Saturday 18 August 2018 04:05:54 PM
दिनेश शर्मा
नई दिल्ली। पाकिस्तान के विख्यात 'रंगीन मिज़ाज' क्रिकेटर और उसके बाद पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी बनाकर वहां की सियासत में उतरे, पाकिस्तानी सियासत और चुनाव के लटके-झटकों से बाबस्ता होते हुए, पाकिस्तान की सेना की मदद से पाकिस्तान के राजनीतिक दलों को रौंदते हुए पाकिस्तान की सेना के ज़िगर कहलाए इमरान खान आज आखिर दुनिया में कुख्यात इस्लामिक आतंकवादी देश माने जाने वाले और चीन के टुकड़ों पर पलने वाले और दुनिया के और भी देशों के कर्ज़दार पाकिस्तान के आखिर प्रधानमंत्री हो ही गए। कुछ ही दिन बाद रिटायर हो जाने वाले भारतीय मूल के पाकिस्तान के राष्ट्रपति ममनून हुसैन ने इमरान खान को देश के 22वें प्रधानमंत्री के रूपमें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। इमरान खान ऐसे समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री हुए हैं, जब भारत और पाकिस्तान के बीच भारत और भारत के अभिन्न अंग जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद फैलाने को लेकर छद्म जंग छिड़ी हुई है। इमरान खान के पास अपने दम पर सरकार बनाने के लिए पूर्ण बहुमत नहीं है और इसे साबित करने के लिए उन्हें इधर-उधर से समर्थन लेना पड़ा है। पाकिस्तान में भारत विरोधी इस्लामिक कट्टरपंथियों और पाकिस्तानी सेना की कठपुतली जैसे विशेषणों से पुकारे जा रहे इमरान खान की सरकार कितने समय चल पाएगी, शपथ ग्रहण होते ही इसकी भी चर्चा शुरू हो गई है।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बन चुके इमरान खान, जिन्होंने अपने क्रिकेट कैरियर के दौरान कभी नमाज़ और रोजों की भी चिंता नहीं की है, जिन्होंने इस्लामिक रीति-रिवाज़ों को ताक पर रखकर उस दौर में और आजतक अपनी मनमर्जी का जीवन जिया है, जो क्रिकेट खेलते हुए कहा करते थे कि हिंदुस्तान का नाम सुनकर मेरा खून खौल जाता है, जिन्होंने दुनिया के शालीन खेल क्रिकेट को भी इस्लामिक ज़ेहाद की तरह से खेला है, जिन्होंने अपनी रंगीन मिज़ाजी के लिए अपनी प्रसिद्धी का मोल लगा दिया और जो अपने को बड़े खुले दिल और दिमाग़ का अमन पसंद इंसान कहते आ रहे हैं, उन इमरान खान की तीसरी या चौथी बीवी बुशरा इमरान आज उनके शपथ ग्रहण समारोह में पूरी तरह बुर्के में नज़र आईं। यही नहीं इस्लामिक धार्मिक परंपरा के अनुसार बुशरा इमरान के हाथ में वह तस्बीह भी दिखाई दे रही थी, जिसका बड़े मौलवी काज़ी नमाज़ी दाने घुमाते हुए मुस्लिम जनसामान्य में दिखावा करते हैं। इस दिखावे से इस्लामिक कट्टरपंथी बड़े ही खुश हुआ करते हैं। यह देखकर अधिकांश लोग हैरत में थे कि एक समय था, जब इमरान खान की दुल्हन पाश्चात्य लिबास में दिखाई दिया करती थी और कभी-कभी तो उसके सर पर दुपट्टा भी नहीं दिखता था, किसी पाकिस्तानी इस्लामिक नेता या मौलवी की हिम्मत भी नहीं होती थी कि वह इमरान खान की जीवनशैली और बीवी के लिबास पर कोई एक लफ्ज़ भी बोल दे, आज उनकी बीवी किसी तालिबानी की दशतज़दा बीवी के मानिंद बैठी दिख रही थीं।
इमरान खान अब पाकिस्तान के मुकम्मल इस्लामिक कट्टरपंथी भी हो गए हैं, क्योंकि पाकिस्तान में इस्लामिक कानून है और उन्हें इस कानून का पालन करते हुए उसके आदर्श प्रस्तुत करने हैं और पाकिस्तानी कट्टरपंथियों का मुंह भी बंद रखना है। इमरान खान के सामने पहली चुनौती यही है कि उन्हें समय-समय पर भारत और हिंदुओं के खिलाफ ज़हरीली उल्टियां करनी हैं, दूसरी यह है कि भारत से दोस्ती का नाम भी नहीं लेना है, तीसरी चुनौती यह है कि वे कभी भी इस्लामिक कट्टरपंथियों के खिलाफ बोलने की हिमाकत न करें, चौथी चुनौती पाकिस्तान में सक्रिय इस्लामिक आतंकवादियों की सुरक्षा और उनके कारनामों को जारी रखने की सहूलियतें जारी रखेंगे, पाकिस्तानी सेना और पाकिस्तानी आतंकवादियों की ओर से भारत और भारत के कश्मीर में जो