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Monday 25 February 2013 06:46:28 AM
देहरादून। उत्तराखंड एक पहाड़ी राज्य है, जिसकी भौगोलिक संरचना भी कई रूपों में है। कहीं पहाड़ी क्षेत्र तो कहीं मैदानी क्षेत्र है। इसमें 67 प्रतिशत भूमि वन क्षेत्र में है, अलग राज्य बनने के बाद से अब तक प्रदेशवासियों को मूलभूत सुविधाओं से ही नहीं जोड़ा गया है, जिससे विकास और रोज़गार की बात करनी ही बेईमानी है। उत्तराखंड 13 जिलों में से 3 जिलों देहरादून, हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर में ही सिमट कर रह गया है। इन तीनों मैदानी जिलों में व्यवस्था अव्यवस्थित होती जा रही हैं और बाकी 10 जिले वीरान होते जा रहे हैं।
उत्तराखंड में चीन और नेपाल की सीमा होने के कारण बाकी जिलों का मानव विहीन होना उत्तराखंड ही नहीं देश की सुरक्षा के लिए भी गंभीर खतरा हो रहा है। हिमालय बसेगा तभी बचेगा नहीं तो गंगा, यमुना भी इतिहास हो जाएंगी। हिमालयी राज्य उत्तराखंड में पर्यटन, कृषि, फलोत्पादन, जड़ी-बूटी, फूलोत्पादन, प्राकृतिक खेल, दुग्ध उत्पादन, भेड़ पालन, मधु-मक्खी पालन आदि की अपार संभावनाएं हैं, जिनसे पलायन रोकने, रोज़गार देने की अपार संभावनाएं होने के बावजूद पहाड़ के पहाड़ खाली होते जा रहे हैं। कहीं ना कहीं सरकार ठोस रणनीति बनाने में असफल है या यूं कहें कि सरकार में बैठे लोगों में सकारात्मक सोच का कहीं ना कहीं घोर अभाव है। उत्तराखंड को पलायन मुक्त बनाने और हिमालय को बचाने के लिए योजना कारगर और दूरगामी होनी चाहिए। एक ऐसा उत्तराखंड चाहिए, जहां मूलभूत सुविधाओं की कहीं कोई कमी न हो।
उत्तराखंड में कुल 670 न्याय पंचायतें हैं और प्रत्येक न्याय पंचायत के अंदर 15 से 20 ग्राम पंचायतें आती हैं। आरटीआई कार्यकर्ता और आम आदमी पार्टी के नेता भार्गव चंदोला का कहना है कि हमे प्रत्येक न्याय पंचायत में एक ऐसी टाउनशिप बनानी है, जिसमें एक ही परिसर में स्कूली शिक्षा, उच्च शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा, तकनीकि शिक्षा, कृषि शिक्षा, योग शिक्षा, संस्कृति शिक्षा, खेल शिक्षा, खेल मैदान, खेल परिसर, आधुनिक सुविधा युक्त चिकित्सालय, बैंक, एटीएम, कर्मचारी आवास, छात्र-छात्रा आवास, आईटी उद्योग, ओद्योगिक संस्थान, स्थानीय उत्पादन बिक्री केंद्र, पर्यटन हटनुमा होटल, फ्लोरिक्ल्चर, हार्टिकल्चर, एग्रीकल्चर, दुग्ध डेरी, मधु-पालन, सब्जी उत्पादन, जड़ी-बूटी उत्पादन, फलोत्पादन, काष्ठ-कला, भेड़ पालन, साहसिक एवं प्राकृतिक खेल, योग-ध्यान केंद्र के साथ ही अच्छी गुणवत्ता की सड़कें एवं परिवहन व्यवस्था आदि एक ही परिसर में हों।
असफल सरकार और असफल लोकसेवक ही सरकारी संस्थानों को पीपीपी मोड पर दिए जाने की बात कर सकते हैं। पीपीपी मोड़ कर्मचारियों और जनता को ठेकेदारों के हाथों में सौंपने के लिए रची जाने वाली साजिश है, जिसका पुरजोर विरोध किया जाना चाहिए। न्याय पंचायतों में टाउनशिप बनने से एक ही परिसर में सब कुछ मिलेगा, जिससे पलायन रुकेगा, शिक्षक, डॉक्टर और अन्य कर्मचारी मूलभूत सुविधाएं पाकर तनाव मुक्त होंगे और उत्तराखंड की आम जनता को अपनी श्रेष्ठ सेवा देंगे। उत्तराखंड से बाहर रह रहे उत्तराखंड वासियों को भी वापस आने और रोज़गार प्राप्त करने के अवसर प्राप्त होंगे।
