Friday 14 April 2017 12:19:50 AM
गुरु प्रकाश
मैं नमन करता हूं उस देवता को जिसके हृदय में अनेक ज्ञात और अज्ञात दबे-कुचलों, अभावग्रस्त और जीवन-यापन के लिए संकटग्रस्त समाज और उसके लोगों के लिए दर्द दिखाई दिया और उनके उद्धार और अधिकार के लिए भारत के संविधान में ऐसा स्थान दिया, जिसके फलस्वरूप आज हिंदुस्तान में इस समाज को राजनीतिक प्रशासनिक एवं सामाजिक क्षेत्र में भी उनके प्रयासों के अनुकूल अवसर मिल रहे हैं। मैं आत्मसात करता हूं उस धीर-वीर पुरूष को जो हमारा लोकनायक बना और जिसने हमारे लिए न जाने कितने कष्ट उठाए, न जाने कितनी उपेक्षाएं झेली और किन-किन के लिए? हमारे लिए, हमारी पीढ़ी के सुनहरे सपनों के लिए। हे महामानव आप सदा अमर हैं और धरती पर जन्म लेकर आपने हमारे पुरखों की आत्मा को शांति प्रदान की है। आज हम अपने समाज के कल्याण के लिए आपके प्रयासों और सपनों को फलते-फूलता देख रहे हैं।
जी हां! भारतरत्न बाबासाहेब डॉ भीमराव अंबेडकर को यह हमारी विनम्र श्रद्धांजलि है और इन शब्दों के अलावा और उन्हें याद करने के अलावा उन्हें प्रदान करने के लिए कदाचित हमारे पास कुछ नहीं है। आज देश भारतरत्न बाबासाहेब डॉ भीमराव अंबेडकर की 126वीं जयंती मना रहा है। हिंदुस्तान की संसद, संविधान के पुण्य और न्याय स्थलों और देश के करोड़ों लोगों की आस्था के जनक को बड़ी श्रद्धा से याद किया जा रहा है, उनके कदमों पर चलने का संकल्प लेने की रस्म अदायगी हो रही है। बाबासाहेब डॉ भीमराव अंबेडकर का यह 126वां जन्मदिन है और मेरी ये पंक्तियां उनके लिए इसलिए भी प्रस्तुत हैं कि उन्होंने अपने जीवनकाल में उपेक्षा की ऐसी बेड़ियों को भोगा और देखा है, जो किसी जेल की कालकोठरी से कम नहीं कहीं जा सकतीं, लेकिन समय बदला और उन्होंने दलित उपेक्षित समाज के लिए रास्ते बनाए, उन्हें शिक्षा का मार्ग दिखाया, उन्हें सम्मान की परिभाषा बताई। बाबासाहेब का जन्म स्थान मध्यप्रदेश में एक छोटे से गांव महू में है और वे एक अस्पृश्य परिवार में जन्में थे।
बाबासाहेब डॉ भीमराव अंबेडकर के जीवन और उनके कार्यों के बारे में व्यापक अनुसंधान, अध्ययन और लेखन हो चुका है। हम बाबासाहेब को स्वतंत्रता आंदोलन के उन महानतम नेताओं में से एक के रूप में देखते हैं, जो न केवल एक क्रांतिकारी राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में महान थे, बल्कि शैक्षिक दृष्टि से एक महान बुद्धिजीवी थे। वे भारत के नेताओं की उस श्रेणी से संबद्ध थे, जिसने ऐसे विशिष्ट कार्य किए, जिनके बारे में शोध होता है और बहुत कुछ लिखा जा सकता है, बल्कि उन्होंने स्वयं भी उपयोगी विषयों पर व्यापक लेखन किया, जो हमारी और हमारे आगे की पीढ़ियों के लिए पढ़ने योग्य है, जिन्हें पढ़कर आज हम उनपर यह आलेख प्रस्तुत करने में सक्षम हुए हैं। जाने-माने समकालीन इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपनी पुस्तकों में से एक पुस्तक 'मेकर्स ऑफ मॉडर्न इंडिया' यानी 'आधुनिक भारत के निर्माता' में बाबासाहेब डॉ भीमराव अंबेडकर को आधुनिक भारत के निर्माताओं की अग्रणी पंक्ति में रखा है, जिनका जीवन एक समान रूपसे असाधारण बुद्धिमता और राजनीतिक नेतृत्व की अभिव्यक्ति है।
