Saturday 28 April 2018 05:44:58 PM
दिनेश शर्मा
वुहान (चीन)/ नई दिल्ली। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने खूबसूरत पर्यटन शहर वुहान की पूर्वी झील के किनारे सैर की, झील के किनारे चाय पी और हाउस बोट में बैठकर मुद्दों पर चर्चा की। वुहान शहर चीन के हुबेई प्रांत की राजधानी है। यह भारत की गंगा जैसी यांग्त्जी नदी के नज़दीक है, जो चीन की सबसे लम्बी नदी है, जो सीकांग के पहाड़ी क्षेत्र से निकलकर दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व दिशा की ओर बहती हुई पूर्वी चीन सागर में चली जाती है। शी जिनपिंग ने भारत-चीन रिश्तों की तुलना गंगा और यांग्त्जी नदी के विश्वास से की है। वुहान को चीन का शिकागो भी कहा जाता है और आज इस शहर की पहचान मध्य चीन के राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक और परिवहन केंद्र के रूपमें भी है, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भारत और चीन संबंधों को विविधता के साथ आज से नई ऊर्जा प्रदान की। कुछ विवादों के अभीभी लंबित होने के बावजूद इन दोनों नेताओं की मुलाकात और भावभंगिमाओं को देखने वाले कहते हैं कि यदि इन दोनों का विश्वास समय की कसौटी पर खरा उतरा तो यह एशिया में शांति समृद्धि की स्थापना और विवादों के हल के लिए मील का पत्थर होगा।
भारत-चीन में डोकलाम विवाद के बाद विश्व समुदाय की नज़र में और भारत-चीन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह अनौपचारिक किंतु बेहद सफल दौरा माना जा रहा है, जिससे भारत और चीन के नेता बहुत आशावादी हैं, यह अलग बात है कि पाकिस्तान को सांप सूंघ गया है, जिसे अब यह तय करना है कि उसे आतंकवाद पसंद है या शांति? चीन के तिब्बत और भारत के कश्मीर की स्थितियां बहुत तेजी से बदल रही हैं। चीन की कश्मीर में कोई टांग नहीं अड़ाने में भलाई है तो भारत भी तिब्बत में कोई दिलचस्पी नहीं रखता है, तिब्बतियों के धर्मगुरू दलाई लामा का हाल का बयान भारत-चीन रिश्तों के लिए बड़ा प्रासंगिक है, जिसमें दलाई लामा का तिब्बत को लेकर चीन के प्रति नरम रुख समाने आया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह दौरा यद्यपि घोषणाओं और चकाचौंध से दूर रहा, लेकिन इस दौरे ने जहां दोनों देशों के रिश्तों की गहराईयों को छुआ है, वहीं कुछ ऐसा भी घटित हुआ है, जो दुनिया को बहुत पसंद आया है। दुनिया को एक और अच्छी ख़बर सुनने को मिली है, जिसमें नार्थ कोरिया और साउथ कोरिया अपनी पैंसठ साल की विनाशकारी दुश्मनी भुलाकर दोस्त हो गए हैं।
विश्व समुदाय ने बड़े ध्यान से देखा और सुना कि उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन इसी शुक्रवार को दक्षिण कोरिया पहुंचे, जहां राष्ट्रपति मून जे इन ने उनका बेहद गर्मजोशी से स्वागत किया। यह वह घटना और ख़बर है, जो विश्व समुदाय में एक बड़े विश्वसनीय परिवर्तन और शांति स्थापना की पहल का समर्थन करती है एवं विश्व समुदाय को विनाशकारी हथियारों की होड़ एवं वैश्विक आतंकवाद से मुक्त करने का नया मार्ग भी प्रशस्त करती है। भारत-चीन इस घटनाक्रम से पूरी तरह प्रभावित हैं और इनकी कोशिश होगी और होनी चाहिए कि इस नए सूर्योदय का भरपूर लाभ उठाया जाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब वुहान शहर से प्रस्थान किया तो उनके चेहरे पर गज़ब की चमक और मुस्कुराहट थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 27 अप्रैल से चीन के दो दिवसीय