स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Saturday 1 April 2017 05:11:06 AM
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव सरकार में पूंजी निवेश की बड़ी-बड़ी डींगे हाकने का एक आरटीआई में खुलासा हुआ है और सरकार के ही औद्योगिक विकास विभाग ने यह बताकर सबको हैरान कर दिया है कि उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव सरकार के कार्यकाल से ज्यादा पूंजी निवेश तो मायावती सरकार के कार्यकाल में हुआ था। आरटीआई की यह जानकारी कोई राजनीतिक आरोप नहीं है, बल्कि यह उसी विभाग ने जानकारी दी है, जो अपने यहां पूंजी निवेश की पाई-पाई का हिसाब रखता है। हैरान करने वाली बात है कि यदि अखिलेश सरकार में यूपी में बड़े पैमाने पर पूंजी निवेश हुआ है तो वह कहां हुआ, क्योंकि कागज़ पर सच्चाई तो कुछ और बयान हुई है। इस सच्चाई ने राज्य की औद्योगिक विकास विभाग एवं पूंजी निवेश से जुड़ी नौकरशाही को भी बेनकाब किया है। आरटीआई की सूचना को गलत तो नहीं माना जा सकता है-क्यों? अखिलेश सरकार के समय के ऐसे अनेक शर्मनाक झूंठ सामने आ रहे हैं, जिनसे साबित होता है कि धर्मनिर्पेक्षता के नाम पर कैसे-कैसे कर्मकांड हुए हैं, जिन्होंने अंदर-अंदर काम किया और अखिलेश यादव को सत्ता से बाहर करने में बड़ी भूमिका निभाई।
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने नारा लगाया था कि काम बोलता है और भारत के प्रधानमंत्री ने इस नारे का गिरेबान पकड़ते हुए कहा था कि उत्तर प्रदेश में काम नहीं कारनामा बोल रहा है। सही साबित हुआ कि प्रधानमंत्री ने सही जगह हाथ डाला था, जिस कारण अखिलेश यादव तिलमिलाकर गुजरात के गधों तक पर हमलावर हो गए थे। अखिलेश यादव ने पूंजी निवेश के नाम पर दिल्ली, मुंबई, लखनऊ, आगरा और देश के दूसरे आर्थिक क्षेत्रों में निवेश की महंगी समिटें आयोजित कीं। इन पर उत्तर प्रदेश की जनता का पैसा पानी की तरह बहाया गया, प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, डिज़िटल मीडिया एवं विदेशी मीडिया पर भी जनता के धन की बर्बादी की गई, मगर न पूंजी निवेश सामने आया और न ही काम का परिणाम बोलता दिखाई दिया। अखिलेश यादव ने पूरे पांच साल विकास कराने के दावे किए और उनपर सवाल उठाने वालों को अपना विरोधी मानकर उनका हद तक नुकसान पहुंचाने की कोशिश की। राजधानी लखनऊ के आरटीआई कार्यकर्ता संजय शर्मा ने मायावती और अखिलेश यादव के शासनकाल में उत्तर प्रदेश में पूंजी निवेश पर आरटीआई डाली तो उसके जवाब में पता चला कि अखिलेश यादव सरकार से ज्यादा पूंजी निवेश मायावती सरकार में ही हुआ, जिससे पता चला कि अखिलेश यादव और उनकी नौकरशाही उत्तर प्रदेश को पूरे पांच साल पूंजी निवेश के नाम पर गुमराह करती रही है।
आरटीआई एक्टिविस्ट संजय शर्मा ने यूपी के मुख्य सचिव के कार्यालय में एक आरटीआई अर्जी देकर वित्तीय वर्ष 2007-08 से वित्तीय वर्ष 2016-17 तक की अवधि में यूपी में हुए पूंजी निवेश की सूचना मांगी थी। मुख्य सचिव कार्यालय ने संजय शर्मा की इस आरटीआई को उत्तर प्रदेश के औद्योगिक विकास विभाग को अंतरित कर दिया। औद्योगिक विकास विभाग ने इस संबंध में संजय शर्मा को जो सूचना दी है, वह बताती है कि यूपी में पूंजी निवेश कराने के मामले में अखिलेश यादव अपनी पूर्ववर्ती मायावती से भी फिसड्डी साबित हुए हैं। यूपी की सत्ता संभालने के प्रथम चार वर्ष में मायावती सरकार ने यूपी में कुल 32492.85 करोड़ रुपए का पूंजी निवेश कराया तो वहीं अखिलेश यादव सरकार यूपी की सत्ता संभालने के प्रथम चार वर्ष में यूपी में महज़ 27374.50 करोड़ रुपए का ही पूंजी निवेश करा पाई। अखिलेश यादव के कार्यकाल का यह पूंजी निवेश मायावती के कार्यकाल के पूंजी निवेश के मुकाबले 5118.35 करोड़ रुपये अर्थात लगभग सोलह प्रतिशत कम रहा। मायावती शासनकाल में वित्तीय वर्ष 2007-08 में 4918.26 करोड़ रुपए, 2008-09 में 5176.63 करोड़ रुपए, 2009-10 में 11951.93 करोड़ रुपए, 2010-11 में 10446.03 करोड़ रुपए का पूंजी निवेश हुआ तो अखिलेश यादव के शासनकाल में वित्तीय वर्ष 2012-13 में 6659.55 करोड़ रुपए, 2013-14 में 5213.03 करोड़ रुपए, 2014-15 में 7671.2034 करोड़ रुपए, 2015-16 में 7830.7169 करोड़ रुपए का पूंजी निवेश हुआ। मायावती ने अपने कार्यकाल के अंतिम वर्ष में यूपी में 25052.42 करोड़ रुपए का पूंजी निवेश कराया था। अखिलेश यादव के कार्यकाल के अंतिम वर्ष अर्थात वित्तीय वर्ष 2016-17 की सूचना अभी नहीं दी गई है।
अखिलेश यादव और उनके अधिकारियों ने यूपी में पूंजी निवेश कराने के नाम पर मुफ्त की विदेशी-देशी यात्राओं, होटलों में महंगी बैठकों और झूंठे प्रचार पर जनता की गाढ़ी कमाई खर्च कर जनता को धोखा देने का ही काम किया है। यूपी में पूंजी निवेश पर झूंठ बोलने का भी कारण अखिलेश यादव की हार के कारकों में से एक है। इस प्रकार उत्तर प्रदेश के नए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी अखिलेश यादव सरकार के कार्यकाल की रीढ़विहीन और गुमराह करने वाली नौकरशाही विरासत में मिली है। यूपी की नौकरशाही के कुछ लोग अपने स्वार्थ साधने में लग गए हैं और यह देखना होगा कि नई सरकार के लिए इनको परखने का क्या पैमाना होगा। यूपी की नौकरशाही के कुछ लोगों ने अखिलेश यादव सरकार का विश्वासपात्र बने रहने के लिए अखिलेश यादव को कहीं का नहीं छोड़ा। ये अधिकारी मुख्यमंत्री के सामने अपनी निष्ठा के नंबर बढ़वाने के चक्कर में मानों सफेद झूंठ ही बोले हैं। पूंजी निवेश सरकार के संसाधनों को बढ़ाने का एक विश्वसनीय आधार माना जाता है। यूपी में अगर इसी प्रकार पूंजी निवेश होगा तो आगे क्या होगा इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है।