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'अपने ज़ौक़ के मुताबिक़ सीरत को न समझें'

'कुर्सी के लिए आले मुहम्मद अलैहिस्लाम का सहारा न लें'

मजलिस ए उलमा ए हिंद का इमामबाड़ा में सिंपोज़ियम

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Monday 6 August 2018 06:47:18 PM

majlis ulmee hind's imposabhi in imambara

लखनऊ। इमाम अली रज़ा अलैहिस्लाम के इलमी व सियासी आसार के मौज़ू पर दफ़्तरे मजलिसे उलमाए हिंद वाक़्य इमामबाड़ा ग़ुफ़रानमाब में सिंपोज़ियम का इनइक़ाद अमल में आया। प्रोग्राम का आग़ाज़ क़ारी मुहम्मद इलयास ने तिलावत कलामे पाक से किया। इसके बाद मौलाना सय्यद इस्तिफ़ा रज़ा ने सिंपोज़ियम के मौज़ू का मुख़्तसर तआरुफ़ पेश किया। उन्होंने कहा कि अपने ज़ौक़ के मुताबिक़ सीरत को समझने की कोशिश ना करें, बल्कि अहलेबैत अलैहिमुस्लाम को उनकी शख़्सियत और सिफ़ात व कमालात के आईने में देखने की कोशिश करें। मौलाना सय्यद इस्तिफ़ा रज़ा ने कहा कि अगर हम आइम्मा अलैहिमुस्लाम की सीरत का मुताएला कर रहे हैं तो हमें उस अह्द की सियासत को भी समझना होगा।
तआरुफ़ी तक़रीर के बाद मौलाना सय्यद हसनैन बाक़िरी ने इमाम रज़ा अलैहिस्लाम का सफ़रे तूस और हदीसे सिलसिलतुज़-ज़हब के मौज़ू पर तक़रीर करते हुए कहा कि लोगों ने इक़्तदार की कुर्सी तक पहुंचने के लिए आले मुहम्मद अलैहिस्लाम को सहारा बनाया है, जो ग़लत है। उन्होंने कहा कि अपने सियासी मुफ़ादात के हुसूल के लिए अहलेबैत अलैहिमुस्लाम को सहारा बनाना ये बताता है कि मुआशरा में उनके किरदार की अज़मत मुसल्लम थी। मौलाना ने कहा कि जो भी अहलेबैत अलैहिस्लाम का नाम ले रहा है, ज़रूरी नहीं है कि वो अहलेबैत अलैहिस्लाम से दिली अक़ीदत रखता हो, बल्कि तारीख़ गवाह है कि हरदौर में अहलेबैत अलैहिमुस्लाम के नाम पर मुफ़ाद हासिल करने वालों की तादाद ज़्यादा रही है, इसलिए ऐसे अफ़राद की नीयतों को परखना ज़रूरी है, गोया वो मुहब्बत में ऐसा कर रहे हैं या अपने मुफ़ाद के हुसूल के लिए आइम्मा अलैहिस्लाम से मुहब्बत का ढोंग रच रहे हैं।
मौलाना सय्यद इस्तिफ़ा रज़ा ने अपनी तक़रीर में अह्दे मामून रशीद की सियासत का बख़ूबी अहाता किया और उन हालात का मुकम्मल तजज़िया पेश किया, जिनके पेशे नज़र इमामे अली रज़ा अलैहिस्लाम को तूस का सफ़र इख़्तियार करना पड़ा। मौलाना ने हदीसे सिलसिलतुज़-ज़हब की अज़मत और अहमीयत पर भी तफ़सीली गुफ़्तगु की। इनके बाद मौलाना सय्यद सईदुल हसुन नक़वी ने इमाम की वली अहदी का सियासी पसेमंज़र के मौज़ू पर ख़िताब करते हुए कहा कि मशहूर है कि हुकूमत करने वालों का कोई मज़हब नहीं होता, मगर हक़ीक़त ये है कि उनका भी एक धर्म होता है, जिसे सत्ता धर्म कहते हैं, ये लोग तमाम अदयान और मज़हबों से फ़ायदा उठाने की कोशिश करते हैं। मौलाना ने इमाम अली रज़ा अलैहिस्लाम के अह्द के सियासी हालात का भरपूर तजज़िया पेश करते हुए इन हालात का अहाता किया जिनकी बुनियाद पर मामून रशीद इमामे अली रज़ा अलैहिस्लाम को अपना वली-अहद बनाने पर मजबूर हुआ। मौलाना ने अमीन और मामून की सियासी कश्मकश और अमीन के क़त्ल के बाद पैदा हुए सियासी बोहरान पर भी तारीख़ी हवालों की रोशनी में मुदल्लल गुफ़्तगू की।
मजलिसे उलमाए हिंद के जनरल सिक्रेटरी मौलाना सय्यद कल्बे जवाद नक़वी ने इमाम अली रज़ा अलैहिस्लाम के इलमी आसार के मौज़ू पर तक़रीर करते हुए इमाम अलैहिस्लाम की किताबों का मुख़्तसर मगर तआरुफ़ पेश किया। मौलाना ने इब्तिदा-ए-तक़रीर में कहा कि अल्लाह की तरफ़ से हर ज़माने में हिदायत का इंतिज़ाम होता आया है, मगर हम कैसे पहचानें कि कौन उसकी तरफ़ से हिदायत के दर्जे पर फ़ाइज़ है, क्योंकि हर दौर में हिदायत के दो दावेदार होते हैं-एक सच्चा दावेदार होता है और एक झूंठा होता है। उन्होंने कहा कि अल्लाह की तरफ़ से मबऊस हादी की मारिफ़त के लिए हम बराह-ए-रास्त अल्लाह से भी नहीं पूछ सकते, इसके लिए हमें वसीले की ज़रूरत होती है। मौलाना ने कहा कि अल्लाह ने कभी अपने हादियों के नाम नहीं बताए, क्योंकि नामों में भी इश्तिबाह हो जाता है, उसने अपने हादी के सिफ़ात बताए हैं, जो उनपर पूरा उतरें वही उसकी तरफ़ से मंसूस हादी होता है।
सय्यद कल्बे जवाद नक़वी ने दोस्ती और दुश्मनी की नफ़सियात को बयान करते हुए ये वाज़ेह किया कि दुश्मनों ने भी अइम्मा मासूमीन अलैहिस्लाम के किरदार पर कभी अंगुश्त नुमाई नहीं की, ये वाज़ह करता है कि वो बेऐब और अल्लाह की तरफ़ से हिदायत के दर्जे पर फ़ाइज़ थे। प्रोग्राम में मौलाना मंज़र अली आरफ़ी, मौलाना साबिर अली इमरानी, डाक्टर हैदर मेहदी, डाक्टर ज़फ़रुल नक़ी, मौलाना शाहनवाज़ हुसैन, मौलाना मिर्ज़ा नुसरत अली, मौलाना नाज़िश अहमद, शाहिद कमाल और दीगर उल्मा-ओ-अफ़ाज़िल मौजूद थे। प्रोग्राम में ख़ासतौर पर मदरसतुज़ ज़हरा अलैहिस्लाम की तालिबात और हौज़ा-ए-इल्मिया ग़ुफ़रानमाब के तुलबा ने शिरकत की। प्रोग्राम की निज़ामत आदिल फ़राज़ ने अंजाम दी। आख़िर में नाज़िमे जलसा ने तमाम हाज़िरीन का शुक्रिया अदा किया।

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