Saturday 4 February 2017 06:04:45 AM
दिनेश शर्मा
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड जे ट्रंपसन ने ज़बरदस्त तरीके से अमेरीकियों का स्वाभिमान जगा दिया है और उन कई देशों को कड़ी फटकार लगाई है, जो मुस्लिम आतंकवाद को अभी तक दूसरे देशों की कानून व्यवस्था की समस्या बताते आ रहे हैं। राष्ट्रपति डोनाल्ड जे ट्रंपसन अमेरिका के ऐसे राष्ट्रपति हैं, जो कभी राजनीति में नहीं रहे और जिन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में अपने देश की जनता से जो वादे किए हैं, उनपर अमेरिकी राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के तुरंत बाद अमल शुरू कर दिया है। अमेरिकी जनता भी मान रही है कि डोनाल्ड जे ट्रंपसन ने मुस्लिम आतंकवाद के मनसूबों पर सही और तगड़ी चोट कर दी है, जिससे वे लोग बहुत तिलमिलाए हुए हैं, जिनकी उदासीनता के कारण अमेरिका की नाक कहे जाने वाले वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर 9/11 विध्वंसक हमला हुआ और यही नहीं इसके मुख्य अभियुक्त और अलकायदा सरगना ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान ने अपने यहां छिपा लिया और वह अमेरिकी प्रशासन से लादेन के बारे में लगातार सफेद झूंठ बोलता रहा, यह अलग बात है कि अमेरिकी खुफियां एजेंसियों की लंबी और गहन सुरागरसी पर अमेरिकी सील कमांडों ने ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान के सर्वोच्च सैनिक सुरक्षा जोन में घुसकर मार गिराया और उसका शव उठाकर लेजाकर अमेरिकी कानून के सुपुर्द कर दिया।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड जे ट्रंपसन उस समय अमेरिका के शीर्ष उद्योगपतियों में ही शुमार थे, जब न्यूयार्क में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के विध्वंस के रूप में मुस्लिम आतंकवाद से अमेरिका को कड़ी चुनौती मिली थी। कदाचित तभी से उन्हें यह लग गया था कि अमेरिका की कड़ी सुरक्षा को मुस्लिम आतंकवाद भेद चुका है और कुछ मुस्लिम देशों के लोग पढ़ने घूमने या शरण लेने के नाम पर अमेरिका में विध्वंस के लिए घुसपैठ कर रहे हैं, जो एक समय बाद अमेरिका की बड़ी मुसीबत बन जाएंगे और वही हुआ। डोनाल्ड जे ट्रंपसन का अनुमान सही निकला और अमेरिका को एक दशक के भीतर इस्लामिक आतंकवाद से बड़ा खतरा पैदा हो गया है, जिससे निपटने के लिए उन्होंने कुछ मुस्लिम देशों के लोगों के अमेरिका में प्रवेश करने पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिसका हिलेरी क्लिंटन के समर्थकों को छोड़कर हर जागरुक अमेरिकी नागरिक समर्थन कर रहा है। डोनाल्ड जे ट्रंपसन के इस कदम से मानों आतंकवाद की धरती हिल गई है, मानवाधिकारों और धर्मनिरपेक्षता के ठेकेदार मातम मना रहे हैं। अमेरिका की सड़कों पर जिस तरह का प्रतिरोध देखने को मिल रहा है, उसे देखकर समझा जा सकता है कि इनमें ज्यादातर हिलेरी क्लिंटन के मुस्लिम परस्त पुतले हैं, जो हिलेरी की हार से खीजे हुए हैं और जैसे जिनमें अमेरिका का स्वाभिमान खत्म हो चुका है। डोनाल्ड जे ट्रंपसन शुरू से ही सबकुछ खुलकर बोलते आ रहे हैं। उन्होंने भारत की तारीफ करने में भी कोई संकोच नहीं किया, वो भारत को अपना अभिन्न मित्र कहते हैं और मानते हैं कि भारत इस्लामिक आतंकवाद से पीड़ित है। अमेरिका के इस कदम से आतंकवाद के विरुद्ध भारत की लड़ाई और ज्यादा मज़बूत हुई है।
