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Sunday 26 March 2017 02:38:32 AM
नई दिल्ली। भारत के विधि आयोग ने देश में घृणा फैलाने वाले भाषणों के खतरे पर अंकुश लगाने के भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 153बी और धारा 505ए के बाद नई धाराएं जोड़ते हुए भारतीय दंड संहिता में संशोधन करने का प्रस्ताव किया है। उच्चतम न्यायालय ने प्रवासी भलाई संगठन बनाम भारत संघ (एआईआर 2014 एससी 1591) मामले में भारत के विधि आयोग से इस बात पर गौर करने को कहा था कि क्या घृणा भाषण को परिभाषित करना और संसद से इस बारे में सिफारिश करना उचित प्रतीत होता है, ताकि कभी भी दिए जाने वाले घृणा भाषणों के खतरे पर अंकुश लगाने के मामले में चुनाव आयोग को मजबूत बनाया जा सके। इस संदर्भ को ध्यान में रखते हुए विधि आयोग ने भारत में घृणा भाषणों पर पाबंदी लगाने वाले कानूनों का अध्ययन किया, जिसके बाद केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट पेश कर दी है।
भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संविधान में गारंटी प्रदत्त एक अत्यंत महत्वपूर्ण अधिकार है, हालांकि इस अधिकार पर भारतीय संविधान की धारा 19 (2) के तहत अनेक तर्कसंगत पाबंदियां लगाई गई हैं। समाज के कमजोर तबकों को हाशिए पर डालने वाले भाषण की रोकथाम करने वाले कानूनों का उद्देश्य अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और समानता के अधिकार में उचित तालमेल बैठाना है। भेदभावपूर्ण प्रवृत्तियों एवं तौर-तरीकों से इस तबके का संरक्षण करने के लिए यह आवश्यक है कि घृणा एवं हिंसा को उकसाने वाली अभिव्यक्ति के स्वरूपों का नियमन किया जाए। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए भारत के विधि आयोग ने 23 मार्च 2017 को ‘घृणा भाषण’ के शीर्षक वाली अपनी रिपोर्ट संख्या 267 केंद्र सरकार को पेश कर दी, ताकि वह इस पर विचार कर सके। विधि आयोग ने अपनी राय व्यक्त करते हुए कहा है कि भेदभावपूर्ण रोधी उपाय के अंतर्गत इस बात को ध्यान में रखा जाना चाहिए कि कमजोर तबकों के अधिकारों पर किसी भाषण का क्या नुकसानदेह असर पड़ता है।
विधि आयोग ने अपनी सिफारिश में कहा है कि किसी भाषण पर पाबंदी लगाने से पहले अनेक कारकों यानी फैक्टर्स को ध्यान में रखने की जरूरत है, भाषण का संदर्भ पीड़ित की सामाजिक स्थिति, भाषण तैयार करने वाले की सामाजिक स्थिति और भाषण में भेदभावपूर्ण एवं विघटनकारी माहौल बनाने की क्षमता इन कारकों में शामिल हैं। इस मसले पर गौर करने के बाद भारत के विधि आयोग ने भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 153बी और धारा 505ए के बाद नई धाराएं जोड़ते हुए भारतीय दंड संहिता में संशोधन करने का प्रस्ताव किया है।