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Monday 5 June 2017 07:20:46 AM
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि पर्यावरण की रक्षा केवल सरकारी प्रयासों से संभव नहीं है, इसे जन आंदोलन की जरूरत है, तभी हम अपने जल स्रोतों के संरक्षण के साथ-साथ अधिक से अधिक वृक्षारोपण करने में सफल हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि रोपित वृक्षों की सतत देखरेख के लिए प्रत्येक व्यक्ति दायित्व संभाले तो उत्तर प्रदेश के 9 प्रतिशत वन आच्छादित क्षेत्रफल को बढ़ाकर 15 प्रतिशत तक किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि पर्यावरण संरक्षण के लिए भारत को किसी अन्य देश के तौर-तरीके आजमाने के बजाए अपनी ऋषि परम्परा की तरफ देखना होगा, जहां विविध प्रकार के वृक्षों का सम्बंध ग्रहों एवं उपग्रहों से जोड़कर उनके महत्व को दर्शाया गया है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आज इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में विश्व पर्यावरण दिवस पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि कार्यक्रम के लिए निर्धारित थीम ‘कनेक्टिंग पिपुल टू नेचर’ से राज्य सरकार की पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता स्पष्ट होती है। स्वस्थ एवं दीर्घ जीवन के लिए प्रकृति के महत्व को रेखांकित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रकृति के करीब रहने वाला व्यक्ति स्वस्थ एवं लंबा जीवन जीता है, लेकिन मानव ने आधुनिकता के चकाचौंध में पर्यावरण के महत्व को नकारते हुए स्वयं अपने लिए कठिनाइयों को आमंत्रित कर लिया और वह प्रकृति से दूर हो गया है। उल्लेखनीय है कि 5 जून 1972 को स्वीडन के स्टॉकहोम नगर में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण की उपेक्षा को देखकर चिंता प्रदर्शित करते हुए इस तिथि को अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण दिवस के रूप में मनाने का फैसला हुआ था, जिससे विश्व समुदाय पर्यावरण संरक्षण के लिए सतत जागरूक एवं प्रयासरत रहे। उन्होंने भारतीय परम्परा के वृक्ष बरगद, पीपल, पाकड़, आम, नीम, शीशम, साल, पिलखन आदि वृक्ष रोपित करने की अपील करते हुए कहा कि इन वृक्षों में हमारे पर्यावरण को सुधारने की अपार क्षमता है।
पर्यावरण संरक्षण की उपेक्षा पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चिंता प्रकट की। उन्होंने कहा कि वनों एवं वृक्षों को काटकर कंकरीट के जंगल खड़े किए जा रहे हैं, प्राकृतिक जल स्रोतों में औद्योगिक कचरों के अलावा नगरों के सीवर एवं गंदे पानी गिराए जा रहे हैं, शौच के लिए नदियों के किनारे जाने की परंपरा बना ली गई है, इन सब कारणों से जहां वृक्षों की संख्या लगातार कम हो रही है, वहीं प्राकृतिक जल स्रोत दूषित भी हो रहे हैं, जिससे बीमारियां बढ़ रही हैं और मानव सभ्यता के समक्ष कई प्रकार के गंभीर खतरे पैदा हो गए हैं। मुख्यमंत्री ने इन समस्याओं के समाधान के लिए लोगों से ऋषि परम्परा की तरफ मुड़ने का आह्वान किया। उन्होंने हाल ही में पर्यावरण पर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बयान के प्रत्युत्तर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वक्तव्य का स्वागत किया और कहा कि प्रधानमंत्री ने शालीनता से पूरी दुनिया को बता दिया है कि भारत सदियों से पर्यावरण की रक्षा के प्रति प्रतिबद्ध रहा है, वेद एवं अन्य प्राचीन ग्रंथ हमें पर्यावरण के साथ समन्वय से जीने की राह दिखाते हैं, इसलिए भारत जैसे देश को पर्यावरण की रक्षा के प्रति प्रतिबद्धता के लिए किसी अन्य व्यक्ति या संस्था से सीखने की जरूरत नहीं है।
ग्लोबल वॉर्मिंग का उल्लेख करते हुए योगी आदित्यनाथ ने कहा कि यदि हम शीघ्र प्रकृति के साथ संतुलन नहीं बनाएंगे तो बहुत बड़े संकट में फंस जाएंगे। उन्होंने पंचवटी एवं नक्षत्रवाटिका की चर्चा करते हुए कहा कि पंचवटी में जहां पीपल, बरगद आदि पांच वृक्षों का उल्लेख किया गया है, वहीं नक्षत्रवाटिका में 27 वृक्षों का उल्लेख करते हुए उन्हें 27 नक्षत्रों के साथ जोड़ा गया है, यदि हम उन वृक्षों को रोपित करना शुरू कर दें तो पर्यावरण की समस्या का काफी हद तक समाधान हो जाएगा। उन्होंने कहा कि हमारे आसपास कई ऐसे वृक्ष हैं, जो बड़ी संख्या में बरसात के पानी का संचयन करते हैं, मिट्टी के कटान को रोकते, कार्बन डाईऑक्साइड का शोधन कर ऑक्सीजन उपलब्ध कराते हैं। उन्होंने कहा कि सृष्टि में कोई वस्तु बेकार या अनुपयोगी नहीं है, यदि मानव इनसे जुड़कर रहना सीख ले तो पर्यावरण की जीवंतता स्वतः कायम हो जाएगी। उत्तर प्रदेश में कम हो रहे वन आच्छादित क्षेत्र का उल्लेख करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि कई ऐसे वनक्षेत्र हैं, जिनके किनारे तो पर्याप्त वृक्ष दिखाई देते हैं, लेकिन उनके बीच में भारी कटान से बड़ी संख्या वृक्ष गायब हैं, इससे मिट्टी का क्षरण भी तेजी से हो रहा है।
