Sunday 14 January 2018 02:12:36 AM
दिनेश शर्मा
डॉ निखिल अग्रवाल। जी हां, भारतीय कारपोरेट इंडस्ट्री की युवा पीढ़ी की एक जानदार और शानदार शख्सियत। डॉ निखिल अग्रवाल से कल स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम की अचानक मुलाकात हुई और उन्होंने कई मुद्दों पर जो भी कहा वह सच्चाई से भरा सच है यानी सत्यमेव जयते। सही है कि कोई भी उद्यमी कहीं भी अपने धन का यूंही निवेश नहीं करेगा, उसे अपने व्यापार से मुनाफा उसके लिए रचनात्मक वातावरण, जीवन सुरक्षा और सम्मान की भी गारंटी चाहिए। मोदी-योगी ने इसका सुखद एहसास सिद्ध तो किया है, लेकिन उसे अब यूपी के धरातल पर भी साकार होते देखने वालों की तमन्ना जाग उठी है। डॉ निखिल अग्रवाल देश की अर्थव्यवस्था के कारक उद्योगपतियों, उद्यमियों और कारपोरेट घरानों के फिक्की के नाम से विश्वविख्यात मंच फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज़ के सलाहकार और उसकी महत्वपूर्ण समिति नैशनल स्टार्टअप कमेटी के सदस्य भी हैं। वे देश में कारपोरेट और इनोवेशन यानी नवोत्थान के क्षेत्र में काफी सजग और सक्रिय हैं और इसमें उनका एक शानदार ट्रैक रेकॉर्ड है। उन्होंने आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के साथ आंध्र प्रदेश के विकास में दक्षता और तकनीक के संयुक्त उपयोग के क्षेत्र में बेहद उत्साहजनक अनुकरणीय और परिणामउन्मुख कार्य किया है। इनकी विशेषज्ञता दक्षता इनोवेशन रणनीति, प्रौद्योगिकी और नीति, उद्यमिता, उच्च शिक्षा और सरकार में है।
डॉ निखिल अग्रवाल का यहां प्रदर्शित व्यक्तित्व न केवल सार्वभौमिक है, बल्कि यह उनकी अभिव्यक्ति को भी पारदर्शी एवं जीवंत दर्शाता है। मूलतः उत्तर प्रदेश के गाज़ियाबाद के रहने वाले निखिल अग्रवाल ने इंग्लैंड में कैंब्रिज विश्वविद्यालय में अपनी पढ़ाई और वहीं प्रोफेसर रहकर कारपोरेट और इनोवेशन में प्रतिभागियों में बड़ी लोकप्रियता और सफलता अर्जित की है। वे अभीभी अपने को पहले प्रोफेसर ही मानते हैं, किंतु उनका पेशेवर लक्ष्य और योजनाएं उन्हें परदेश से अपने देश ले आई हैं। डॉ निखिल अग्रवाल का फोकस इस समय उत्तर प्रदेश पर है, जहां उनका योगी आदित्यनाथ सरकार की प्रतिष्ठाजनक यूपी इंवेस्टर्स समिट-2018 पर ध्यान है, जिसमें अगले माह 21-22 फरवरी को लखनऊ में देश-विदेश के वो कारपोरेट घराने और नवउद्यमी आ रहे हैं, जो देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में विभिन्न क्षेत्रों में पूंजी निवेश की इच्छा रखते हैं, जिन्हें इससे पहले राज्य में वह वातावरण नहीं मिल रहा था, जो योगी सरकार में दिखाई दे रहा है। योगी सरकार की इसमें बड़ी परीक्षा है, क्योंकि यदि वे इंवेस्टर्स को अपनी डिलीवरी से प्रभावित करने में सफल हुए तो यूपी देश में औद्योगिक निवेश का राज्य कहलाएगा, जो उनकी बड़ी सफलता मानी जाएगी।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की प्रचंड बहुमत वाली योगी आदित्यनाथ सरकार है और इन नौ-दस माह में सरकार प्रशासनिक व्यवस्था, कानून व्यवस्था, राज्य की अर्थव्यवस्था, कौशल विकास, बुनियादी सुविधाओं और राज्य में निवेश के लिए उद्यमियों को एक ऐसा मंच प्रदान करने में जुटी है, ताकि यहां कोई भी उद्यमी निर्बाधरूप से अपने उद्यम का विस्तार करे, नया उद्यम लगाए और राज्य के परंपरागत लघु एवं कुटीर उद्योगों से जुड़कर व्यवसाय और रोज़गार के ज्यादा से ज्यादा अवसरों का सृजन करे। यह लक्ष्य मोदी और योगी सरकार की शीर्ष प्राथमिकताओं में है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनकी कोर टीम बीस-बीस घंटे राज्य के कारज में जुटी है, यह चर्चा भाजपा मुख्यालय लखनऊ पर उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के मीडिया प्रमुख हरीशचंद्र श्रीवास्तव हरीशजी डॉ निखिल अग्रवाल से कर रहे थे। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की पहलों और राज्य के निवेश वातावरण पर इस अनौपचारिक चर्चा के दौरान हमभी आ गए और उनसे हमारी भी कुछ खास बिंदुओं पर बिंदास वार्ता हुई।
निखिल अग्रवाल जी हम आपकी बात सुन रहे थे, यूपी पर इस समय हर तरफ हर विषय पर चर्चा हो रही है, आपने उत्तर प्रदेश के विकास के संदर्भ में अभी कुछ उत्साहजनक बातें की हैं, कृपया कुछ अपने बारे में बताइए...
