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Monday 5 June 2017 05:41:36 AM
डूंगरपुर (राजस्थान)। हिंदी के प्रसिद्ध लेखक प्रोफेसर असग़र वजाहत ने डूंगरपुर के दिवंगत लेखक आनंद कुरेशी के ताजा प्रकाशित कहानी संग्रह 'औरतखोर' के लोकार्पण समारोह में कहा है कि डूंगरपुर आकर उन्हें साहित्य की गोष्ठियों के महत्व का फिर से गहरा एहसास हुआ है। उन्होंने कहा कि बहुत सा श्रेष्ठ साहित्य विभिन्न कारणों से पाठकों तक पहुंच नहीं पाता है, आनंद कुरेशी जैसे कथाकार के साहित्य को हिंदी के व्यापक पाठक वर्ग तक पहुंचाने के लिए हम सभी को बड़े प्रयास करने होंगे। प्रोफेसर असग़र वजाहत से इस मौके पर श्रोताओं ने भी सवाल किए।
प्रोफेसर असग़र वजाहत ने सवालों का जवाब देते हुए कहा कि साहित्य के भी अनेक स्तर होते हैं और आवश्यक नहीं है कि लोकप्रिय समझे जाने वाले साहित्य का पाठक, आगे जाकर गंभीर साहित्य का पाठक नहीं हो सकता। उन्होंने एक अन्य सवाल के जवाब में कहा कि श्रेष्ठ साहित्य मुद्दों की पहचान से ही नहीं बनता, इसके लिए अनेक कारक जिम्मेदार होते हैं। जिला पुस्तकालय के सभागार में हुए इस समारोह में राजस्थान विश्वविद्यालय की सहायक आचार्य डॉ रेणु व्यास ने आनंद कुरेशी के संस्मरण सुनाए तथा पूना विश्वविद्यालय की डॉ शशिकला राय के आनंद कुरेशी की कहानी कला पर लिखे आलेख का वाचन किया। आनंद कुरेशी के अभिन्न मित्र और शायर इस्माइल निसार ने भावुक होकर कहा कि आनंद कुरेशी के साथ व्यतीत आत्मीय पलों को शब्दों में बयान कर पाना उनके लिए संभव नहीं है।
वागड़ विभा के सचिव सत्यदेव पांचाल ने कहा कि आनंद कुरेशी आज भी अपनी कहानियों के माध्यम से जीवित हैं, जो बताता है कि साहित्यकार कभी नहीं मरता। सत्यदेव पांचाल ने कहा कि आनंद कुरेशी जैसे लेखक हमारे लिए सदैव प्रेरणा स्रोत रहेंगे। चित्तौड़गढ़ से आए आनंद कुरेशी के मित्र और 'औरतखोर' के सम्पादक डॉ सत्यनारायण व्यास ने कहा कि अपने अभिन्न मित्र के बारे में बात करना जैसे अपने ही बारे में बात करना है। उन्होंने आनंद कुरेशी को याद करते हुए कहा कि उनका स्वाभिमान राजहंस की तरह गर्दन उठाए रहता है। स्थानीय महाविद्यालय में हिंदी प्राध्यापक डॉ हिमांशु पंडया ने सत्तर के दशक के एक हिंदी कहानीकार की व्यापक जागरूकता को रेखांकित करते हुए कहा कि ऐसी दोस्तियां और साहित्यिक अड्डेबाजी बची रहनी चाहिए, ताकि आनंद कुरेशी जैसे कई लेखक इस शहर को साहित्यिक पहचान दिलाते रहें।
लोकार्पण कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रोफेसर नवल किशोर ने कहा कि हार एक सापेक्ष शब्द है, आनंद कुरेशी जिंदगी की लड़ाई हार गए पर लेखकीय जीवन में नहीं हारे। प्रोफेसर नवल किशोर ने आनंद कुरेशी को अभावग्रस्त समाज के लिए संघर्ष करने वाला लेखक बताते हुए कहा कि उनके जैसे लेखकों को आगे लाना चाहिए, जो अन्याय और अत्याचार का विरोध करने का साहस दर्शाते हैं। उन्होंने कहा कि आज संचार माध्यमों में बस मनोरंजन परोसा जा रहा है। प्रोफेसर नवल किशोर ने आनंद कुरेशी की कुछ चर्चित कहानियों का उल्लेख किया। प्रोफेसर असग़र वजाहत, उदयपुर विश्वविद्यालय के पूर्व आचार्य नवल किशोर, कवि और समालोचक डॉ सत्यनारायण व्यास, वागड़ विभा के सचिव और स्थानीय कवि सत्यदेव पांचाल तथा दिल्ली से प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका 'बनास जन' के सम्पादक डॉ पल्लव ने आनंद कुरेशी के ताजा प्रकाशित कहानी संग्रह 'औरतखोर' का संयुक्त रूपसे लोकार्पण किया।
डॉ पल्लव ने मंच पर मौजूद साहित्यकारों का सारगर्भित परिचय दिया। उन्होंने कहा कि आनंद कुरेशी जैसे लेखक एक शहर, अंचल या राज्य की नहीं, अपितु समूचे साहित्य की धरोहर होते हैं। आनंद कुरेशी के सुपुत्रोंहरदिल अजीज और इसरार ने अपने परिवार की तरफ से लोकार्पण कार्यक्रम के लिए आभार व्यक्त किया। लोकार्पण का संयोजन प्रसिद्ध कहानीकार दिनेश पांचाल ने किया। कवि जनार्दन जलज ने धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम में राजकुमार कंसारा, चंद्रकांत वसीटा, मधुलिका, हर्षिल पाटीदार, हीरालाल यादव, डॉ कपिल व्यास, प्रज्ञा जोशी, चंद्रकांता व्यास, हेमंत सहित और साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।