राष्ट्रपति डोनाल्ड जे ट्रंपसन कुछ मुसलमान देशों के लिए कहते आए हैं कि वे अमेरिका में उनका इस्लामिक आतंकवादी मिशन चलने नहीं देंगे, जोकि आतंकवाद से उत्प्रेरित है। निजीतौर पर ट्रम्प के पास इससे बड़ा कोई अनुभव नहीं है कि उन्होंने इस्लामिक आतंकवाद का वीभत्स रूप अपने ही देश में देखा है, जिसका मंज़र आज भी अमेरीकियों को डराता है। वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर इस्लामिक आतंकवाद के हमले के बाद से अमेरिकी कहां संभल पाए? वे आजतक इस्लामिक आतंक से भयग्रस्त हैं, अलकायदा सरगना ओसामा बिन लादेन का खात्मा होने के बावजूद। डोनाल्ड जे ट्रंपसन के अमेरिका का राष्ट्रपति चुने जाने के बाद से अमेरीकियों में अपनी सुरक्षा और अपने देश के प्रति गज़ब का आत्मविश्वास नज़र आ रहा है, यही एक अमेरिकी नागरिक की पहली तमन्ना होती है। इस मामले में यह तथ्य उल्लेखनीय है कि दुनियाभर का मीडिया अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में हिलेरी क्लिंटन को राष्ट्रपति बना रहा था और अमेरिकी जनता बड़े बहुमत से डोनाल्ड जे ट्रंपसन को राष्ट्रपति चुन रही थी। इस चुनाव परिणाम से मीडिया की साख मिट्टी में मिल गई है, जिसमें बिकाऊ मीडिया और बोगस राजनीतिक विश्लेषकों का पर्दाफाश हुआ है, जिन्हें डोनाल्ड जे ट्रंपसन ने पहले से ही अपने से दूर रखा हुआ था, ठीक उसी तरह जिस तरह भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसे मीडिया से एक उचित दूरी बनाए हुए हैं। सवाल है कि डोनाल्ड जे ट्रंपसन ने जिन सात मुस्लिम देशों ईरान, इराक, सीरिया, यमन, सूडान, लीबिया और सोमालिया के नागरिकों के अमेरिका में प्रवेश पर कुछ समय के लिए प्रतिबंध लगाया है और पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान को निगरानी सूची में रखा है तो वे आतंकवाद के खिलाफ ऐसा नहीं करते तो क्या करते?। कुवैत ने भी अमेरिका का अनुसरण किया है और पांच देशों के नागरिकों के अपने यहां प्रवेश पर पाबंदी लगा दी है, जिनमें पाकिस्तान और अफगानिस्तान भी शामिल हैं।
अमेरिका में पाकिस्तान के एक खूंखार आतंकवादी की शरण लेने की घटना यहां बड़ी ही प्रासंगिक है, जो अमेरिका में बम धमाके कराकर कराची को रफूचक्कर हो गया। यह उस अमेरिका की कहानी है, जो आतंकवाद को कानून व्यवस्था की समस्या बताता रहा है और आतंकवाद का शिकार हुआ तो उसकी आंखें खुल गईं। अमेरिकी संघीय रिपोर्ट के अनुसार पहली सितंबर 1992 को इकहरे बदन का दाढ़ी वाला एक नौजवान न्यूयार्क के जॉन एफ कैनेडी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के आव्रजन स्थल