योगी आदित्यनाथ ने कहा कि वनों के बीच जल संरक्षण के लिए चेक डैम जरूरी हैं। उन्होंने कहा कि इससे जहां वनों को हरा-भरा रखने में मदद मिलेगी, वहीं जलस्तर में भी सुधार होगा। उन्होंने कहा कि वनों एवं जलस्रोतों के संरक्षण के लिए किसी विदेशी तकनीक की जरूरत नहीं है, बल्कि हम अपनी प्राचीन परम्परा को उपयोग में लाकर इनका बचाव कर सकते हैं। योगी आदित्यनाथ ने नदियों को बचाने के लिए सरकारी योजना के साथ-साथ जनजागरूकता पर बल देते हुए कहा कि हमारी लापरवाही की वजह से कई ऐसी नदियों का पानी दूषित हो गया, जिनका जल आज से 20 वर्ष पूर्व शुद्ध एवं मीठा था। उन्होंने वन विभाग को सुझाव दिया कि विभाग के विभिन्न कार्यालय जिन्हें वृक्ष काटने की इजाजत देते हैं, उनसे प्रति वृक्ष 10-10 पौधों के रोपण के लिए भी कहा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रदेश की 22 करोड़ जनसंख्या को वृक्षारोपण के महाअभियान में शामिल किया जाना चाहिए, इसके लिए प्रत्येक नागरिक से कम से कम एक-एक वृक्ष लगाने का आह्वान करने पर 3 वर्ष में ही प्रदेश की 15 प्रतिशत भूमि वन आच्छादित हो जाएगी। उन्होंने कहा कि किसानों को ऋणमाफी का पत्र देते समय उन्हें 10-10 पौधे उपलब्ध कराते हुए अपने-अपने खेतों में लगाने और सुरक्षित रखने का अनुरोध किया जाए, इस कदम से एक साथ बड़ी संख्या में पौधों का रोपण हो जाएगा।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान परिसर में पारिजात का पौधा भी रोपित किया और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए लगाई गई प्रदर्शनी का अवलोकन किया। उन्होंने जैव विविधता से सम्बंधित मानचित्र, वन विभाग की स्मारिका तथा वन विभाग के नागरिक अधिकार पत्र सिटिजन चार्टर का विमोचन भी किया। मुख्यमंत्री ने जनता एवं विभाग के बीच संवाद स्थापित करने के लिए ‘वन मित्र’ मोबाइल ऐप एवं टोल फ्री नम्बर-1926 का लोकार्पण भी किया। मुख्यमंत्री ने विद्यार्थियों एवं आम जनता में पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता उत्पन्न करने के लिए कराई गई विभिन्न प्रतियोगिताओं के लिए विजेता प्रतिभागियों को पुरस्कार वितरित किए। उन्होंने चित्रकला और पोस्टर प्रतियोगिता के लिए नगरीय क्षेत्र में कक्षा 9 से 12 के छात्र-छात्राओं शुभांगीय पाण्डेय को प्रथम तथा काजल यादव को द्वितीय एवं कीर्ति राव को तृतीय पुरस्कार दिया, जबकि नगरीय क्षेत्र में ही कक्षा 6 से 8 के छात्र-छात्राओं अनीषा पाण्डेय को प्रथम, मनीषा कुशवाहा को द्वितीय एवं रिंकी यादव को तृतीय पुरस्कार प्रदान किया। इसी प्रकार उन्होंने ग्रामीण क्षेत्र के कक्षा 6 से 12 के छात्र-छात्राओं प्राची सिंह को प्रथम, रोशनी को द्वितीय तथा प्रेम कुमार को तृतीय पुरस्कार दिया।
योगी आदित्यनाथ ने स्लोगन लेखन के लिए रित्विक विशभ राज को प्रथम, प्रवर सिंह को द्वितीय तथा शुभांगी श्रीवास्तव को तृतीय पुरस्कार दिया। उन्होंने बेहतर कार्य करने वाली संयुक्त वन प्रबंध समितियों को भी पुरस्कृत किया। इनमें काशी वन्य जीव प्रभाग की समिति लहसनियां, ओबरा वन प्रभाग की नौटोलिया तथा पीलीभीत टाइगर रिज़र्व की समिति मुस्तफाबाद को क्रमशः प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय पुरस्कार दिया गया। तीन सर्वश्रेष्ठ स्वयं सहायता समूहों को भी पुरस्कृत किया गया, जिनमें स्वयं सहायता लोधी को प्रथम, लक्ष्मी को द्वितीय तथा क्रांतिवीर को तृतीय पुरस्कार दिया गया। इस मौके पर प्रदेश के वन एवं पर्यावरण मंत्री दारा सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री सहित अतिथियों का स्वागत करते हुए विस्तार से विभाग की योजनाओं पर चर्चा की। उन्होंने मुख्यमंत्री को स्मृति चिन्ह के रूप में रुद्राक्ष का एक पौधा भी भेंट किया। कार्यक्रम में उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, डॉ दिनेश शर्मा, प्रमुख सचिव वन संजीव शरण, सचिव वन सुनील पांडेय, सीसीएफ रुपक डे, महिला कल्याण एवं पर्यटन मंत्री रीता बहुगुणा जोशी, विधि एवं न्यायमंत्री बृजेश पाठक, खेलमंत्री चेतन चौहान, वन राज्यमंत्री उपेंद्र तिवारी, मंत्रिगण, अधिकारी एवं प्रदेश के विभिन्न जनपदों से आए पर्यावरण प्रेमी मौजूद थे।