Thursday 25 January 2018 01:32:29 AM
दिनेश शर्मा
उत्तर प्रदेश में भाजपा का प्रचंड बहुमत है, यूपी की जनता ने कभी भी किसी भी राजनीतिक दल को सरकार बनाने का इतना बड़ा अवसर नहीं दिया है, जिससे जनता की आकांक्षा और उससे किए वादों पर भारतीय जनता पार्टी सरकार की जिम्मेदारी और भी ज्यादा बढ़ गई है। मुकुट बिहारी वर्मा उत्तर प्रदेश के सहकारिता मंत्री हैं, यह कोई मामूली विभाग नहीं है, सहकारिता विभाग के कई मंत्री तो मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे हैं। बहरहाल सरकार के मंत्रियों के कामकाज पर उनके साक्षात्कार की श्रंखला में सहकारिता मंत्री मुकुट बिहारी वर्मा से उनकी प्राथमिकताओं और कामकाज पर बातचीत हुई। हमने सरकार में स्वयं सेवक संघ की पृष्ठभूमि के कई राजनेताओं को देखा है, दूसरे लोगों में संघ के बारे में चाहे जो कहा जाता है, मगर वे सहृदयी, आत्मानुशासन और जीवन के उच्च मानदंड से समृद्धशाली पाए गए हैं, यह अलग बात है कि उनकी सहृदयता का बहुधा लोग अनुचित लाभ उठाते हैं, मगर यह उनकी बहुत बड़ी ताकत भी होती है और समाज और शासन में उनके फैसले बड़े दृढ़निश्चयी पाए गए हैं।
सहकारिता मंत्री मुकुट बिहारी वर्मा स्वयं सेवक संघ की पृष्ठभूमि के ही और सादगीपूर्ण व्यक्तित्व के उज्जवल छवि के धनी राजनेता माने जाते हैं। सहकारिता विभाग में दस माह का उनका मशक्कतभरा कामकाज काफी चर्चा में आया है, जिसमें उन्होंने न केवल सहकारिता विभाग को सरकार को लाभांश देने के योग्य बनाया है, अपितु सहकारिता में भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ी कार्रवाई भी की है। कदाचार में लिप्त अनेक भ्रष्टाचारियों को सहकारिता सेवा से बाहर किया जा रहा है। उन्होंने साधन सहकारी समितियों का उद्धार करने का बीड़ा उठाया है, जो पिछली सरकारों में बर्बाद की जा चुकी हैं। मुकुट बिहारी वर्मा कहते हैं कि मै मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का आभारी हूं, जिन्होंने मुझे सहकारिता में कार्य करने का अवसर और अपना सहयोग दिया है। वे कहते हैं कि जल्दी ही सहकारिता में और भी बड़े फैसले सुनने को मिलेंगे और उत्तर प्रदेश को सहकारिता का गौरव हांसिल होगा। साक्षात्कार-
आप उत्तर प्रदेश सरकार में सहकारिता मंत्री हैं और बहराइच जिले के क़ैसरगंज विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। कैसा है आपका क़ैसरगंज और बहराइच और कुछ अपने बारे में भी बताइए...
'यह अविकसित क्षेत्र है'
क़ैसरगंज में स्वागत है आपका! लखनऊ से चलेंगे तो सबसे पहले क़ैसरगंज ही पड़ता है, वैसे तो क़ैसरगंज विकास की दृष्टि से बहराइच ज़िले में दूसरी तहसीलों से ज्यादा अच्छा है, मैं नानपारा तहसील से आता हूं, जो नेपाल के बार्डर पर है, हमारा घर तो बिल्कुल नेपाल के बार्डर पर ही है, यहां जंगल है और नेपाल का बार्डर होने के नाते यह बहुत ही इंटीनियर एवं अविकसित क्षेत्र है, जहां तक मेरा प्रश्न है, जीवनकाल के प्रारंभिक वर्षों में ही यानी 1962 में मै राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गया, संघ का संचयक हो गया, इस नाते समाज उन्मुख होने का मौका मिला, इसका ही परिणाम है कि संघ में मेरे पास नगर कार्यवाह, जिला कार्यवाह जैसे दायित्व रहे, बीजेपी में आने पर मुझको 1996 में पहलीबार भाजपा ने टिकट दिया और टिकट भी हमारे क्षेत्र से नहीं, बल्कि हमसे बिल्कुल इतर, यानी हम उत्तर-पश्चिम के रहने वाले हैं और हमको दक्षिण-पूरब से टिकट दिया गया, लेकिन संघ में काम करने के नाते हमारे लिए वो कहीं भी कठिन नहीं था, एक जैसा था, राजनीति में नया था, प्रारंभ का चुनाव मैं 234 वोटों से हार गया था, लेकिन उसके बाद स्थिति ठीक बनी इस क्षेत्र ने हमेशा हमको आर्शीवाद दिया है।
उत्तर प्रदेश के सहकारिता मंत्री के रूपमें आपने क्या प्राथमिकताएं निर्धारित की थीं और आपने कहां तक सफलता पाई है...
