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Saturday 16 February 2013 08:27:33 AM
लखनऊ। भाजपा विधान मंडल दल के नेता हुकुम सिंह, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी और कुछ विधायकों के एक शिष्टमंडल ने राज्यपाल बीएल जोशी को एक ज्ञापन देकर मांग की है कि इलाहाबाद महाकुंभ हादसे की संपूर्ण जांच उच्च न्यायालय के कार्यरत न्यायाधीश से कराई जाए और ज्ञापन में उल्लेखित बिंदुओं को उस जांच में शामिल किया जाए। शिष्टमंडल ने रोष व्यक्त किया है कि इतने बड़े आयोजन में करोड़ो रूपए खर्च करने के बाद भी सरकार श्रद्धालुओं के सुरक्षित आवागमन एवं स्नान की कोई समुचित व्यवस्था नहीं कर पाई। इस घटना में जिम्मेदार अधिकारियों को कड़ा दंड मिलना चाहिए।
भाजपा ने राज्यपाल बीएल जोशी को दिए ज्ञापन में कहा है कि बारह वर्ष बाद 14 जनवरी 2013 से इलाहाबाद संगम पर महाकुंभ का आयोजन शुरू हुआ, पर्व की तैयारी लगभग 1 वर्ष पूर्व प्रारंभ हो चुकी थी, प्रदेश सरकार को केंद्र सरकार ने इस महा आयोजन के लिए अरबों रूपए की आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई। आयोजन की तैयारी को लेकर प्रदेश सरकार के मंत्रियों ने बड़े-बड़े वायदे और घोषणाएं कीं, परंतु मौनी अमावस्या को शाही स्नान के समय घटित भगदड़ की घटना ने प्रदेश सरकार के दावों की असलियत को खोल कर रख दी जिसमें 40 से अधिक तीर्थयात्रियों की इलाहाबाद स्टेशन पर मौत हो गई, सैकड़ों लोग घायल हुए, दर्जनों लोग अभी तक लापता एवं असंख्य लोगों को अत्यधिक उत्पीड़न एवं कठिनाईयों का शिकार होना पड़ा।
राज्यपाल के सम्मुख विचारणीय बिंदु प्रस्तुत करते हुए भाजपा के शिष्टमंडल ने उल्लेख किया है कि स्नान के बाद सभी श्रद्धालुओं को स्वाभाविक रूप से वापस लौटना था, फिर उन्हें प्रस्थान की ओर लौटाने की सरकार की व्यवस्था क्या थी? प्रत्येक लौटने वालों के लिए मुख्य रूप से रेल यात्रा एक मात्र विकल्प था, स्वाभाविक रूप से स्टेशन पर भीड़ एकत्रित होनी थी, स्टेशन की एक निर्धारित क्षमता है, फिर भीड़ को नियंत्रित करने की क्या व्यवस्था थी? रेल के अतिरिक्त दूसरी व्यवस्था बसों की थी, यात्रियों के गंतव्य स्थान तक पहुंचने हेतु पर्याप्त बसों की व्यवस्था क्यों नहीं की गई? घटना घटित होने का मुख्य कारण भीड़ में भगदड़ होना बताया गया, आखिर भगदड़ क्यों हुई? प्रत्यक्षदर्शियों ने स्पष्ट आरोप लगाया है कि पुलिस के लाठीचार्ज के कारण यात्रियों को भागने के लिए विवश होना पड़ा, पुलिस को लाठीचार्ज करने के आदेश किसने दिए और क्यों दिए? अभूतपूर्व आयोजन के परिणामस्वरूप किसी भी घटना की आशंका पूर्व में की जानी चाहिए थी तथा उसके अनुरूप प्रशासनिक व्यवस्था सुनिश्चित करना आवश्यक था, परंतु रेलवे स्टेशन पर जब श्रद्धालु अनियंत्रित हुए और मौके पर ही काफी संख्या में उनकी मृत्यु हुई तो लाशें घंटों पड़ी रहीं एवं उनको उठाने की कोई व्यवस्था नहीं थी। इसी प्रकार जो गंभीर रूप से जख्मी हुए वह भी कई-कई घंटों तक चिकित्सा से वंचित रहे और स्टेशन पर पड़े तड़पते रहे ऐसा क्यों हुआ?