'मैं एक प्रोफेसर हूं'
मैं एक प्रोफेसर हूं, मैंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय लंदन में पढ़ाई की है और एडिनबरा विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की है, मैंने कैंब्रिज में पढ़ाया भी है, अभी भी मैं कैंब्रिज पढ़ाने जाता हूं, मेरी विशेषज्ञता इनोवेशन उद्यम में है। आप सुन ही रहे थे, मैं फिक्की का सलाहकार हूं, जो भारत की नब्बे साल पुरानी लीडिंग कारपोरेट संस्था है, जिसमें दस हजार से भी ज्यादा कारपोरेट मेंबर्स हैं, इससे पहले मैं आंध्र प्रदेश इनोवेशन सोसायटी का चीफ एग्ज़िक्यूटिव ऑफिसर था, जिसमें मेरा रोल ईको सिस्टम को विकसित करने के लिए मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू को इनोवेशन नीति पर सलाह देना था, हमने 2015-16 में दो तीन साल में वहां बहुत ही ब्रेकथ्रू काम किया है, जिसकी बदौलत आंध्र प्रदेश ईज़ ऑफ डूईंग बिज़नेस में नंबर वन स्टेट बना है और पूरी उम्मीद है कि 2017-18 में भी उसे ये उपलब्धि हासिल होगी, चंद्रबाबू नायडू स्वयं भी बड़े नॉलेजेबल हैं, टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में उनका नाम है और उनका आईटी में बड़ाभारी सहयोग रहा है, हैदराबाद को विकसित करने में उनके योगदान को कौन नहीं जानता है, हमारा मन हुआ कि आज़ाद हिंदुस्तान के इतिहास में पहलीबार एक नई कैपिटल बनाई जाए, इसे अमरावती बोला गया, यह देश में एक बहुत ही खूबसूरत राजधानी होगी, इट विल कमअप फॉर एन एज़ अपारच्यूनिटि फॉर अस टू डू सम एनावेटिव वर्क फॉर सिटी डेवलेपमेंट, ये मेरा काम रहा है।
फिक्की का नाम आते ही भारतीय उद्योग जगत की एक विशाल छवि दिखाई देती है, फिक्की से बिडलाजी, टाटाजी और अंबानीजी जैसे नाम जुड़े हैं, आज देश में नए उद्योगपति और नई कारपोरेट कल्चर आ गई है, ये नया और पुराना जो कारपोरेट है, उसमें भारत कहां है?
'कारपोरेट की नई जेनेरेशन में जोश'
इसके दो पहलू हैं, इसमें नया और पुराना भारत शामिल है, जैसेकि जिन्हें पहले हम पुराने हाउसेज़ यानी हिंदू अन डिवाइडेड फैमिलीज़ बोलते थे, जिनमें बिडला फैमली रही, मोदी फैमली रही, अंबानीज़ रहे, रुईयाज़ रहे, ऐसे बहुत से बड़े घराने रहे, जिन्होंने काम स्टार्ट किया और वो आगे बढ़ते गए, उन घरानों में अब नयापन आता जा रहा है, जैसे कि अंबानी घराने में आकाश अंबानी ने काम संभाला है, बेटी ईशा अंबानी भी आ गई हैं, बिडलाजी के यहां यह काम बहुत जल्दी शुरू हो गया, आदित्य बिडला की डैथ बहुत जल्दी हो गई, उसी समय कुमार मंगलम बिडला विदेश से आए और उन्होंने बड़ी कुशलता से काम संभाला, तीस साल की कम उम्र में ही वह चेयरमैन भी बन गए, सभी की कार्यशैली में बदलाव देखने को मिला है, अब देखिए कि सुनील मित्तलजी का लड़का भी आ गया है, उसने हाईक नाम का मैसेंजर बनाया है, जो हाफ एन बिलियन डॉलर की कंपनी बन गई है, नई जेनेरेशन के आने से बड़े कारपोरेट हाउसेज़ में नयापन आना शुरू हो गया है, भारतीय कारपोरेट की नई जेनेरेशन में अपने देश के लिए भरपूर जोश देखा जा रहा है, जो भारत के विकास पर फोकस परिलक्षित करता है।
आप पुराने कारपोरेट से ज्यादा चुनौतियां अब देखते हैं या पहले ज्यादा चुनौतियां थीं?