'सहकारिता को खड़ा कर रहा हूं'
सहकारिता को किसी तरह फिर से खड़ा कर रहा हूं, देखिए! सहकारिता मेरा विषय नहीं रहा है मै तो अर्थशास्त्र पढ़ा हूं, लेकिन इतना जरूर जानता हूं कि सहकारिता आंदोलन पूरे भारत में है, क्योंकि यह कृषि प्रधान देश है, इसलिए भी यह किसान का बहुत ही हितकारी आंदोलन है, बहुत नेक आंदोलन है, भारत में जहां सहकारिता आंदोलन पूरी ईमानदारी से चला है, वहां यह बहुत सफल रहा, आप महाराष्ट्र देख लीजिए, गुजरात कर्नाटक, मध्य प्रदेश देख लीजिए, लेकिन हमारे उत्तर प्रदेश का जो सहकारिता आंदोलन है, वह थोड़ा दिशाहीन हो गया है और मैं जब इसे दिशाहीन कहता हूं तो मेरा अभिप्राय यह है कि उसको किसानोंमुखि होना चाहिए था, मगर जबसे वह परिवारमुखि, व्यक्तिमुखि हो गया है, तबसे समाज के बीच भी सहकारिता आंदोलन या सहकारिता विभाग को उतने बड़े आदर से नहीं देखा जाता है, सहकारी बैंक की व्यवस्थाएं भी ध्वस्त हुई हैं, उत्तर प्रदेश के पचास सहकारी बैंकों में से सोलह बैंक इस स्थिति में पहुंच गए कि वे जमाकर्ता ग्राहक को उसकी मांगपर पैसा नहीं लौटा पा रहे हैं, आदमी बैंक में विश्वास पर पैसा जमा करता है, उसने जब अपना पैसा मांगा तो बैंक ने कहा कि हम पैसा नहीं दे सकते तो इस प्रकार उन सोलह बैंकों ने विश्वास तोड़ दिया, जिसके बाद उनके लाइसेंस रद्द हुए।
यूपी में सहकारिता आज इस हालत में है जो फिर आप कैसे चला रहे हैं?
