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Thursday 20 April 2017 05:34:33 AM
नई दिल्ली। अमेरिका जैसे देश में वहां के विश्वविद्यालयों और स्कूलों तक हिंदी पहुंच गई है। अमेरिका में आज देवनागरी लिपि और हिंदी खूब सिखाई और पढ़ाई जा रही है। हिंदी प्रेमियों के लिए यह आशावादी समाचार है कि अमरीकी सरकार ने अमेरिका में हिंदी-उर्दू फ्लेगशिप कार्यक्रम भी चलाया हुआ है, जिससे अमरीकियों में इन भाषाओं में भी पारांगत होने की इच्छा जागृत हुई है। इसमें विश्व नागरी विज्ञान संस्थान के प्रयास उल्लेखनीय माने जाते हैं, जिसने देश-दुनिया में भारत की प्राचीन और सर्वाधिक भाषाओं में प्रयुक्त देवनागरी लिपि के प्रचार-प्रसार का सक्रिय अभियान चलाया हुआ है, जिसमें यह तथ्य सामने आया है कि कई देशों में भारत की राजभाषा के रूप में हिंदी को अभिमंडित करने के साथ-साथ देवनागरी लिपि को भी स्वीकार किया गया है। यह लिपि अशोककालीन ब्राह्मी लिपियों की आधार लिपि है और आधुनिक भारतीय लिपियों के अध्ययन के लिए मूलभूत लिपि मानी जाती है। यह भारतीय भाषाओं और विश्व की अनेक भाषाओं की ध्वनियों का प्रतिनिधित्व करने में पूर्णतया सक्षम पाई गई है। संविधान की अष्टम अनुसूची में उल्लेखित बाईस भाषाओं में दस भाषाओं के लिए इसका प्रयोग हो रहा है। यह लिपि रोमन, अरबी, चीनी आदि लिपियों की अपेक्षा अधिक वैज्ञानिक और उपयोगी मानी गई है। इसमें उच्चारण और वर्तनी के बीच प्रायः अंतर बहुत कम ही मिलता है।
भारत में वर्ष 1678 में मुद्रण में नागरीलिपि का प्रयोग पहली बार हुआ था। वर्ष 1892 से नागरीलिपि के मानकीकरण के लिए प्रयास आरंभ हो गए थे तथा सन् 1912 और 1913 में इसके संशोधन और परिष्करण के लिए विचार-विमर्श भी हुआ। यह प्रक्रिया वर्ष 1938 तक चलती रही। भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉ राधाकृष्णन की अध्यक्षता में सन् 1953 में एक समिति गठित की गई थी, उसी वर्ष भारत सरकार में तत्कालीन शिक्षा मंत्रालय ने एक सम्मेलन का आयोजन किया, जिसमें देवनागरी के परिप्रेक्ष्य में टाइपराइटर, मुद्रण और दूरमुद्रण में मानकीकरण विषय पर चर्चा-परिचर्चा हुई थी। भारत सरकार के केंद्रीय हिंदी निदेशालय ने देवनागरी लिपि तथा हिंदी वर्तनी के मानकीकरण पर कई कार्यगोष्ठियों का आयोजन किया, मगर यह टीस अभी भी कायम है कि इतना सब होते हुए भी देवनागरी के मानकीकरण को उचित मान्यता नहीं मिल पाई है। दरअसल मानक नागरीलिपि के प्रचार-प्रसार के लिए किसी सरकारी अकादमी या संस्थाओं और गैर-सरकारी संस्थाओं के प्रयास सफल नहीं हो पाए। फ्रांस में एक मान्यता-प्राप्त अकादमी है, जो फ्रांसीसी ध्वनियों और उच्चारण में मानक रोमनलिपि के विकास और प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान कर रही है, इसी संदर्भ में देवनागरी लिपि के विकास और मानकीकरण का बीड़ा विश्व नागरी विज्ञान संस्थान ने उठाया हुआ है।
