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Saturday 22 September 2018 06:35:38 PM
नई दिल्ली। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने आज दिल्ली में दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के शताब्दी समारोह को संबोधित किया और कहा है कि भाषाएं लोगों को जोड़ती हैं, भारत में कई भाषाओं एवं बोलियों की सबकी अपनी विशेष प्रकृति, सुंदरता, विविधता और शक्ति है, जो भारत की संस्कृति और अच्छाई को आगे बढ़ाती है। उन्होंने कहा कि दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा जैसे संस्थानों ने देश की एकता और सौहार्द की नींव को मजबूत बनाया है और यह जानकर प्रसन्नता हुई कि भारत हिंदी प्रचार सभा ने लगभग 20 हजार सक्रिय प्रचारकों का नेटवर्क विकसित किया है। राष्ट्रपति ने कहा कि हर भारतीय को अपनी खुद की भाषा के अलावा एक भारतीय भाषा सीखने की कोशिश करनी चाहिए, क्योंकि जब एक हिंदी भाषी युवा तमिल, तेलगू, मलयालम या कन्नड़ सीखता है तो उसे एक बहुत समृद्ध परंपरा के साथ पेश करता है। उन्होंने कहा कि यह जानकारी प्रत्येक व्यक्ति के लिए नए अवसर पैदा कर सकती है।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रेरणा और मार्गदर्शन में इस संस्था को वर्ष 2018 में हिंदी की सेवा के 100 वर्ष पूरा करने के लिए मैं दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा से जुड़े सभी लोगों को हार्दिक बधाई देता हूं। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी के बाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति और भारतरत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद ने दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के अध्यक्ष का पद संभाला था। रामनाथ कोविंद ने कहा कि स्वाधीनता संग्राम के दौरान स्वदेशी के साथ-साथ स्वभाषा पर भी बहुत ज़ोर दिया गया था, सुब्रह्मण्य भारती की देश प्रेम से भरी तमिल कविताओं की भावना पूरे देश में महसूस की जाती थी। उन्होंने कहा कि भारतीय भाषाओं की जमीन और भावभूमि एक है, इसी एकता को मजबूत बनाने का काम हिंदी समेत सभी भारतीय भाषाओं को करना है। उन्होंने कहा कि चेन्नई में दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के परिसर के जिस भवन में गांधीजी ने सन् 1946 में प्रवास किया था, उसे नवंबर 2014 में ‘गांधी हेरिटेज साइट’ घोषित किया गया, उसके बाद उस भवन का पुनर्निर्माण करके पिछले वर्ष गांधी जयंती के दिन दर्शनार्थियों के लिए खोल दिया गया।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि कुछ ही दिन बाद 2 अक्तूबर से हम महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के समारोहों की शुरुआत करने जा रहे हैं, इसी सप्ताह इन समारोहों के लिए ‘लोगो’ और ‘वेबसाइट’ को लांच किया गया है। उन्होंने सुझाव दिया कि यह ‘वेबसाइट’ क्षेत्रीय भाषाओं में भी होनी चाहिए और ऐसा करना गांधीजी के विचारों के अनुरूप होगा। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी, हिंदी के प्रचार के साथ-साथ सभी देशवासियों को अपनी मातृभाषा के अलावा कम से कम एक और भारतीय भाषा को सीखने की प्रेरणा देते थे। रामनाथ कोविंद ने कहा कि सन् 1945 में वर्धा में दिए गए एक महत्वपूर्ण भाषण में उन्होंने उत्तर भारत के लोगों से दक्षिण भारत की कम-से-कम एक भाषा सीखने का आग्रह किया था, भारतीय भाषाओं की उन्नति को वे अपने रचनात्मक कार्यक्रमों में शामिल करते थे, उन्होंने स्वयं तमिल सीखने का उल्लेख अपनी आत्मकथा में किया है।
रामनाथ कोविंद ने कहा कि ऐसे अनेक वैज्ञानिक शोध सामने आ रहे हैं, जिनके अनुसार एक से अधिक भाषा सीखने वाले व्यक्ति की मानसिक क्षमता में वृद्धि होती है, अधिक भाषाएं सीखने से सोच का दायरा भी बढ़ता है, दृष्टिकोण और अधिक व्यापक होता है, भारत जैसे बहुभाषी देश में यह तथ्य और अधिक प्रासंगिक हो जाता है। उन्होंने कहा कि आज इंटरनेट पर हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में नई सामग्री का सृजन बहुत तेज गति से बढ़ रहा है, यह प्रयास होना चाहिए कि बुनियादी और उच्च-शिक्षा के लिए उच्चस्तर की सामग्री सभी भारतीय भाषाओं में उपलब्ध हो। उन्होंने कहा कि ऐसी सामग्री उपलब्ध होने से भारतीय भाषाओं के माध्यम से मौलिक ज्ञान-विज्ञान, काम-काज और व्यापार को बढ़ावा मिलेगा। रामनाथ कोविंद ने कहा कि हिंदी सहित सभी भारतीय भाषाओं में ऐसी क्षमता विकसित करनी चाहिए कि उनमें बायो-टेक्नालॉजी और इन्फॉर्मेशन टेक्नालॉजी जैसे विषयों पर मौलिक काम किया जा सके। उन्होंने कहा कि दूसरे देशों के लोगों में भारतीय भाषाओं के प्रति रुचि देखकर मुझे बहुत प्रसन्नता होती है। उन्होंने बताया कि चेक रिपब्लिक में मुझे प्राग स्थित चार्ल्स विश्वविद्यालय के इंडोलॉजी विभाग में विदेशी विद्यार्थियों ने स्वागत भाषण हिंदी, संस्कृत, तमिल और बंगला में दिया।