'सहकारिता में विश्वास की वापसी'
हम यह मानते हैं कि उत्तर प्रदेश में सहकारिता आंदोलन विपरीत दिशा में घूमा हुआ है, जिम्मेदार लोगों ने कुर्सियों पर अपने व्यक्तियों को बैठाकर अपना घोर स्वार्थ सिद्ध किया है, मुख्यमंत्रीजी ने हमारा मनोबल बढ़ाया है और अब यूपी में सहकारिता की दिशा और दशा बदल रही है, मैने पहले ही कहा है कि यद्यपि ये मेरा विषय नहीं था, लेकिन मुझे जिम्मेदारी दी गई तो हमने इसको चुनौती मानकर काम शुरू किया और आज सोलह सहकारी बैंकों में से आठ बैंक ऑन डिमांड हैं, जिसका पैसा जमा है, आइए ले जाइए, विश्वास को प्राप्त करने के लिए हमने ये कोशिश की जो सफल हुई है और बहुत ही जल्द हमारे बाक़ी आठ बैंक भी ऑन डिमांड पैसा देने लगेंगे, जब ये आठ बैंक भी पैसा देने लगेंगे तो हम यह गर्व से कह सकेंगे कि हमने सहकारी बैंक के विश्वास को ठीक कर लिया है, कोआपरेटिव में कभी ब्याज का रेट नहीं घटाते थे, हमने सात महीने में ही सैंतालीस करोड़ का मुनाफा कमा लिया है और उसका परिणाम है कि हमने सब इंट्रेस्ट में एक प्रतिशत से लेकर .25 प्रतिशत और एक प्रतिशत तक इंट्रेस्ट घटा दिया, ताकि हमारी तरफ ग्राहक आकर्षित हों, इसके लिए हमने दो-तीन तरीके सामने रखे, एक तो हमारा इंट्रेस्ट घटना चाहिए, दूसरा उसका स्वागत होना चाहिए और तीसरा उसका विश्वास हमारे खाते में लौटना चाहिए, हमने किया है कि ग्राहक ने जो पैसा जमा किया है वह पैसा मरेगा नहीं, ये उसको दिखना चाहिए, यदि वो मांगने आए तो उसको मिले, हम टीमवर्क से तेजी से काम कर रहे हैं, सारे बैंकों का कम्प्यूटराइजेशन भी करवा रहे हैं, जैसे ही बैंकों का कम्प्यूटराइजेशन हो जाएगा, हमारे सहकारी बैंक ग्राहक सेवा में और भी आगे बढ़ जाएंगे।
साधन सहकारी समितियां सहकारिता आंदोलन की जीवन रेखा मानी गई हैं आज उनका क्या हाल है?
'साधन सहकारी समितियों का उद्धार'
हां, हमारी जो साधन सहकारी समितियां हैं, उनका हम चरणबद्ध उद्धार करने जा रहे हैं, उनको ज़िंदा करने के लिए उनका सहयोग करके उनको खड़ा करेंगे, अभीतक तो ये समितियां गेंहू धान खरीदने और खाद बेचने का बिज़नेस कर रही थीं, अब हम उनसे कह रहे हैं कि वे इसके इतर भी कुछ करें और उसके लिए हम उन्हें काम दे रहे हैं, उन कामों को करने के लिए आखिर हमारे पास जमीन है, ग्राहक हैं, व्यक्ति हैं, पैसा है, किसान हैं तो हम बैठे क्यों हैं, उन्हीं को आगे डेवलप कर रहे हैं, आज तीन सौ चव्वन ऐसी साधन सहकारी समितियां हैं, जो गोद ली गई हैं, वे इससे इतर काम भी शुरू कर रही हैं, हमारे पास साधन सहकारी समितियां चौहत्तर सौ हैं, लेकिन बाक़ी को विकसित करने में अभी समय लगेगा, लेकिन वे साढ़े तीन सौ चव्वन समितियां जब काम करने लगेंगी तो ये मॉडल बनेंगी, इसके बाद अपने आप लोग इनकी कॉपी करके आगे बढ़ेंगे।
सहकारिता में काम बहुत है, सहकारिता के हुक्मरान क्या करते रहे हैं इसको आगे बढ़ाने के लिए आपके पास धन के क्या रिसोर्सेस हैं?
'हम रिसोर्सेस पर काम कर रहे हैं'
हमारे पास खुद का कोआपरेटिव बैंक है, यह हमें लोन देता है, इसके पास धन की व्यवस्था करेंगे, केंद्र सरकार से भी हमने आग्रह किया है, केंद्र में हमारा सहकारिता विभाग कृषि मंत्रालय के अधीन है, हम कृषिमंत्रीजी से मिले थे और उनके सामने हमने अपने प्रस्तावों का उल्लेख किया है, उन्होंने हरसंभव सहयोग देने को कहा है, केंद्र सरकार में एक योजना भी है, हम यहां से जिस प्रस्ताव को भेजते हैं तो वो हमको पैसा देते हैं, बाद में वह हमको वापस भी करना होता है, वहांसे धन मिल जाएगा तो हम काम शुरू कर देंगे, हमने हर दिशा में काम बढ़ाया है, पहलीबार उन्नीस लाख मैट्रिक टन गेहूं अकेले सहकारिता विभाग ने खरीदा है, जो कभी नहीं खरीदा था, उसका परिणाम यह हुआ एक सौ तीस करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ गेहूं में मिला है और अबतक ग्यारह लाख मैट्रिक टन से ज्यादा धान भी खरीद चुके हैं, हमको सत्रह लाख मैट्रिक टन धान ख़रीद का लक्ष्य दिया गया है और फरवरी तक हम इसको अचीव कर लेंगे, इससे भी हमको लाभ मिलने वाला है, हम जो व्यापार कर रहे हैं, उस व्यापार को कागज़ पर नहीं कर रहे हैं, बल्कि रियली कर रहे हैं, ताकि हमारे हाथ में कुछ आए और यह सही है कि सहकारिता को विगत सरकारों में भारी नुकसान पहुंचा है, जिसके लिए हुक्मरान भी काफी हद तक जिम्मेदार हैं और उनके कामकाज पर सरकार की पूरी नज़र है, किसी को छोड़ा नहीं जाएगा ।
सहकारिता के क्षेत्र में बहुत भ्रष्टाचार है...