विश्व नागरी विज्ञान संस्थान एक स्वैच्छिक पंजीकृत संस्था है, जो देवनागरी लिपि और हिंदी भाषा के सहयोग से विकास और अनुसंधान कार्य में लगी हुई है। यह संस्थान भारतीय भाषाओं और विश्व की भाषाओं के अनुरूप देवनागरी में वर्णों का विकास करता है। सूचना प्रौद्यागिकी का मुक्त क्षेत्र प्रौद्योगिकी को नागरी के प्रयोग के लिए प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त भारत की सभी भाषाओं, जनजातीय भाषाओं, बोलियों, लिपि रहित भाषाओं के लिए नागरी लिपि अपनाए भारत और विश्व की भाषाओं की लिपियों का नागरी लिपियों से तुलनात्मक अध्ययन और अनुसंधान करना है, साथ ही नागरी लिपि के लिए विकसित फान्टों का समन्वयन तथा यूनिकोड में उपलब्ध दोषों के समाधान के लिए कार्य किया जा रहा है। इससे देवनागरी लिपि न केवल हिंदी के लिए उपयोगी होगी वरन् अन्य भारतीय भाषाओं तथा विश्व की भाषाओं के लिए भी उपयोगी सिद्ध होगी। इससे भारतीय भाषाओं का क्षेत्र तो विस्तृत होगा ही, साथ ही विश्व की भाषाओं का ज्ञान भी सहज रूप से तथा सुगमता से प्राप्त होगा।
केआईआईटी ग्रुप ऑफ कॉलेजिज़ के अध्यक्ष और शिक्षाविद् बलदेवराज कामराह की वर्ष 2008 में लब्धप्रतिष्ठ भाषाविज्ञानी और शिक्षाविद् प्रोफेसर कृष्णकुमार गोस्वामी के साथ बातचीत हुई थी, जिसमें सुविख्यात हिंदी वैज्ञानिक डॉ श्यामसुंदर अग्रवाल भी शामिल थे। इस बातचीत से नागरी लिपि के अनुसंधान और विकास के लिए इस संस्थान की परिकल्पना बनी। बाद में सुप्रसिद्ध कंप्यूटर विज्ञानी डॉ ओम विकास, सुविख्यात भाषाविद् डॉ परमानंद पांचाल, सुप्रसिद्ध सूचना प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ विजयेंद्र एन शुक्ल तथा केआईआईटी ग्रुप ऑफ कॉलेजिज़ के मुख्य कार्यपालक अधिकारी तथा शिक्षाविद् डॉ हर्षवर्धन के सहयोग से संस्थान की स्थापना हुई। इसके अतिरिक्त विश्व हिंदी सचिवालय मॉरिशस के महासचिव और विदेश मंत्रालय भारत सरकार के उपसचिव राजभाषा को भी कार्यकारिणी में मनोनीत करने का प्रावधान रखा गया। टेक्सॅस विश्वविद्यालय अमेरिका के प्रोफेसर हर्मन वॉन ऑल्फन का भी इसकी स्थापना में सहयोग मिला। विश्व नागरी विज्ञान संस्थान केआईआईटी ग्रुप ऑफ़ कालेजिज़ गुडगांव के सहयोग से बीटेक, एमटेक, बीएड, एमएड आदि पाठ्यक्रमों में देवनागरी लिपि में शोधकार्य करा रहा है, जिसमें शोध निर्देशक सूचना प्रौद्योगिकी और कंप्यूटर विशेषज्ञों के साथ-साथ भाषावैज्ञानिक भी कार्यरत हैं।
विश्व नागरी विज्ञान संस्थान हर वर्ष देवनागरी लिपि और सूचना प्रौद्योगिकी के संबंध में भाषाविदों, शिक्षाविदों, पत्रकारों, सूचना प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों, इंजीनियरों, साहित्यकारों और विद्वानों के सहयोग से संगोष्ठी, कार्यगोष्ठी, कार्यशाला, विशेष व्याख्यान आदि का आयोजन करता है। हिंदी और नागरी लिपि के प्रचार-प्रसार में अब तक पांच संगोष्ठियां, चार विशेष व्याख्यान और तीन कार्यशालाएं आयोजित की जा चुकी हैं, जिनमें कुछ आयोजन उल्लेखनीय हैं। टेक्सॅस विश्वविद्यालय, आस्टिन अमेरिका के दक्षिण एशियाई अध्ययन संस्थान की हिंदी-उर्दू फ्लेगशिप के निदेशक प्रोफेसर हर्मन वॉन ऑल्फन का 9 अगस्त 2010 को अमेरिका में हिंदी की स्थिति विषय पर व्याख्यान हुआ। प्रोफेसर हर्मन वॉन ऑल्फन ने बताया कि अमेरिका में विश्वविद्यालयों के अतिरिक्त भी हिंदी कई स्कूलों में पढ़ाई जा रही है। ग्रीष्मकाल में अटलांटा में एक सौ अमरीकी बालकों को दस दिन का हिंदी के शिक्षण कार्यक्रम चलता है।
