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Tuesday 26 June 2018 02:41:02 PM
नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडु ने कहा है कि आपातकाल असहिष्णु लोगों का दुष्परिणाम है। उन्होंने आपातकाल की 43वींवर्षगांठ पर दिल्ली में प्रसार भारती के अध्यक्ष ए सूर्यप्रकाश की पुस्तक ‘इमरजेंसी : इंडियन डेमोक्रेसीज डार्केस्ट आवर’ के हिंदी, कन्नड़, तेलुगु एवं गुजराती संस्करणों का विमोचन करते हुए यह बात कही। उपराष्ट्रपति ने इस अवसर पर कहा कि आपातकाल की 43वीं वर्षगांठ पर मैं यह संदेश देना चाहूंगा कि अपने साथी नागरिकों की स्वतंत्रता का हनन करने वाले असहिष्णु लोगों को भारतीय कहलाने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि वे भारत के मूलभूत मूल्यों और लोकाचार के विरूद्ध हैं। उन्होंने आपातकाल के भ्रामक कारणों एवं दुष्परिणामों पर चर्चा की।
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडु ने कहा कि 1977 में लोगों के पक्ष में जोरदार तरीके से लोकतांत्रिक निर्णय आने के बाद अब कोई भी संवेदनशील सरकार दुबारा आपातकाल लगाने का साहस नहीं करेगी। उन्होंने कहा कि लोगों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को आज कुछ भ्रमित लोगों से खतरा पैदा हो रहा है। उन्होंने कहा कि मुझे भरोसा है कोई भी संवेदनशील सरकार उसे नहीं दोहराएगी, जो 25 जून 1975 की उस दुर्भाग्यपूर्ण रात को किया गया था। उपराष्ट्रपति ने कहा कि अब समय आ गया है कि पाठ्यक्रम में भी आपातकाल को शामिल किया जाए, जिससे कि वर्तमान पीढ़ी को 1975-77 की दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के बारे में जानकारी दी जा सके, उन्हें संवेदनशील बनाया जा सके, ताकि वे भी उस लोकतांत्रिक स्वतंत्रता का सम्मान करना सीखे।
वेंकैया नायडु ने आपातकाल के दौरान 17 महीने तक अपनी खुद की गिरफ्तारी का उल्लेख करते हुए उस अवधि की उन 33 असामान्य घटनाओं का स्मरण किया, जिन्होंने लोकतंत्र को निष्फल बना दिया था, संविधान को बर्बाद कर दिया था एवं नागरिकों को उनके जीवन तथा स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित कर दिया था। उन्होंने आपातकाल में विभिन्न उत्पीड़क कदमों से मीडिया का गला घोटे जाने का भी उल्लेख किया, जिनमें पुलिस अधिकारियों द्वारा समाचार पत्रों के संपादक की भूमिका निभाने, समाचार पत्रों के प्रकाशन को रोकने के लिए बिजली की आपूर्ति ठप करने, पत्रकारों एवं उनके परिवार के सदस्यों को गिरफ्तार करने एवं उनका उत्पीड़न करने, प्रेस परिषद को खत्म किए जाने आदि कदम शामिल थे। उपराष्ट्रपति ने नागरिकों से साथी देशवासियों की स्वतंत्रता का अभिभावक बनने की अपील की। उन्होंने आपातकाल के नायकों एवं खलनायकों का उल्लेख करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश एचआर खन्ना को नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने वाला एक महान नायक बताया।