'हमने कड़ी कार्रवाई की है'
हां, यह जरूर है, हमारे पास पुराना तंत्र है, उसके लोगों को हमारी कार्यशैली कठिन लगती है, उसका ही परिणाम है कि पांच-सात जिलों में उनतीस लोगों के खिलाफ हमने कड़ी कार्रवाई की है और रेगुलर कार्रवाई हो रही है, दो-चार छह जगह पर और बांदा में तो पूरे बोर्ड ने ही इस्तीफा दे दिया है, आदरणीय आज़म साहब के भतीजे भी इस्तीफा दे चुके हैं, ऐसे बहुत से लोग इस्तीफा दे रहे हैं, जिन्होंने भ्रष्टाचार मचाने के इरादे से जबरदस्ती का बोर्ड बनाया था, उसमें अब जवाबदेही का सामना होने से भाग रहे हैं, यही नहीं चापलूसी भाई भतीजों और सोर्स से काम नहीं चलेगा, सहकारिता में अब रिज़ल्ट देने वाला ही चलेगा, फाइलें लटकाने से काम नहीं चलने वाला और जो यह सोच रहे हैं कि उनका कुछ नहीं बिगड़ पाएगा तो उन्हें समझ लेना चाहिए कि आज नहीं तो कल कार्रवाई तो होकर रहेगी।
सहकारिता विभाग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी दिलचस्पी वाला विभाग है, वे भी इसकी समीक्षा करते रहते हैं, क्या आपको उनकी या सरकार की ओर से भी कोई लक्ष्य मिला है...
'जहां सहकार वहां सरकार'
हां! कुछ लक्ष्य मिले हैं, यह विभाग मेरी रूचि का विभाग नहीं है, लेकिन मैं भाजपा का एक कार्यकर्ता हूं, यह मानकर हमारे राष्ट्रीय नेतृत्व ने हमारे प्रदेश के नेतृत्व ने हमको इस संदेश के साथ यह विभाग दिया है कि मै ईमानदारी के साथ सहकारी आंदोलन के वास्तविक लक्ष्य को प्राप्त करूं, जहां तक प्रधानमंत्रीजी का सवाल है तो वे सहकार भारती से जुड़े हैं जिसकी थीम है जहां संस्कार वहां सहकार, जहां सहकार वहां सरकार, सहकारिता आंदोलन के जो मुखिया हैं, सहकार भारती के जो जनक रहे हैं, उन्होंने ही मोदीजी को समीक्षक बनाया था, सहकारिता आंदोलन से उनके पुराने संबंध हैं, सहकारिता आंदोलन के कार्यक्रम में अभी हम दिल्ली गए थे, उसमे भी मोदीजी आए थे, उनकी और मुख्यमंत्री योगीजी की इसमें बड़ी अभिरुचि है, जिससे हमारा कठिन काम आसान हो गया है, हमारा विश्वास है कि जिस तरह से हम लोग इस काम में लगे हैं हम सफल होंगे, सहकारिता बड़ा और आदरणीय काम है, समाज को गति देने वाला काम है, इसको सही दिशा मिलने से निश्चित रूपसे प्रधानमंत्री की कल्पना के अनुसार किसान की आय दुगनी होगी, दो चीजें हम किसान को उपलब्ध करा देंगे, एक उसकी डिमांड पर खाद और बीज और दूसरा जब उसका उत्पादन तैयार हो तो उसको अच्छी मार्केट, जिसमें गेहूं, धान, उरद और मूंग के उत्पादन को बाज़ार में सही दाम मिलेगा।
आपके यहां कहा जा रहा है कि मंत्रीजी बहुत सहृदयी हैं सीधे-साधे हैं, जिसका नाजायज फायदा उठाया जा रहा है...