पर पहुंचा। उसके पासपोर्ट में उसे इराक का 25 वर्षीय रमजी अहमद युसूफ बताया गया था, जो पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस की उड़ान 703 से कराची से यहां आया था। वहां पर बैठे इंस्पेक्टर ने कहा कि यह तो अमेरिका में प्रवेश के लिए वीजा नहीं है मिस्टर यूसुफ! यात्री ने बड़ी बेबसी से कंधे उचकाए और कहाकि मैं राजनीतिक शरण के लिए आवेदन करना चाहता हूं। उसने बताया कि वह इराक वापस लौटा तो उसे सरकार विरोधी गतिविधियों के चलते गिरफ्तार कर लिया जाएगा और शायद फांसी भी दे दी जाए। काउंटर पर बैठे दूसरे आव्रजन अधिकारी ने यूसुफ का नाम और पासपोर्ट नंबर एक कंप्यूटर में दर्ज किया और फिर अपराधियों और संदिग्ध आतंकवादियों वाली सूची से मिलाने के लिए बटन दबाया। रमजी अहमद युसुफ का कोई विवरण उसमें नहीं था। वस्तुतः उस समय यहां की कंप्यूटर व्यवस्था धरी की धरी रह गई और जैसा कि बाद में अमेरिका की संघीय पुलिस ने मामला दायर किया, यूसुफ का कोई विवरण उसके पास नहीं था। यूसुफ एक अत्यंत कुशल पाकिस्तानी आतंकवादी था, जो कमीज बदलने वाले अंदाज में नाम बदल लेता था, जो उदासीन अमेरीकी सुरक्षा एवं खुफिया अधिकारियों की आंखों में धूल झोंककर अमेरिका में शरण हांसिल करके वहां अपने आतंकवादी मिशन को अंजाम देने में सफल हुआ। जबतक अमेरीकी पुलिस उसे खोजती, तबतक वह पाकिस्तान निकल चुका था।
संघीय आरोप पत्र के अनुसार पाकिस्तानी यूसुफ अपनी वास्तविक मुहिम पर अमेरिका में हत्याओं और बम विस्फोट का घातक अभियान चलाने पर तुले फिलिस्तीनी, मिस्र और सूडान के इस्लामी आतंकवादियों के संगठन की सहायता करने अमेरिका आया था। इस जेहादी इस्लामी जत्थे में अमेरिका में बसते जा रहे मुसलमानों में से भी कुछ लोगों को भर्ती किया गया था। इनका चयन एवं प्रशिक्षण ईरानी और उनके सहयोगी उग्रवादियों ने किया था। इनमें से अनेक न्यूयॉर्क के बुरकलिन और न्यूजर्सी के जर्सी सिटी की मस्जिदों में नमाज अदा करते रहे हैं, जहां उस समय निर्वासित मिस्र इमाम शेख उमर अब्दुल रहमान अकसर तकरीरें किया करते थे। यह नेत्रहीन महाशय यूं तो मिस्र की तत्कालीन सरकार को उखाड़ फेंकने का उपदेश देते थे, मगर पाश्चात्य विश्व में अमेरिका को ही इस्लाम का सबसे बड़ा दुश्मन बताते हुए अपने अनुयाइयों से कहा करते थे कि ‘बहा दो अमरीकी खून, खुद उन की सरजमीं पर।’ संघीय अभियोग पत्र के अनुसार यूसुफ ने सबसे पहले उस बैंक खाते तक अपनी पहुंच बनाई थी, जो बम विस्फोटों के लिए खोला गया था। जानकारी के अनुसार उसने उस वक्त मुख्यतः मध्य पूर्व और पश्चिमी यूरोप के बैंकों के माध्यम से इस खाते में करीब 1,00,000 डॉलर जुटाए थे और इसका अधिकांश हिस्सा ईरान से आया था। यूसुफ ने आम तौर पर उपलब्ध सस्ते रसायनों और उर्वरकों के सहारे विस्फोट तैयार करने में मदद की थी। यूसुफ ने शरण के लिए आव्रजन संबंधी मामलों की सुनवाई करने वाले तीन न्यायाधीशों को तारीख ले-लेकर उलझाए रखा। न्यूयॉर्क नगर के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में 26 फरवरी 1993 को दोपहर बाद जबरदस्त विस्फोट हुआ, जिसमें छह लोग मारे गए और करीब 1,000 घायल हो गए। इनका लक्ष्य और भी अधिक लोगों की जान लेना था। सेंटर की 110 मंजिला इमारत की एक भी मंजिल उड़ गई होती तो मृतकों की संख्या हजारों से ऊपर पहुंच गई होती।
