Wednesday 31 January 2018 11:05:05 PM
हरीशचंद्र श्रीवास्तव
उत्तर प्रदेश-क्षेत्रीय विरासतों, संस्कृतियों, कलाओं, साहित्य, नृत्य और संगीत से समृद्ध भारत के सबसे बड़े और ऐतिहासिक राज्य ने पहली बार अपनी राजधानी लखनऊ में सरकार की पहल पर सजीव यूपी दिवस मनाकर सामाजिक एकीकरण और देश-दुनिया में अपनी पहचान का वाहक बनाया है। नए भारत में उत्तर प्रदेश को अस्तित्व में लानेवाली 24 जनवरी एक ऐतिहासिक तिथि है। चौबीस जनवरी 1950 को इस संयुक्त प्रांत का नामकरण उत्तर प्रदेश किया गया था। यह सर्वज्ञात मान्यता है कि कोई भी राष्ट्र भाषा, संस्कृति, लोक व्यवहार और लोकाचारों की सुंदर अभिव्यक्ति और उसके अनुपालन से बनता है। भाषाई, सांस्कृतिक एवं क्षेत्रीय संस्कृतियों की विविधताओं में अप्रतिम एकता वाला देश भारत तो स्वयं ईश्वर का वरदान है। इसके विभिन्न राज्य स्थानीय संस्कृति के गौरवपूर्ण प्रदर्शन और भारत के स्वर्णिम इतिहास को दर्शाते हैं। किसी क्षेत्र का इतिहास क्षेत्र विशेष का इतिहास नहीं होता, बल्कि वह समूचे राष्ट्र के गौरव का विषय होता है, इसलिए यूपी दिवस का राजधानी में आयोजन पूरी दुनिया में चर्चा में रहा, जबकि यूपीवासी हर राज्य और विदेशों में बहुत पहले से ही बड़ी धूमधाम से यूपी दिवस मनाते आ रहे हैं।
गंगा-यमुना का क्रीड़ास्थल उत्तरप्रदेश सांस्कृतिक दृष्टि से व्यापक रूपसे समृद्ध है, यह भारत के मुकुट में जड़े हीरे के समान है। भगवान राम ने अयोध्या धाम में जन्म लेकर इसे आध्यात्म और अलौकिक पवित्रता का उद्गम बनाया है तो भगवान कृष्ण ने मथुरा-वृंदावन में लीला दिखाकर भारतीय उपमहाद्वीप को पावन और कर्तव्यमुखी बनाया है। भगवान बुद्ध ने विश्वशांति के प्रथम उपदेश देने के लिए सारनाथ की भूमि को चुना तो परिनिर्वाण के लिए कुशीनगर की धरती को धन्य किया। मेरठ ज़िला महाभारत और 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बिगुल का साक्षी बना है तो शास्त्रीय संगीत और कालजयी साहित्यिक रचनाओं के साधकों की कुंभ स्थली बाबा विश्वनाथ की नगरी बनारस को महादेव के कल्याणम् अस्तु वरदान प्राप्त हैं। भगवान राम के वनगमन का चित्रकूट, नाथ संप्रदाय के महान प्रवर्तक बाबा गोरखनाथ की धरती गोरखपुर, इतिहास के लोकनायक आल्हा-ऊदल की वीरतापूर्ण कथाओं का बुंदेलखंड, अवध क्षेत्र और तीर्थराज एवं स्वतंत्रता संग्राम के नायक चंद्रशेखर आजाद का बलिदान स्थल प्रयाग, आज़ादी के प्रचंड सेनानी मंगल पांडे का बलिया, स्वामीनारायण संप्रदाय के प्रवर्तक घनश्याम पांडेय की जन्मस्थली गोंडा जिले का छपिया, लालबहादुर शास्त्री की जन्मस्थली मुगलसराय, कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जन्मस्थली लमही, पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्मस्थल मथुरा का चंद्रभान गांव जैसे अनेक स्थल देश और प्रदेश के गौरवशाली इतिहास हैं।
मनोहारी संस्कृति और विरासतों वाला उत्तर प्रदेश रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों की रचना स्थली रहा है। बिरहा, कजरी और चैती जैसे प्रसिद्ध लोकगीतों के गायन की यहां महान परंपरा है। रसिया, खयाल, टप्पा और ठुमरी जैसी शास्त्रीय गीत-संगीत के माध्यम से यहां की संस्कृति समृद्ध हुई है। कथक जैसी शास्त्रीय नृत्य विधा का जन्म इसी प्रदेश में हुआ है। रासलीला और रामलीला जैसी परंपराएं हमारी महान संस्कृति को दर्शाने केलिए आज भी प्रचलित हैं। अनेक शिल्पकलाओं और वास्तुकलाओं की जननी उत्तर प्रदेश की धरती रही है। प्रदेश की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत इतनी समृद्ध होते हुए राज्य के ऐतिहासिक