हो रहा है उसमें टांग नहीं अड़ाएंगे और पाकिस्तान की सेना उन्हें जैसे चलाए, वैसे चलेंगे, पर्दे के पीछे वो चाहे जैसी ज़िंदगी गुजारें, लेकिन सार्वजनिक रूपसे उससे तौबा करेंगे, ताकि सरकार चलाने में कोई दुश्वारी गले न पड़ जाए। देश चलाने के बाकी दबावों की चर्चा करें तो उन्हें पहले तो पाकिस्तान के रोज़मर्रा के ही खर्चों के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के सामने गिड़गिड़ाना होगा और इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि आईएमएफ उनकी सहायता कर देगा, क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय इस्लामिक आतंकवादी और अमरीका का नंबर वन शत्रु ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान ने ही छिपाकर रखा हुआ था, जिसे अमरीका मारकर ले गया था, इसलिए अमरीका सहित किसी भी पाश्चात्य और मुस्लिम देश को भी पाकिस्तान पर कोई भरोसा नहीं रहा है, अकेला चीन भी कबतक और कितनी मदद करेगा, उसकी भी तो सीमा होगी, लिहाजा इमरान खान के लिए बिना धन के सरकार चलाना आसान नहीं होगा।
पाकिस्तान में सरकार चलाना कोई क्रिकेट का खेल नहीं है, इमरान खान को एक सरकार चलानी है और वह भी पाकिस्तान की सरकार को चलाना है, जहां ख्यातिनाम सैनिक शासनकर्ता जनरल जियाउल हक़, जनरल परवेज़ मुशर्रफ से लेकर जुल्फिकार अली भुट्टो, बेनज़ीर भुट्टो, मियां नवाज़ शरीफ आए, जेल चले गए, मारे गए या सत्ता से बाहर हो गए, जहां इमरान खान के रूपमें अब पाकिस्तानी सेना का शासन चलेगा और वे भी तबतक पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रह सकेंगे, जबतक उन्हें पाकिस्तान की सेना प्रधानमंत्री की कुर्सी पर रखना चाहेगी। पाकिस्तान में इमरान खान के लिए किसी भी मुद्दे पर सर्वानुमति बनाना भी तराजू में मेंढकों को तोलने के समान होगा, क्योंकि उनकी सरकार दूसरों की बैसाखी पर है, यह अलग बात है कि पाकिस्तानी सेना की मर्जी के बगैर कोई भी बैसाखी राजनीतिक दल जल्दी से इमरान खान सरकार से समर्थन वापसी के बारे में सोच भी नहीं पाएगा। इमरान खान का अब यहां दूसरा पक्ष भी ले लिया जाए, हालाकि पाकिस्तान की नियति को देखते हुए इसकी आशा कम ही है। इमरान खान एक अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी रहे हैं, जिससे उन्हें और उनके स्वभाव को क्रिकेट खेलने वालों की दुनिया तो जानती है। उनमें एक ऐसा आदमी भी नज़र आता है, जिसे किसी भी बात पर तीव्र गुस्सा आने पर कोई भी कदम उठाने से रोका नहीं जा सकेगा। भारत के खेल के मैदानों में क्रिकेट खेलने के दौरान उनके तेवर अलग ही होते थे, आक्रामक होते थे, फैसले लेने वाले होते थे। अक्सर देखा गया है कि ऐसा व्यक्ति एक सीमा तक बर्दाश्त के दायरे में रहता है और वह सर से पानी उतरने की प्रतीक्षा नहीं करता।
इमरान खान को करीब से जानने वाले कहते हैं कि उनके लिए यह सरकार चलाना क्रिकेट के वनडे मैच के बराबर ही है और वह एक सीमा तक ही पाकिस्तानी सेना के दिशा-निर्देश देखेंगे और सहयोगी दलों की सुनेंगे, लेकिन उनके हिसाब से अति होने पर इमरान खान आपा भी खो सकते हैं, तब शायद यह पाकिस्तान और उसमें राजनीति के लिए कोई अतिरिक्त निर्णायक दौर भी आए। इमरान खान की सफलता इस बात पर भी निर्भर करेगी कि वह भारत से कैसे संबंध बनाते हैं। भारत की नरेंद्र मोदी सरकार का पाकिस्तान और कश्मीर के बारे में नज़रिया बिल्कुल साफ है, जिसपर फिलहाल भारत-पाकिस्तान में छत्तीस का आंकड़ा है। पाकिस्तान भारत में आतंकवादियों की घुसपैंठ कराए जा रहा है, जिसपर भारत की कार्रवाई भी बिल्कुल साफ है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विश्व समुदाय में मित्रता को देखते हुए पाकिस्तान से संबंध तभी सुधर सकते हैं, जब पाकिस्तान भारत में और कश्मीर में आतंकवाद बंद करे। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री रहते भारत में यह आतंकवाद अब चलता नहीं रह सकता है, क्योंकि भारत को वैश्विक नेता बनने के लिए इससे मुक्ति पानी ही है। ऐसी दशा में इमरान खान को वह कदम उठाने होंगे, जिनसे भारत पाकिस्तान के संबंध सामान्य बनें। इसकी पहल इमरान खान को ही करनी होगी, इसमें भारत की कोई मजबूरी नहीं है, जबकि पाकिस्तान के पास बहुत सीमित विकल्प हैं।