दौरे पर थे। उनका यह अनौपचारिक दौरा था, जिसमें दोनों नेताओं के बीच न कोई घोषणा होनी थी और न ही कोई साझा प्रेस कांफ्रेंस होनी थी। विभिन्न अवसरों पर दोनों के फोटो सेशन समझने के लिए काफी हैं कि भारत-चीन रिश्तों की गंभीरता को बहुत करीब से समझा गया है। दोनों देश यह संदेश देने में सफल रहे हैं कि एशिया में भारत और चीन के दोस्ताना संबंध बेहद जरूरी हैं और अनावश्यक टकरावों से बचकर आपसी विवादास्पद मामलों को बैठकर ही सुलझाया जाए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूं तो इससे पहले भी तीन-चार बार चीन जा चुके हैं, लेकिन गुजरात के मुख्यमंत्री के रूपमें। भारत के प्रधानमंत्री के रूपमें नरेंद्र मोदी का यह पहला चीन दौरा था। इनसे पहले के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तीन बार चीन जा चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग प्रोटोकॉल तोड़कर स्वागत किया। कहना न होगा कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग जब भारत आए थे, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनके लिए प्रोटोकॉल तोड़कर पलकपावड़े बिछा दिए थे। विश्व समुदाय में इसकी बहुत सकारात्मक चर्चा हुई थी, जबकि पाकिस्तान और पाकिस्तान के मीडिया एवं वहां के नेताओं में इससे बहुत निराशा व्याप्त हो गई थी। वहां के अनेक शीर्ष लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश नीति और कूटनीति की भारी तारीफ भी की थी। पाकिस्तान आजतक भारत में शी जिनपिंग के सम्मान को पचा नहीं पाया और यह घटनाक्रम फिर रिपीट हो गया है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शी जिनपिंग ने चीन में जोरदार स्वागत किया। पाकिस्तान के लिए यह सम्मान पचा पाना बेहद मुश्किल है। पाकिस्तानी मीडिया में इसकी जोरदार चर्चा है और वहां माना जा रहा है कि भारत-पाकिस्तान में युद्ध की स्थिति में चीन कदापि पाकिस्तान का साथ नहीं देगा, इसलिए पाकिस्तान को चाहिए कि वह भारत से दोस्ती के माहौल में बातचीत की पहल करे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चीन दौरा भारत की जनता और भारत के राजनीतिक दलों में काफी चर्चा में है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी के लिए यह दौरा भले ही कोई महत्व न रखता हो, अलबत्ता जवाहरलाल नेहरू के समय में भारत ने जो खोया था, उसकी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ हद तक भरपाई की है। नरेंद्र मोदी के पहले भारत के जो भी प्रधानमंत्री हुए हैं, उनको चीन ने कभी महत्व नहीं दिया। प्रधानमंत्री रहे डॉ मनमोहन सिंह जब भी चीन गए, वहां एक हैलीकाप्टर में बैठाकर उन्हें गेस्टहाउस पहुंचा दिया गया, लेकिन चीन के राष्ट्रपति ने पहलीबार नरेंद्र मोदी के लिए प्रोटोकॉल तोड़ा, जो यह सिद्ध करता है कि भारत में पूर्ण बहुमत की सरकार का विश्व समुदाय के लिए कितना महत्व होता है। भारत में आगामी लोकसभा चुनाव में देश में सत्तारूढ़ भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ जो राजनीतिक दल मोर्चाबंदी कर रहे हैं, वे यह भूल रहे हैं कि आज विश्व समुदाय भारत के पीछे चल रहा है, उसके कारक नरेंद्र मोदी ही हैं। भारत की जनता के सामने यह फिरसे निर्णय लेने का अवसर है कि उसे देश में कैसी सरकार चाहिए, ऐसी जो टुकड़ों में बटी हो या ऐसी जिसके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को भारत से दोस्ती का हाथ बढ़ाने के लिए मजबूर किया हो?