'मै सीधासादा मंत्री नहीं हूं'
मै सीधासादा मंत्री नहीं हूं भले ही सहृदयी और सीधा होना कोई कमजोरी या अपराध मानता हो, लेकिन मैं तो उसको पूंजी मानता हूं, आप यह मानकर चलें कि सहकारिता कार्यक्रम के फैसलों से मैं पीछे हटने वाला नही हूं और जानकारी में आनेपर ना ही किसी नाकारा, लापरवाह और भ्रष्टाचारी को छोड़ने वाला हूं, जो तय किया है, उसको करके रहूंगा, एक समय बाद जब आप और हमको फिर साथ बैठने का मौका मिलेगा तो सहकारिता आंदोलन इससे भी कई कदम आगे बढ़ा मिला दिखेगा, आउटपुट आ रहा है, देखिए टूटे हुए विश्वास को फिरसे अर्जित करना, जहां बिज़नेस डूब गया था, उस बिज़नेस को फिरसे खड़ा करना, जो घाटे वाले थे, उनको लाभ में चेंज करना बड़ी चुनौती है, इसका सामना करना ही तो हमारा काम है और इसको हमने करके दिखाया है, यह विकास की प्रतिस्पर्द्धा का दौर है, देश के जो भी राज्य सहकारिता के क्षेत्र में काम कर रहे हैं, प्रधानमंत्रीजी की दिलचस्पी के कारण उनमें कंप्टीशन खड़ा हो गया है, जिसमें हम भी शामिल हैं।
शासन में डिलीवरी पर आपकी क्या राय है, यह एक ऐसा विषय है, जिसपर हर आदमी की नज़र है, चीज़ें समयबद्ध नहीं हो रही हैं, काम को लटकाया जा रहा है, अगर डिलीवरी नहीं है तो कोई मतलब नहीं है, आपने समीक्षा की है...
'जो भी निर्णय लिया उसे लागू किया'
देखिए, मैंने स्वयं मॉनीटरिंग शुरू की है, मैं रोज मॉनीटरिंग करता हूं कि मैंने जो निर्देश दिए थे उन पर अमल का क्या हुआ, हम कई स्तरीय मॉनीटरिंग कर रहे हैं, ताकि काम पेंडिंग नहीं रहे, हमारे यहां जो जांच होती हैं, मै किसी भी जांच को पेंडिंग नहीं रखने देता हूं, जो निर्णय ले रहे हैं तो उनमें एक भी स्टेप वापस नहीं ले रहे हैं, अबतक के कार्यकाल में आपको सुनने को नहीं मिला होगा कि हमने जो कहा उसको बैक कर लिया हो, हम जो कहते हैं बहुत सोच-समझकर कहते हैं और कहने के बाद उसको करना ही है, इसके पीछे कुछ नहीं।
सहकारिता बहुत महत्वपूर्ण विभाग है, मुख्यमंत्रीजी आपको कैसे सपोर्ट करते हैं...
