Tuesday 4 December 2018 03:35:35 PM
दिनेश शर्मा
नई दिल्ली। भारत में 'सीबीआई' के नाम से विख्यात केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो अपने सबसे बुरे दौर से गुज़र रहा है। सीबीआई की निष्पक्षता और उसमें शीर्ष पदों पर नियुक्तियों को लेकर गंभीर लोकापवाद हैं। यद्यपि यह जरूरी नहीं है कि सुप्रीमकोर्ट की टिप्पणी मात्र से सीबीआई को 'तोता' मान लिया जाए, क्योंकि सुप्रीमकोर्ट को लेकर भी देश में लोकापवाद उठ खड़ा हुआ है, नहीं तो सुप्रीमकोर्ट के चार वरिष्ठ जजों को मीडिया के माध्यम से अपना दुखड़ा न सुनाना पड़ता। कोर्ट पर अब यह आरोप भी लग रहा है कि वह एक 'सीईओ' की भूमिका में भी आ गया है और उसके सामने सरकार की भूमिका असहाय जैसी होती जा रही है। बहरहाल सीबीआई के शीर्ष पदों पर बैठे अधिकारियों का आचरण गंभीर विवादों से घिरा है, जिस कारण सीवीसी और भारत सरकार को भी इसका संज्ञान लेना पड़ा है। सीबीआई में नियुक्तियों और पद से हटाने का मामला सुप्रीमकोर्ट चला गया है और इस मामले में आगे अनेक प्रश्न उठते जा रहे हैं, जिनका निस्तारण जल्दी संभव नहीं दिखता है, इससे लोक व्यवस्थाजनित विश्वास के इस कारक का लंबे समय के लिए विवादों और जांच में बने रहना घातक होता जा रहा है।
आइए एक लोकापवाद पर गौर करें, जो कदाचित मीडिया के कंधों पर बैठकर बंदूक चलाने जैसा है। यह बात कैसे उड़ी? कहां से उड़ी? यह किसने उड़वाई और इसमें कितनी सच्चाई है, इसपर भारत सरकार ने केंद्रीय जांच ब्यूरो में अंतरिम नियुक्तियों की अटकलों को खारिज किया है। भारत सरकार का कहना है कि मीडिया के एक वर्ग में ऐसी खबरें आई हैं कि केंद्र सरकार सीबीआई में कथित नीतिगत ठहराव को खत्म करने और उसका कामकाज देखने के लिए महानिदेशक रैंक के ओएसडी की नियुक्ति और एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी को सुपरवाइजरी भूमिका सौंपने के विकल्पों पर विचार कर रहा है। भारत सरकार ने ऐसी ख़बरों का पुरजोर खंडन करते हुए अपने स्पष्टीकरण में कहा है कि उसने दिल्ली विशेष पुलिस संस्थापन अधिनियम 1946 के अनुच्छेद 4(2) के तहत अंतरिम व्यवस्था के रूपमें सीबीआई के मौजूदा निदेशक और विशेष निदेशक को उनके अधिकारों से वंचित करने का फैसला लिया है।
भारत सरकार का कहना है कि मामला उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है और कोई भी कार्रवाई न्यायालय के फैसले के अनुरूप ही की जाएगी, इसलिए मीडिया की ख़बरों में जो अटकलें लगाई जा रही हैं, वह पूरी तरह झूंठी हैं। इस पूरे मामले और घटनाक्रम को देखें तो सीबीआई दो पाटों के बीच में फंसी है। भारत सरकार ने मामला उच्चतम न्यायालय पर छोड़ दिया है, इसलिए सारी सीबीआई का रुख उच्चतम न्यायालय की ओर हो गया है और इसमें अब कॉवां-फुलस्टॉप भी बहस के मुद्दे बन गए हैं। आगे क्या होना है, जैसे यह किसी को भी कयास लगाने की छूट मिल गई है। सीबीआई की वेबसाइट पर सीबीआई के निदेशक का यह दार्शनिक संदेश सबको चिढ़ा रहा है मानों मुख उजले मन काले। इस संदेश में यह स्वीकार किया गया है कि सीबीआई अभी तक विश्व की जांच एजेंसियों की विश्वसनीय कार्यप्रणालियों की छाया भी नहीं छू सकी है। इस संदेश की अंतिम लाइन गौर करने काबिल है, जिसमें सीबीआई निदेशक कहते हैं कि 'आइए, हम इन अपेक्षाओं और उत्तरदायित्वों को सम्पन्न करने के लिए मिलजुल कर कार्य करने का अहद उठाएं। मेरा पूर्ण विश्वास है कि मिलजुल कर कार्य करने से हम हर चुनौतियों को पार करते हुए विश्व की प्रमुख अन्वेषण एजेन्सियों में खुद को शुमार कर पाएंगे।' पूरा संदेश यह है-
