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Thursday 21 February 2013 08:14:39 AM
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था सुधारने का दावा करने वाली अखिलेश यादव सरकार, भारत बंद के दौरान व्यवसायिक नगरी नोएडा में अराजकतत्वों के नंगे नाच से स्तब्ध रह गई है। मंगलवार को विधानसभा में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने दावा किया था कि यूपी में उद्यमियों के लिए बहुत अच्छा वातावरण बन गया है जिसमें कानून व्यवस्था भी ठीक हो गई है। दूसरे दिन ही उनकी कानून व्यवस्था का कड़वा सच नोएडा में देखने को मिला। अराजक तत्वों ने भारत बंद के दौरान जो हिंसा फैलाई है, उसे देश भर ने देखा है। राज्य सरकार के पास कोई उत्तर नहीं है, सिवाय इसके कि वह इस हिंसा में शामिल किसी भी व्यक्ति को या लापरवाही बरतने वाले अधिकारी को भी नहीं बख्शेगी।
अखिलेश यादव सरकार उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था नहीं संभाल पा रही है, यह आरोप विपक्ष का ही नहीं है, अपितु उद्यमियों का भी पहला सवाल यही है कि उनकी सुरक्षा की क्या गारंटी है? उत्तर प्रदेश में ताबड़तोड़ अपराधों, डकैतियों, अपहरणों, और उद्यमियों से रंगदारी वसुलने की घटनाओं में कोई कमी नहीं है। राज्य सरकार के अधिकारी उद्यमियों को यह भरोसा देने में पूरी तरह नाकाम है कि उनकी जानमाल की पूरी सुरक्षा होगी। मंगलवार को बजट प्रस्तुत करते समय भी विपक्ष ने इसी मुद्दे पर सदन से वाकआउट किया था। सरकार ने अभी हाल ही में बड़े पैमाने पर पुलिस के तबादले किए हैं, जिनका आधार चुस्त पुलिस व्यवस्था बनाया गया है। पिछले ग्यारह महीनो में कोई दिन ऐसा नहीं गया है, जिसमें कोई बड़ा अपराध ना हुआ हो। सरकार भले ही कोशिश कर रही है, लेकिन अपराधियों के हौंसले बुलंद हैं।
नोएडा गौतमबुद्ध नगर में भारत बंद के दौरान हुई इस हिंसा और अरजकता की घटना की उच्च स्तरीय जांच हेतु राज्य सरकार ने दो सदस्यों की समिति का गठन किया है, जो तीन दिन में अपनी रिपोर्ट शासन को प्रस्तुत करेगी। प्रमुख सचिव गृह आरएम श्रीवास्तव ने बताया कि गृह सचिव राकेश तथा अपर पुलिस महानिदेशक कानून व्यवस्था अरूण कुमार इस समिति के सदस्य बनाए गए हैं। आरएम श्रीवास्तव ने बताया कि यह समिति बंद के दौरान कानून व्यवस्था बनाए रखने हेतु की गई तैयारियों का परीक्षण, घटना के समय पुलिस बल की भूमिका तथा घटना के लिए प्रथम दृष्ट्या लापरवाही अथवा अकर्मंयता के लिए दोषी प्रत्येक स्तर के अधिकारी को चिंहित कर तीन दिन में शासन को अपनी रिपोर्ट देगी। ऐसे चिंहित अधिकारियों के विरुद्ध कठोरतम दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।
नोएडा में तोड़-फोड़ व हिंसा की घटना को शासन ने बहुत गंभीरता से लिया है और दोषियों के विरूद्ध कठोरतम कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। निर्देशों में कहा गया है कि उपद्रवी तत्वों की पहचान में वीडियो फुटेज की मदद ली जाए। इन असामाजिक तत्वों के विरुद्ध गुंडा एक्ट जैसे अधिनियम में कार्रवाई तो की ही जाएगी, साथ ही एनएसए लगाने पर भी विचार करने को कहा गया है। प्रमुख सचिव गृह ने बताया कि शासन किसी भी दशा में अराजकता सहन नहीं करेगा तथा अधिकारियों की शिथिलता व अकर्मण्यता को भी क्षमा नहीं किया जाएगा, राज्य सरकार इस प्रकार की हिंसक घटनाओं में लिप्त किसी भी व्यक्ति को नहीं बख्शेगी।
देश की 11 ट्रेड यूनियनों के करीब ढाई करोड़ कर्मकार हड़ताल पर रहे। इसे भारतीय मजदूर संघ और आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस ने मिलकर बुलाया था। इस हड़ताल में बैंकों के नौ यूनियनों के लगभग 10 लाख कर्मचारी भी शामिल रहे हैं। इन यूनियनों की दस मांगें हैं, जिनमें महंगाई पर नियंत्रण के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत, श्रम कानूनों को कड़ाई से लागू करना, असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा जाल, सार्वजनिक उपक्रमों का विनिवेश बंद करना और न्यूनतम मजदूरी 10,000 रुपये मासिक करना शामिल हैं। रक्षा मंत्री एके एंटनी, कृषि मंत्री शरद पवार और श्रम एवं रोज़गार मंत्री मल्लिकार्जुन खड्गे ने 18 फरवरी की शाम को केंद्रीय श्रमिक संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ मुलाकात की थी, लेकिन यह बेनतीजा रही थी। इसके बाद देश में इंकलाब जिंदाबाद, हमारी मांगें पूरी हों के नारे गुंजायमान हुए। देश के मीडिया ने लगातार आगजनी, अराजकता, जल रहे टायरों, जलाई जा रही गाड़ियों और दुकानों, अव्यवस्था आदि के वीडियों जनता तक पहुंचाए। टीवी चैनलों पर नोएडा में हड़ताल के नाम पर ग़ुंडों और अपराधियों का हिंसात्मक तांडव देखा ही गया।