जाने-माने अर्थशास्त्री, सामाजिक चिंतक और राज्यसभा सदस्य नरेंद्र जाधव ने छह खंडों और दो संस्करणों में 'आंबेडकर स्पीक्स' और 'आंबेडकर राइट्स' में डॉ भीमराव अंबेडकर के भाषणों और लेखों को अलग-अलग संकलित किया और प्रकाशित किया है। नरेंद्र जाधव ने डॉ भीमराव अंबेडकर को एक 'महान बुद्धिजीवी' माना है। वास्तव में बाबासाहेब डॉ भीमराव अंबेडकर बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, मानवविज्ञान और राजनीति जैसे अधिसंख्य विषयों में उनकी विद्वता ने उनमें एक स्पर्श भावना पैदा की, जिसके चलते वे किसी भी विषय में किसी से कम नहीं थे। भारत में इन महीनों में अत्यंत चर्चित विषय 'अधिक मूल्य के नोटों का विमुद्रीकरण' की परिकल्पना बाबासाहेब डॉ भीमराव अंबेडकर ने उस समय की थी, कि जब वे अर्थशास्त्र के विद्यार्थी हुआ करते थे। उनकी शाश्वत विरासत को किसी एक समुदाय, राजनीति, विचार या दर्शन तक सीमित करके देखना वास्तव में उचित नहीं होगा।
भारत में जिन पुरूषों और महिलाओं ने भारत के संविधान का प्रारूप तैयार किया, वे अत्यंत कल्पनाशील और दूरदर्शी थे। बाबासाहेब डॉ भीमराव अंबेडकर उस प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे, जिसने विश्व के सर्वाधिक विविधता वाले राष्ट्र के लिए सबसे लंबे संविधान का निर्माण किया। यह संविधान दुनिया की आबादी के छठे हिस्से के वर्तमान और भविष्य को प्रभावित करता है। आप इस बात का सिर्फ अनुमान ही लगा सकते हैं कि आर्थिक और लोकतांत्रिक विकास का समावेशी मॉडल तैयार करने के लिए कितनी अनुकरणीय बुद्धिमता की आवश्यकता पड़ी होगी। बाबासाहेब डॉ भीमराव अंबेडकर ने कहा था कि पिछड़े वर्गों को यह एहसास हो गया है कि आखिरकार शिक्षा सबसे बड़ा भौतिक लाभ है, जिसके लिए वे संघर्ष कर सकते हैं। हम भौतिक लाभों की अनदेखी कर सकते हैं, लेकिन पूरी मात्रा में सर्वोच्च शिक्षा का लाभ उठाने के अधिकार और अवसर को नहीं भूल सकते। यह प्रश्न उन पिछड़े वर्गों की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, जिन्होंने तत्काल यह महसूस किया है कि शिक्षा के बिना उनका वजूद सुरक्षित नहीं है। शिक्षा पर बल देने के मामले में बाबासाहेब डॉ भीमराव अंबेडकर कोलंबिया यूनिवर्सिटी के अपने प्राचार्य जॉन डेवी से अत्यंत प्रभावित थे। डॉ भीमराव अंबेडकर अपनी बौद्धिक सफलताओं का श्रेय अक्सर प्रोफेसर जॉन डेवी को प्रदान करते थे।
प्रोफेसर जॉन डेवी एक अमरीकी दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक और संभवत: एक सर्वोत्कृष्ट शिक्षा-सुधारक थे। बाबासाहेब डॉ भीमराव अंबेडकर औपचारिक शिक्षा विदेश में प्राप्त करने के जबरदस्त समर्थक थे। ऐसे समय में जबकि कानून की शिक्षा ब्रिटेन में प्राप्त करना अधिक लाभप्रद समझा जाता था, बाबासाहेब ने शाश्वत मानवीय मूल्यों के प्रति आस्था व्यक्त करते हुए कोलंबिया विश्वविद्यालय में जाने का निर्णय किया। उन्होंने अमरीकी रेलवे के अर्थशास्त्र से लेकर अमरीकी इतिहास तक विविध पाठ्यक्रमों का अध्ययन किया। डॉ भीमराव अंबेडकर ने 1938 में मैन्माड रेलवे वर्कर्स सम्मेलन में कहा था कि शिक्षा सबसे अधिक महत्वपूर्ण चरित्र है, मुझे यह देखकर दुख होता है कि देश के युवा, धर्म के प्रति उदासीन हो रहे हैं, धर्म एक नशा नहीं है, जैसा कि कुछ लोगों का कहना है। वे कहते थे कि मेरे भीतर जो अच्छाई है या