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Tuesday 12 December 2017 05:47:01 AM
नई दिल्ली/ लखनऊ। उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने नई दिल्ली में राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति रामनाथ कोविद से भेंटकर उनको डॉ भीमराव अंबेडकर के स्थान पर डॉ भीमराव रामजी आंबेडकर सही नाम लिखे जाने के संबंध में दस्तावेज़ के साथ एक अनुरोध पत्र सौंपा है। राष्ट्रपति को संबोधित इस पत्र में राज्यपाल ने कहा है कि केंद्र एवं राज्य सरकारों के दस्तावेजों में डॉ भीमराव रामजी आंबेडकर दर्ज है, जोकि सही है, मगर प्रचलन में डॉ भीमराव अंबेडकर लिखा जा रहा है, जोकि ग़लत है। राज्यपाल का कहना है कि किसी भी व्यक्ति का नाम उसी तरह लिखा जाना चाहिए जिस तरह वह स्वयं लिखता हो। राज्यपाल राम नाईक ने कहा कि इस दृष्टि से ‘भारत का संविधान’ की मूल हिंदी प्रति के पृष्ठ 254 पर उनके हस्ताक्षर भीमराव रामजी आंबेडकर के अनुसार आगेसे पूरा नाम डॉ भीमराव रामजी आंबेडकर लिखा जाना ही उचित होगा न कि डॉ भीम राव अम्बेडकर।’
राज्यपाल राम नाईक ने पुष्ट दस्तावेज़ों के आधार पर जागरुक किया कि भीमराव भी एक ही शब्द है न कि अलग-अलग यानी भीम राव। उन्होंने कहा कि इसी प्रकार अंग्रेजी में भी Dr Bhim Rao Ambedkar के स्थान पर Dr. Bhimrao Ramji Ambedkar लिखना उचित होगा। राम नाईक ने राष्ट्रपति से आग्रह किया कि यदि उनके स्तर से इस विषय पर कार्रवाई की जाएगी अथवा दिशा-निर्देश निर्गत किए जाएंगे तो देश में एक सुसंदेश जाएगा। ऐसा करके देशवासी डॉ भीमराव रामजी आंबेडकर के प्रति सही अर्थों में सम्मान एवं कृतज्ञता प्रकट कर पाएंगे। उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने अपने दिल्ली के दौरे पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविद से भेंट करने के बाद एक पत्रकार वार्ता भी की, जिसमें राज्यपाल ने मीडिया के माध्यम से देश के संविधान शिल्पी डॉ भीमराव रामजी आंबेडकर का भविष्य में इसी प्रकार से सही नाम लिखने का अनुरोध किया।
राज्यपाल राम नाईक ने बताया कि उन्होंने उत्तर प्रदेश में डॉ आंबेडकर के नाम से जुड़े विश्वविद्यालयों एवं अन्य संस्थानों में बाबासाहब का सही नाम लिखे जाने हेतु मुख्यमंत्री को भी पत्र लिखकर उनसे चर्चा की है। राज्यपाल ने विश्वास जताया कि इसी 14 दिसम्बर से आहूत उत्तर प्रदेश विधान मंडल के सत्र में इस विषय पर चर्चा के बाद सही नाम लिखे जाने पर सकारात्मक कार्रवाई की जाएगी। उल्लेखनीय है कि संविधान सभा ने ‘जन-गण-मन’ एवं ‘वंदे मातरम्’ को राष्ट्रगान एवं राष्ट्रगीत का दर्जा दिया था, परंतु संविधान लागू होने के पश्चात् से 1992 तक यह संसद भवन में नहीं गाए जाते थे, मगर राम नाईक के आग्रह पर संसद में इनपर हुई चर्चा स्वीकार हुई और संसद सत्र का प्रारम्भ राष्ट्रगान ‘जन-गण-मन’ तथा समापन राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम्’ से किया जाना शुरू हुआ।