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Monday 18 February 2019 03:30:11 PM
नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर में सीआरपीएफ के काफिले पर आतंकवादी हमले की कड़े शब्दों में निंदा करते हुए उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने कहा है कि आतंकवाद के जरिए भारत को अस्थिर करने के पड़ोसी देश के मंसूबे सफल नहीं होने दिए जाएंगे। उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पड़ोसी देश आतंकवादी समूहों को सहायता, सहयोग, वित्त पोषण और प्रशिक्षण देता आ रहा है, हमारी प्रगति को अस्थिर करने और उसमें बाधा डालने की इस कोशिश को अब बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि मातृभूमि के प्रत्येक इंच को सुरक्षित रखने के हमारे संकल्प में हमें निश्चित रूपसे एकजुट बने रहना चाहिए। इस अवसर पर पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू की पुस्तक सेलेक्टेड स्पीचेज का अनावरण किया और कार्यक्रम पर मौन धारण करके सीआरपीएफ जवानों की शहादत पर शोक व्यक्त किया।
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने देश और विभिन्न संस्थानों के सामने चुनौतियों और अतीत के आधार पर लोगों के बेहतर भविष्य का निर्माण करने के लिए समेकित प्रयासों और वर्तमान की जटिलताओं को कारगर तरीके से निपटाने की जरूरत पर विस्तार से चर्चा की। उपराष्ट्रपति ने कहा कि राष्ट्रवाद का अर्थ है जोर देकर यह कहना कि ‘सर्वप्रथम मैं भारतीय हूं’। उन्होंने कहा कि यह एक अति महत्वपूर्ण छत्र है, जिसके तहत वर्तमान की हमारी सारी पहचानें एक बड़े समूह का निर्माण करने में समाहृत हो जाती हैं। उपराष्ट्रपति ने कहा कि दुर्भाग्य से कुछ भ्रमित व्यक्ति और संगठन परेशानियों को बढ़ावा दे रहे हैं और विभाजन पैदा कर रहे हैं, जो पहले नहीं थे। उन्होंने कहा कि राष्ट्रवाद का अर्थ है एक समान अतीत, एक समान वर्तमान और एक समान भविष्य साझा करना और हमारे देश में, जिसने विश्व को शांतिपूर्ण सहअस्तित्व और अहिंसा की ताकत का परिचय करवाया है, धर्मांधता और संकीर्ण संप्रदायवाद की कृत्यों की पुरजोर निंदा की जानी चाहिए।
लोकसभा और कुछ राज्य विधानसभा के आगामी चुनावों का उल्लेख करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि मैं अधिक से अधिक पुरुषों और महिलाओं को राष्ट्रीय दृष्टिकोण, चरित्र, क्षमता, सामर्थ्य और बर्ताव के गुणों के साथ निर्वाचित होते देखना पसंद करूंगा और चाहूंगा कि राजनीतिक प्रणाली धन, जाति, समुदाय या अपराधी मानसिकता से दूषित न हो। उन्होंने लोगों से आग्रह किया कि वे जनप्रतिनिधियों से उनका रिपोर्ट कार्ड मांगे और चुनावों में मतदान के समय उनकी प्रभावोत्पादकता का गहन आकलन करें। व्यवस्थापिका सभाओं में दीर्घकालिक बाधाओं पर क्षोभ जताते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा निष्क्रिय व्यवस्थापिकाएं विधायकों को वापस बुलाने की मांग सुदृढ़ करती हैं। उन्होंने कहा कि हमारी व्यवस्थापिका सभाएं बहस के कारगर फोरम बनने की बजाए बाधाकारी मंच बनकर रह गई हैं। उन्होंने कहा कि हमारी संसद और विधानसभाओं में चिंताजनक कामकाज की पृष्ठभूमि में इस विघ्नकारी और निष्क्रिय प्रवृति को एक चुनावी मुद्दा बनाए जाने की जरूरत है।
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने कहा कि व्यवस्थापिका सभाओं के कामकाज में विघ्न डालना संविधान निर्माताओं के विजन का स्पष्ट निषेध, संविधान की भावना का निरादर, लोगों की उम्मीदों और आकांक्षाओं के प्रति उदासीनता और जनादेश की पूरी अवहेलना है। उन्होंने कहा कि यह चिंता की बात है कि हाल के वर्ष में राजनीतिक परिचर्चा में बहुत अधिक गिरावट आ गई है, हमें शीघ्रतिशीघ्र इस प्रवृति को बदलना चाहिए। हाल में सम्पन्न बजट सत्र का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि यह चिंता की बात है कि कृषि क्षेत्र की कठिनाइयों पर राज्यसभा सांसदों एवं राजनीतिक दलों ने अंतरिम बजट में घोषित किसानों को प्रत्यक्ष आय सहायता पर चर्चा करना आवश्यक नहीं समझा। उन्होंने नोट किया कि विस्तृत चर्चा के बाद राष्ट्रपति को धन्यवाद प्रस्ताव का अंगीकरण किया जाना चाहिए था। उन्होंने विशेष रूपसे राज्यसभा में कुछ नेताओं को लेकर चिंता जताई और दैनिक प्रातःकालीन बैठकों में उन्हें कहा कि निर्देशों के तहत उन्हें सदन में किसी भी मुद्दे को उठाने की जगह सदन की सामान्य कार्यवाही को बाधित करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
न्यायपालिका का उल्लेख करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि यह देखना निराशाजनक है कि भारी संख्या में मामले लंबित पड़े हैं और 67 प्रतिशत बंदी अभियोगाधीन है। उन्होंने न्यायपालिका से देश के सामाजिक-आर्थिक विकास की विकट चुनौतियों का सामना करने में रचनात्मक भूमिका निभाने की अपील की और कहा कि न्यायपालिका के प्रति लोगों के विश्वास में कमी की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। वेंकैया नायडू ने मीडिया से सूचित कार्रवाईयों के जरिए विकास के लिए अधिकारिता के एक माध्यम के रूपमें कार्य करने तथा पाठकों और दर्शकों को सुविज्ञ संवाद के लिए परिप्रेक्ष्य के साथ तथ्य को संयोजित करने की अपील की। इस अवसर पर केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत, सूचना तथा प्रसारण राज्यमंत्री कर्नल राज्यवर्धन राठौर, राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश, उपराष्ट्रपति के सचिव डॉ आईबी सुब्बा राव, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में सचिव अमित खरे और गणमान्य नागरिक भी उपस्थित थे।