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Wednesday 20 September 2017 02:58:29 AM
नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने नई दिल्ली में एक कार्यक्रम में भारतरत्न डॉ एमएस सुब्बुलक्ष्मी की जन्मशती पर स्मारक सिक्के जारी किए और 'कुराई ओनरुम इलाई-एमएस लाइफ इन म्यूजिक' विषय पर एक प्रदर्शनी का उद्घाटन भी किया। उपराष्ट्रपति ने इस अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि डॉ एमएस सुब्बुलक्ष्मी एक प्रतिष्ठित और सम्मानित महिला थीं, जिन्होंने महात्मा गांधी से लेकर आमआदमी तक को अपने संगीत से मंत्रमुग्ध कर दिया था। उन्होंने कहा कि भारत, समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का देश है, यहां विभिन्न प्रकार के संगीत, बहुलता की भावना को प्रतिबिंबित करते हैं। उन्होंने कहा कि संगीत की समृद्ध विरासत भारत को पारिभाषित करती है, जो धर्म, क्षेत्र, जाति और समुदाय के विभेद से परे होकर एकता की भूमिका निभाती है। प्रदर्शनी का शीर्षक राजाजी का रचित एक प्रसिद्ध गीत है, जिसे डॉ एमएस सुब्बुलक्ष्मी ने अपनी आवाज़ दी थी। यह कार्य केवल वे ही कर सकती थीं। गीत में कहा गया है कि उन्हें ईश्वर से और अपने जीवन से कोई शिकायत नहीं है।
उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने कहा कि भारतीय संगीत का मूल वैदिक साहित्य विशेषकर सामवेद है, इसलिए हमारी प्राचीन संगीत प्रणाली से जुड़ी प्रत्येक मात्रा और ताल को संरक्षित और प्रचारित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करना हमारा कर्तव्य है, जो हमें पूर्वजों से प्राप्त हुआ है, हमें ऐसी विरासत भावी पीढ़ी को देनी चाहिए। उपराष्ट्रपति ने कहा कि डॉ एमएस सुब्बुलक्ष्मी का संगीत अमर है और इस देश का प्रत्येक व्यक्ति उनके संगीत से प्रभावित और रोमांचित है। उन्होंने कहा कि जब डॉ एमएस सुब्बुलक्ष्मी ने विभिन्न रचनाओं को अपनी आवाज़ दी तो संगीत ने दिव्यता प्राप्त कर ली, वे पहली संगीतकार हैं, जिन्हें देश के सबसे बड़े सम्मान भारतरत्न से सम्मानित किया गया, वे पहली भारतीय संगीतकार थीं, जिन्हें संयुक्तराष्ट्र महासभा में अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करने का अवसर प्राप्त हुआ था। एम वैंकेया नायडू ने कहा कि भारत सच्चे अर्थों में बहुलता के बेशुमार रंग समेटे नाना प्रकार के संगीत से समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है, यह संगीत के दो प्रमुख कर्नाटकी एवं हिंदुस्तानी स्रोतों से लेकर देश के कोने-कोने में फैले विभिन्न प्रकार के लोकसंगीत, सूफी संगीत, कव्वाली, रवींद्र संगीत और लोकप्रिय फिल्मी संगीतवाली भूमि है।
एम वेंकैया नायडू ने कहा कि मुझे इस बात की ख़ुशी है कि इंदिरा गांधी राष्ट्रीय सांस्कृतिक केंद्र ने यह जिम्मेदारी उठाई है एवं संस्कृति मंत्रालय इसको सहारा दे रहा है। उन्होंने कहा कि डॉ एमएस सुब्बुलक्ष्मी का संगीत अमर है, देश में हर कोई उनके संगीत से प्रभावित और अचम्भित हुआ है, यहां तककि महात्मा गांधी भी उनसे 'वैष्णव जन' सुनकर सम्मोहित हो गए थे। उन्होंने कहा कि मैं संस्कृति राज्यमंत्री महेश शर्मा को देश की इस विशिष्ट बेटी का जन्मशती वर्ष मनाने की पहल करने के लिए बधाई देता हूं। उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने एमएस सुब्बुलक्ष्मी के लिए कहा था कि मैं संगीत की महारानी के समक्ष एक सामान्य प्रधानमंत्री हूं, विपरीत दर्शन एवं विचारधारा के दो व्यक्ति एक तरफ पंडित जवाहरलाल नेहरू एवं दूसरी ओर राजाजी, दोनों ने उनके