संदर्भ में कोई दिवस मनाते का आयोजन नहीं होना दुर्भाग्यपूर्ण था। राज्यपाल राम नाईक ने वर्ष 2014 में तत्कालीन सरकार को यूपी दिवस मनाने का सुझाव दिया था, लेकिन उस सरकार ने उनके सुझाव की अनदेखी की। राज्यपाल का मानना था कि कर्नाटक, राजस्थान, महाराष्ट्र और देश के अन्य राज्यों में राज्य दिवस की तरह उत्तर प्रदेश में भी इसका वार्षिक आयोजन होना चाहिए, जिसमें प्रदेश समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, लोक संस्कृति, कला, शिल्प और संगीत व साहित्य की झलक मिले और पूरा देश उससे परिचित हो।
विडम्बना यह रही कि तत्कालीन सरकार ने महामहिम के यूपी दिवस प्रस्ताव पर न तो कोई रुचि दिखाई और न ही प्रदेश की समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक गौरव के प्रचार-प्रसार को महत्वपूर्ण समझा। लखनऊ के जाने-माने रंगकर्मी और वरिष्ठ पत्रकार श्याम कुमार अपनी सांस्कृतिक संस्था के माध्यम से लखनऊ में यूपी दिवस मनाते रहे हैं, जिसमें राज्यपाल राम नाईक भी शामिल हुए हैं, यूपी दिवस समारोह में राज्यपाल ने प्रशंसात्मक रूपमें इसका ज़िक्र भी किया। उन्होंने पूर्ववर्ती अखिलेश यादव सरकार से कई बार कहा था कि वह राजधानी में यूपी दिवस मनाने की पहल करे, लेकिन उस सरकार ने तो नहीं, मगर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री पद संभालने के बाद राज्यपाल के प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए प्रत्येक वर्ष 24 जनवरी को यूपी दिवस मनाने की घोषणा की। इस बार वह गौरवशाली अवसर तीन दिवसीय यूपी दिवस के शानदार आयोजन केरूप में हमारे सामने आया, जिसकी देशभर में और विदेश में प्रदेशवासियों में भारी प्रशंसा सुनाई दी। प्रदेशवासियों को गर्व व प्रेरणा दिलाने वाले इस कार्यक्रम को आयोजित करके मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने साबित कर दिया कि ऐसे आयोजनों के माध्यम से वह उत्तर प्रदेश के गौरव को विश्व के पटल पर प्रदर्शित करते रहेंगे।
संस्कृति, इतिहास, भग्नावशेषों और धरोहरों का संरक्षण और उनका सजीव प्रदर्शन उस प्रदेशवासियों में गर्व, आत्माभिमान और आनंद तो भरता ही है, साथ ही यह उन्हें अपने महान पूर्वजों, संस्कृति व साहित्य से प्रेरणा लेकर वर्तमान से तालमेल बिठाते हुए सृजनात्मक ढंग से प्रगति की ओर बढ़ने का संदेश भी देता है। पर्यटन और उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक ब्रांडिंग की दृष्टि ऐसे उत्सव की आवश्यकता थी। किसी देश की मानव सभ्यता समुदाय के धर्म, दर्शन, ज्ञान-विज्ञान से संबंधित क्रिया-कलाप, रीति-रिवाज, खान-पान, आदर्श संस्कार, गीत-संगीत और लोकाचार के सामंजस्य को संस्कृति कहा जाता है, जिसका दर्शन यूपी दिवस में हुआ। उत्तर प्रदेश की कला, संस्कृति व साहित्य के इतने रंग हैं, जो राष्ट्र को बहुरंगी व आकर्षक बनाने में अपना अमूल्य योगदान देते हैं। प्रदेश को राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए अनेक कार्यक्रमों व नीतियों के साथ ही लखनऊ महोत्सव की तर्ज पर प्रदेश के अन्य अंचलों में स्थानीय स्तर पर महोत्सव मनाए जाने का योगी सरकार का निर्णय सराहा गया है। गोरखपुर महोत्सव भी शृंखलाबद्ध सांस्कृतिक प्रयासों की एक कड़ी है। सामाजिक एकीकरण में क्षेत्रीय विरासतों, संस्कृतियों, कलाओं, साहित्य, नृत्य व संगीत के मध्य समन्वय व सांप्रदायिक सौहार्द के लिए ये सजीव उत्सव प्रभावशाली भूमिका निभा सकते हैं। (हरीशचंद्र श्रीवास्तव हरीशजी एक प्रेरक चिंतक विचारक लेखक और भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश के मीडिया प्रमुख हैं)।