'मुख्यमंत्रीजी का बड़ा सपोर्ट'
देखिए, मुख्यमंत्रीजी काफी सपोर्ट करते हैं, उनकी सहकारिता पर अच्छी पकड़ है, वे अच्छे सुझाव देते हैं, हमने मुख्यमंत्रीजी के साथ सहकारिता के अनेक विषयों पर कई बार चर्चाएं की हैं, हमने पीसीएफ और पैक्सफैट को लेकर उनके साथ कई बैठक की हैं, पैक्सफैट पर अभीतक हमारा बैरियर बीस करोड़ और दस करोड़ था, हमने उनसे उसको पचास करोड़ और पच्चीस करोड़ करने का आग्रह किया है, उसकी फाइल चल रही है, जिसके बाद बहुत कुछ अच्छा हो जाएगा, पहलीबार हमारा भंडारण विभाग कुछ न कुछ कर रहा है, पहलीबार हमने एक करोड़ ग्यारह लाख का चेक मुख्यमंत्रीजी को दिया है, उससे पहले दो महीने में ही हमने पांच करोड़ का चेक दिया, यह सब लाभांश है, जितना लाभांश हमने मुख्यमंत्रीजी को दिया है, उतना ही केंद्र सरकार को भी दिया है, मैं ब्याजदर भी घटा रहा हूं, ब्याजदर घटाने के पीछे मेरा अभिप्राय यह है कि हम जब लाभ में आते हैं तब ब्याजदर घटाते हैं, हमारे यहां भंडारण में किसी का नियमितिकरण नहीं हो रहा था, सबका नियमितिकरण करवा रहा हूं, जो नियमितिकरण होने के लायक हैं, उनका नियमितिकरण होगा और जो नियमित होने लायक नहीं हैं, खामखां लटके हैं, उनको धोखा दिया जाता रहा है, उनको धोखा नहीं देना है, उनकी छुट्टी कर देनी है।
सहकारिता के चुनाव की स्थानीय निकाय चुनाव जैसी चुनौती है इनपर सबकी नज़र है...
'सहकारिता में भी भाजपा का दबदबा'
बिल्कुल सही, आप मानकर चलें कि सहकारिता का आम चुनाव एक चुनौती है, चुनौती दो विषयों पर है, प्रारंभ में भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं ने इसकी सदस्यता में कभी इंट्रेस्ट नहीं लिया, आज कोआपरेटिव के हर क्षेत्र पर हम अपना वर्चस्व करेंगे, जिसे कोई रोक नहीं पाएगा, उसका उदाहरण है कि उन्नाव में उनतीस साल से एक ही व्यक्ति अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठा था, सब सरकारें बदली, उसको आजतक किसी ने छुआ नहीं, हमारी सरकार आई, हम आए तो सारी बाधाओं को चैलेंज देकर हमने निर्विरोध अध्यक्ष बनाया, सारी परिस्थितियां अलग ही रहीं, बाहर बड़े-बड़े मंत्री जाकर बैठे रहे, हम नब्बे प्रतिशत के ऊपर जीतकर आएंगे।
एक विधायक की सीमा को जनता जानती है, लेकिन एक मंत्री की लाचारी को जनता माफ नहीं करती तो लाचारी और डिलीवरी इन दोनों के बीच में आप कहां हैं...
'हंड्रेड पर्सेंट डिलीवरी'
लाचारी तो हमारी कोई है ही नहीं और मै हंड्रेड पर्सेंट डिलीवरी देने वाला व्यक्ति हूं, हां यह जरूर है कि सहृदयता को कभी-कभी लोग लाचारी मान लेते हैं, लेकिन सहृदयता लाचारी नहीं है, हमने तय किया है कि सहकारिता आंदोलन जिस चिंतन के साथ खड़ा हुआ है, वह किसान का सहयोगी बने और उसके लिए जितना भी बन सकेगा उतना हम करेंगे, कर रहे हैं, आप विश्वास करें कि हम इसको सफलता के उस अंतिम चरण तक पहुंचाएंगे कि ये भारत के प्रदेशों के सहकारिता आंदोलन के बराबर जाकर खड़ा हो जाए, हम टास्क फोर्स ले आए हैं, आखिर इतने सारे केसेस हम कर रहे हैं, हर पांचवे दिन किसी न किसी पर कार्रवाई कर रहे हैं, जब एक के खिलाफ कार्रवाई करते हैं तो बचाव के लिए फोन आते हैं, जिन छब्बीस लोगों के खिलाफ हमने कार्रवाई की है, उनमें हमारे निकट मित्र सांसद का रिश्तेदार भी है, लेकिन हमने कार्रवाई की, हम लोगों की निगाह में भले ही चढ़ जाएं, लेकिन कार्रवाई तय कर दी है तो उसे होना ही है, फिर आगे-पीछे नहीं हट सकते, हम लगातार काम कर रहे हैं, पुराना तंत्र है, निर्णयों को थोड़ा खींचने की कोशिश करेगा, लेकिन हमारी जो रेगुलरटी है, वह उसको भी सीधा कर लेगी।