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Wednesday 1 March 2017 11:39:52 PM
नई दिल्ली। भारत सरकार द्वारा गठित एक पैनल ने यह कहते हुए देशभर में दूसरे राज्यों से आए लोगों के हितों की रक्षा के लिए आवश्यक कानूनी एवं नीतिगत रूपरेखा तैयार करने की सिफारिश की है कि इस तरह के लोग आर्थिक विकास में व्यापक योगदान करते हैं। पैनल का कहना है कि इसके मद्देनज़र दूसरे राज्यों से आए लोगों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करने की जरूरत है। आवास एवं शहरी ग़रीबी उन्मूलन मंत्रालय ने वर्ष 2015 में उत्प्रवासन (माइग्रेशन) पर कार्यदल गठित किया था, जिसने सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। कार्यदल ने आवास एवं शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्री एम वेंकैया नायडू के साथ विस्तृत चर्चाएं भी कीं।
माइग्रेशन कार्यदल ने अपनी सिफारिश में कहा है कि दूसरे राज्यों से आए लोगों की जाति आधारित गणना के लिए भारत के महापंजीयक प्रोटोकॉल में संशोधन करने की जरूरत है, ताकि जिस राज्य में वे अब निवास कर रहे हैं, वहां उन्हें परिचारक (अटेंडेंट) संबंधी लाभ मिल सकें। कार्यदल ने यह भी सिफारिश की है कि दूसरे राज्यों से आए लोगों को पीडीएस की अंतर-राज्य परिचालन की सुविधा प्रदान करते हुए उन राज्यों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली का लाभ हासिल करने में सक्षम बनाया जाना चाहिए, जहां अब वे निवास कर रहे हैं। आवाजाही की आजादी और देश के किसी भी हिस्से में निवास करने के संवैधानिक अधिकार का उल्लेख करते हुए कार्यदल ने सुझाव दिया है कि राज्यों को स्थायी निवास की आवश्यकता समाप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, ताकि कामकाज और रोज़गार के मामले में उनके साथ कोई भेदभाव नहीं हो।
माइग्रेशन कार्यदल के अनुसार राज्यों से यह भी कहा जाएगा कि वे सर्व शिक्षा अभियान के तहत वार्षिक कार्ययोजनाओं में दूसरों राज्यों से आए लोगों के बच्चों को शामिल करें, ताकि शिक्षा का अधिकार उन्हें लगातार मिलता रहे। दूसरों राज्यों से आए लोगों द्वारा वर्ष 2007-08 के दौरान अपने-अपने राज्यों में भेजी गई 50,000 करोड़ रुपये की बड़ी राशि का उल्लेख करते हुए कार्यदल ने सुझाव दिया है कि धन हस्तांतरण की लागत को कम करते हुए डाकघरों के विशाल नेटवर्क का कारगर उपयोग करने की जरूरत है, ताकि उन्हें अपने राज्य में धन भेजने के लिए अनौपचारिक उपायों का इस्तेमाल न करना पड़े।