'पावरटी लाइन एक बड़ी चुनौती'
दोनों ही बाते हैं मोर थ्रेड मोर अपारच्यूनिटिस, लेस थ्रेड लेस अपारच्यूनिटिस, जब देश आज़ाद हुआ था तो हमारी जनसंख्या मात्र तीस करोड़ थी, आज एक सौ पच्चीस करोड़ हो गई है तो एक सौ पच्चीस करोड़ तकलीफें बढ़ी हैं या एक सौ पच्चीस करोड़ अपारच्यूनिटिस बढ़ी हैं यह सवाल हमें खुद से करना है, उस समय हमारा काम एक बिडला एक अंबानी से चल जाता था, लेकिन आज तो हमें सौ बिडला अंबानी चाहिएं, आज की तारीख में हिंदुस्तान ने हमें करीब चौदह नए बिलेनियस इन चार साल में दिए हैं, आज हम पांचवी सबसे बड़ी इकॉनमी बनते जा रहे हैं, पहले हम इतने बड़े कभी नहीं थे, जब देश आज़ाद हुआ था तो पंचानवे प्रतिशत जनता पावरटी लाइन से नीचे थी, आज बाइस प्रतिशत है तो डेफेनेटली बदलाव आया है हां, बदलाव स्लो आया है, जिसके पीछे कई सवाल भी हैं, जैसे अभी तक यह बाइस प्रतिशत ही क्यों है, हमारे देश को आज़ाद हुए साठ साल हो गए, तीस करोड़ जनता अभीभी पावरटी की लाइन के नीचे क्यों है, जबकि अपारच्यूनिटिस मौजूद हैं कि अगले दो तीन साल में हम उस बाइस प्रतिशत जनता को पंद्रह प्रतिशत कर सकें और दस प्रतिशत जनता को पावरटी लाइन से निकालकर एक लोवर क्लास में लेकर आ सकें, पावरटी लाइन देश की एक बड़ी चुनौती है, जिसपर यदि यह कर सके तो यह हमारी बहुत बड़ी उपलब्धि होगी।
नरेंद्र मोदी सरकार और योगी सरकार के बारे में कारपोरेट क्या राय रखता है?
'पॉज़िटिव काम हुआ है'
नरेंद्र मोदी सरकार ने देश में पॉज़िटिव काम किया है, नरेंद्र मोदी ने देश का आत्मविश्वास जगाया है, मोदी सरकार ने बुनियादी मुद्दों पर ध्यान देते हुए सबको बैंक अकाउंट दिए हैं, सबको इंपावर किया है, अनेकानेक चीजें अच्छी हुई हैं, इंप्लीमेंटेशन जारी हैं, कहीं-कहीं आलोचना के स्वर भी सुनाई दिए हैं, किंतु मेरा मानना है कि जो काम करता है, उसकी आलोचना भी होती है, मगर काम तो हुआ, ग़लती हुई तो ग़लती का सुधार भी हुआ, मैं कारपोरेट से हूं, मैं एकेडमिक हूं, सरकार में जो ग़लतियां हुईं, उनको हमने फिक्की की तरफ से भी सरकार को प्वाइंट आउट किया है, योगी सरकार में माहौल बन रहा है, अभी हाल ही में हमारी उत्तर प्रदेश सरकार से किसी काम के बारे में बात हुई, तो पहले होता था कि आप कल आइए, परसों आइए, इसी में समय व्यतीत हो जाता था, लेकिन हम अचंभित हुए कि हमें चीफ मिनिस्टर ऑफिस और उनके अधिकारियों ने बोला कि आप तीन दिन बाद क्यों आ रहे हैं, आप तुरंत क्यों नहीं आ रहे हैं, आप एक महीने बाद क्यों आ रहे हैं, अब हमसे उल्टा सवाल पूछा जा रहा है कि आप देर क्यों कर रहे हैं, पहले हम सरकार से पूछा करते थे कि वह निर्णय लेने में, समय देने में इतनी देर क्यों कर रही है, योगी सरकार में कुछ करने के लिए हर कोई सक्रिय दिख रहा है, उत्तर प्रदेश में ये जो इंवेस्टर्स समिट हो रही है, वह ऐतिहासिक है, इतना बड़ा कारपोरेट मेला पंद्रह बीस साल में तो नहीं सुना गया।
उत्तर प्रदेश में उद्यमियों को निवेश के लिए कौनसा और कैसा वातावरण चाहिए और तब में एवं आज में क्या फर्क आया है?