चीन पाकिस्तान के लिए विश्व समुदाय को एक तरफ करके पाकिस्तान का लगातार साथ देने की स्थिति में नहीं है। पाकिस्तान के प्रांत बलूचिस्तान में सीपैक चीन का प्रोजेक्ट है और यह भी स्पष्ट है कि इसमें चीन के ही बड़े और सामरिक हित छिपे हैं। चीन एक प्रकार से पाकिस्तान में घुंस चुका है और पाकिस्तान के सामने यह भी दुश्वारी है कि वह चीन से पंगा नहीं ले सकता है। जहां तक पाकिस्तान के रूस से भी विकसित होते संबंधों का प्रश्न है तो रूस भी जानता है कि उसे पाकिस्तान को कहां तक समझना है। इमरान खान जबतक विपक्ष में थे, तब बात कुछ और थी। आज वे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री हो गए हैं और आज ही से उन्हें अपने पड़ोसी हिंदुस्तान की चिंता सताने लगेगी। वे अब दो पाटों के बीच में हैं। इमरान खान के लिए भारत से संबंध सामान्य करना आसान नहीं है, क्योंकि बीच में सेना और कश्मीर है। इमरान खान के लिए भारत से कश्मीर लेना भी ख्वाबों ख्यालों की बातें हैं। भारत अब और प्रतीक्षा नहीं कर सकता कि कश्मीर में खूनखराबा होता रहे, लिहाजा पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पद की शपथ ग्रहण के साथ ही इमरान खान की कड़ी परीक्षा शुरू हो चुकी है और अब देखना होगा कि उसके क्या परिणाम होंगे। इमरान खान के शपथ ग्रहण में आज भारत के पंजाब प्रांत से कांग्रेस के मंत्री और क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू भी पहुंचे। इमरान खान ने भारत के क्रिकेटर सुनील गावस्कर और क्रिकेट के विश्वकप विजेता कपिल देव को भी आमंत्रित किया था, लेकिन इन दोनों ने विभिन्न कारण बताकर उनके शपथ ग्रहण से किनारा कर लिया।
नवजोत सिंह सिद्धू बड़े उत्साही अंदाज़ में पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष कमर जावेद बाजवा से भी गले मिले। नवजोत सिंह सिद्धू को पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के राष्ट्रपति मसूद खान के बगल वाली सीट पर बैठाया गया था। नवजोत सिंह सिद्धू का इमरान खान के शपथ ग्रहण में जाना भारतवासियों को अच्छा नहीं लगा है। नवजोत सिंह सिद्धू की इसके लिए भारी आलोचना हो रही है, भारत में जगह-जगह उनके पुतले फूंके जा रहे हैं। नवजोत सिंह सिद्धूचाहे जो कहें, भारत के समाचार चैनलों और सारे मीडिया में भी उनकी घोर मज़म्मत हो रही है। गौरतलब है कि नवजोत सिंह सिद्धू कभी भारतीय जनता पार्टी के फायर ब्रांड नेता हुआ करते थे और पाकिस्तान को तो अक्सर पानी पी पीकर गालियां दिया करते थे। यह समय का फेर है कि वह अमृतसर से भाजपा का लोकसभा टिकट नहीं मिलने से कांग्रेस में हैं और पंजाब में कांग्रेस सरकार में मंत्री भी हैं। उनपर अब यह आरोप भी लग रहा है कि वे पाकिस्तान में बैठे खालिस्तान चरमपंथियों को भारत के खिलाफ उकसा रहे हैं। ऐसे में नवजोत सिंह सिद्धू का पाकिस्तान जाना उनके गले की हड्डी बन गया है। उनको लेकर भारत के युवाओं में सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं देखी जा रही हैं। इमरान खान ऐसे में भारत सरकार को नाराज करके क्या नवजोत सिंह सिद्धू से संबंध बनाए रख सकते हैं? कहा जा रहा है कि देश इस समय अपने महान नेता अटल बिहारी वाजपेयी के निधन के कारण महा शोक में है और नवजोत सिंह सिद्धू को पाकिस्तान में इमरान खान का प्रधानमंत्री पद का शपथ ग्रहण बड़ा सुहावना लग रहा है। भारत में इसकी प्रतिक्रिया होना स्वाभाविक है, वैसे भी बड़ा सवाल है कि नवजोत सिंह सिद्धू भारत-पाक संबंधों में कितने उपयोगी हो सकते हैं?