Thursday 15 March 2018 03:13:27 PM
दिनेश शर्मा
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार के एक साल की कार्यप्रणाली का परिणाम उत्तर प्रदेश और देश ने देख लिया है, जिसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की बुरी तरह पराजय हुई है, इसमें लखनऊ से लेकर दिल्ली तक के कान खड़े हो गए हैं और अब सबसे पहले योगी आदित्यनाथ की नैतिकता ही उनसे प्रश्न कर रही है कि अब उनका क्या कहना है। योगी आदित्यनाथ ने तीन दशक से भाजपा के खाते में चल रही गोरखपुर संसदीय सीट पर भाजपा को क्या मात दी है, क्योंकि भाजपा ने वहां उनका मन माफिक प्रत्याशी नहीं दिया था या फिर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली के प्रति रोष व्यक्त करते हुए भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं ने मतदान ही नहीं किया है? गौर कीजिएगा कि गोरखपुर में जिस पोलिंग बूथ पर योगी आदित्यनाथ ने वोट डाला था, उसपर भाजपा को सिर्फ 43 वोट ही मिले और कहा जा रहा है कि नाक बचाने के लिए इसे कई गुना बढ़ा दिखा दिया गया है। इसी प्रकार फूलपुर में ये क्या हुआ? यदि यहां भाजपा की पराजय के लिए उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य सीधे जिम्मेदार नहीं हैं तो फिर कौन जिम्मेदार है? दोनों जगह भाजपा का कार्यकर्ता वोट डालने नहीं निकला तो उसके क्या कारण हैं? क्या यह सही नहीं है कि ये दोनों राजनेता जनाकांक्षाओं का सम्मान करने में विफल रहे हैं, क्योंकि अब ये दोनों यह तो कह ही नहीं सकते हैं कि उनके क्षेत्र में किसी प्रकार के विकास की कमी छोड़ी गई थी। योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य से प्रश्न किया जा रहा है कि उनसे ज्यादा कौन जानता है कि भाजपा उपचुनाव क्यों हारी है और कैसी और क्या समीक्षा?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के सामने उत्तर प्रदेश में अहंकारजनित कुशासन का नया राजनीतिक संकट खड़ा करने वाले योगी आदित्यनाथ और मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब देखने वाले केशव प्रसाद मौर्य ने अपने ही पैरोंपर कुल्हाड़ी मार ली है। इन दोनों राजनेताओं ने उपचुनाव परिणामों के साथ ही अपने भविष्य के दावों को स्वयं ध्वस्त कर लिया है। योगी आदित्यनाथ भूल गए कि उनकी एक ही चूक उनका सारा खेल बिगाड़ सकती है, इसलिए उन्हें स्थानीय प्रशासन में भाजपा कार्यकर्ताओं और जनसामान्य के बुनियादी कार्यों की भी उपेक्षा और सम्मान पर पूरी नज़र रखनी होगी और यह सुनिश्चित करना होगा कि जिले की समस्याओं का समाधान जिले पर ही करना होगा, लेकिन योगी आदित्यनाथ ऐसा करने में पूरी तरह विफल रहे। वे भाजपा कार्यकर्ताओं और नेताओं को स्थानीय प्रशासन में पिटते और जलील होते देखते रहे, उनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई तो उपचुनाव में यह शर्मनाक पराजय तो होनी ही थी। कैराना लोकसभा उपचुनाव और नूरपुर विधानसभा उपचुनाव भी होना बाकी है और यदि यहां भी भाजपा को पराजय मिली तो योगी आदित्यनाथ का मुख्यमंत्री पद पर बने रहना मुश्किल हो जाएगा।
लखनऊ में भाजपा मुख्यालय पर उसदिन लोकसभा उपचुनाव के परिणामों की अंतिम घोषणा का समय आते-आते भाजपा कार्यकर्ताओं की प्रतिक्रियाएं तीखी और मुखर हो चुकी थीं। सबकी ज़ुबान पर योगी और केशव की कार्यप्रणाली की आलोचना थी, जो अभी भी बदस्तूर जारी है। भाजपा मुख्यालय पर ही कार्यकर्ता उपचुनाव में हार के कारण गिना रहे हैं ओर यह भी कह रहे हैं कि भाजपा और सरकार के नेतृत्व को यह सबक मिलना जरूरी था। वह खुलकर कह रहे थे कि जिलों में भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं का स्थानीय प्रशासन अपमान दर अपमान कर रहा है, जिसमें मुख्यमंत्री योगीजी को सुशासन नज़र आ रहा है। जिलों में डीएम, एसपी, एसडीएम, तहसीलदार, कोतवाल और सिपाही तक भाजपा कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की हदें तोड़ रहे हैं, उन्हें पीट रहे हैं, थानों में उन्हें बेज्जत किया जा रहा है और योगी आदित्यनाथ अपने सुशासन का फटा ढोल बजा रहे हैं। उनसे सवाल किया जा रहा है कि वे एक साल में अपने सुशासन की सच्चाई नहीं जान पाए? बस्ती प्रतापगढ़ से लेकर और बाकी जिलों में भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ क्या बर्ताव हो रहा है, यह उन्हें कभी नहीं दिखाई दिया? सरकार की अस्सी प्रतिशत विकास योजनाएं धन सहित अकेले गोरखपुर भेज दी गईं, विकास के नाम पर फूलपुर में केशव मौर्य ने पीडब्ल्यूडी का बजट समेट दिया, यह किस कार्यकर्ता को मालूम नहीं है? तब भी उपचुनाव हार गए? याद कीजिएगा कि योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद राज्यभर के अधिकारियों से कहा था कि वे किसी के दबाव में ना आएं, इसलिए स्थानीय प्रशासन ने भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए दरवाज़े बंद कर दिए और कार्यकर्ताओं ने भी गोरखपुर और फूलपुर में योगी और केशव को उनकी हैसियत बता दी।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को दो दिन पूर्व लखनऊ में एक टीवी चैनल कठघरे में बैठाकर संवाद कर रहा था और चैनल का संपादक उनसे अखिलेश यादव के प्रायोजित सवाल पूछ रहा था। योगी आदित्यनाथ ने संपादक से एकबार भी नहीं पूछा कि आप अखिलेश यादव के सवाल उनसे क्यों कर रहे हैं? कारण साफ था कि योगी आदित्यनाथ केवल उन सवालों का उत्तर देने में मग्न थे, लिहाजा उन्हें कहीं यह महसूस नहीं हुआ कि यह इंटरव्यू नहीं, बल्कि एक साल पूरा होने की खुशी में विज्ञापन इंटरव्यू था। चैनल के संपादक ने इस इंटरव्यू में योगी आदित्यनाथ से अनेक प्रायोजित प्रश्न भी कराए। कहने का मतलब यह है कि जिस प्रकार योगी आदित्यनाथ इस इंटरव्यू का मंतव्य नहीं पकड़ पाए, ठीक उसी तरह वह राज्य में एक साल से भाजपा कार्यकर्ताओं की स्थानीय प्रशासन में दुर्गति नहीं देख पाए और अंततः उन्हें गोरखपुर और फूलपुर में सपा-बसपा ने धूल धूसरित कर दिया। इस पराजय में योगी आदित्यनाथ और केशव मौर्य से भाजपा को जो नुकसान पहुंचा है, उसकी ये दोनों शायद ही भरपाई कर पाएं, लेकिन यह निश्चित हो गया है कि ये दोनों नेता भाजपा नेतृत्व और भाजपा कार्यकर्ताओं की नज़रों से गिर गए हैं। टीवी चैनल योगी आदित्यनाथ को देश का भावी प्रधानमंत्री और केशव मौर्य को उत्तर प्रदेश का भावी मुख्यमंत्री बताते आ रहे थे और यह दोनों भी ये सपने पाले हुए थे, लेकिन इनका सपना पहले ही राउंड में चकनाचूर हो गया है और अब कभी भी मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए अचानक और अप्रत्याशित नाम सुनने को मिल सकता है।
कौन नहीं जानता है कि एक वर्ष पहले भाजपा हाईकमान जिस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद का नाम तय करने में लगा था, योगी आदित्यनाथ अपने लिए अड़ गए थे, उस समय भाजपा हाईकमान को धमकियां दे रहे थे, लाबिंग कर रहे थे कि उनको मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया तो फिर कुछ भी हो सकता है। नाम और भी चल रहे थे, लेकिन कहने वाले कहते हैं कि उस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह योगीजी के तर्कों के दबाव में आए और वे योगी आदित्यनाथ को अवसर देने पर सहमत हुए। योगी आदित्यनाथ को पूर्ण अवसर मिला, मगर उन्होंने भाजपा को एक किनारे कर अपना ही सिक्का चला दिया, जिसके परिणामस्वरूप उत्तर प्रदेश में भाजपा का कार्यकर्ता खामोश हो गया है। योगी आदित्यनाथ से और भी सवाल हो रहा है। उनसे पूछा जा रहा है कि उनकी हिंदू वाहिनी अब कहां चली गई, जिसके भरम पर उसके लोग कहा करते हैं कि पूर्वांचल में भाजपा नहीं, बल्कि हिंदू वाहिनी ही सबकुछ है। यहां यह गौर करने वाली बात है कि पूरे उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ ने अपरोक्ष