'यूपी में उद्यम का माहौल बना'
जी, बहुत फर्क आया है, यूपी में उद्यम का माहौल तो बना है, मैं एक उद्यमी के रूप में आपको कल का ही एक उदाहरण दे रहा हूं, कल मैं मुंबई में एयरपोर्ट पर था, जहां से एक से एक कारपोरेट पर्सन का आवागमन रहता है, कई कंपनी वाले दिखाई दिए, एयरपोर्ट पर मैंने एक बहुत बड़ा होर्डिंग देखा, जिसमें योगीजी वेलकम कर रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में बहुत बड़ी इंवेस्टर्स समिट में आपका स्वागत है, इसीसे पॉज़िटिव फीलिंग आती है, यह देखकर कई लोग कहते सुने गए कि एक लंबे समय बाद उत्तर प्रदेश में एक सकारात्मक वातावरण बना है, मुझे यह सुनकर अच्छा लगा, क्योंकि मैं उत्तर प्रदेश का निवासी हूं, मुझे एहसास हुआ कि आज हमको वेलकम किया गया है, पहले क्या होता था, जब हम अपने दोस्तों को कहते थे कि आप उत्तर प्रदेश आइए तो वे कहते थे कि हमें अगर एयरपोर्ट से ही अगवा करके ले गए तो क्या करेंगे, हमारी सुरक्षा कौन करेगा, वहां फाइल चलाकर लटका दी जाती है, काटिए चक्कर पे चक्कर, लोग इस डर के मारे नहीं आते थे, आज आपको वेलकम किया जा रहा है, भरोसा दिया जा रहा है, जिसपर विश्वास हो रहा है, अनुकूल बदलाव भी आया है, सरकार ने उत्तर प्रदेश में कई बड़े अपराधियों पर कड़ी कार्रवाई की है, निकम्मे अधिकारियों पर भी कार्रवाई हो रही है।
पूंजी निवेश और कारपोरेट के लिए सिस्टम की स्पॉट डिलीवरी एक बहुत बड़ा मुद्दा है, क्या डिलीवरी से कारपोरेट संतुष्ट है? क्योंकि चीफ सेकेट्री से लेकर पुलिस कॉंस्टेबल तक की कारपोरेट को जरूरत है...
'डिलीवरी एक तकलीफ वाला विषय'
निश्चितरूप से यूपी में डिलीवरी एक तकलीफ वाला विषय है, यह हम सभी ने महसूस किया है, प्रशासन में सुस्त डिलीवरी यूपी के विकास में एक घातक बीमारी है, शीघ्र और पारदर्शी निर्णय लेने में किसी भी तरह की कमज़ोरी से सख्ती से निपटना ही होगा, एक स्तर पर चुस्ती और दूसरे स्तर पर सुस्ती नहीं चलेगी, कारपोरेट के लिए यह अत्यंत गंभीर मामला है, जिसपर सरकार को हर हालत में काबू पाना होगा, आंध्र प्रदेश में 2014 में जब सरकार बनी तो हमने इसको हैंडिल किया, यही दिमाग लगाया कि किस प्रकार से सरकार के सेकेट्री, अधिकारी और हर विभाग को अकाउंटेबल बनाया जाए, अकाउंटबिलिटी और रेस्पॉंसिबलिटी आर टू की ऑफ गर्वनेंस, प्राइवेट सेक्टर में यह अकाउंटबेल है और इसलिए है कि काम नहीं करोगे तो तनख्वाह नहीं मिलेगी और रेस्पॉंसिबल इसलिए है कि उस व्यक्ति पर घर परिवार की जिम्मेदारी है, क्योंकि काम नहीं करोगे तो नौकरी से निकाल दिए जाओगे, शेयरहोल्डर्स पर रिस्पॉंसबिलिटी है, जबकि सरकारी क्षेत्र में एकबार आपकी सरकारी नौकरी लग गई तो चालीस साल बाद रिटायर होंगे, इससे पहले उन्हें किसी का कोई भय नहीं है, रेस्पॉंसिबिलिटी और अकाउंटबिलिटी सरकार में कभी समझी ही नहीं गई है, मगर हमने आंध्रा सरकार के विभागों में स्टार रेटिंग शुरू कर दी, हमने एक से पांच स्टार दिए, जिससे नाकारा लोगों पर विपरीत असर पड़ा, हमने इस रेटिंग को पब्लिक कर दिया कि किसकी क्या रेटिंग है, मुख्यमंत्री ने भी इसे पब्लिक फोरम पर बोलना शुरू कर दिया, उसी हिसाब से प्रेस ने भी पकड़ना शुरू कर दिया, जिससे सेकेट्री और उनके विभागों के अधिकारियों पर काम और नैतिकता का दबाव बढ़ा और पारदर्शिता बढ़ी, फिर या तो वे सामने नहीं आ पाए या वो सुधर गए, उनमें रेस्पॉंसिबिलिटी और अकाउंटबिलिटी आनी शुरू हो गई, यदि पारदर्शिता बढ़ेगी तो अकाउंटबिलिटी भी बढ़ेगी।
