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Wednesday 20 June 2018 05:50:04 PM
नई दिल्ली/ श्रीनगर। भारतीय जनता पार्टी के जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती सरकार से समर्थन वापस लेने के परिणामस्वरूप वहां आखिर छह महीने के लिए राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया है। घाटी में सुरक्षाबलों पर पत्थरबाज़ी और वहां आतंकवादियों के ताबड़तोड़ हमलों से क्रुद्ध भारतीय जनता पार्टी ने महबूबा मुफ्ती पर हालात को न संभाल पाने का आरोप लगाया है, जबकि महबूबा मुफ्ती का तर्क है कि कश्मीर के लोग कोई दुश्मन नहीं हैं, जिनके विरुद्ध आक्रामक कार्रवाई की जाए। महबूबा मुफ्ती के इस तर्क को सिरे से खारिज कर दिया गया है और उनसे पूछा जा रहा है कि घाटी में निर्दोष लोगों की हत्याएं और पाकिस्तानी आतंकवादियों को पनाह पर कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए? महबूबा मुफ्ती पर अलगाववादियों से मिलकर चलने और हालात सुधारने में भेदभाव करने का भी आरोप है। बहरहाल राज्यपाल एनएन वोहरा को महबूबा मुफ्ती के इस्तीफा सौंप देने के साथ ही जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन लग गया है।
भारतीय जनता पार्टी का यह कदम कश्मीर हालात पर एक मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है। कश्मीर के हालात पर भाजपा की बहुत किरकिरी हो रही थी और विपक्ष भाजपा पर तीखे हमले कर रहा था। जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस और नेशनल कॉंफ्रेंस ने विघटनकारियों के साथ मिलकर महबूबा मुफ्ती का सरकार चलाना दूभर कर रखा था। भारतीय जनता पार्टी की इस बात को लेकर चिंता बढ़ती जा रही थी कि महबूबा मुफ्ती कश्मीर के हालात पर काबू नहीं पा रही हैं और दूसरी तरफ देश में लोकसभा का चुनाव सर पर है। भाजपा को इस बात का भय था कि कश्मीर के हालात पर जनता का आक्रोश बढ़ सकता है, जिसमें यदि महबूबा मुफ्ती से देर से अलग हुआ गया तो इसका कोई भी लाभ भाजपा को नहीं मिलेगा, क्योंकि वैसेही देश की जनता में विभिन्न कारणों से भाजपा के खिलाफ माहौल उबल रहा है और ऊपर से विपक्ष आग में घी का काम कर रहा है।
दिल्ली में कल भाजपा मुख्यालय पर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने राज्य के भाजपा नेताओं के साथ एक अहम बैठक भी की। महबूबा मुफ्ती सरकार से समर्थन वापसी का ऐलान करते हुए भाजपा के महासचिव राम माधव ने कहा कि राज्य में हाल के दिनों में आतंकवाद और कट्टरवाद बढ़ा है, जिससे निपटने में मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती नाकाम रही हैं, इसीलिए भाजपा ने इस गठबंधन से अलग होने का निर्णय लिया है। भाजपा के महासचिव राम माधव के मुताबिक खंडित जनादेश के बाद राज्य के हित में पार्टी ने पीडीपी के साथ सरकार बनाई थी, लेकिन मौजूदा समय के आकलन के बाद इस सरकार को चलाना मुश्किल हो गया था, मौजूदा आकलन वही है, जो ऊपर लिखा गया है, जिसमें भाजपा के लिए लोकसभा चुनाव एक चुनौती का रूप ले रहा है, जबकि आशा यह थी कि भाजपा के पक्ष में माहौल रहेगा, लेकिन देश की कुछ घटनाओं और भाजपा सरकार के कुछ फैसलों के कारण जनसामान्य में नाराज़गी दिखाई पड़ रही है।
भाजपा के महासचिव राम माधव ने कहा कि माहे रमजान में अमन के लिए सरकार ने सैन्य अभियान रोकने का फैसला किया, लेकिन इसका असर ना तो आतंकवादियों पर पड़ा और ना अलगाववादी हुर्रियत पर पड़ा। राममाधव ने कहा कि केंद्र सरकार ने घाटी में हालात संभालने के लिए पूरी कोशिश की और विकास के लिए भी मुफ्ती सरकार की भरपूर मदद भी की। इस्तीफे के तुरंत बाद महबूबा मुफ्ती ने भाजपा के तर्कों का प्रतिवाद किया। उन्होंने कहा कि उन्होंने कश्मीर की जनता को मुसीबत से निकालने के लिए बीजेपी से हाथ मिलाया था और बीजेपी के साथ गठबंधन सत्ता के लिए नहीं था एवं सरकार ने शांति के तमाम प्रयास किए। कश्मीर के प्रमुख दलों कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस की यही इच्छा थी कि भाजपा-पीडीपी में दरार पड़े। कश्मीर के घटनाक्रम पर विश्लेषणकर्ताओं का कहना है कि भाजपा ने समर्थन वापस लेकर ठीक किया है, इससे सुरक्षाबलों को घाटी में आतंकवादियों के खिलाफ अभियान में कामयाबी मिलेगी और जनता का भाजपा के खिलाफ आक्रोश भी रुकेगा।
गृहमंत्री राजनाथ सिंह के घर भी कश्मीर मुद्दे पर एक अहम बैठक हुई थी, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, जॉइंट सेक्रेटरी कश्मीर, स्पेशल सेक्रेटरी इंटरनल सिक्योरिटी, गृह सचिव समेत अनेक अधिकारियों ने लिया हिस्सा। उल्लेखनीय है कि नवंबर 2014 में हुए चुनावों के बाद किसी दल को बहुमत न मिलने पर बीजेपी पीडीपी ने मिलकर गठबंधन सरकार बनाई थी। मुफ्ती मोहम्मद सईद ने राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली थी, लेकिन उनके निधन के बाद उनकी पुत्री महबूबा मुफ्ती ने गठबंधन सरकार की कमान संभाली। दोनों दलों ने विवादित मसलों को छोड़कर सरकार चलाने के लिए एजेंडा ऑफ एलायंस बनाया था, लेकिन करीब सवा तीन साल से ज्यादा बीतने के बाद दोनों दलों की राहें फिर जुदा हो गई हैं। समर्थन वापसी का यह फैसला घाटी में सक्रिय आतंकवादियों को तो ठिकाने लगाने का काम करेगा ही, साथ ही यदि इसमें सफलता मिली तो भारतीय सेना एलओसी के बाहर भी जा सकती है, जिसके बाद क्या होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है और हो सकता है कि कश्मीर लोकसभा चुनाव का एक बड़ा मुद्दा हो, जिसमें भारत की जनता एकबार फिर भाजपा का समर्थन करे।