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प्रोफेसर पीजे कुरियन कहीं दोषी नहीं-कमलनाथ

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Tuesday 26 February 2013 10:30:28 AM

pj kurien

नई दिल्ली। संसदीय कार्य मंत्री कमलनाथ ने मंगलवार को राज्‍य सभा में कहा है कि हाल ही में उच्‍चतम न्‍यायालय के निर्णय, जिसे 'सूर्यानेली' प्रकरण का नाम दिया जा रहा है, के पश्‍चात एक विवाद खड़ा करने का प्रयास किया जा रहा है, जिसमें मीडिया के एक वर्ग तथा कुछ राजनैतिक दलों ने राज्‍य सभा के उप-सभापति प्रोफेसर पीजे कुरियन का नाम घसीटने की कोशिश की है। उन्होंने कहा है कि इस प्रकरण को पुन: सुनवाई कराए जाने के लिए उच्‍चतम न्‍यायालय ने केरल उच्‍च न्‍यायालय को वापिस लौटा दिया है, इसमें प्रोफेसर पीजे कुरियन कभी एक अभियुक्‍त नहीं रहे। उन्होंने बताया कि सूर्यानेली प्रकरण 17/01/1996 में दायर एफआईआर संख्या 71/96 के आधार पर शुरू हुआ था, जिसमें एक लड़की ने कतिपय लोगों के उससे बलात्‍कार की शिकायत की थी। बाद में लड़की ने खुलासा किया कि 42 लोग अभियुक्‍त के रूप में सूचीबद्ध हैं। उस समय प्रोफेसर पीजे कुरियन का कोई उल्‍लेख नहीं था।
कमलनाथ ने बताया कि लगभग दो महीने बाद 1996 के आम चुनाव की पूर्व संध्‍या पर उस लड़की ने यह शिकायत तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री एके एंटोनी के पास भेजी, जिसमें उसने यह आरोप लगाया कि प्रोफेसर पीजे कुरियन भी इस प्रकरण में संलिप्‍त हैं तथा मार्क्‍सवादी कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के मुख पत्र 'देशाभिमानी' ने उसे तुरंत प्रकाशित कर दिया। प्रोफेसर कुरियन ने तुरंत इस मामले में पुलिस महानिदेशक से जांच का अनुरोध किया, साथ ही, उस लड़की और 'देशाभिमानी' कि तत्‍कालीन मुख्‍य संपादक ईके नयनार के विरुद्ध मानहानि का नोटिस भी दिया। आरोप की जांच, एक वरिष्‍ठ आईपीएस अधिकारी, राजीवन ने की जो, 30 से भी अधिक साक्ष्यों, दूरभाष अभिलेखों, राज्‍य कार चालक के बयान, राज्‍य कार की लॉग बुक, कथित स्‍थान तक पहुंचने के लिए लगने वाले समय की जांच करने के बाद इस ठोस नतीजे पर पहुंचे कि अपराध के कथित स्‍थान तक पहुंचना प्रोफेसर पीजे कुरियन के लिए व्‍यवहारिक दृष्टि से असंभव था और इसलिए प्रोफेसर कुरियन इस अपराध में बिल्‍कुल ही संलिप्‍त नहीं हैं। जांच से यह भी निष्‍कर्ष सामने आया कि प्रोफेसर कुरियनके विरुद्ध आरोपया तो वास्‍तव में एक गलती है अथवा लड़की का उपयोग उनके राजनैतिक विरोधियों ने एक हथकंडे के रूप में किया है।
कमलनाथ ने कहा कि उसी चुनाव के दौरान लड़की के पिता ने सीबीआई की जांच कराने की मांग करते हुए उच्‍च न्‍यायालय में एक याचिका दायर की। तथापि, लोक सभा चुनावों के बाद न तो उन्‍होंने मामले को आगे बढ़ाया और न ही वे न्‍यायालय में उपस्थित हुए और इसीलिए, इस मामले को गैर अभियोजन के कारण खारिज कर दिया गया। इस बात से स्‍वाभाविक निष्‍कर्ष यह निकलता है कि वे जांच रिपोर्ट से संतुष्‍ट थे अथवा यह याचिका सिर्फ चुनावों के दौरान इस्‍तेमाल किए जाने के मकसद से दायर की गई थी। वाम मोर्चा के मुख्‍यमंत्री ईके नयनार, जिन्‍होंने प्रोफेसर कुरियनके विरुद्ध आरोप लगाए और जो अब प्रोफेसर कुरियन के अवमानना के मुकदमें में आरोपित हैं, ने पुलिस उप-महानिरीक्षक सिबी मैथ्‍यू के नेतृत्‍व में जांच दल का गठन किया। विस्‍तृत जांच और सभी साक्षियों से पुन: पूछताछ करने पर यह दल इस निष्‍कर्ष पर पहुंचा कि प्रोफेसर कुरियन इसमें संलिप्‍त नहीं हैं।
