Saturday 11 March 2017 01:09:38 AM
दिनेश शर्मा
नई दिल्ली/ लखनऊ। देश के पांच राज्यों में प्रतिष्ठापूर्ण विधानसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी 'मुदिया' ने खासतौर से उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में सपा, बसपा और कांग्रेस के परखचे उड़ा दिए हैं। पूरा देश नरेंद्र मोदी की शानदार विजय पर झूम रहा है और यही नहीं, देश के सात समंदर पार से इन चुनावों में नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता को तोल रहे रूस, अमेरिका, चीन-पाकिस्तान और जापान जैसे देशों एवं भारतीय समुदाय ने यह मान लिया है कि नरेंद्र मोदी का कोई विकल्प नहीं है और भारत की यही वो राजनीतिक हस्ती है, जिसके पीछे आने वाले समय में विश्व समुदाय खड़ा होगा। बहरहाल बाकी राज्यों मणिपुर, गोवा और पंजाब के चुनाव नतीजों का जहां तक सवाल है तो भाजपा ने मणिपुर में अच्छा प्रदर्शन किया है, जिससे यह पता चलता है कि मोदी सरकार ने पूर्वोत्तर राज्यों में भाजपा को स्थापित कर दिया है, जो एक बड़ा सकारात्मक नतीजा है।
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है और इसके सर्वाधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में शासन करने वाली पार्टी या नेता का देश की राजनीति में अहम रोल होता है और देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी भी उत्तर प्रदेश ही तय होती है। इस समय यहां पर समाजवादी पार्टी और बसपा की सरकारों का आना जाना था, मगर इन विधानसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी ने इनका तख्ता उलट दिया है। नरेंद्र मोदी की भारतीय जनमानस में जो नई ताकत उभरकर आई है, उसने लोकसभा चुनाव में मिली विजय से आगे की को लाइन खींच दी है। जनता ने नोटबंदी के बड़े जोखिम भरे फैसले, देश में राष्ट्रवाद और गरीबों में नरेंद्र मोदी की प्रचंड लोकप्रियता पर मुहर लगा दी है। जनता को नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की हद से बढ़कर आलोचना पसंद नहीं आई। उत्तर प्रदेश का चुनाव नरेंद्र मोदी की स्वीकारोक्ति का पैमाना माना गया था, जहां उन्हें प्रचंड सफलता मिली, जिसपर जनता जश्न मना रही है। देश में सांप्रदायिक और देश विरोधी ज़हर उगलने वाली ताकतों को करारा जवाब मिला है। मोदी सरकार ने इन तीन वर्ष में जनकल्याण की जो योजनाएं बनाईं, उन्हें आम जनता ने तहेदिल से पसंद किया है और यह साबित किया है कि नरेंद्र मोदी सरकार वास्तव में गरीबों के लिए काम करने वाली सरकार है।
देश की जनता को पसंद नहीं आया कि राष्ट्र की सुरक्षा में सरहदों पर लगी भारतीय सेना की कार्रवाई की भी कोई आलोचना करे। जनता ने उनका सूपड़ा साफ किया है, जो सर्जिकल स्ट्राइक पर सेना और मोदी सरकार से जवाब तलब कर रहे थे और उसका सबूत मांग रहे थे। जनता को बुरा लगा, जब उत्तर प्रदेश में विधानसभा के अंतिम चरण में सात मार्च को लखनऊ में एक आतंकवादी सैफुल्लाह को खतरनाक मुठभेड़ में मारने पर मुठभेड़ की सच्चाई के सबूत मांगे गए, नरेंद्र मोदी को तीन तलाक पर अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं का जबरदस्त समर्थन मिलता दिखाई दिया है। नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पर जिस किसी को भी भ्रम था, वह दूर हो गया है और कोई माने या न माने, यह चुनाव ही भाजपा ने नरेंद्र मोदी की पीठ पर बैठकर लड़ा। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने इसमें एक सच्चे और पराक्रमी सैनिक की भूमिका को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। उत्तर प्रदेश के संदर्भ में पिछड़े वर्ग ने भाजपा के लिए गलीचे बिछा दिए। मायावती को मुख्यमंत्री बनाते आ रहे दलित समाज ने मायावती को छोड़कर नरेंद्र मोदी को अपना नेता मान लिया है।
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव का तख्ता पलट उनके पुत्र और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को बड़ा महंगा पड़ा है। अखिलेश यादव को यह पराजय हमेशा बड़ा सबक रहेगी। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के लिए यह डरावनी पराजय है, जिसमें उन्हें तुष्टिकरण की राजनीति का करारा सबक मिला है। तुष्टिकरण की राजनीति ने अखिलेश यादव और बसपा अध्यक्ष मायावती को भी तबाह किया है। इन दोनों ने जिनके भरम पर राजनीति की है, उससे सिद्ध हो गया है कि तुष्टिकरण एक घातक वायरस है और दाल में नमक ही श्रेष्ठ फॉर्मूला है न कि नमक में दाल मिलाना। विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव, राहुल गांधी और मायावती के राजनीतिक भाषणों ने उन्हें शर्मनाक पराजय की हद तक पहुंचा दिया है और ऐसी पराजय कि इन तीनों का राजनीतिक रूपसे संभल पाना कठिन होगा। मायावती के लिए तो यह एक ऐसा हादसा है, जिसका उन्हें लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा चुनाव में भी सामना करना पड़ा। मायावती के नरेंद्र मोदी पर लिखकर या लिखवाकर बोले गए राजनीतिक हमलों ने उनका बहुत खेल बिगाड़ा है।
भारतीय जनता पार्टी का देशभर में विजय का जश्न चल रहा है। समाचार चैनलों पर नरेंद्र मोदी एवं अमित शाह की रणनीतियों के कसीदे पढ़े जा रहे हैं। विश्लेषण किए जा रहे हैं कि इनमें क्या खास रहा और दूसरों ने क्या गलत किया। एग्ज़िट पोल इस बार सही साबित हुए हैं, जिससे इनपर फिर से कुछ विश्वास लौटा है। इस बार मीडिया ने गहराई में जाकर पड़ताल की कोशिश की है, हालाकि कुछ का तो यही कहना था कि बसपा आ रही है या फिर किसी को बहुमत नहीं मिल रहा है। उत्तराखंड में पहले से ही लग रहा था कि वहां इस बार भाजपा का आना तय है। बहरहाल उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में मुख्यमंत्री के नामों की चर्चा शुरू हो चुकी है। कई नेताओं के बायोडाटा टीवी चैनलों पर चल रहे हैं। हो सकता है कोई ऐसे चेहरे की मुख्यमंत्री पद पर ताजपोशी हो, जो चुनाव नहीं लड़ा हो। लखनऊ के मेयर डॉ दिनेश शर्मा भाजपा नेतृत्व की उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की पसंद हो सकते हैं और यह बात इसलिए ज्यादा बलशाली लगती है, क्योंकि डॉ दिनेश शर्मा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काफी करीब और परखे हुए नेता हैं। गौरतलब है कि डॉ दिनेश शर्मा भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष होने के साथ-साथ भाजपा के गुजरात राज्य के प्रभारी भी हैं, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गृहराज्य है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के लिए मीडिया पर और भी नाम चल रहे हैं, मगर उनपर आम सहमति नज़र नहीं आती है। लगता तो यही है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के लिए लखनऊ के मेयर डॉ दिनेश शर्मा का नाम फाइनल है।