रामऔतार कनौजिया
Saturday 23 February 2013 06:58:17 AM
संत गाडगे बाबा का 23 फरवरी 1876 दिन बुधवार (तिथि 13 कृष्ण पक्ष महा शिवरात्रि) के दिन शेड़गांव अकोला जिले में जन्म हुआ था। पिता झिंगराजी और माता सखू बाई के यहां जन्में संत गाडगे का बचपन में डेबू नाम था। झिंगराजी की मृत्यु सन् 1884 में जब हुई तब डेबूजी की आयु 8 वर्ष की थी। पिता की मृत्यु के पश्चात इनकी माता इन्हें लेकर मायके (दापूरे) चलीं गईं, क्योंकि इनके मामा का परिवार एक सम्पन्न परिवार माना जाता था। वहां सब सुविधाएं उपलब्ध थीं। डेबूजी का बचपन से ही ईश्वर-भक्ति की ओर झुकाव था तथा भजन के प्रति बड़ी आस्था थी। डेबूजी शादी के योग्य हो गए, तब इनके मामा ने सोचा कि अब भांजे की शादी कर दी जाए। मां सखू बाई की भी यही इच्छा थी और कमलापुर के धनाजी धोबी कन्या कुंताबाई से सन् 1892 दापूरे गांव में डेबूजी की शादी हुई।
समाज में मांस मदिरा का प्रचलन देखकर उनका गृहस्थ जीवन में मन नहीं लगता था। उन्होंने समाज के उत्थान एवं समाज की कुरीतियों को दूर करने का संकल्प लिया और सन् 1905 में डेबूजी ने सदा के लिए गृह-त्याग कर दिया। वे संत गाडगे बाबा के नाम से विख्यात हुए। उन्होंने 60 लोकापयोगी संस्थाएं बनाईं, जिनमें समाज के उत्थान एवं विकास हेतु कार्य हुए। आज भी संस्थाओं का संचालन हो रहा है। संत गाडगे बाबा के मिशन द्वारा स्थापित 16 छात्रावास, 12 आश्रम स्कूल, 1 महिला आश्रम, 2 माध्यमिक स्कूल, 4 वृद्धा आश्रम और 1 बालवाड़ी, 3 परिश्रमालय, 3 गौशालाएं चलाई जा रही हैं।
बाबा ने अपने जीवन में किसी को शिष्य नहीं बनाया था। जिन्होंने बाबा के मार्ग पर चलने का प्रयास किया, वह पत्थर से देवता बन गए। बाबा स्वयं भी एक जगह पर नहीं रहे। अखंड भ्रमण ही करते थे। उनका कहना था कि साधु चलता भला, गंगा बहती भली।बाबा के सहयोगियों में सभी जातियों के लोग थे। बाबा के कीर्तन में गरीब-श्रीमत् सभी लोग आते थे। पैसे वाले डिब्बे भर-भर कर रूपए लाते और दान कर भोजन करके चले जाते। कंगाल भूखे पेट आते और कीर्तन सुन कर चले जाते थे। बाबा को यह बात पसंद नहीं थी। सात दिन का नाम सप्ताह और आखिरी दिन अन्नदान (भंडारा) करने के लिए बाबा कहते थे, कबीर कहते थे-
कबीर कहे कमला को, दो बाता लिख लें।
कर साहेब की बंदगी और भूखे को कुछ दें।।
संत गाडगे जी की 13 दिसंबर 1956 को अचानक तबियत खराब हुई और 17 दिसंबर 1956 को बहुत ज्यादा खराब हुई, 19 दिसंबर 1956 को रात्रि 11 बजे अमरावती के लिए जब गाड़ी चली तो गाड़ी में बैठे सभी से बाबा ने गोपाला-गोपाला भजन करने के लिए कहा। जैसे ही बलगांव पिढ़ी नदी के पुल पर गाड़ी आई बाबा मध्य रात 12.30 बजे अर्थात 20 दिसंबर 1956 को ब्रह्मलीन हो गए।