रूपसे भाजपा के समानांतर हिंदू वाहिनी को खड़ा किया हुआ है और उनके ही कार्यकर्ताओं की स्थानीय प्रशासन में सुनी जाती है। पश्चिम उत्तर प्रदेश में जहां योगी की हिंदू वाहिनी को कभी कोई नहीं जानता था, वहां अनेक जगह देखा गया कि सरकारी कार्यक्रमों या भाजपा के राजनीतिक कार्यक्रमों में हिंदू वाहिनी के छुटभईये को प्रमुख आसन दिया गया है। स्थानीय प्रशासन के अधिकारी को मालूम है कि हिंदू वाहिनी को ही महत्व देना है, इसलिए जहां-तहां भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं की स्थानीय प्रशासन में इस एक साल में कोई हैसियत नहीं रही, बल्कि उनकी भारी उपेक्षा हो रही है। जातिवाद भी सर चढ़कर बोल रहा है, जो किसी से छिपा नहीं है।
उत्तर प्रदेश में यही स्थिति रही तो भविष्य में भाजपा की और भी भयानक स्थिति होगी, जिसका सामना करना भाजपा हाईकमान के लिए असंभव होगा। गोरखपुर और फूलपुर के चुनाव परिणाम आने के बाद उत्तर प्रदेश में भाजपा के कार्यकर्ताओं में भाजपा की इस पराजय का कोई भी ग़म दिखाई नहीं देता है। भाजपा कार्यकर्ता साफ कह रहे हैं कि योगी आदित्यनाथ और केशव मौर्य को सबक सिखाना जरूरी है। भाजपा कार्यकर्ता कहते हैं कि सरकार के कई मंत्री लूटमार कर रहे हैं और कार्यकर्ताओं से कह रहे हैं कि वे क्षेत्र में जाकर सरकार के काम का प्रचार-प्रसार करें। कार्यकर्ता कह रहे हैं कि जिलों में उनकी कोई सिपाही तक नहीं सुनता है, इसलिए उन्होंने जनसमस्याओं को लेकर अधिकारियों के पास जाना ही बंद कर दिया है। भाजपा कार्यकर्ता कहते हैं कि भाजपा मुख्यालय पर संगठन की समीक्षा बैठक में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह कहा करते हैं कि कार्यकर्ता अपने क्षेत्र में जाकर पार्टी का काम करें। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कहते हैं कि उनका कार्यकर्ता थाने तहसील में नहीं जाता है तो मुख्यमंत्री ही बताएं कि उन्होंने अपनी हिंदू वाहिनी के लोगों के अलावा कितने भाजपा कार्यकर्ताओं की समस्याओं के लिए तहसील और थाने को फोन किया और यदि थाने तहसीन उनकी नहीं सुनेंगे तो वे जनता में भाजपा की क्या छवि बनाएं? भाजपा का हर कार्यकर्ता योगी आदित्यनाथ सरकार और उनके मंत्रियों से मायूस है, जो कहीं सर्वाधिक चर्चित जातिवाद की चपेट में है तो कहीं हिंदू वाहिनी की चपेट में असहाय दिखाई देता है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शासन का यूं तो छह महीने से ही नकारात्मक विश्लेषण शुरू हो गया था, लेकिन एक साल होते-होते यह सच्चाई में बदल गया है। दोनों लोकसभा उपचुनाव हार जाने के बाद यह सच्चाई स्थापित हो गई है कि योगी आदित्यनाथ का शासन यदि ऐसे ही जारी रहा तो उत्तर प्रदेश में भाजपा खत्म हो जाएगी और 2019 लोकसभा चुनाव भाजपा के हाथ से निकल जाएगा, क्योंकि उत्तर प्रदेश में बसपा और सपा का गठबंधन कोई भी गुल खिला सकता है, यद्यपि यह सच भी कायम है कि यदि भाजपा का कार्यकर्ता भाजपा को वोट डालने निकलता है तो बसपा-सपा का गठबंधन भी भाजपा को नहीं हरा सकता, लेकिन यदि उसने गोरखपुर और फूलपूर की तरह सरकार से नाराज़गी जारी रखी तो भाजपा 2019 का चुनाव भूल ही जाए। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अभी भी समय है और योगी सरकार स्थानीय प्रशासन के उन अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई करे जो जनसामान्य की उपेक्षा करके लखनऊ की ताकत के भरोसे चल रहे हैं। योगी सरकार के सामने एक और अवसर है कि वह अपनी ग़लतियों को ठीक करे, ताकि भाजपा कार्यकर्ता कैराना और नूरपुर उपचुनाव में बसपा और सपा के संभावित गठजोड़ को मुंहतोड़ जवाब दे सके। इस विश्लेषण में यह बात भी उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर भ्रष्टाचार का कोई भी आरोप नहीं है, लेकिन उनका कर्मठ सुशासन भी नहीं है, जिस कारण भाजपा को नुकसान हुआ है।