'प्रिय साथियों,
सीबीआई आज देश की शीर्षस्थ अन्वेषण अभिकरण है जो गम्भीर मामलों का अन्वेषण करने के साथ-साथ देश से भ्रष्टाचार का सफाया करने में संलग्न पुलिस बलों को नेतृत्व प्रदान करने की दोहरी जिम्मेदारी निभा रहा है। इस मिशन को पूरा करने के लिए सर्वोत्कृष्ट अन्वेषण प्रतिभाओं से सम्पन्न इस अभिकरण का मुखिया होना वास्तव में मेरे लिए गर्व का विषय है।
मैं, इस देश के जन मानस की अपेक्षाओं और उनसे सम्बद्ध उत्तरदायित्वों से भलीभाँति परिचित हूँ। मुझे विश्वास है कि हमारे आदर्शोक्ति अर्थात् उद्यमिता, निष्पक्षता एवं सत्यनिष्ठा के प्रति श्रद्धावान रहते हुए अपने दायित्वों को इस ढंग से अंजाम देंगे कि हमारा संगठन पहले से अधिक उदीप्तमान हो सके। सीबीआई की जाँच और अन्वेषणों के न केवल जनसामान्य अपितु उच्चपदस्थ गणमान्य व्यक्तियों और लोक सेवकों के जीवन और करियर में दूरगामी निहितार्थ होते हैं। अतः हमें अन्वेषण की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए उच्चतम मानक और सत्यनिष्ठा स्थापित करने की आवश्यकता होगी।
जैसे-जैसे अपराध, भ्रष्टाचार और आर्थिक अपराध बढ़ेगा, वैसे-वैसे मौजूदा चुनौतियों से निपटने और भावी रणनीति बनाने के लिए हमें अपने कौशल और क्षमताओं को सुदृढ़ करना होगा। अन्वेषण में हमारी निपुणता और दक्षता किसी भी परिस्थिति में कमतर न हो और अन्वेषण की तैयारी ऐसी हो कि हम निर्दोष व्यक्तियों को परेशान किए बिना अपराधियों को सलाखों के पीछे भेजकर मामले का शीघ्र-अति-शीघ्र निस्तारण करने में सक्षम हों।
मेरा अटल विश्वास है कि किसी संगठन का मानव-संसाधन उसकी आधारशिला होता है। सीबीआई के अधिकारियों/कर्मियों का कार्य बेशक चुनौतीपूर्ण होता है, लेकिन उन्हें मामले को उसके तार्किक अंजाम तक पहुँचाने का संतोष भी होता है। यह संतोष अतुलनीय है और संगठन में जीवन्तता का संचार करता है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि ऐसे मानक और पेशेवराना अभिवृत्ति स्थापित की जाए ताकि देश के कोने-कोने से उत्कृष्ट प्रतिभाएँ सीबीआई की ओर आकृष्ट होती रहें। संगठन में शिकायतों के निवारण और कल्याणकारी कार्य मेरे कार्यकाल की प्रमुख प्रतिबद्धता होगी।
आइए, हम इन अपेक्षाओं और उत्तरदायित्वों को सम्पन्न करने के लिए मिलजुल कर कार्य करने का अहद उठाएं। मेरा पूर्ण विश्वास है कि मिलजुल कर कार्य करने से हम हर चुनौतियों को पार करते हुए विश्व की प्रमुख अन्वेषण एजेन्सियों में खुद को शुमार कर पाएंगे।'
सीबीआई निदेशक के इस संदेश में जो लिखा हुआ है, क्या वास्तव में 'सीबीआई' उसपर कायम है? यह संदेश आशा और विश्वास की लक्ष्मण रेखा पर खड़ा है और सोचिए कि आज सीबीआई कहां है और देश के प्रत्येक व्यक्ति संस्था संस्थान और सरकार को सच्चाई उजागर करने की गारंटी देने वाले देश का एक मात्र केंद्रीय जांच ब्यूरो किस प्रकार 'फुटबॉल' बना हुआ है। सीबीआई की साख कोई एक दिन में नहीं या किसी एक सरकार में नहीं, यह कई सालों में गिरी है। ईमानदारी के नाम पर किस तरह से अपने पदों को बचाने और अपना जीवन संवारने में लगे केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो और उसके शीर्ष पदों पर बैठे अनेक लोगों के लिए यह शर्मनाक नहीं है तो और क्या है?