भारत की नौकरशाही की कार्यप्रणाली आपको कैसी लगती है, आज भी अधिकांश सरकारी क्षेत्र निजी क्षेत्र की प्रतिस्पर्धा में नहीं आ रहे हैं, बड़े संसाधनों के अनेक सरकारी उपक्रम इससे बहुत पीछे हैं...
कार्य संस्कृति के प्रेरणास्रोत बनिए!
जी हां, अधिकांश सरकारी क्षेत्र निजी क्षेत्र की प्रतिस्पर्धा में नहीं दिख रहे हैं, इसके कारण छिपे नहीं हैं, नौकरशाही से लेकर हितधारक तक को यह सब मालूम है, देखिए! यह गर्वनेंस का बेसिक और गंभीर मुद्दा है, इसमें विफलता पर ही सरकार के विरुद्ध जनाक्रोश पैदा होता है और सरकारों को जाना होता है, यही हम पॉलिसी में पढ़ाते हैं कि जबतक आप संबंधित काम को अपना काम नहीं समझेंगे, उसे समयबद्ध नहीं करेंगे, स्वयं की सक्षमता के बावजूद उसे दूसरों पर टालेंगे तो काम नहीं चलेगा, फिर आपकी उपयोगिता शून्य हो जाती है और आप शासन पर एक असहनीय लाइब्लिटी बन जाते हैं और ऐसा हो रहा है, कार्य संस्कृति का प्रेरणास्रोत बनना ही होगा, इसके बिना दूरतक खराब संदेश जाते हैं, अजीब बात है कि आप अपने घर को तो साफ रखते हैं और घर का कूड़ा दूसरों के घर के सामने फेंक देते हैं, दिल्ली में कूड़ा एकत्र करने वाली गाड़ियों के एक संचालक ने मुझे बताया कि वह घर से कूड़ा एकत्र करने का चालीस रुपए प्रति माह लेते हैं, उनको एक मोहल्ले से सिर्फ बीस प्रतिशत लोग ही कूड़ा और पैसा देते हैं, बाकी अस्सी प्रतिशत लोग चालीस रुपए नहीं देना चाहते हैं, वो वहां से कूड़ा गाड़ी निकल जाने के बाद अपना कूड़ा सड़क पर डाल देते हैं, वे अपने आस-पास के सार्वजनिक स्थान सफाई को अपनी जिम्मेदारी नहीं समझते हैं, हमारा घर साफ रहे, लेकिन कूड़ा गाड़ी को चालीस रुपए नहीं देंगे, जिससे कूड़े का सही निस्तारण हो सकेगा, यही चीज़ सरकार में भी है, जहां कई लोग यह सोचा और कहा करते हैं कि फलां काम हमारी जिम्मेदारी नहीं है, इसे कोई करे या ना करे या दूसरा विभाग करेगा, इस काम का मुझसे क्या मतलब, दूसरा अधिकारी आएगा, दूसरा मंत्री आएगा अब वो करेगा, रुखे व्यवहार में जवाब देना, निधारित समय पर सीट पर नहीं मिलना, जब चाहा दफ्तर आना और बिना बताए चले जाना, यह यहीं होता है, दूसरे देशों में यह अक्षम्य है दंडनीय है, उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्रीजी योगीजी को भी सुशासन स्थापित करने के लिए ऐसी तमाम विषम स्थितियों पर तुरंत नियंत्रण पाना होगा।
आप एक प्रोफेसर हैं और इनोवेशन आपकी थीम है, क्या कारण है कि नौकरशाही का एक बड़ा वर्ग रिज़ल्ट ओरिएंटेड नहीं बन पाया है, ये काम को लटका देता है, अपनी जिम्मेदारी से भागता है...
