स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Saturday 24 June 2017 02:14:58 AM
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भिन्न-भिन्न आकर्षक शीर्षकों से श्रृंखलाबद्ध पुस्तकें लिखने का एक दौर चल रहा है। इस अभियान में जब जानेमाने पत्रकार संजय द्विवेदी का भी नाम आया तो कोई आश्चर्य नहीं हुआ। अनेक प्रकाशन और पत्रकार नरेंद्र मोदी पर पुस्तक लिखते आ रहे हैं। संजय द्विवेदी ने अपनी किताब को ‘मोदी युग’ का शीर्षक दिया तो हमने भी समझा कि नरेंद्र मोदी की स्तुति में एक और पुस्तक आ गई। मैं संजय द्विवेदी की कलम से परिचित हूं, इसलिए मुझे इस निष्कर्ष पर पहुंचने में देर नहीं लगी कि इस पुस्तक में यथार्थ का यथासंभव तटस्थ मूल्यांकन किया गया है। वरिष्ठ पत्रकार संपादक और विचारक प्रोफेसर कमल दीक्षित किसी के लिए आमुख लिखने को यूं ही कलम नहीं उठाते हैं, उनका आमुख यह सिद्ध करता है कि पुस्तक की निष्पक्ष, दो टूक और सांगोपांग समीक्षा की गई है। इसके बाद संजय द्विवेदी की पुस्तक ‘मोदी युग’ की सामालोचना की गुंजाइश नहीं बचती है।
‘मोदी युग’ एक सटीक शीर्षक है, जिसकी सच्चाई को भाजपा विरोधी समझे जाते रहे उर्दू के अखबारों और रिसालों ने भी स्वीकार किया है। देश की सियासत में इन तीन साल में दबदबा तो नरेंद्र मोदी का ही है। नरेंद्र मोदी ने प्रतिपक्ष के एकजुटता के प्रयासों को जिस प्रकार निरर्थक किया है, उसका इस पुस्तक में तथ्यात्मक वर्णन मिलता है। राष्ट्रपति पद का चुनाव हमारे सामने है। एनडीए के प्रत्याशी के रूप में भाजपा के दलित वर्ग के प्रबुद्ध और बेदाग छवि वाले रामनाथ कोविद के नाम की घोषणा नरेंद्र मोदी की राजनीतिक रणनीतियों को मोदी युग के रूप में ही प्रख्यापित करती है। हैदराबाद से प्रकाशित उर्दू डेली 'मुंसिफ' की ख़बर पर मेरी नज़र पड़ी जिसमें अख़बार कह रहा है कि आज पूरे मुल्क में नरेंद्र मोदी और भाजपा का ही दबदबा है, जैसे किसी जमाने मे पंडित जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी की कांग्रेस देश की राजनीति की नियंता हुआ करती थी, वैसे ही आज नरेंद्र मोदी की टक्कर का कोई नेता नज़र नहीं आता तो यह मोदी युग ही तो हुआ। संजय द्विवेदी ने किताब में मोदी युग की विश्वसनीयता को स्थापित करने में अपनी कलम का ईमानदारी से उपयोग किया है।
संजय द्विवेदी ने पुस्तक में ठीक ही लिखा है कि नई राजनीति ने मान लिया है कि सत्ता का विनीत होना जरूरी नहीं है, अहंकार उसका एक अनिवार्य गुण है, भारत की प्रकृति और उसके परिवेश को समझे बिना किए जा रहे फैसले इसकी बानगी देते हैं। कैशलेश का हौवा ऐसा ही एक कदम है। यह हमारी परम्परा से बनी प्रकृति और अभ्यास को नष्ट कर टेक्नोलाजी के आगे आत्मसमर्पण कर देने की कार्रवाई है। एक जागृत और जीवंत समाज बनने के बजाय हमें उपभोक्ता समाज बनने से अब कोई रोक नहीं सकता। पुस्तक में कहा गया है कि इस फैसले की जो ध्वनि और संदेश है वह खतरनाक है। यह फैसला इस बुनियाद पर लिया गया है कि औसत हिंदुस्तानी चोर और बेईमान है। क्या नरेन्द्र मोदी ने भारत के विकास महामार्ग को पहचान लिया