श्रद्धालुओं को सुविधा हेतु कुंभ क्षेत्र में जो भी एलसीडी या अन्य उपकरण लगाए गए थे, बजाय यात्रियों का मार्गदर्शन करने के वे समाजवादी पार्टी सरकार की उपलब्धियों का प्रचार कर रहे थे। मुख्यमंत्री तथा अन्य नेताओं के चित्र दिखाए जा रहे थे और उनका गुणगान किया जा रहा था। श्रद्धालु जानकारी के अभाव में भटकते रहे, परंतु उनको रास्ता दिखाने की कोई व्यवस्था नहीं थी। यातायात हेतु जो गाड़िया लगाई गईं थीं, वह श्रद्धालुओं को उपलब्ध नहीं कराई गईं, बल्कि समाजवादी पार्टी के मंत्रियों, नेताओं एवं कार्यकर्ताओं को स्नान स्थल पर लाने एवं ले जाने में उपयोग की गईं।
कुंभ स्थल पर 50 एंबूलेंस और नगर में 56 एंबूलेंस गाड़ियों की व्यवस्था थी, परंतु एक भी गाड़ी तीर्थयात्रियों और बाद में मृतकों एवं जख्मी लोगों के लिए उपलब्ध नहीं कराई गई। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि ये गाड़ियां भी समाजवादी पार्टी के कार्यकताओं की सेवा में लगी रहीं। रेल, जिला प्रशासन, मेला प्रशासन में तालमेल का पूर्ण अभाव रहा। स्टेशन के नजदीक यद्यपि रेल का 175 शैय्याओं का चिकित्सालय है, परंतु घटना के समय उस चिकित्सालय में न तो कोई चिकित्सक था और न ही स्ट्रेचर आदि की व्यवस्था थी। यह रेल प्रशासन की पूर्ण संवेदनहीनता का परिचायक है।
इतनी दर्दनाक घटना होने के बाद एक ओर तो सरकार ने विभिन्न जांच एजेंसियां गठित करने की घोषणा की, दूसरी ओर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने महाकुभ में जाकर मेले में कार्यरत अधिकारियों को किस बात की बधाई दी? सरकार की इससे अधिक संवेदनहीनता और क्या हो सकती है? घटना स्थल पर कोई भी वरिष्ठ प्रशासनिक या पुलिस अधिकारी उपस्थित नहीं था। इनका कई घंटों के पश्चात मौके पर पहुंचना समस्त व्यवस्था की असलियत की पोल खोलता है। सरकार ने जो भी योजना बनाई, उसमें स्नान के बाद लौटने वाले यात्रियों को नियंत्रित अथवा यातायात एवं चिकित्सा संबंधी व्यवस्था शामिल नहीं की गई, इसके परिणामस्वरूप कोई भी अधिकारी अपना दायित्व निभाने हेतु उपलब्ध नहीं हो पाया। श्रद्धालु जो अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक आस्था से प्रेरित होकर महाकुंभ में आए, उनके लिए प्रदेश सरकार की उदासीनता और निष्क्रियता बनाए रखने का क्या कारण रहा? ये सभी बिंदु ऐसे हैं, जिनकी निष्पक्ष जांच होना अत्यंत आवश्यक है। इन समस्त बिंदुओं की जांच उच्च न्यायालय के कार्यरत न्यायाधीश से कराई जाए जो समयबद्ध अपनी रिपोर्ट दें, ताकि सही स्थिति प्रदेश एवं देश की जनता के समक्ष आ सके।