'क्योंकि हमें अपने देश से प्यार है'
नौकरशाह जिस दिन इस देश को अपना समझना शुरू कर देंगे, उस दिन सबकुछ सुधर जाएगा और जब यह सोचना छोड़ देंगे कि हावर्ड ही सबसे अच्छी जगह है, ज़िदगी ही विदेश में है, हमारे मुन्ना को तो वहीं ही रहना है तो ना वहां कुछ खास कर पाएंगे और ना यहां के मतलब के रह पाएंगे, हो यह रहा है कि ये नौकरशाह देश में रहते हैं और इनके परिवार के बच्चे विदेशों में पढ़ रहे हैं, सुख भोग रहे हैं, इनमें अनेक यह सोचते हैं कि यहां पैसा बनाओ और बाहर भागो, बच्चों को बाहर भेजो, उसके बाद बच्चा भी वापस आनेवाला नहीं है, मै एक सामान्य घर से हूं, मुझे विदेश में सबसे बड़े सबसे अच्छे विश्वविद्यालय में पढ़ने और पढ़ाने का भी अवसर मिला, बट माई च्वाईस आई केम बैक, इसके लिए मुझपर किसी ने दबाव नहीं बनाया, मेरी वहां दो करोड़ रुपए तन्ख्वाह थी, दो करोड़ रुपए आज की तारीख में भारत में कितने लोग कमाते हैं, इनको छोड़कर मै भारत लौट आया और आज हम शहर-शहर गांव-गांव तक में उद्योगों लघु उद्योगों को प्रमोट कर रहे हैं, क्योंकि हमें अपने देश से प्यार है, हमें मालूम है कि हमारे ग्रामीण भारत की प्रगति से ही भारत की प्रगति होनी है, यही बात हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर जगह और बार-बार कहते आ रहे हैं, विदेश में भी उन्होंने ग्रामीण भारत की समृद्धि को देश की समृद्धि से जोड़ा है, इसमें नौकरशाही की बड़ी जिम्मेदारी है।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में फरवरी में इन्वेस्टर्स समिट होने जा रही है, मगर इन बीस साल में हुई ऐसी अनेक समिट का निष्कर्ष निराशाजनक ही देखा गया है, उद्यमियों का उत्तर प्रदेश में उघोग लगाने के बजाए रियल इस्टेट में ज्यादा झुकाव है, क्या ऐसे यूपी का विकास हो पाएगा?
रियल इस्टेट को किसने प्रमोट किया?
जी हां, इसका बहुत बड़ा कारण है, पहले उद्योगपतियों और राजनीतिज्ञों में सांठगांठ थी, जिसमें राजनीतिज्ञ ने उद्योगपति या उद्यमीको जमीन दिला दी और बाद में उन्होंने आपस में मिलकर उसका निपटारा कर लिया, ऐसा मीडिया में आता रहा है, अगर अपने लीडर ईमानदार हैं और वो उद्योग को प्रमोट करते हैं, उससे जुड़े कमेटमेंट को फॉलो करते हैं, तो उद्योगपतियों को तो उद्योग लगाना ही है, यह सही है कि उद्योगपति यूपी में सरकार से जमीन ले रहे हैं और मुंबई, आंध्रा, गुजरात, कर्नाटक में उद्योग लगा रहे हैं, ऐसा क्यों है, इसका मतलब वहां धंधा है, काम है और वहां की नीतियों में उद्योगपतियों को कॉंफिडेंस है, यहां कभी ऐसा सोचा गया? यहां रियल इस्टेट को किसने प्रमोट किया, उत्तर प्रदेश में भी हमें वैसा ही कॉंफिडेंस एवं प्रोपर फॉलोअप देना होगा, यूपी में वह माहौल नहीं रहा है, जो दूसरी जगहों पर है, सही वातावरण के बाद यहां जरूर उद्योग लगेंगे और उद्योगपति केवल रियल इस्टेट के लिए जमीन के मोह को छोड़कर अपना उद्यम स्थापित करेंगे, उत्तर प्रदेश सरकार की उद्योग नीति में इसबार काफी सुधार देखने को मिला है, जिसमें केवल उद्योग लगाने के नाम पर रियल इस्टेट के लिए जमीन चाहने वाले हतोत्साहित होंगे और वे उसका उपयोग उद्यम में ही करेंगे, रियल इस्टेट भी जरूरी है और उद्यम भी जरूरी है।
उत्तर प्रदेश में फिक्की क्या भूमिका निभा रही है?