संघीय जांच ब्यूरो ने पांच हफ्ते में ही पांच संदिग्ध लोगों को गिरफ्तार किया। बम बनाने के लिए रखे गए रसायनों के भंडार में यूसुफ की उंगलियों के निशान भी पाए गए। पता चला कि न्यूयॉर्क नगर की फेडरल बिल्डिंग, संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्यालय और लिंकन एवं हॉलैंड सुरंगों में विस्फोट किया जाना था। न्यूयॉर्क से रिपब्लिकन सीनेटर ऐल्फांस डी एमैटो और उस समय संयुक्त राष्ट्र महासचिव बुतरस बुतरस घाली समेत अनेक लोगों की हत्या करने की योजना भी बनी थी। संघीय जांच ब्यूरो के एक मुखबिर ने चुपचाप शेख रहमान और 4 जुलाई के षड़यंत्र में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार कुछ लोगों की बातचीत टेप कर ली थी। इस बातचीत से जाहिर है कि इस धार्मिक नेता ने बम विस्फोट की योजना के लिए अपनी दुआएं दी थीं। कुल मिलाकर शेख और 21 अन्य लोगों को गिरफ्तार किया गया, उन पर मामला चलाया गया, लेकिन ऐसी गिरफ्तारियों भर से अमरीकी भूमि पर से आतंकवाद का खात्मा नहीं हो जाएगा। उस वक्त के सीआईए के निदेशक आरजेम्स वूल्सी सावधान करते रहे कि अमेरिका अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद का प्रमुख लक्ष्य बन गया है। यहां और मध्य पूर्व के गुप्तचर एवं सुरक्षा अधिकारियों को इस बात में जरा भी संदेह नहीं है कि आतंकवाद को कौन देश सबसे ज्यादा बढ़ावा और समर्थन दे रहे हैं। जाहिर है कि यह देश हैं पाकिस्तान और ईरान। डोनाल्ड जे ट्रंपसन ने इन देशों पर पाबंदी लगाने का जो कदम उठाया है, उसके पीछे ये सब वारदातें हैं, जो अमेरिका के लिए घातक हैं।
याद कीजिएगा कि लंदन से अमरीका जा रहे विमानों को विस्फोटकों से उड़ाने की साजिश का पर्दाफाश एक समय ब्रिटेन की पुलिस ने ही किया था, जिसमें मुस्लिम आतंकवाद का अंतरराष्ट्रीय चेहरा उजागर हुआ। ग्यारह सितंबर 2001 को न्यूयार्क में विश्व व्यापार केंद्र को विमानों से टक्कर मारकर ध्वस्त करने, पेंटागन पर आंशिक रूप से हमला करने में सफलता प्राप्त करने और पेंसिलवेनिया में विमान से हमला करने में विफल रहने की वारदातों को डोनाल्ड जे ट्रंपसन ने देखा है और एक अमेरीकी नागरिक के रूप में झेला है। इन वारदातों ने पश्चिमी देशों को इस्लामी आतंकवाद के असली और खूंखार चेहरे से परिचित कराया था, जिसे कई देशों ने नज़रअंदाज किया। ग्यारह सितंबर के बाद भी उन्होंने केवल अपनी सुरक्षा और चौकसी बढ़ाने पर ही ध्यान दिया, इसे जड़ से खत्म करने पर नहीं। भारत के लिए तो आतंकवाद एक चिरपरिचित चेहरा है। भारत जैसे देशों के साथ आतंकवादी वारदात पर पश्चिमी देशों ने मात्र शाब्दिक सहानुभूति ही प्रकट की और भारत में