मेरी शिक्षा से समाज को जो लाभ हो सकता है, मैं उसे अपने भीतर की धार्मिक भावना के रूप में देखता हूं। हमें यह समझना चाहिए कि महीनों और वर्षों तक आत्ममंथन करने के बाद उन्होंने एक धर्म का चयन किया, जो उनके पैतृक धर्म के करीब था। दुनियाभर के धार्मिक प्रमुखों और वैचारिक नेताओं ने उनके समक्ष ऐसे आकर्षक प्रस्ताव पेश किए, जिन्हें ठुकराना वास्तव में कठिन था, लेकिन उन्होंने ठुकराया। उनके व्यक्तित्व के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पक्ष को समझना और विश्लेषित करना अत्यंत कठिन है। एकता में उनकी अटूट आस्था थी, जिसका अनुमान उनके इस कथन से लगाया जा सकता है, 'जातीय रूप में सभी लोग विजातीय हैं, यह संस्कृति की एकता है, जो सजातीयता का आधार है। मैं इसे अनिवार्य समझते हुए कह सकता हूं कि कोई ऐसा देश नहीं है, जो सांस्कृतिक एकता के संदर्भ में भारतीय प्रायद्वीप का विरोधी हो।'
भारत की विदेश नीति को आकार प्रदान करने में डॉ भीमराव अंबेडकर के योगदान की कूटनीतिक समुदाय में अक्सर अनदेखी की जाती है। भारत पर चीन के हमले से 11 वर्ष पहले बाबासाहेब ने भारत को पूर्व चेतावनी दी थी कि उसे चीन की बजाय पश्चिमी देशों को तरजीह देनी चाहिए और तत्कालीन भारतीय नेतृत्व से कहा था कि वह संवैधानिक लोकतंत्र के स्तंभ पर भारत के भविष्य को आकार प्रदान करे। वर्ष 1951 में लखनऊ विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों की एक सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि सरकार की विदेश नीति भारत को सुदृढ़ बनाने में विफल रही है। भारत संयुक्तराष्ट्रसुरक्षा परिषद में स्थायी सीट क्यों न हासिल करे, प्रधानमंत्री ने इसके लिए क्यों नहीं प्रयास किया? उन्होंने कहा था कि भारत को संसदीय लोकतंत्र और मार्क्सवादी तानाशाही के बीच एक का चयन करते हुए अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए। चीन के संदर्भ में डॉ भीमराव अंबेडकर भारत की तिब्बत नीति से पूर्णतया असहमत थे। उन्होंने कहा था कि यदि माओ का पंचशील में कोई विश्वास है, तो उन्हें अपने देश में बौद्ध धर्मावलंबियों के साथ निश्चित रूपसे पृथक व्यवहार करना चाहिए, राजनीति में पंचशील के लिए कोई स्थान नहीं है।
डॉ भीमराव अंबेडकर ने लीग आफ डेमाक्रेसीज को अवांछित माना। उन्होंने कहा था कि क्या आप संसदीय सरकार चाहते हैं? यदि आप ऐसा चाहते हैं तो आपको उन देशों को मित्र बनाना चाहिए, जो संसदीय सरकार रखते हैं। वर्तमान सरकार ने बाबासाहेब डॉ भीमराव अंबेडकर की 126वीं जयंती पर देश के विकास में अपेक्षित हितभागिता प्रदान करने के लिए दलितों के कल्याण के लिए भारत सरकार ने अनेक वैधानिक उपायों की घोषणा की है, जो एक उपयुक्त कदम है। मुद्रा योजना और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति उद्यमियों के लिए राष्ट्रीय केंद्र की स्थापना जैसे उपायों से दलित निश्चित रूपसे उन क्षेत्रों में अपनी सुदृढ़ उपस्थिति दर्ज कर सकेंगे, जो परंपरागत रूप में विभिन्न कारणों से उनकी पहुंच से बाहर रहे हैं। बाबासाहेब ने हमेशा चाहा कि शिक्षित बनो शिक्षित बनाओ, इसी में दबे-कुचलों के सारे समाधान हैं। (लेखक गुरु प्रकाश इंडिया फाउंडेशन नई दिल्ली में वरिष्ठ अनुसंधान फेलो और परियोजना अध्यक्ष हैं)।