'यूपी के लिए फिक्की की बड़ी भूमिका'
फिक्की के लिए उत्तर प्रदेश एक आदर्श प्रदेश है, जिसकी यहां बराबर सक्रियता बनी हुई है और जहां तक यहां उद्यमियों के आने का प्रश्न है तो हर उद्यमी अनुकूल वातावरण चाहता है, फिक्की एक साल में पूरे हिंदुस्तान में करीब डेढ़ हजार कारपोरेट कॉंफ्रेंस करता है, करीब तीन या चार कॉंफ्रेंस रोजाना होती हैं और सारी कॉंफ्रेंसेस इंडस्ट्री के विकास पर ही होती हैं, उनमें एक चर्चा वातावरण पर होती है, जो औद्योगिक पहल के लिए बहुत जरूरी है, उद्यमी पूछते हैं कि क्या किया जाए तो हम सलाह ही दे सकते हैं, आज सुखद बात है कि उत्तर प्रदेश में योगी सरकार में हमारा आत्मविश्वास लौटा है, उत्तर प्रदेश में बड़ा बदलाव आया है, हम लोगों ने आना शुरू किया है और अब लगता है कि यहां औद्योगिक निवेश के लिए बहुत कुछ हो सकता है, यूपी के लिए फिक्की की बड़ी भूमिका है।
नोटबंदी और जीएसटी से उद्योगजगत की हर एक श्रेणी प्रभावित हुई है, हम जानना चाहते हैं कि कारपोरेट इसपर क्या राय रखता है, क्या हम कड़े फैसले बर्दाश्त करने में सक्षम नहीं हैं, और क्या कमज़ोरियां हैं, जो हमारा पीछा कर रही हैं...
'कई मामलों में हम बहुत पीछे'
वोटबैंक से हर काम नहीं हो सकता, जब वर्ल्डवार वन खत्म हुई तो वर्ल्डवार टू से पहले लंदन में मैट्रो बनाई गई, यह करीब सत्तर साल पुरानी बात है, जब वर्ल्डवार शुरू हुई तो लंदन मेंजर्मनी के बम गिरते थे, लोगों के छिपने की जगह नहीं मिलती थी, लोगों को तब अंडरग्राउंड में भेज दिया जाता था, फिर वहीं ऑफिस चलने लगे, चर्चिल ने भी महीनाभर यहीं रहकर काम किया और वो जगह बाद में मैट्रो के काम आई, सत्तर साल पहले लखनऊ में भी हज़रतगंज था, तब अंग्रेज भी लखनऊ में थे, तब हम यह क्यों नहीं कर पाए, हमारे यहां सत्तर साल बाद मैट्रो की बात दिमाग़ में आनी शुरू हुई, यह कहने का मतलब है कि हम हर चीज की प्रतीक्षा करते रहते हैं, दिल्ली अकेली बड़ी राजधानी है, जहां पहले मैट्रो नहीं थी, इन दस बारह वर्ष में आई है, मुंबई में आज भी पुरानी लाइफलाइन चलती है, लेकिन यहां एक भी मार्डन मैट्रो सिस्टम नहीं है, कोलकाता, चेन्नई, बैंगलुरू में भी नहीं है, इसपर विचार करना चाहिए कि हम कहां हैं और इसके लिए कौन-कौन जिम्मेदार हैं, इसपर सभी को दलगत राजनीति से ऊपर उठकर मिलकर काम करना चाहिए, ये निजी नहीं, बल्कि देश की प्रगति के मामले हैं, हमें प्लानिंग करनी चाहिए और देश के हित में लिए गए फैसलों का स्वागत करना चाहिए, कई मामलों में हम बहुत पीछे चल रहे हैं।
इनोवेशन पर आपका क्या विज़न है, क्योंकि अभी आप कह रहे थे कि यह आपका खास विषय है...