वांछित अपराधियों को शरण देकर उसे भारत में कानून व्यवस्था की समस्या बताया गया। भारत में हुईं आतंकवादी वारदातों के स्रोत पर कभी ध्यान ही नहीं दिया गया। भारत ने जब भी पाकिस्तान की भूमिका की ओर इशारा किया, तब अमेरिका ने भी उससे पुख्ता सबूत देने को कहा था। वह भी तब जब अमेरिका के एक युवा पत्रकार डैनियल पर्ल की पाकिस्तान में आतंकवादी उमर शेख ने मध्ययुगीन ढंग से सिर कलम करके हत्या कर दी, जिसने भारत में भी आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम दिया था।
ब्रिटेन में पुलिस ने दस अगस्त 2006 को जिन 21 लोगों को पकड़ा था, वे सभी पाकिस्तानी मूल के थे। भारत की आर्थिक नगरी मुंबई की ट्रेनों में हुए श्रृंखलाबद्ध विस्फोटों के पीछे भी पाकिस्तानी आतंकवादी ही रहे हैं। कोई माने या न माने, पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ भारत विरोधी मुस्लिम आतंकवादी संगठनों के सरगना रहे हैं और आज भी हैं। लश्कर-ए-तैय्यबा के आका हाफिज सईद का नाम उस सूची में शामिल है, जो भारत ने पाकिस्तान को सौंपी हुई है और कहा हुआ है कि पाकिस्तान अपने यहां छिपे दाऊद इब्राहीम सहित इन सभी आतंकवादियों को भारत सरकार के हवाले करे, लेकिन पाकिस्तान सरकार ने ऐसा नहीं किया, वह धड़ल्ले से अपनी भारत विरोधी गतिविधियां चला रहा है, मगर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड जे ट्रंपसन ने जैसे ही कुछ मुस्लिम देशों के लोगों के अमेरिका में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया और पाकिस्तान को निगरानी सूची में डाला, पाकिस्तान के होश उड़ गए और उसने हाफिज सईद को तुरंत नज़रबंद कर दिया। पाकिस्तान अब कम से कम पश्चिमी देशों के सामने यह दावा नहीं कर सकता है कि वह आतंकवादी संगठनों के खिलाफ है। मुस्लिम चरमपंथी संगठन आईएसआईएस के आतंकवादी पूरे विश्व में अपना साम्राज्य स्थापित करने का स्वप्न देख रहे हैं। वे अपने वैचारिक सार की दृष्टि से ठेठ पुर्नरुत्थानवादी हैं और एक खलीफा के नेतृत्व में राष्ट्र-राज्यों की सीमाओं से रहित इस्लामी सत्ता कायम करना चाहते हैं। उनका लक्ष्य इस्लाम की प्राचीनतम अवधारणा को पुनः लागू करना और पिछले डेढ़ हजार वर्ष के दौरान उसमें आई मिलावट को दूर करना है। उन्होंने इसके लिए जो रास्ता चुना है, वह उनको कितना गर्त में ले जाएगा, यह पूरी दुनिया तो देख रही है, लेकिन उनके उलेमा और राजनीतिज्ञ नहीं देख रहे हैं।
मुस्लिम आतंकवाद की विचारधारा सऊदी अरब की प्रचारित वहाबी या सलाफी इस्लाम की विचारधारा मानी जाती है। सऊदी अरब के साथ अपने घनिष्ठ संबंधों के कारण विभिन्न अमरीकी प्रशासकों ने सीआईए और एफबीआई को आतंकवादी गुटों के साथ उसके संबंधों की जांच करने से बार-बार रोका है। अंतरराष्ट्रीय इस्लामी जेहाद को मिल रही वित्तीय सहायता अब जगजाहिर हो चुकी है। रियाद स्थित वर्ल्ड असेंबली ऑफ मुस्लिम यूथ और कुवैत स्थित इंटरनेशनल इस्लामिक फेडरेशन ऑफ स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइजेशन के साथ उसके घनिष्ठ संबंध हैं। अमेरिका में शिकागो स्थित कन्सेल्टेटिव कमिटी ऑफ इंडियन मुस्लिम्स से भी उसे नैतिक एवं वित्तीय मदद मिलती है। आतंकवादी संगठन ज्यादातर विश्वस्तर पर इंटरनेट जिहादियों से संपर्क बनाए हुए हैं, जिनका काम नफरत हिंसा फैलाने का रहता है, लेकिन धार्मिक आस्था के कारण वे नशे के आदी नहीं होते। वे अपने काम के लिए विदेशी समर्थकों से येन-केन-प्रकारेण रकम हासिल करते हैं। उन्हें अक्सर 15वीं सदी के जिहादी मालाबारी जैनुद्दीन की कृति तुहफत-अल-मुजाहिद्दीन के सबक पढ़ाए जाते हैं, जो पुर्तगालियों का विरोध किया करता था। भारत में मुस्लिम आतंकवाद का खतरा कितना बढ़ चुका है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अब मुस्लिम आतंकवाद को भारत में स्थानीय समर्थन मिलने लग गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड जे ट्रंपसन के फैसलों की प्रतिक्रिया भारत में भी हो रही है। भारत की नरेंद्र मोदी सरकार बड़ी सावधानी से इस स्थिति पर नज़र रखे हुए है, किंतु इतना तो तय है कि आतंकवाद के मुद्दे पर सभी देशों को डोनाल्ड जे ट्रंपसन के पीछे चलना ही होगा, नहीं तो उनको इसके वो परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं, जिनका तोड़ विश्वयुद्ध में ही ढूंढा जाएगा। राष्ट्रपति डोनाल्ड जे ट्रंपसन के सामने चुनौतियां ही चुनौतियां हैं, जिनको समझकर ही उन्होंने उनपर लगाम की कारगर शुरूआत कर दी है, देखना है कि विश्व समुदाय उनका कबतक कितना साथ देता है।
न्याय और यकीन की बुनियाद पर खड़े बताए जा रहे इस्लाम पर आज यूं ही उंगलियां नहीं उठ रही हैं। गैर मुसलमानों की नई पीढ़ी में यह सवाल घर कर रहा है कि क्या मुसलमान आतंकवाद फैलाने का काम करते हैं? दुनिया में जो आंखें खोल रहे हैं, उनके सामने तो इस्लाम की यही तस्वीर बन रही है। मुसलमानों की नई पीढ़ी की यह कितनी बदकिस्मती कि उसे उसके उपदेशक, जेहाद और आतंकवाद सिखा रहे हैं। वह एक ऐसे नए और भयानक बियावान में जा रहे हैं, जहां इस्लामिक विद्वानों की नहीं, बल्कि कार्बाइन, मशीनगनों और धमाकों की भाषा पढ़ाई जा रही है। एक इटैलियन शोधकर्ता लौरेटा नेपोलियोनी ने काफी समय पहले मुसलमानों के जेहादी संगठनों के वित्तीय तंत्र का अध्ययन करके निष्कर्ष निकाला था कि एक अनुमान के आश्चर्यजनक परिणाम के अनुसार मुस्लिम आतंकवाद की अर्थव्यवस्था डेढ़ लाख करोड़ डॉलर प्रतिवर्ष यानी ब्रिटेन के सकल घरेलू उत्पाद की दुगुनी है। इस अर्थव्यवस्था में कुछ मुस्लिम देशों, मदरसों, इस्लामी धर्मार्थ संगठनों, इस्लामी वित्तीय संस्थानों आदि का बहुत बड़ा योगदान है। यह आंकड़ा इस्लामी आतंकवाद के विस्तार और उसकी शक्ति का परिचय देने के लिए पर्याप्त है, जिसे डोनाल्ड जे ट्रंपसन तोड़ डालना चाहते हैं, जिसमें उन्हें हर अमेरीकी और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में शामिल होने का दावा करने वालों की दिल और ईमानदारी से साथ की आवश्यकता है।