के विक्रम राव
सर्वोच्चन्यायालय का आदेश राज्य सरकारें अगर ईमानदारी से लागू करें तो आइंदा से नालों पर शिवाले और चौराहों पर मजार नहीं दिखेंगे। यातायात सुगम हो जाएगा और धर्म की आड़ में धंधा करने वाले भू-माफिया खत्म हो जाएंगे। सर्वोच्च न्यायालय ने निर्दिष्ट किया है कि सार्वजनिक स्थलों पर धर्म संबंधी निर्माण कार्य की अनुमति नहीं होगी। भारत के कई शहरों में फुटपाथ और चौरस्तों पर फोड़े फुंसी की भांति ये कथित आस्था स्थल उभर आए हैं। उससे ईश्वर पर आस्था रखने वाले और शुचिता एवं पाकीज़गी पसंद करने वाले हर धर्मनिष्ठ नागरिक को मार्मिक पीड़ा होती है। मजहब के नाम पर भावनात्मक ज़ोर ज़बरदस्ती से सरकारी जमीन पर गैरकानूनी कब्जा करने वाले भू-माफिया लोग जनास्था का व्यापारीकरण करते हैं। भारत का प्रत्येक पैदल चलता व्यक्ति इस तथ्य का गवाह है।
इसी संदर्भ में अहमदाबाद का उदाहरण बड़ा प्रासंगिक है। नगरपालिका के अध्यक्ष थे सरदार वल्लभभाई झवेरदास पटेल जो आजाद भारत में प्रथम उपप्रधानमंत्री हुए। उन्हीं वर्षों में इलाहाबाद नगर पालिका के अध्यक्ष होते थे पंडित जवाहरलाल नेहरू। तब राजनीति में लोग स्थानीय संस्थाओं से ऊपर उठते थे। बाद में लोग आसमान से उतरकर सीधे प्रधानमंत्री बनते रहे। सरदार पटेल ने अहमदाबाद में फुटपाथों और चौराहों पर के मंदिरों को अपने सामने तुड़वाया। सड़कें चौड़ी करवाईं। हालांकि सरदार पटेल पर आरोप था कि वे घोर हिंदूवादी हैं। उन्होंने सोमनाथ के मंदिर का भव्य पुननिर्माण कराया तो प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने आलोचना की थी कि यह प्रतिक्रियावादी प्रवृत्ति हैं। सरदार पटेल का जवाब था कि पुनर्निर्मित सोमनाथ मंदिर सदैव स्वाधीन भारत की राष्ट्रीय सार्वभौमिकता का प्रतीक रहा है। मगर बिना हिचक सरदार पटेल ने अहमदाबाद में फुटपाथी मंदिरों का सफाया करा दिया था। हालांकि सोमनाथ से अयोध्या तक की रथयात्रा करने वाले नेता और उनके अनुयायी सत्ता में रहकर भी तमाम नगरों और कस्बों के सार्वजनिक स्थलों से धार्मिक अतिक्रमण हटाने का कदम नहीं उठा पाए।
मसलन नौ साल पूर्व उत्तर प्रदेश विधान सभा में भाजपाई-समर्थित सरकार ने �सार्वजनिक धार्मिक भवनों और स्थलों का विनियमन विधेयक, 2000� पारित किया। इसके उद्देश्य और कारण थे कि किसी भवन या स्थल का सार्वजनिक धार्मिक उपयोग और उस पर निर्माण कार्य को लोक-व्यवस्था में विनियमित किया जाए। यह कानून एक आवश्यक और अनूठा कदम था, मगर विपक्षी दलों ने वोट की लालसा से इस महत्वपूर्ण विधेयक का विरोध किया। उसे सतही तौर पर लिया। उसके सर्वांगीण पक्षों पर गौर करना चाहिए।
यूं किसी भी धर्म-स्थल और उपासना गृह के निर्माण और स्थापना में विशिष्ट धार्मिक पद्धति होती है। प्रतिमा तो मात्र पाषाण होता है जब तक उसमें विधिपूर्वक प्राण प्रतिष्ठा न की जाए। भारत के कई नगरियों में सरकारी जमीन पर बने मंदिर हिंदू धर्म की दृष्टि से उपासना स्थल कदापि नहीं कहे जा सकते हैं। कई धर्मगुरूओं, विशेषकर जगदगुरू शंकराचार्य ने इस बात को ज़ोर देकर बताया है। लखनऊ में नालों को पाटकर शिवाले बनाए गए हैं, जहां पुजारीजी का मुफ्त का मकान, चरस गांजे का व्यापार, चढ़ावे का माल अलग, अर्थात कुल मिलाकर बिना पूंजी लगाये लाभ ही लाभ है। इतना ही नहीं बिजली के तारों में कटिया फंसाकर मुफ्त में ऊर्जा भी इन उपासकों ने ले ली। मजाल है विद्युत उपक्रम के किसी अफसर की जो छापा मारे और इनका तार हटाए?
