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Sunday 10 March 2013 09:20:32 AM
लखनऊ। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर हमसफ़र संस्था ने आक्सफेम इंडिया के सहयोग से संघर्षशील महिलाओं का सम्मेलन किया, जिसमें लखनऊ ज़िले के 67 मोहल्ले व बस्तियों से करीब 120 महिलाओं ने प्रतिभागिता की, सभी संघर्षशील महिलाओं ने अपने जीवन के संघर्ष को भूल कर महिला दिवस खुशी से मनाया। सममेलन में संघर्षशील महिलाओं के साथ एक कार्यशाला का भी आयोजन किया गया, जिसमें छोटे-छोटे समूहों में पुलिस, कोर्ट, घर व बस्ती में रहने के फायदे व नुकसान पर चर्चा की गई। कार्यशाला से निकलकर आया कि पुलिस तुरंत प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज़ नहीं करती, कोर्ट में समय बहुत लगता है, कहा तो जाता है कि घर एक सुरक्षित स्थान है, किंतु औरतों के साथ सबसे ज्यादा हिंसा घर में ही होती है, बस्ती वाले मौका पड़ने पर बहुत मदद भी करते हैं किंतु कई बार महिला को उसकी अपनी मर्ज़ी से जीने भी नहीं देते हैं।
इन निष्कर्षों के बाद माधवी कुकरेजा जो कि पिछले 25 वर्षों से महिला मुद्दों पर कार्यरत हैं, महिलाओं की हौसला अफजाई करते हुए कहा कि औरतों पर हिंसा अचानक से ही नहीं बढ़ गयी है, सदियों से हो रही इस हिंसा की जड़ों में सामंती पितृसत्ता ही है, जिसकी वजह से महिलाओं को केवल उपभोग की वस्तु माना जाता है, महिलाओं पर सबसे अधिक हिंसा उनके परिवार में उनके अपनों के द्वारा ही की जाती है, अभी तक महिलाएं चुपचाप इस हिंसा को सहती थीं, लेकिन अब आप जैसी बहनों ने जो संघर्ष का रास्ता चुना है वो और भी महिलाओं को आवाज़ उठाने की प्रेरणा देता है। महिलाएं अपने अधिकारों के लिये आवाज़ उठा रही हैं, इसी का परिणाम है कि सरकार महिलाओं के लिये बने कानूनों में बदलाव करने को मजबूर हो रही है।आक्सफेम इंडिया के क्षेत्रीय प्रबंधक नंद किशोर ने कहा कि महिला संरक्षण अधिनियम 2005 का यदि सही क्रियान्वयन होगा तो महिलाओं के साथ हो रही घरेलू हिंसा में कमी आएगी, इस कानून को प्रभावी तौर पर लागू करने में पुरूषों को आगे आना चाहिए, यह कानून पुरूषों के खिलाफ नहीं, बल्कि हिंसा करने वालों के खिलाफ है। महिलाओं के खिलाफ हिंसा उनके मानव अधिकारों का उलंघन है और इसे किसी भी कीमत पर स्वीकार नही किया जा सकता।
वनांगना संस्था की कार्यक्रम अधिकारी माहेश्वरी ने संघर्षशील महिलाओं को आत्मनिर्भर व स्वाबलंबी होने के सुझाव दिए। उन्होंने कहा कि आज की महिला ने घर की चारदीवारी से बाहर निकल कर खुद को उच्च पदों पर आसीन कर विश्व में अपना परचम लहराया है और घर और बाहर दोनों की जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रही हैं। रूढ़िवादी परंपराओं को तोड़ते हुए अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ रही 7 महिलाओं साजिदा, मीरा, माया, शीला, सरिता, अर्चना व मुन्नी को संस्था की ओर से मुख्य अतिथियों ने सम्मानित किया, इसके साथ ही कई संघर्षशील महिलाओं ने अपने संघर्ष की लड़ाई को साझा किया। महिलाओं के साथ बहुत सारे खेल जैसे मटकी फोड़, चम्मच-आलू दौड़, तीन पैरों की दौड़ खेले गए, इनमें कंचनलता, किरन, सरोज, मीरा, आरती, सुमन, आशा, सीमा, शबाना, बीनू, मृदुला, शालू विजेता रहीं।
संघर्षशील महिला शीला ने कहा कि पति ने मुझे बिना किसी कारण के छोड़ दिया, हमसफ़र की मदद से आज मैं कोर्ट में अपने केस की पैरवी कर रही हूं, फर्नीचर पालिश का कार्य करके अपने पैरों पर खड़ी हूं।संघर्षशील महिला मंजू ने कहा कि मेरा पति मुझे बहुत मारता था व आए दिन घर से निकालता था, हमसफ़र की मदद से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 के तहत केस दर्ज़ कराकर अपने ही घर में रह रही हूं। अरूंधति धुरू व शहीरा नईम ने महिलाओं की हौसला अफ़ज़ाई की और कहा कि सभी महिलाओं के संघर्ष में हमसफ़र हमेशा उनका साथी रहेगा। कार्यक्रम के अंत में हमसफर संस्था की ओर से धन्यवाद किया गया।