दिनेश शर्मा
Tuesday 19 February 2013 09:36:26 AM
लखनऊ। विधान सभा का मंगलवार को उत्तर प्रदेश सरकार के ऐसे वार्षिक बजट से सामना हुआ, जिसमें काल्पनिक विकास दर, अनुत्पादक खर्चों की भरमार, पांच साल में भी ना पूरे होने वाले वादों और फाइव स्टार घोषणाओं की झड़ी लगाकर एक ही साल में राज्य को उत्तम प्रदेश की पायदान पर पहुंचा देने का सपना दिखाया गया है। ख़राब कानून व्यवस्था, कुप्रबंधन, भ्रष्टाचार, भारी कर्ज में डूबे और ध्वस्त अर्थव्यवस्था के बियावान में भटकते उत्तर प्रदेश को झूंठी दिलासाओं से संतोष प्रदान करने और संपंन राजनैतिक बहुमत के अलावा राज्य के प्रचंड आशावादी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के पास और है भी क्या?
देश के अन्य कुछ राज्यों में अपने बूते पर विकास की चलती लहर से भी अखिलेश सरकार नसीहतें लेती नहीं दिखी है। देश और राज्य के संवेदनशील मामलों और विकास के हित में कठोर फैसले लेने के बजाय इस सरकार का यह बजट बचाव की मुद्रा में राजनीति करता और लुभाता दिखता है। सच्चाईयों से मुंहमोड़ कर उत्तर प्रदेश के विकास का काल्पनिक रोड मैप दिखाते हुए, सफल मुख्यमंत्री कहलाने की महत्वाकांक्षा से भरा साहस प्रकट करने की कोशिश करते दिखते अखिलेश यादव के चेहरे पर, अज्ञात मजबूरियों और बेचारगी के भाव भी पढ़े जा सकते हैं, इसीलिए उत्तर प्रदेश की जनता उनसे बार-बार जानना चाहती है कि जब उसने समाजवादी पार्टी को पूर्ण बहुमत दिया है, तो वे उसे बेदाग़ और विकल्पहीन बनाए रखने में क्यों लाचार हैं, वे यह एहसास दिलाने में क्यों विफल हैं कि निजाम बदल गया है?
विधान सभा में 2 लाख 21 हज़ार दो सौ एक करोड़ उन्नीस लाख रूपए का बावन पेज का बजट पेश करने के बाद राज्य के वित्त मंत्री और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने नौकरशाहों के लश्कर के साथ तिलक हाल में मीडिया से जब मुखातिब हुए तो उनके पास उत्तम प्रदेश के दावे पर पूछे गए सवालों का दृढ़तापूर्वक उत्तर नहीं था। इस अवसर पर उनकी निर्भरता और कमज़ोरी तुरंत सामने आई। राज्य के वित्त सचिव आनंद मिश्र ने तकनीकि मसाला लगाकर और घुमा फिराकर केवल यह जवाब दिया कि इस थोड़े कार्यकाल की सरकार का इससे बेहतर बजट नहीं हो सकता। क्या मतलब? इसी कतार में बैठे यूपी के नौकरशाहों की टीम के मुखिया जावेद उस्मानी तर्क पेश करने उतरे, जो निरर्थक और अपरोक्ष रूप से केंद्र सरकार पर खीज उतारते और घेरने वाले सवालों से सरकार को बचाते हुए दिखे।
यह बजट राज्य के विकास में कैसे वरदान साबित होगा, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन राज्य के युवा मुख्यमंत्री के बजट में फिलहाल ऐसा कुछ भी नया नहीं लगा है, जिसे सरकार की 11 माह की उपलब्धियों के रूप में भी देखा जाए। बारहवीं पंचवर्षीय योजना अवधि में सरकार ने राज्य की औसत विकास दर 8.5 प्रतिशत रखी है, जिसे हासिल करने के लिए सरकार के पास कोई ठोस आर्थिक एवं विकास योजना नहीं है। वह उत्पादन के बजाय टैक्सों पर ज्यादा भरोसा कर रही है। विकास दर का लक्ष्य छूने के लिए जिनके भरोसे सरकार बैठी है, वे उत्तर प्रदेश में पूंजी निवेश को कतई तैयार नहीं हैं। पिताश्री मुलायम सिंह यादव की पिछली दो सरकारों में भी राज्य में पूंजी निवेश हुआ ही नहीं। मुलायम सरकार में निवेश के जो दावे किए गए थे, उनमें से एक भी दावा सही साबित नहीं हुआ।
अखिलेश सरकार के पास पूर्ण बहुमत है। सरकार ने इन ग्यारह महीनो में उद्यमियों को उत्तर प्रदेश में लाने के लिए अनेक प्रयास किए हैं। उद्यमी, समिट में भरोसा तो देते हैं, किंतु वे उत्तर प्रदेश में खाना खराबी को देखते हुए, यहां आने को तैयार नहीं होते हैं। हां! कुछ दलाल और सट्टेबाज़ टाइप नव धनाढ्य जरूर सरकार के इर्द-गिर्द मंडराते रहते हैं। उन्हें सरकार से आकाशवृत्ति की तरह अवसर मिलते हैं, वे भ्रष्ट राजनेताओं और अफसरों के गठजोड़ से राज्य के संसाधनों का दोहन करते हैं, जिनका राज्य को टैक्स के रूप में भी कोई लाभ नहीं होता है। सरकार में ऐसे सिंडिकेट को जब प्रश्चय मिलता है तो कोई वास्तविक उद्यमी यहां लुटने को आएगा?