अचंभे की बात यह है कि सरकारी जमीन पर ये अवैध धार्मिक निर्माण हो तो लोग मूकदर्शक बन जाते हैं, मगर किसी की निजी सम्पत्ति पर कोई कोशिश होती है तो मारपीट करके मंदिर निर्माता खदेड़ दिये जाते है। एक जिले में एक कारसेवक भाजपा विधायक ने ऐसा ही किया, जब उसकी चहारदीवारी से लगी सड़क के कोने में कुछ लोगों ने कैलाशपति भोले शंकर के लिंग को स्थापित करना चाहा। पुलिसिया कार्रवाई हुई। भोले शंकर का मंदिर भग्न कर दिया गया। इसी तरह ब्लंट स्क्वायर मोहल्ले में अतिक्रमण विरोधी अभियान में एक अनाधिकृत शिवाला तोड़ा गया। अचानक लखनऊ नगर महापालिका के दस्ते ने पाया कि साक्षात् नागराज फन फैलाये प्रगट हो गए। जांच पर उस समय के नगर विकास मंत्री और प्रचंड हिंदूवादी नेता और लखनऊ के सांसद लालजी टण्डन ने उस सपेरे को पकड़ा जिसने पुजारी के रूपयों से ऐसा चमत्कार संभव कर दिया था।
इस्लामी जमात को भी अब जागरूक होना चाहिए ऐसे मजहबी सौदागरों से जो फुटपाथ पर मजार के नाम पर कब्जा करेंगे। ऐशबाग की पाक कब्रगाह की जमीन पर काबिज होकर दुकाने खोलेंगे। मुनाफा कमाएंगे। उस रकम को बैंक में जमाकर उसके सूद से तिजारत बढ़ाएंगे। कुरान-ए-पाक में कहा गया है कि रिबा (ब्याज) हराम है, फिर भी इन मुसलमानों को खौफ नहीं होता। इसीलिए उत्तर प्रदेश विधानसभा वाले उस पुराने विधेयक को ही सुधारकर अपनाएं। इसमें यह प्रावधान होना चाहिए था कि सार्वजनिक स्थल पर कोई धर्म के नाम पर ध्वनि प्रदूषण फैलाए तो वह दण्डनीय अपराध होगा। इस विषय पर कलकत्ता उच्च न्यायालय का स्पष्ट निर्णय आ चुका है। लखनऊ में आये दिन भगवती जागरण और लाउडस्पीकरों से अजान होने से बहस का यह मुद्दा उठता है कि धर्म एक निजी अकीदत और आस्था का विषय है अथवा सार्वजनिक प्रचार और दूसरे पर लादने का रिवाज? हर राज्य शासन को इस मुद्दे पर भी विधेयक लाना चाहिए ताकि नागरिक के शांत वातावरण वाले मूलाधिकारों की रक्षा हो सके। इस बात की जांच होनी चाहिए कि राज्य के सार्वजनिक भूखण्डों पर ये मंदिर और मजार कब, किसकी अनुमति से और कैसे बने? फुटपाथ आदि नागरिक के हैं, न कि हिंदू या मुसलमान उपासकों के। आमजन की जमीन को चढ़ावा से मुनाफा कमाने हेतु उपयोग करना वर्जित होना चाहिए।
राजनेता वोट शक्ति से आतंकित रह कर कोई वीरोचित निर्णय नहीं ले सकते। शासनतंत्र और नौकरशाही की रीढ़ ही नहीं होती। अतः एकमात्र न्यायपालिका पर ही आस्था टिकती है कि वही नागरिकों का परित्राण कर सकती है। उच्चतम न्यायालय से ही यह अपेक्षा होगी कि फुटपाथ और सार्वजनिक स्थलों पर से इन धार्मिक अतिक्रमणों को हटाए। सरकारी और सार्वजनिक जमीन को व्यक्तिगत लाभ हेतु धर्म विशेष के लिए उपयोग करना सेक्युलर लोकतंत्र की आवधारणा के प्रतिकूल है। न्यायालय को राज्य सरकार, प्रबुद्ध नागरिकों और संबंधित व्यक्तियों को जनहित में सुनना चाहिए ताकि धर्म के आवरण में मुनाफाखोरी और अवैध कब्ज़ेदारी बंद हो।
