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Monday 11 March 2013 09:03:16 AM
लखनऊ। रिहाई मंच ने कहा है कि सीओ जिया उल हक की हत्या से साफ हो गया है कि सपा के जंगल राज में सिर्फ आम आदमी ही नहीं ईमानदार पुलिस अधिकारी भी सुरक्षित नहीं हैं और सरकार जनता के प्रति वफादार होने के बजाय सदियों से शोषितों का खून चूसने वाले सामंतवाद के प्रतीक रघुराज प्रताप सिंह जैसे लोगों के लिए काम कर रही है। इस हत्या कांड में मारे गए ग्राम प्रधान नन्हें यादव और सुरेश यादव के परिजनों और जिया उल हक की विधवा परवीन आजाद के बार-बार कहने के बावजूद कि उनके पति की हत्या रघुराज प्रताप के इशारे पर हुई है, सरकार उन्हें गिरफ्तार तक नहीं कर रही है।
यहां यह जान लेना भी जरूरी है कि यह मामला अब सीबीआई के हाथ में है और उत्तर प्रदेश सरकार सीबीआई को सहयोग करने के अलावा विधिक तौर पर इसमें अब हस्तक्षेप नहीं कर सकती है। रिहाई मंच का कहना है कि जिया उल हक आगामी 12 मार्च को पिछले साल अस्थान, प्रतापगढ़ में हिंसा पर हाईकोर्ट में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने वाले थे। जाहिर है उनकी हत्या के तार अस्थान कांड से भी जुड़े हैं, इसलिए सिर्फ जिया उल हक की हत्या की ही नहीं अस्थान कांड की भी जांच सीबीआई से कराई जाए तभी इस हत्या कांड की सच्चाई सामने आएगी।
रिहाई मंच का कहना है कि यह वही रघुराज है, जो चुनावों में ग़रीबों का वोट जबरन अपने पक्ष में डलवाता है, जिसके बारे में कहा जाता है कि वो अपने विरोधियों को अपने तालाब में पालतू मगरमच्छों के सामने डाल देता है, लेकिन अपने को समाजवादी कहने वाले मुलायम इसको कभी सरकार बनते ही जेल से बाहर लाते हैं तो कभी मंत्री बनाकर इसकी ताजपोशी करते हैं, इसलिए आज जरुरी हो जाता है कि हम जिया उल हक की विधवा परवीन आजाद के संघर्ष में शामिल होकर इसे जेल भिजवाने की मुहिम का हिस्सा बनें और जिया उल हक की हत्या को गुड़ों की सरकार के ताबूत में अंतिम कील बनें।