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Tuesday 12 December 2017 04:39:52 AM
नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडु ने विधानमंडलों में कामकाज के सुचारु रूपसे संचलान के लिए 10 सूत्री कार्यसूची का सुझाव दिया है, ताकि लोकतांत्रिक संस्थाओं के प्रति जनता के मन में सम्मान की भावना कायम रखी जा सके। पॉलिसी रिसर्च स्टडीज़ यानी पीआरएस के आयोजित सार्वजनिक व्याख्यान में उन्होंने ‘विधानमंडलों के महत्व’ विषय पर प्रकाश डाला। उन्होंने विधानमंडलों के बुनियादी कामकाज, उनके कार्य निष्पादन, उनके समक्ष चुनौतियों और भविष्य की रूपरेखा के बारे में भी जानकारी दी। वेंकैया नायडु ने कहा कि निर्वाचित प्रतिनिधियों के बारे में गलत धारणाएं संसदीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी शत्रु हैं, क्योंकि अपनी निर्वाचित संस्थाओं परसे लोगों का भरोसा कम होने से लोकतांत्रिक संस्थाओं के कामकाज पर बुरा असर पड़ता है। सभापति एम वेंकैया नायडु ने इस बात पर जोर दिया कि आम धारणा के विपरीत संसद सालभर कार्य करती है, क्योंकि विभिन्न विभागों से संबंधित स्थायी संसदीय समितियां और अन्य संसदीय समितियां संसद के विधायी, विचार-विमर्श संबंधी और निगरानी के कामकाज के महत्व को बढ़ाती हैं।
वेंकैया नायडू ने कहा कि पहली लोकसभा की 677 बैठकें हुईं और उसने 1952-57 की अपनी अवधि के दौरान 319 विधेयक पारित किए, वर्ष 2004-2009 के दौरान 14वीं लोकसभा की 332 बैठकें हुई और इसने 247 विधेयक पारित किए, पंद्रहवीं लोकसभा की 357 बैठकें हुई और 181 विधेयक पारित किए जा चुके हैं। उन्होंने कहा कि इन आंकड़ों से यह निष्कर्ष निकालना उचित नहीं होगा कि संसद अपनी जिम्मेदारियों से बच रही है। उन्होंने स्पष्ट किया कि विभागों से संबंधित कुल 24 स्थायी समितियां हैं, जिनमें से 8 राज्यसभा की हैं, सभी केंद्रीय मंत्रालयों की अनुदान मागों, विधायी प्रस्तावों और राष्ट्रीय स्तर की नीतिगत पहलों की गहन जांच-पड़ताल करती हैं। उन्होंने कहा कि इन समितियों को इस बात का अधिकार होता है कि वे वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों और अन्य व्यक्तियों को प्रासंगिक मामलों में साक्ष्य के लिए या सूचनाएं प्राप्त करने के लिए सम्मन कर सकती हैं। वेंकैया नायडु ने कहा कि वर्ष 2016 में जहां संसद के दोंनों सदनों ने करीब 70-70 दिन बैठकें कीं, वहीं विभागों से संबंधित स्थायी समितियों की 400 बैठकें हुईं, अगर इस अवधि को भी शामिल कर लिया जाए तो यह संसद की 200 अतिरिक्त बैठकों के बराबर होगी, इससे यह साबित हो जाता है कि संसद 24x7 यानी सप्ताह के सात दिन रोजाना चौबीसों घंटे काम करती है।
राज्यसभा के सभापति का कहना था कि देश के लोगों के मन में विधायी संस्थाओं के प्रति जो नकारात्मक सोच बढ़ रही है, उसका प्रमुख कारण इनकी कार्यवाही में बार-बार व्यवधान आना है, जो सदस्यों के उत्तेजित होकर सदन के बीचों-बीच पहुंच जाने, सदन के कामकाज के नियमों का उल्लंघन करने और अध्यक्ष या सभापति के निर्देशों की अवहेलना करने से उत्पन्न होता है। विधायी संस्थाओं के सुचारु रूप से कार्य करने के लिए वेंकैया नायडु ने कुछ सुझाव भी दिए। सभापति ने विधायी संस्थाओं के प्रभाव और उत्पादकता के वैज्ञानिक मापन के लिए 1 से 10 तक के अंकों पर आधारित पैमाना बनाए जाने को कहा, जो सालभर में उनकी बैठकों की संख्या, पारित विधेयकों