अमेरिका में हिंदी की आवश्यकता को महसूस करते हुए अमेरिकन सरकार ने हिंदी-उर्दू फ्लेगशिप कार्यक्रम प्रारंभ किया है, जिसका उद्देश्य शिक्षार्थियों को वैश्विक व्यवसायी बनाना है, इसमें डॉक्टर इंजीनियर, प्रशासनिक अधिकारी आदि हिंदी सीखते हैं। केआईआईटी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग गुड़गांव में 28 अप्रैल 2011 को देवनागरी लिपि और सूचना प्रौद्योगिकी विषयक विचार-गोष्ठी का आयोजन हुआ, जिसमें सूचना प्रौद्योगिकी विभाग भारत सरकार की निदेशक और वैज्ञानिक स्वर्णलता, डॉ ओम विकास, बलदेव राज कामराह, डॉ परमानंद पांचाल, प्रोफेसर गंगाप्रसाद विमल, वीएन शुक्ल, डॉ श्याम सुंदर अग्रवाल, प्रोफेसर ठाकुरदास, डॉ मोहनलाल सर आदि विद्वानों ने देवनागरी लिपि के विकास और मानकीकरण में सूचना प्रौद्योगिकी की उपयोगिता पर अपने विचार प्रस्तुत किए। साहित्य अकादमी और नागरी संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में 17 अक्टूबर 2012 को नई दिल्ली में साहित्य अकादमी के सभागार में देवनागरी लिपि और सूचना प्रौद्योगिकी की चुनौतियां और समाधान विषय पर संगोष्ठी का आयोजन हुआ।
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के कुलपति विभूति नारायण राय, साहित्यकार माधव कौशिक, जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के डॉ रणजीत साहा, दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर गोपेश्वर सिंह, लीना महेंदले आईएएस बैंगलूरू, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के निदेशक प्रोफेसर वीरा जगन्नाथन, साहित्य अकादमी के उपसचिव ब्रजेंद्र त्रिपाठी, केरल विश्वविद्यालय की हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर तंकमणि अम्मा केरल, सुधा सिन्ही पद्दुचेरी, पूर्वोत्तर पर्वतीय शिलांग के प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार सिंह, नागरी लिपि परिषद के महासचिव डॉ परमानंद पांचाल, डॉ जगदीश वर्मा, दिल्ली अकादमी के उपाध्यक्ष डॉ विमलेश कांति वर्मा, सूचना प्रौद्योगिकी विभाग भारत सरकार के पूर्व वरिष्ठ निदेशक डॉ ओमविकास, संस्थान के अध्यक्ष बलदेवराज कामराह, उपाध्यक्ष डॉ श्याम सुंदर अग्रवाल और कोषाध्यक्ष डॉ हर्षवर्धन ने सक्रिय रूप से इसमें भाग लिया और अपने विचार प्रस्तुत किए। विश्व नागरी विज्ञान संस्थान की ओर से वर्ष 2012 के प्रारंभ में देवनागरी लिपि के मानकीकरण को मान्यता देने के संबंध में भारतीय मानक ब्यूरो से अनुरोध किया गया था।
भारतीय मानक ब्यूरो ने प्रोफेसर कृष्णकुमार गोस्वामी की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय समिति यानी ब्यूरो ऑफ़ इंडियन स्टैंडर्ड पूर्व आईएसआई का गठन किया, जिसमें विश्व नागरी विज्ञान संस्थान के अध्यक्ष बलदेवराज कामराह, केआईआईटी ग्रुप ऑफ कॉलेजेज़ के महानिदेशक डॉ श्याम सुंदर अग्रवाल, केंद्रीय हिंदी निदेशालय के शिक्षाधिकारी डॉ दीपक पांडेय, एनसीईआरटी की भाषा विभागाध्यक्ष प्रोफेसर चंद्रा सदायत, राजभाषा विभाग के केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो के निदेशक डॉ श्रीनारायण सिंह ‘समीर’ साहित्य अकादमी के उपसचिव ब्रजेश त्रिपाठी, प्रगत संगणन विकास केंद्र के निदेशक वीएन