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बनते ही चंद्रबाबू नायडू ने गांव जैसे पिछड़े पुराने और गली कूंचे से भरे हैदराबाद को आधुनिक शहर बना दिया जो आज भारत का पांचवे नंबर का औद्योगिक शहर है। ये संभव हो पाया सिर्फ इसलिए कि दूरदर्शी मुख्यमंत्री ने खोमचे वालों मजार व मंदिर वालों और पुराने मकान के मलिको को समझाकर और पर्याप्त मुवावजा देकर जगह खाली करवाई, सड़कें चौड़ी हुईं, कई फ्लाई ओवर बने। हैदराबाद की चार मीनार और मलखपेंठ के रास्ते जो लखनऊ के नक्खास और चौक से भी ज्यादा तंग थे उनमे आज निर्बाधरूप से ट्रैफिक चल रहा है। गुजरात देश के विकास का एक मॉडल है। विकास के लिए वहां के भाजपाई मुख्यमंत्री नरेंद्र भाई मोदी ने राजमार्गों, विशाल भवनों के महत्व को समझ और जानकर सारे धार्मिक लोगों और व्यापारियों से संवाद स्थापित किया। अहमदाबाद, बड़ौदा, सूरत और राजकोट सरीखे पुराने ऐतिहासिक शहरों को जो नया और शानदार कलेवर दिया उसकी आज सात समंदर पार भी चर्चा हो रही है, भले ही नरेंद्र मोदी की कुछ मामलों पर आलोचना होती हो लेकिन गुजरात के पुन:निर्माण का काम मोदी ने कर दिखाया। विकास के विरोधी सब जगह पर मौजूद हैं। नरेंद्र मोदी का वे कुछ नही बिगाड़ पाए तो यह मुद्दा ही उछाल दिया कि मंदिर वाली मोदी सरकार, विकास के नाम पर धार्मिक स्थल तुड़वा रही है।
गुजरात में सड़क पर बने धार्मिक स्थलों को हटवाने संबंधी आदेश को रूकवाने सुप्रीम कोर्ट पहुंची केंद्र सरकार को अदालत ने जिम्मेदारी सौंपकर निर्बाध विकास की इच्छा रखने वालों में एक बड़ी आशा पैदा कर दी है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिए हैं कि देश भर में अब कहीं भी सार्वजनिक स्थलों और सड़कों पर धार्मिक स्थल नहीं बनने चाहिए। गुजरात हाई कोर्ट ने अहमदाबाद में सड़कों पर बने पूजा स्थलों सहित सभी अवैध ढांचे गिराने के निर्देश दिए थे। केंद्र सरकार ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई पर कहा है कि सरकार यह तय करे कि अब किसी सार्वजनिक स्थान या सड़क पर मंदिर, मस्जिद, चर्च या गुरूद्वारा नहीं बनेगा अगर सार्वजनिक स्थान पर इनमे से एक भी निर्माण हुआ तो संबंधित अधिकारी को समुचित सजा दी जाएगी। केंद्र सरकार इस मामले पर यदि राज्यों के साथ सहमति बनाने में कामयाब हो जाती है तो यह इस देश की सौ करोड़ जनता के साथ न्याय और उपकार होगा। जहां तक सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का प्रश्न है तो वह केंद्रको नतीजे तक पहुंचाने के लिए भारी मदद कर रहा है हम भी उच्चतम न्यायालय के आभारी हैं।