथम छमाही में विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि का रुख रहा। वित्त वर्ष 2016-17 की प्रथम छमाही में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में बीओपी के आधार पर 15.5 अरब अमेरिकी डॉलर की वृद्धि दर्ज की गई। आठ प्रमुख ढांचागत सहायक उद्योगों अर्थात कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पाद, उर्वरक, इस्पात, सीमेंट और बिजली उद्योगों ने अप्रैल-नवम्बर 2016-17 के दौरान 4.9 प्रतिशत की संचयी वृद्धि दर दर्ज की है, जबकि पिछले वर्ष की समान अवधि में यह दर 2.5 प्रतिशत थी। इस दौरान रिफाइनरी उत्पादों, उर्वरकों, इस्पात, बिजली और सीमेंट के उत्पादन में भी अच्छी-खासी वृद्धि दर्ज की गई, जबकि कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस का उत्पादन गिर गया, वहीं कोयले की उत्पादन वृद्धि दर में समान अवधि के दौरान गिरावट का रुख देखा गया।
कॉरपोरेट क्षेत्र के प्रदर्शन से यह तथ्य सामने आया है कि वर्ष 2016-17 की दूसरी तिमाही के दौरान कुल बिक्री में 1.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि वर्ष 2016-17 की प्रथम तिमाही में यह वृद्धि दर महज 0.1 प्रतिशत रही थी। वर्ष 2016-17 की दूसरी तिमाही के दौरान इसके शुद्ध मुनाफे में 16.0 प्रतिशत की उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है, जबकि वर्ष 2016-17 की प्रथम तिमाही के दौरान इसमें 11.2 प्रतिशत की वृद्धि आंकी गई थी। वर्ष 2016-17 में सेवा क्षेत्र की वृद्धि दर 8.9 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है, जो वर्ष 2015-16 में दर्ज की गई वृद्धि के लगभग बराबर है। सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुरूप कर्मचारियों को मिली अच्छीखासी धनराशि की बदौलत लोक प्रशासन, रक्षा एवं अन्य सेवाओं में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इसी को देखते हुए सेवा क्षेत्र के तेज रफ्तार पकड़ने का अनुमान लगाया गया है। सामाजिक बुनियादी ढांचा, रोज़गार और मानव विकास की दृष्टि से संसद में ‘दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016’ पारित हो गया है। इस अधिनियम का उद्देश्य दिव्यांगजनों के अधिकारों को सुरक्षित करने के साथ-साथ इनमें और ज्यादा वृद्धि सुनिश्चित करना है। इस अधिनियम में सरकारी प्रतिष्ठानों की रिक्तियों में उन लोगों के लिए आरक्षण स्तर को तीन प्रतिशत से बढ़ाकर चार प्रतिशत करने का प्रस्ताव किया गया है, जिनमें विकलांगता अपेक्षाकृत ज्यादा है और जिन्हें अत्यधिक सहायता की जरूरत पड़ती है।