विशिष्ट गुणों की जयजयकार की एवं उनके संगीत की प्रशंसा करते समय वह साथ-साथ खड़े हुए। उन्होंने कहा कि भारत अपने समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है और हमारी नई पीढ़ी को हमारे समृद्ध और विविध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने का प्रयास करना चाहिए। प्रदर्शनी में डॉ एमएस सुब्बुलक्ष्मी का प्रारम्भिक जीवन, उनके जीवन को प्रभावित करने वाले व्यक्ति, उनका संगीत, उनके प्रमुख गीत, स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान, लोकसेवा के लिए उनके कार्य, फिल्मों में उनकी भूमिकाएं और पूरे विश्व से उन्हें दिए गए सम्मान को शामिल किया गया है।
वेंकैया नायडू ने कहा कि संगीत सीमा और बाधाओं से परे होता है, संस्कृत में कही गई 'शिशुर्वेत्ति पशुर्वेत्ति वेत्ति गान रसं फणि:' पंक्ति संगीत की जादुई शक्ति का सार प्रस्तुत करती है। उन्होंने कहा कि त्यागराज और अन्नामचार्य के कीर्तनों, मीरा और तुलसीदास के भजनों और हमारी साहित्यिक एवं सांगीतिक परंपरा के अनेक उन्नत संतों एवं ऋषियों में आध्यात्मिक प्रेम की उदात्त अभिव्यक्ति होती है, जैसाकि संत त्यागराज ने कहा है कि संगीता गनानामु भक्ति विना समर्गम कालाधे, जिसका अनुवाद है-जबतक आप संगीत के साथ समर्पण को सम्मिलित नहीं करते, यह हमें संभवतः आनंद की अनुभूति नहीं कराएगा। वेंकैया नायडू ने कहा कि जब महान कर्नाटकी संगीतविद् एमएस सुब्बुलक्ष्मी ने विभिन्न रचनाओं को संगीतबद्धकर अपनी आवाज़ दी तो संगीत में दिव्यता आ गई और यह कहना कि एमएस सुब्बुलक्ष्मी न सिर्फ़ देश, बल्कि विदेश में भी जाना माना नाम है-संभवतः कम बयानी होगा, वह एक उपास्य व्यक्ति थीं, जिन्होंने अपनी सुमधुर आवाज़ से सभी को मंत्रमुग्ध किया। गांधीजी के अनुरोध पर उन्होंने 1947 में एक ही रात में मीरा का प्रसिद्ध भजन 'हरि तुम हरो' रिकॉर्ड किया एवं उनको भेजा। वह जनसेवा के लिए रेमन मैग्सैसे पुरस्कार पाने वाली पहली भारतीय संगीतकार थीं। सरोजिनी नायडू ने उनको 'भारत की कोकिला' और लता मंगेशकर ने 'तपस्विनी' कहा था, जबकि उस्ताद बड़े गुलाम अली खान ने उनको 'सुस्वरलक्ष्मी सुब्बुलक्ष्मी' कहा था।
डॉ एमएस सुब्बुलक्ष्मी ने संयुक्तराष्ट्र के अलावा एडिनबर्ग अंतर्राष्ट्रीय महोत्सव एवं लंदन के रॉयल अल्बर्ट हॉल में क्वीन एलिज़ाबेथ द्वितीय के लिए संगीत का शानदार प्रदर्शन किया था। उन्होंने अधिकतर तमिल, तेलुगू, कन्नड़ एवं हिंदी में मीरा के भक्ति भावपूर्ण भजन गाए। दक्षिण भारतीय घरों में अनेक दशकों से अधिकतर एमएस सुब्बुलक्ष्मी के जगद्गुरू आदिशंकराचार्य रचित विष्णु सहस्रनाम, श्रीवेंकटेश्वर सुप्रभातम एवं भज गोविंदम के साथ सुबह की शुरुआत करने का आम चलन है। तिरुमाला मंदिर में एमएस सुब्बुलक्ष्मी का वेंकटेश्वर सुप्रभातम प्रतिदिन चलाने की प्रथा है। सुब्बुलक्ष्मी ने अन्नामचार्य की कृतियों को लोकप्रिय बनाने में भी महती योगदान दिया है। उन्होंने दान के उद्देश्य से 200 से भी अधिक कार्यक्रमों का बीड़ा उठाया एवं तिरुमाला मंदिर के लिए गाए भजनों के एल्बमों से अर्जित धन दान कर दिया। कार्यक्रम को डॉ महेश शर्मा ने भी संबोधित किया और कहा कि भारतरत्न डॉ एमएस सुब्बुलक्ष्मी ने संयुक्तराष्ट्र की 50वीं वर्षगांठ समारोह में कार्यक्रम प्रस्तुत किया था और यह सभी भारतीयों के लिए गर्व का विषय है। उन्होंने कहा कि डॉ एमएस सुब्बुलक्ष्मी केवल एक गायिका ही नहीं थीं, बल्कि वे गायन की विश्वकोष थीं, 16 सितंबर 2016 से 16 सितंबर 2017 तक उनकी जयंती मनाना हमारे लिए गर्व का विषय है।