है या वे उन्हीं राजनीतिक नारों में उलझ रहे हैं, जिनमें भारत की राजनीति अरसे से उलझी हुई है? कर्ज माफी से लेकर अनेक उपाय किए गए किंतु हालात यह है कि किसानों की आत्महत्याएं एक कड़वे सच की तरह सामने आती रहती है। भारतीय जनता पार्टी और उसकी सरकार इन दिनों इस बात के लिए काफी दबाव में हैं कि उसके अच्छे कार्यों के बावजूद उसकी आलोचना और विरोध ज्यादा हो रहा है। उसे लगता है कि मीडिया प्रतिपक्ष की भूमिका में खड़ा है। मोदी सरकार मीडिया से कुछ ज्यादा उदारता की उम्मीद कर रही है।
प्रोफेसर कमल दीक्षित के शब्दों में-मोदी युग पुस्तक में संकलित लेखों में नरेंद्र मोदी की संगठन क्षमता, संकल्प निष्ठता और प्रशासनिक उत्कृष्टता को रेखांकित किया गया है। राष्ट्रवाद की नई परिभाषा को रूपायित किया गया है। देश में क्षेत्रीय दलों के घटते जनाधार, लगातार सत्ता में बने रहने से आई नीति, निष्क्रियता, संसदीय लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की मर्यादा का उल्लंघन, राजनीतिक अवसरवाद जैसे सामरिक विषयों पर संजय द्विवेदी की टिप्पणियां विषयपरक तो हैं ही, वे प्रकारांतर से हमारे लोकतंत्र की कमजोरियां उभारने वाली हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अनेक क्षेत्रों में देश गतिशील हुआ है। भारत-पाकिस्तान संबंधों में नीतिगत स्पष्टता का आभास हुआ है। विदेश नीति के माध्यम से आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक एकजुटता विकसित करने में भारत ने तीन वर्ष में जो बहुआयामी प्रयास किए उनके सकारात्मक परिणाम हैं। मैं संजय द्विवेदी के जन्म से पूर्व के एक तथ्य को जोड़ना चाहता हूं, जब भारत विभाजन के पश्चात पश्चिमी पंजाब से लाखों की संख्या में हिंदू पूर्वी पंजाब पहुंचे तो संघ के स्वयंसेवकों ने बड़ी संख्या में उनके आतिथ्य, त्वरित पुर्नवास और उनके संबंधियों तक उन्हें पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उस समय बड़ी तादाद में अनेक व्यक्ति घायल और अंग-भंग के शिकार होकर विभाजित भारत में पहुंचे थे। उन्हें यथा संभव उपचार उपलब्ध कराने में संघ के स्वयंसेवकों ने शासन-प्रशासन तंत्र को मुक्त सहयोग दिया था।
मोदी युग पुस्तक के आवरण के मुखडे़ से उसकी पीठ सत्ता प्रतिष्ठानों के प्रति असहमति में हाथ उठाने वाले प्रखर लेखक समालोचक विजय बहादुर सिंह, कुछ ख्यातिनाम पत्रकारों के साथ ही छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह की टिप्पणियां संजय द्विवेदी की लोकप्रियता के जीवंत साक्ष्य उपस्थित करती हैं। तीन दशकों से अधिक समय में मैंने संजय द्विवेदी को एक आत्मीय ओजस्वी पत्रकार, प्रबुद्ध अध्यापक और मनमोहिनी शक्ति से संपन्न मित्र के रूप में पाया है। अनेक सुनहरी संभावनाओं का अनंत आकाश उड़ान भरने के लिए उनके सामने खुला पड़ा है। पुस्तक: मोदी युग, लेखक: संजय द्विवेदी। प्रकाशकः पहले पहल प्रकाशन, 25 ए, प्रेस काम्पलेक्स, एमपी नगर, भोपाल (मध्य प्रदेश)। मूल्य: 200 रूपए, 250 पृष्ठ। पुस्तक समीक्षक रमेश नैयर जाने-माने पत्रकार और दैनिक भास्कर रायपुर के संपादक रहे हैं।