शुक्ल, नेशनल बुक ट्रस्ट की संपादक उमा बंसल, अमरावती विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शंकर बुंदेले, बैगलूरू से भाषाविद प्रोफेसर ललितांबा, अमर उजाला समाचारपत्र के संपादक शंभूनाथ शुक्ल, केंद्रीय हिंदी संस्थान के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर ठाकुरदास, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के पूर्व निदेशक प्रोफेसर वीरा जगन्नाथन सदस्य थे और ब्यूरो से दो वैज्ञानिक एनके पाल और बिंदु मेहता पदेन सदस्य थे। यह मानकरूप केंद्रीय हिंदी निदेशालय की स्वीकृत लिपि पर आधारित है, जिसे राष्ट्रीय समिति ने काफी विचार-विमर्श के बाद पारित कराया। इसका लोकार्पण 28 अगस्त 2012 को नई दिल्ली में ब्यूरो कार्यालय में उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के सचिव राजीव अग्रवाल ने किया।
विश्व नागरी विज्ञान संस्थान संस्थान ने वर्ष 2008 से 2015 तक विशेष व्याख्यान और कार्यशालाएं आयोजित कीं। एक संगोष्ठी का आयोजन 17 सितंबर 2011 को किया गया, जिसमें केंद्रीय हिंदी निदेशालय की पूर्व निदेशक डॉ पुष्पलता तनेजा, भारतीय जनसंचार संस्थान के डॉ रामजी लाल जांगिड, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर तथा सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ गंगाप्रसाद विमल ने सक्रिय रूपसे भाग लिया। गुड़गांव में 5 अक्टूबर 2013 को विद्यालयों के अध्यापकों के लिए देवनागरी लिपि, वर्तनी और हिंदी व्याकरण पर कार्यशाला आयोजित की गई, जिसमें वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग के अध्यक्ष और भाषाविद् प्रोफेसर केशरीलाल वर्मा, नागरी लिपि परिषद के महासचिव डॉ परमानंद पांचाल, केआईआईटी ग्रुप ऑफ कॉलेजेज़ के महानिदेशक डॉ श्याम सुंदर अग्रवाल और निर्वाचन आयोग के निदेशक तकनीकी और कंप्यूटर वैज्ञानिक वीएन शुक्ल ने अपने व्याख्यान दिए तथा प्रोफेसर कृष्णकुमार गोस्वामी ने अध्यापकों के साथ शैक्षिक चर्चा-परिचर्चा की और उन्हें देवनागरी लिपि और वर्तनी की मानकता का परिचय दिया।
केआईआईटी वर्ल्ड स्कूल पीतमपुरा दिल्ली के सहयोग से दिल्ली के स्कूलों के हिंदी अध्यापकों के लिए 27 सितंबरए 2016 को देवनागरी लिपि और मानक वर्तनी विषयक कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसमें दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष और डीन कला संकाय प्रोफेसर हरिमोहन शर्मा, हंसराज कॉलेज के डॉ महेंद्र कुमार और संस्थान के निदेशक प्रोफेसर कृष्ण कुमार गोस्वामी ने हिंदी भाषा और देवनागरी लिपि के ऐतिहासिक विकासात्मक और वैज्ञानिक पक्षों के बारे में व्याख्यान दिए। इसके अतिरिक्तअध्यापकों के साथ मानक लिपि तथा वर्तनी की समस्याओं पर चर्चा-परिचर्चा भी हुई। संस्थान के अध्यक्ष सुविख्यात शिक्षाविद् बलदेव राज कामराह ने देवनागरी लिपि और हिंदी वर्तनी के महत्व और प्रासंगिकता संबंधी अपने विचार प्रस्तुत करते हुए हिंदी अध्यापकों को इस ओर सतर्कता और सजगता बरतने के लिए आह्वान किया। केआईआईटी वर्ल्ड स्कूल की उपाचार्य करुणा वर्मा तथा सलाहकार एचके मुंजाल ने भी देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता पर अपने विचार रखे।