की संख्या, लंबित विधेयकों की संख्या, सदस्यों की भागीदारी, प्रत्येक विधेयक पर चर्चा की अवधि, वाद-विवाद की गुणवत्ता, व्यवधान का परिमाण समितियों की रिपोर्टों आदि पर आधारित होना चाहिए। उन्होंने विधायी संस्थाओं के सदस्यों के कामकाज के मूल्यांकन के बारे में भी इसी तरह का मूल्यांकन कराने का सुझाव दिया। उन्होंने बताया कि राज्यों और शहरी स्थानीय निकायों को आज विभिन्न मानदंडों जैसे जीडीपी विकास दर, बुनियादी ढांचे की उपलब्धता, सामाजिक और मानव विकास सूचकांकों, कारोबार करने में सहूलियत और स्वच्छता जैसे मानदंडों के आधार पर वर्गीकृत किया जा रहा है।
वेंकैया नायडु ने देश की सभी निर्वाचित विधायी संस्थाओं के लिए भी इसी तरह की वर्गीकरण व्यवस्था बनाए जाने का आग्रह किया, जिससे इस रैंकिंग को सार्वजनिक करने से संबंधित विधायी संस्थाओं, सरकार और राजनीतिक दलों पर जनता का दबाव पड़ेगा। उन्होंने कहा कि सदन में काम काज चलाने के लिए न्यूनतम उपस्थिति सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी केवल सरकार और सत्तारूढ़ पार्टियों पर डालना उचित नहीं होगा, उसकी शर्त अन्य पार्टियों पर भी लागू होनी चाहिए, क्योंकि जनता का प्रतिनिधित्व करने वाली प्रत्येक पार्टी की सदन के कार्यसंचालन की भूमिका होनी चाहिए। सदन की कार्यवाही में बार-बार व्यवधान आने, सदस्यों के सदन के बीचों-बीच दौड़े चले आने और अध्यक्ष या सभापति के निर्देशों की अवहेलना करने पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने सुझाव दिया कि ऐसा करने वाले सदस्यों के नाम सार्वजनिक रूपसे प्रदर्शित किए जाने चाहिएं। उन्होंने कहा कि ऐसे सदस्य अध्यक्ष या सभापति के निर्देशों की अवहेलना करते हैं, जिससे सदन के कामकाज पर बुरा असर पड़ता है। विरोध प्रकट करने के लिए सदस्यों के दौड़कर सदन के बीचों बीच आ जाने की समस्या से निपटने के लिए वेंकैया नायडु ने सदन के कामकाज के नियमों में ऐसे विशिष्ट प्रावधान शामिल करने का आह्वान किया, जिससे ऐसा करने वाले सदस्यों का स्वत: निलंबन हो जाए।
वेंकैया नायडु ने विधायी संस्थाओं में महिलाओं को न्यायोचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए महिला आरक्षण विधेयक को आगे बढ़ाने का आह्वान किया, ताकि समावेशी व प्रबुद्ध विधानमंडलों का गठन सुनिश्चित किया सके। विधानमंडलों को कानून बनाने, कार्यपालिका को उनपर अमल सुनिश्चित करने और न्यायपालिका को कानूनों की व्याख्या करने का अधिकार देने वाले कानूनों का जिक्र करते हुए सभापति वेंकैया नायडु ने इस बात पर जोर दिया कि न्यायालय अपने आप में कानून नहीं हो सकते और किसी एक संस्था को दूसरे के कार्यक्षेत्र में हस्तक्षेप का कोई अधिकार नहीं है। न्यायपालिका द्वारा किसी दूसरी संस्था के कार्यक्षेत्र में प्रवेश करने के उदाहरणों का जिक्र करते हुए उन्होंने कुछ मिसाल पेश कीं कि किस तरह देश की सर्वोच्च अदालत ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग गठित करने के कानून, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वाहनों के पंजीयन पर कर लगाने और डीजल वाहनों के इस्तेमाल पर रोक लगाने के कानूनों को रद्द कर दिया। वेंकैया नायडु ने विधायी संस्थाओं के प्रतिनिधियों से आग्रह किया कि वे पूरी तैयारी के साथ सदन की कार्रवाई में हिस्सा लें, ताकि वाद-विवाद और बहस के बीच उठाए जाने वाले मुद्दों पर चर्चा का स्तर ऊंचा हो।