कई वर्षो से यह राज्य अमर सिंह जैसे अनेक दलालों की गिरफ्त में चला आया है, जिसके जिम्मेदार कौन हैं, इसे राज्य का बच्चा-बच्चा जानता है, इसलिए कोई परंपरागत उद्यमी उत्तर प्रदेश में पूंजी निवेश के लिए नहीं आएगा। मायावती सरकार में तो पोंटी चढ्ढा जैसे ठेकेदारों एवं नए धन्ना सेठों का ही बोलबाला था और अखिलेश सरकार भी इस मिथक से आगे नहीं बढ़ पाई है। सवाल उठता है कि इस वातावरण में किसी समिट का क्या मतलब है? नौकरशाही में भी आज भी अस्थिरता का दौर है, जो मायावती सरकार में भी था। अखिलेश सरकार में कई पावर सेंटर हैं, इसलिए उद्यमी कितने पावर सेंटर से गुजरेंगे?
अखिलेश यादव देश के राज्यों के मुख्यमंत्रियों में सर्वाधिक युवा मुख्यमंत्री हैं और उनका अवश्य ही राजनीतिक रूप से आगे बढ़ने का और दूसरे राज्यों की तरह उत्तर प्रदेश को भी उत्तम प्रदेश बनाने का प्रयास होगा, मगर किनके भरोसे? उनके भरोसे जो सरे-ए-आम गुटबाज़ी कर रहे हैं, अपना काम सिद्ध करने के लिए अस्थिरता फैलाने वाली बयानबाज़ी करते हैं, भ्रष्टाचार को शह देते हैं, अपने कृत्यों से सरकार को बदनाम करते हैं? इनसे डरे उद्यमियों के लिए अखिलेश यादव बजट में उनकी संपूर्ण सुरक्षा का संदेश देने से चूक गए हैं। बजट पेश करते समय विपक्ष सामान्यतः मौजूद रहता है, यदि अखिलेश सरकार का कानून व्यवस्था और स्वच्छ प्रशासन का पक्ष मजबूत होता तो विपक्ष को सदन में बार-बार हंगामा करने या वाकआउट का उतना नैतिक मौका नहीं मिलता।
अखिलेश यादव को इस पर मंथन करना होगा कि उन्हें कैसे सरकार चलानी है? ऐसे ही जैसे चलती आ रही है, जिसमें कोई भी खुश नहीं है और निराशाजनक स्थिति है? उन्हें इस सत्ता संघर्ष में अपने राजनीतिक नेतृत्व को अपने समकालीन प्रतिद्वंदियों के बीच इच्छा-शक्ति से समृद्ध और शक्तिशाली बनाना है या इस संघर्ष से बाहर होना है? वो सबके आराध्य भगवान श्रीकृष्ण के अर्जुन मोह को दिखाए गए विराट रूप का ही स्मरण कर लें, तो उनकी सर्व बाधाओं का समाधान हो जाएगा, क्योंकि वो मानें या ना मानें, सरकार तो ऐसे नहीं चलती, जैसे कि वो चला रहे हैं। अगले साल देश में लोकसभा का आम चुनाव भी है और उसका सामना करने के लिए वो गहरी नदी को पार करने निकल चुके हैं। उन्हें अपनी ही भरोसेमंद रणनीतियों से नदी को पार करना होगा, यदि वे मगरमच्छों की पीठ पर बैठ कर नदी पार करने का विश्वास पाले हुए हों, तो भगवान उनकी रक्षा करें!