टाउनशिप बनने के बाद एक ओर जहां मैदानी कृषि भूमि कंक्रीट के जंगल में तब्दील होने से बचेगी वहीं ग्रामीण और पहाड़ी कृषि भूमि हरी-भरी होगी और खाद्यान उत्पादन बढ़ेगा। उत्तराखंड में खाद्यान का संकट दूर होगा। हिमालयी राज्य उत्तराखंड में अक्सर प्राकृतिक आपदा का सामना करना पड़ता है, टाउनशिप बनने के बाद जगह-जगह फलदार और छायादार वृक्ष लगेंगे, जिससे भू-स्खलन नहीं होगा और आपदा का खतरा दूर होगा। उत्तराखंड में अंतराष्ट्रीय सीमा होने के कारण घुसपैठ, माओवाद आदि का खतरा बना रहता है, टाउनशिप बनने के बाद चीन और नेपाल की सीमा पर चौकसी रखने में आसानी होगी। न्याय पंचायतों में टाउनशिप बनने के बाद सीमा में तैनात सैनिकों को अपने परिवारों को शिक्षा और चिकित्सा सुविधा देने के लिए गांव नहीं छोड़ने पड़ेंगे और वो अच्छी शिक्षा, चिकित्सा सुविधा के साथ अपने खेत-खलिहानों को हरा-भरा रख पाएंगे।
मैदानी शहरों देहरादून, हरिद्वार, ऊधम सिंह नगर, हल्द्वानी में जनसंख्या का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है, जिसके साथ-साथ माफियाराज अत्यधिक बढ़ रहा है, जिसे पुलिस प्रशासन अंकुश लगाने में नाकाम हो रहा है। न्याय पंचायतों में टाउनशिप बनने से इन शहरों में जनसंख्या दबाव कम होगा और कानून व्यवस्था बनाने में आसानी होगी। टाउनशिप बनने के बाद ये शहर और यहां के निवासियों को सही जीवन-यापन करने को मिलेगा और माफियाराज से मुक्ति मिलेगी। हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियर तभी बचे रह सकते हैं, जब हिमालय क्षेत्र के लोग यहां बसेंगे। टाउनशिप बनेगी तो बसागत होने में परेशानी नहीं होगी और वही बसागत हिमालय के ग्लेशियरों, यहां की गंगा-यमुना नदियों और यहां की संस्कृति को बचाएंगी। यही बसागत देश की सीमा में घुसने वाले अवांछित तत्वों को घुसने से रोकेगी, कुल मिलाकर पहाड़ हों या मैदान प्रत्येक न्याय पंचायत में टाउनशिप बनने के बाद उत्तराखंड का चौमुखी और दूरगामी विकास होगा और हर तरफ खुशहाली और संपंनता होगी।
अब सवाल उठता है कि 670 न्याय पंचायतों में टाउनशिप बनवाने हेतु धन कहां से आएगा? ये प्रश्न कई लोगों ने उठाया है। कई विकल्प सामने हैं, जो उत्तराखंड में टाउनशिप बनाने के लिए प्रर्याप्त धन के श्रोत साबित होंगे। उत्तराखंड का 67 प्रतिशत भू-भाग वन क्षेत्र में आता है। ये वन भारत के साथ-साथ विश्व का पर्यावरण संतुलन बनाने हेतु कार्बन अवशोषण का कार्य करते हैं, जिसके लिए विश्व के विकसित देश भारत को ग्रीन बोनस देते हैं, उत्तराखंड ग्रीन बोनस राशि का हक़दार है। केंद्र सरकार उत्तराखंड को ग्रीन बोनस के रूप में जो धनराशि दे, वो धनराशि न्याय पंचायतों में टाउनशिप बनाने में लगाई जाए। उत्तराखंड एक पर्यटन और धार्मिक स्थानों का राज्य है, जहां हर साल करोड़ों यात्री देश-विदेश से उत्तराखंड घूमने या यात्रा करने आते हैं। उत्तराखंड में ऐसे लोगों से पर्यावरण एवं व्यवस्था शुल्क लिया जाए, उससे जो धन राशि एकत्रित हो, वो धनराशि टाउनशिप बनाने में खर्च की जाए।
उत्तराखंड में अनेक प्रकार के उद्योग स्थापित हैं, ऐसे उद्योगों को-हर साल अपनी आय का दो प्रतिशत धन जनसेवा हेतु व्यय करना होता है। उत्तराखंड में ऐसे उद्योगों से वो दो प्रतिशत धनराशि सीधे ली जाए और वो धनराशि टाउनशिप बनाने में खर्च की जाए। उत्तराखंड सीमांत प्रदेश है और केंद्र को अपनी अंतराष्ट्रीय सीमा के अंदर आने वाले प्रदेश उत्तराखंड में मूलभूत सुविधाएं देने हेतु वित्तीय सहायता करनी होगी, वो वित्तीय सहायता टाउनशिप बनाने में खर्च की जाए। उत्तराखंड में भारी कर चोरी की जाती है, ऐसे कर चोरों पर लगाम लगाई जाए और उन से प्राप्त धनराशि को टाउनशिप बनाने में खर्च किया जाए। केंद्र से अनेक परियोजनाओं में मिलने वाले धन को विधिवत रूप से टाउनशिप बनाने में व्यय किया जाए। लोकसेवकों, विधायक, मंत्रियों एवं वीआईपी-वीवीआईपी के खर्चों में भारी कटौती कर वो धनराशि टाउनशिप बनाने में खर्च की जाए। विकल्प काफी हैं, जो उत्तराखंड को नई ऊंचाई पर ले जाने के लिए मौजूद हैं। जरूरत है, ईमानदारी से क्रियांवयन करने की, तभी हम इसमें सफलता मिल पाएगी।