'उत्तम प्रदेश का नारा भूलिए'
हमने उत्तर प्रदेश सरकार से कहा है कि उत्तर प्रदेश शुड नॉट बी नोन एज़ उत्तम प्रदेश, आप उत्तर प्रदेश वाला नारा भूल जाइए, मैंने योगीजी का आह्वान किया है कि वो अब उत्तर प्रदेश को इनोवेशन उत्तर प्रदेश बोलें, उत्तर प्रदेश को यह नया नाम दीजिए, उत्तर प्रदेश तब उत्तम प्रदेश बनेगा, जब इनोवेशन होगा, जिसे इसी 2018 में शुरू कर दिया जाए, इट विल बिकम इनोवेशन प्रदेश, इसमें फिक्की और हमारी व्यक्तिगत पहल से वी विल ब्रिंग हंड्रेड कंपनियां, हंड्रेड आइडियाज़ ऐवरीडे टू उत्तर प्रदेश सो दैट न्यू इनोवेशन कैन हैपिंड 22 करोड़ पिपुल हू आर लिविंग उत्तर प्रदेश कुड एवेल बैनिफिट्स एंड वी विल मेक सेयोर दैट इनोवेशन उत्तर प्रदेश विल कम इन दा टॉप थ्री इन ईज़ बिज़नेस इन दिस ईयर।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक एक शानदार प्लेटफॉर्म औद्योगिक जगत को मिला है, दोनों ओर से किसी भी हितधारक पर भी कभी कोई अनपेक्षित दबाव नहीं सुना गया है, यूपी में इंवेस्टर्स समिट का उद्योगजगत को लाभ उठाना चाहिए, आपके जो लोग इस समिट में आ रहे हैं, वो किस मूड से आ रहे हैं?
'ईमानदारी से निवेश का रास्ता दिखाएं'
देखिए पहले लोग आएंगे और इट विल बी कमिंग लॉट ऑफ कॉशन, आप यह मत समझिएगा की लोग आएंगे और ज़ेब खोल देंगे, जहां तक मैं उद्योगजगत को समझता हूं तो तुरंत ऐसा नहीं होगा, अभी लोग समझने आ रहे हैं कि योगीजी ने जो बदलाव की बात की है, वास्तव में वह अभी हुआ है कि नहीं, वो इसे खुद जांचेंगे-परखेंगे, उस समय जरूरत यह है कि योगी सरकार उनके कॉंफिडेंस को बरकरार रखे एवं एक प्रॉपर फॉलोअप करे एवं ईमानदारी से उनको निवेश का रास्ता दिखाए और कुछ ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करे कि जिससे छोटे उद्यमी भी प्रेरित हों और निवेश में भागीदारी करके उत्तर प्रदेश के विकास एवं अपने उद्यम के विकास में विश्वास के साथ अपने काम को आगे बढ़ा सकें यह बहुत जरूरी है, बड़ी समिट होना एवं एक लाख लोगों को खाना खिला देने से ही समिट सफल नहीं होती है, ऐसा वातावरण बने कि लोग अपने पैसे से दोबारा आएं और अपने अनुकूल वातावरण पाकर निवेश करें।
उत्तर प्रदेश में ग्रामीण क्षेत्रों और कस्बों में फैले परंपरागत लघु एवं कुटीर उद्योगों को भी बढ़ाना है, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था के मुख्य स्तंभ हैं और विभिन्न कारणों से दम तोड़ रहे हैं, अपना कार्य छोड़कर रोज़गार के लिए इधर-उधर जा रहे हैं...
'फिक्की का कुटीर उद्योगों पर ध्यान'
आपने सवाल ऐसा पूछ लिया है, जिसका मैं अभी जवाब नहीं देना चाहता था, मैं चाहता था कि सरकार से पहले मैं इसपर कुछ न बोलूं, यह घोषणा हो चुकी है कि फिक्की हैज़ कमेटेड टू सेटअप इंडियाज़ फर्स्ट रूरल टेक्नोलॉजी इन क्यू बेसिस सेंटर आइदर इन बनारस और गोरखपुर, यह फिक्की का पहले से ही मुख्य सचिव को कमिटमेंट है, इसके अंदर हर साल सौ से ऊपर कंपनीज़ कुटीर उद्योग या लघु उद्योग को प्रमोट करेंगी और उन्हें ग्लोबल स्तर पर ले जाएंगी, हम लोग प्लेटफॉर्म देंगे, जिसमें सरकार भी सपोर्ट करेगी, मेरा मीडिया से अनुरोध है कि वह इसपर फोकस करे, वह हमारी बात को ज्यादा से ज्यादा प्रसारित करे, लोग उसे पढ़े और अवसर देखकर आगे बढ़ें, हमसे संपर्क करें, काम उनको करना है, हम लोग तो उन्हें प्लेटफॉर्म दे सकते हैं और उसमें कोई कमी नहीं होगी, हम लोगों ने आंध्रा, महाराष्ट्रा, केरला और कर्नाटक को आगे बढ़ा दिया है, अब उत्तर प्रदेश को इनोवेशन उत्तर प्रदेश बनाना है।