दिनेश शर्मा
Friday 01 March 2013 04:21:11 AM
नई दिल्ली। वाह चिदंबरम साहब! आपके आम बजट ने सबके होश फ़ाक्ता कर दिए हैं। जैसे मुठभेड़ में मारने के लिए किसी की घेराबंदी की जाती है, आपने उस तरह से पूरा देश सरचार्ज की चपेट में लिया है। हर तरफ कहा जा रहा है कि देश में आम आदमी के चैन से जीने की गुंजाईश अब खत्म हो गई है। कौन नहीं समझ रहा है कि सरकार के राजघरानों, नौकरशाहों और शाही दलालों के घनघोर पापों से पैदा हुए राजकोषीय घाटे की भरपाई के लिए बजट में अमीरों पर सरचार्ज की जो रणनीति अपनाई गई है, वह भी जनता को ही झेलनी होगी, क्योंकि कोई भी अमीर अपनी जेब से या अपने मुनाफे से एक भी फूटी कौड़ी सरकार को देने वाला नहीं है, वह तिलों में से ही तेल निकालेगा और यह कला उसको बखूबी आती है।
कांग्रेस गठबंधन को मृत्युपूर्व का सा आभास हो गया है, उसे लग रहा है कि 2014 में उसकी वापसी नहीं होनी है, इसलिए सरचार्ज की आड़ में जनता पर ही हमला बोल दिया है, विदेशी पूंजी निवेश के नाम पर बड़ी कंपनियों के लिए चोर दरवाज़े से मुनाफ़े के रास्ते खोल दिए हैं, ताकि उनका कांग्रेस पर आशीर्वाद बना रहे और अगली सरकार के सामने ऐसे कांटे बो दिए कि वह ना दौड़ पाएगी और ना चल पाएगी। सोचने की बात है कि सीधे कर न लगाकर, सरचार्ज लगाने और उसमें भी अमीरों पर ज्यादा सरचार्ज लगाने का मतलब है कि कांग्रेस गठबंधन सरकार राजकोष के घाटे की भरपाई के लिए आखिरी वक्त में जनता पर सीधे कर थोपकर जनता की और ज्यादा गाली नहीं सुनना चाहती। उसने अमीर की अमीरी पर सरचार्ज लगाकर टैक्स लगाने से भी बड़ा काम कर लिया है। अमीर अब दो तरफ से मुनाफ़ा कमाएगा। एक तरफ वह अपनी सुविधाओं के लिए सरकारी योजनाओं और संसाधनों का दोहन करेगा और दूसरी ओर अपने उत्पादन की बढ़ी कीमत जनता से वसूल करेगा, इसलिए आप जल्दी ही विभिन्न उत्पादों की बढ़ी कीमतों का सामना करने को तैयार हो जाएं।
गुरूवार को संसद में बजट प्रस्तुत करते हुए वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने अपने प्रस्तावों को सही ठहराते हुए कहा कि इस आम बजट का उद्देश्य उच्च वृद्धि दर से समावेशी और टिकाऊ विकास हासिल करना है, जिससे वैश्विक आर्थिक वृद्धि दर में सुस्त रफ्तार के बावजूद भारत उच्च आर्थिक वृद्धि हासिल करेगा। उन्होंने महत्वपूर्ण क्षेत्रों में आवंटन बढ़ाने, निवेश एवं बजट के लिए छूट देने तथा राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 4.8 प्रतिशत तक बनाये रखने पर के चक्कर में हर क्षेत्र में महंगाई के रास्ते खोल दिए। सत्तापक्ष के पक्ष में खड़ी लॉबी को छोड़कर कोई भी इस बजट को अच्छा नहीं बता रहा है। यह बजट आंतरिक चालाकियों से भरा और देश के हर तबके को झूंठे सपने दिखाता है। इस बजट से भाजपा और गैरकांग्रेसी दलों को देश में राजनीतिक तूफान खड़ा करने का तो अच्छा-खासा मौका मिल गया है, कई राजनीतिक विश्लेषकों का भी कहना है कि लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस को इसकी कीमत चुकानी होगी।
पी चिदंबरम वित्त मंत्री के रूप में देश की आम जनता को सही बात बताने से भाग खड़े हुए। वे ना तो आम आदमी को राहत दे पाए हैं और न अमीरों को ही खुश कर पाए हैं, सच तो यह है कि उन्होंने अमीरों को सही-ग़लत ढंग से धन पैदा करने को मजबूर किया है। यह देश वित्तमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह के बजट को भी कभी नहीं समझ पाया। उनके विकास दर के कभी ना समझ में आने वाले गणित से महंगाई आपे से बाहर ही रही, जो आज विकराल रूप में है। चिदंबरम ने बजट भाषण में विदेशी पूंजी निवेश और विकास दर-विकास दर गाते हुए संसद में कहा कि उनकी सरकार 2012-13 में राजकोषीय समेकन पर अमल करते हुए राजकोषीय घाटे को 5.2 प्रतिशत रखने में सफल रही है, लेकिन चालू खाते का घाटा बहुत चिंता की बात है, इसलिए विदेशी निवेश को प्रोत्साहन देने का प्रस्ताव किया गया है।
उनसे कोई पूछे कि ये राजकोषीय घाटा कोई आज का है और ये किसकी देन है? रेकार्ड उठाकर देखें तो मनमोहन सिंह और पी चिदंबरम विभिन्न प्रभावशाली स्थितियों में सीधे या अपरोक्ष स्थितियों में लंबे समय से भारतीय बजट से जुड़े हुए हैं, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था के पतन के मुख्यकारकों को पहचाना जा सकता है।