स्वतंत्र आवाज़
word map

'सदन में विरोध की राजनीति दुर्भाग्यपूर्ण'

उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू का राज्यसभा में संबोधन

'निरंतरता का सिद्धांत ही राज्यसभा की पहचान है'

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Thursday 29 March 2018 12:42:17 PM

m. venkaiah naidu

नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के अध्यक्ष एम वेंकैया नायडू ने कहा है कि हम जिन लोगों की सेवा करते हैं, उनके साथ हमारा एक संबंध है, जिसे बनाए रखना है और हर गुजरते साल के साथ इसे और भी मजबूत बनाना है। उन्होंने कहा कि निरंतरता का सिद्धांत राज्यसभा की पहचान है और हम बदलाव के साथ निरंतरता के इस मेल की मजबूती पर गर्व करते हैं। उपराष्ट्रपति ने ये विचार संसद में राज्यसभा के सेवानिवृत्त सदस्यों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि राज्यसभा हमारी राजनीति में परिवर्तन और निरंतरता के सिद्धांत की मिसाल है।
राज्यसभा के अध्यक्ष वेंकैया नायडू ने सभी राजनीतिक दलों से अपील की है कि विधायिका में महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व दें, क्योंकि राज्यसभा की कार्रवाई में महिला सदस्यों की भागीदारी बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि यह चिंता का विषय है कि कई महिला सदस्यों के उत्कृष्ट योगदान देने के बावजूद भी सदन की कुल सदस्यता में उनका प्रतिशत मात्र 11.7 है। उपराष्ट्रपति ने अपनी वेदना व्यक्त करते हुए कहा कि जिस तरह से पिछले कुछ दिनों से राज्यसभा में काम-काज हो रहा है, वह दुर्भाग्य से राजनीतिक रणनीति का हिस्सा बन गया है और सदन प्रायः विरोध की राजनीति का मंच बन गया है। उपराष्ट्रपति ने सेवानिवृत्त सदस्यों से कहा कि इसे सार्वजनिक जीवन से सेवानिवृत्ति के रूपमें नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसे लोगों के कल्याण को बढ़ावा देने के एक अवसर के रूपमें देखने का आग्रह किया।
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने कहा कि राजनेताओं के एकबार सार्वजनिक जीवन में प्रवेश के बाद कोई सेवानिवृत्ति नहीं है। इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने राज्यसभा में प्रोफेसर कुरियन के मूल्यवान निर्देशन और सहयोग की प्रशंसा की। उपराष्ट्रपति ने कहा कि उनकी पेशेवर सलाह ने मुझे अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों के निर्वहन में काफी मदद की है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक सदस्य के योगदान से सदन में बहस समृद्ध और जीवंत हो जाती है, सदन की कार्रवाई में सभी सदस्यों का सहयोग अनुकरणीय है।

हिन्दी या अंग्रेजी [भाषा बदलने के लिए प्रेस F12]