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Wednesday 31 January 2018 12:43:03 AM
नई दिल्ली। केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना एवं उत्तर प्रदेश राज्यों में नागरिक अधिकार रक्षा कानून 1955 एवं अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार निरोधक कानून 1989 की समीक्षा के लिए गठित समिति की 24वीं बैठक की अध्यक्षता की। थावरचंद गहलोत ने बैठक में कई राज्यों में अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों पर बढ़ रही अत्याचार की घटनाओं पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए इनपर प्रभावी ढंग से रोक लगाए जाने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा कि इसके लिए राज्य सरकारें विशेष न्यायालयों एवं विशेष जन अभियोजकों की नियुक्ति को विशेष प्राथमिकता दें। थावरचंद गहलोत ने अत्याचार निरोधक कानून के अनुपालन की समीक्षा के लिए राज्य एवं जिला स्तर पर सतर्कता एवं निगरानी समितियों की नियमित बैठक पर जोर दिया, क्योंकि ये समितियां पीड़ितों को राहत एवं पुर्नवास सुविधाएं मुहैया कराने एवं इससे जुड़े मामलों की समीक्षा के लिए जरूरी हैं।
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने कहा कि ऐसे मामलों में जांच और आरोप पत्र दाखिल करने का काम समय से पूरा किया जाना चाहिए। थावरचंद गहलोत ने समीक्षा बैठक में बताया कि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार निरोधक कानून के खंड 23 के उपखंड (1) के अंतर्गत प्रदत्त शक्तियों के तहत केंद्र सरकार ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार निरोधक अधिनियम 1995 को भी अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार निरोधक संशोधित अधिनियम 2016 के जरिए संशोधित कर 14 अप्रैल 2016 को अधिसूचित कर दिया था। उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 17 ने भारत में अस्पृश्यता को समाप्त कर किसी भी रूपमें ऐसा करने पर रोक लगाई है और साथ ही अस्पृश्यता की वजह से होने वाली किसी भी परेशानी को कानून के अनुसार दंडनीय अपराध माना है। थावरचंद गहलोत ने बताया कि संसद में मुख्य रूपसे पारित कानून अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार निरोधक कानून 1989 संविधान के अनुच्छेद 17 के अंतर्गत अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों पर अत्याचार रोकने के लिए और साथ ही ऐसे अपराधों के मुकद्मों तथा ऐसे अत्याचारों के पीड़ितों को राहत एवं पुर्नवास के लिए विशेष न्यायालयों के गठन के लिए बनाया गया था। उन्होंने बताया कि यह कानून जम्मू एवं कश्मीर को छोड़कर संपूर्ण भारत में लागू होता है और इसके अनुपालन का उत्तरदायित्व राज्य सरकारों पर है।
थावरचंद गहलोत ने बताया कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति के सदस्यों को व्यापक न्याय दिलाने एवं कानून तोड़ने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई सुनिश्चित करने के उद्देश्य से इस कानून को अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार निरोधक कानून 2015 के जरिए संशोधित कर 26 जनवरी 2016 से लागू कर दिया गया है। अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति कानून की प्रमुख विशेषताएं हैं कि इसमें कई नए अपराधों को जोड़ा गया है, जैसे सिर और मूंछों को मूंड़ना या इससे मिलते-जुलते कृत्य, जोकि एससी-एसटी की गरिमा के लिए अपमानजनक हैं, जूते-चप्पलों की माला पहनाना, सिंचाई सुविधाओं अथवा वन्य अधिकारों से वंचित करना, मृतकों या मृत पशुओं की ढुलाई एवं उनका निस्तारण करवाना या कब्रों की खुदाई करवाना, मैला ढुलाई या इसकी अनुमति, एससी-एसटी महिला को देवदासी के रूपमें समर्पित करना, जातिगत नाम से गाली देना, जादू-टोने से संबंधित अत्याचार, सामाजिक एवं आर्थिक बहिष्कार, एससी-एसटी सदस्यों को चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने से रोकना, किसी एससी-एसटी महिला को विवस्त्र कर नुकसान पहुंचाना, एससी-एसटी समुदाय के सदस्य को घर, निवास या गांव छोड़ने के लिए विवश करना, एससी-एसटी समुदाय के लोगों के लिए पवित्र वस्तुओं का निरादर करना एवं एससी-एसटी समुदाय के सदस्यों के खिलाफ किसी भी तरह के सेक्सुअल शब्दों, कार्यों या इशारों का इस्तेमाल करना।
अनुसूचित जाति एवं जनजाति के सदस्यों के विरुद्ध अत्याचार एवं अस्पृश्यता रोकने एवं नागरिक अधिकार रक्षा कानून और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार निरोधक कानून के प्रभावी अनुपालन के लिए समन्वय करने एवं रास्ते ढूंढने के लिए गठित समिति के सदस्यों में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री अध्यक्ष, आदिवासी मामलों के मंत्री सह-अध्यक्ष, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्यमंत्री विशेष निमंत्रित, आदिवासी मामलों के राज्यमंत्री विशेष निमंत्रित, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के सचिव सदस्य, गृह मंत्रालय के सचिव सदस्य, न्याय विभाग, विधि एवं न्याय मंत्रालय के सचिव सदस्य, आदिवासी मामलों का मंत्रालय के सचिव सदस्य, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के सचिव सदस्य, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के सचिव सदस्य, गृह मंत्रालय राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो के संयुक्त सचिव सदस्य, अनुसूचित जाति से 2 गैर-आधिकारिक प्रतिनिधि सदस्य, अनुसूचित जनजाति से 1 गैर-आधिकारिक प्रतिनिधि सदस्य और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के संयुक्त सचिव सदस्य सचिव प्रमुख हैं। समीक्षा बैठक में आदिवासी मामलों के मंत्री जुआल ओराम, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्यमंत्री रामदास अठावले, राज्य सरकारों के सामाजिक न्यायमंत्री, प्रमुख सचिव, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय में सचिव लता कृष्णा राव, आदिवासी मामलों के मंत्रालय में सचिव लीना नायर और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी शामिल हुए।