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Saturday 7 April 2018 03:17:12 PM
नई दिल्ली। गौण वन उपज, वन क्षेत्र में रहने वाले जनजातीयों के लिए आजीविका के प्रमुख स्रोत हैं। समाज के इस वर्ग के लिए गौण वन उपज के महत्व का अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि वन में रहने वाले लगभग 100 मिलियन लोग भोजन, आश्रय, औषधि एवं नकदी आय के लिए गौण वन उपज पर निर्भर करते हैं। इसका महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण से भी मजबूत संबंध है, क्योंकि अधिकांश गौण वन उपज का संग्रहण, उपयोग एवं बिक्री महिलाएं ही करती हैं। जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने जनजातीय लोगों के सामाजिक, आर्थिक विकास के लिए वन अधिकार अधिनियम, पीईएसए अधिनियम जैसी कई पहलें शुरू की हैं और गौण वन उपज के बाज़ार विकास के लिए राज्य टीडीसीसी एवं टीआरआईएफईडी को वित्तीय सहायता देने जैसी कई योजनाओं का कार्यांवयन कर रहा है।
भारत सरकार ने निर्धनता घटाने और देश के सबसे निर्धन, पिछड़े जिलों में जनजातीय लोगों विशेष रूपसे महिलाओं एवं ग़रीबों के सशक्तिकरण के लिए एक महत्वाकांक्षी योजना 'न्यूनतम समर्थन मूल्य एवं एमएफपी के लिए मूल्य श्रृंखला का विकास' के जरिए गौण वन उपज के विपणन की शुरूआत की है। यह योजना गौण वन उपज संग्रह करने वालों को उचित मूल्य प्रदान करने, उनके आय के स्तर को बढ़ाने और उसकी टिकाऊ खेती सुनिश्चित करने के उद्देश्य से आरंभ की गई है। जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने छत्तीसगढ़ राज्य के बीज़ापुर जिले में प्रायोगिक आधार पर पहले बहुद्देश्यीय वन धन विकास केंद्र की स्थापना को मंजूरी दे दी है, जो कौशल उन्नयन, क्षमता निर्माण प्रशिक्षण प्रदान करने, प्राथमिक प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन सुविधा केंद्र का कार्यांवयन करेगा। शुरू में इस केंद्र में टेमारिंड ईंट निर्माण, महुआ फूल भंडारण केंद्र, चिंरोजी को साफ करने एवं पैकेजिंग के लिए प्रसंस्करण सुविधा होगी।
छत्तसीगढ़ के बीजापुर जिले में टीआरआईएफईडी ने इस प्रायोगिक विकास केंद्र की स्थापना का कार्य सीजीएमएफपी फेडरेशन को सौंपा है और बीजापुर के कलेक्टर समन्वय का कार्य करेंगे। जनजातीय लाभार्थियों के चयन एवं स्वयं सहायता समूह के निर्माण का कार्य टीआरआईएफईडी ने शुरू कर दिया है। शुरू में वन धन विकास केंद्र की स्थापना एक पंचायत भवन में की गई है, जिससे कि प्राथमिक प्रक्रिया की शुरुआत की जा सके, भवन के पूर्ण होने पर केंद्र उसमें स्थानांतरित कर दिया जाएगा। वन धन विकास केंद्र गौण वन उपज के संग्रह में शामिल जनजातीयों के आर्थिक विकास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर सिद्ध होंगे, जो उन्हें प्राकृतिक संसाधनों का ईष्टतम उपयोग करने और एमएफपी समृद्ध जिलों में टिकाऊ एमएफपी आधारित आजीविका का उपयोग करने में उनकी सहायता करेंगे।