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Saturday 19 May 2018 02:13:16 PM
नई दिल्ली। केंद्रीय गृह सचिव राजीव गाबा ने राहत आयुक्तों और सचिवों के वार्षिक सम्मेलन में केंद्र और राज्य सरकारों के सभी संबंधित अधिकारियों से कहा है कि वे बाढ़, चक्रवात, भूकंप आदि जैसी प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए बेहतर तैयारी करें। उन्होंने कहा कि हमें बेहतर मौसम पूर्वानुमान, छद्म अभ्यास आयोजन और बेहतर संसाधन प्रबंधन के माध्यम से अपनी क्षमता सृजन करनी होगी। उन्होंने आंकड़े देते हुए कहा कि 2005-14 के दशक में भारत ने विभिन्न तरह की प्राकृतिक आपदाओं के कारण औसतन प्रतिवर्ष 60,000 करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान उठाया है। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक आपदाओं में सबसे अधिक नुकसान बाढ़ से होता है।
केंद्रीय गृह सचिव राजीव गाबा ने कहा कि भारत बाढ़ प्रवृत्ति का देश है, क्योंकि यहां बाढ़ का पानी कम समय में बहुत तेजी से बढ़ता है, हम बेहतर तैयारी करके बाढ़ से होने वाले नुकसान को कम कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि यद्यपि कुछ वर्षों में प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव को कम करने में सफलता मिली है, लेकिन अभी भी सुधार की गुंजाइश है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि सम्मेलन में हुए विचार-विमर्श से अनुभव साझा करने, समन्वय में सुधार करने जैसे कार्यों में मदद मिलेगी। उन्होंने गृह मंत्रालय से सहायता जारी रखने का आश्वासन देते हुए राज्यों से अपनी क्षमता विकसित करने और धीरे-धीरे केंद्र पर निर्भरता कम करने का आग्रह किया। उन्होंने शहर और जिला स्तरों पर समुदायों को शामिल करके क्षमता सृजन के महत्व पर बल दिया।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सदस्य आरके जैन ने कहा कि केंद्र और राज्य बाढ़ एवं चक्रवाती तूफानों से नुकसानों को कम करने में अपना समन्वय प्रयास जारी रखेंगे। उन्होंने कहा कि सूचना के प्रसार और बेहतर जागरुकता के लिए जमीनी स्तर पर वृहद कार्य किया गया है। राष्ट्रीय आपदा मोचन बल के महानिदेशक संजय कुमार ने कहा कि पिछले वर्ष बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में बचाव कार्य के लिए एनडीआरएफ की 35 से अधिक टीमों को लगाया गया था, इन दलों ने 3000 से अधिक लोगों को बचाया था और एक लाख से अधिक लोगों को हटाकर दूसरे स्थान पर ले जाया गया था। उन्होंने कहा कि पूरे देश में एनडीआरएफ की 12 बटालियनें तैनात हैं, ताकि आपात स्थिति में उनकी फौरन तैनाती की जा सके। सम्मेलन में राज्य सरकारों, केंद्रशासित प्रदेशों के राहत आयुक्त और आईएमडी, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण, रक्षा मंत्रालय और केंद्रीय जल आयोग के अधिकारी शामिल हुए।