नयनार ने एक अन्‍य आईपीएस अधिकारी सोम सुंदर मेनन को तीसरी जांच का आदेश दिया, जिसने पूर्ण जांच की और यहां तक कि प्रोफेसर कुरियन से अलग हो चुके कर्मचारी से भी पूछताछ के उपरांत वे उसी निष्‍कर्ष पर पहुंचे कि प्रोफेसर कुरियन संलिप्‍त नहीं हैं। इस बीच निचली अदालत ने प्रोफेसर कुरियन के मानहानि के मुकदमे को उनके पक्ष में चलाने के लिए स्‍वीकार किया और नयनार एवं उस लड़की ने उच्‍च न्‍यायालय में अपील दायर की। वर्ष 1999 के आम चुनाव पर इस लड़की ने पुन: इसी मुद्दे पर न्‍यायालय में एक निजी शिकायत दायर की थी, जिसको प्रोफेसर कुरियन ने चुनौती दी और मामला उच्‍चतम न्‍यायालय तक गया। उच्‍चतम न्‍यायालय ने खारिज करने के लिए इसे उपयुक्‍त मामला समझा और प्रोफेसर कुरियन को निचली अदालत से उन्‍मोचन के लिए याचिका दायर करने का निदेश दिया। याचिका दायर की गई, जिसे निचली अदालत में स्‍वीकार नहीं किया गया, परंतु उच्‍च न्‍यायालय ने अप्रैल, 2007 में 71 पृ‍ष्‍ठों के अपने निर्णय में शिकायतकर्ता के सभी मुद्दों पर विचार करने के बाद उन्‍हें सभी आरोपों से बरी कर दिया। स्‍वयं वाम मोर्चा सरकार के नियुक्‍त किए गए जांच अधिकारी केके जोशुआ, एसपी ने न्यायालय में यह लिखित वक्‍तव्‍य प्रस्‍तुत किया कि प्रोफेसर कुरियन इसमें शामिल नहीं हैं। उच्‍च न्‍यायालन ने समुक्ति की थी कि-मुझे पता चल रहा है कि इस मामले में पेश की गई परिस्थितियों और सबूतों से यह साबित होता है‍ कि याचिकाकर्ता पर थोपा गया मामला झूठा है। यह काफी दुर्भाग्‍यपूर्ण है कि याचिकाकर्ता को पिछले एक दशक से भी अधिक समय से कुत्सित स्‍वरूप के इस झूंठे मामले के कटु अनुभव से गुजरना पड़ा है।
इस निर्णय की जांच करने पर यह पता चलेगा कि उच्‍च न्‍यायालय ने निजी शिकायत का निर्णय इसके गुणागुण आधार पर किया जो सुर्यानेली मामले, जिसमें आरोपी व्‍यक्तियों को बरी कर दिया गया था, से स्‍वतंत्र रहकर दिया गया था। वाम मोर्चा सरकार ने अपील दायर की, परंतु उच्‍चतम न्‍यायालय ने उसे नवंबर, 2007 में खारिज कर दिया और उन्‍मोचन की पुष्टि की। उच्‍चतम न्‍यायालय के निर्णय को अब तक किसी ने चुनौती नहीं दी है। वाम मोर्चा सरकार, जो उस समय सत्‍ता में थी, ने पुनर्विलोकन याचिका भी दायर नहीं की। इस प्रकार की धारणा बनाने की कोशिश की गई है कि कुछ नए तथ्‍य प्रकट हुए हैं। ये सभी नए तथ्‍य, विशेषकर, दोष सिद्ध व्‍यक्ति के 17 वर्ष बाद दिए गए वक्‍तव्‍य से, जिसे जांच दल के समक्ष अथवा न्‍यायालय में देने का मौका उसके पास था, उससे प्रोफेसर कुरियन की कथित जगह पहुंचने की असंभाव्‍यता के सिद्ध तथ्‍य को चुनौती नहीं मिलती, जो टेलीफोन रिकार्ड, राज्‍य की कार के ड्राइवर सहित मुख्‍य गवाहों, राज्‍य की कार की लॉग बुक और इसमें लगने वाले समय और दूरी के आधार पर सिद्ध हु‍आ है-यह निष्‍कर्ष उपर्युक्‍त तीन जांच दलों ने निकाला था। यह मामला विपक्ष ने केरल विधानसभा में उठाया था। अभियोजन महानिदेशक और उच्‍चतम न्‍यायालय में शिकायतकर्ता लड़की का मुकदमा लड़ने वाले उच्‍चतम न्‍यायालय के वरिष्‍ठ अधिवक्‍ता और केरल सरकार के विधि सचिव की ओर से केरल सरकार को प्राप्‍त कानूनी राय में कहा गया है कि इसमें कोई मामला नहीं बनता है।

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