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Tuesday 19 February 2019 12:56:59 PM
नई दिल्ली। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने एक कार्यक्रम में वर्ष 2014, 2015 और 2016 के लिए राजकुमार सिंहजीत सिंह, बांग्लादेश का एक सांस्कृतिक संगठन छायानट और श्रीराम वनजी सुतार को टैगोर सांस्कृतिक सद्भावना सम्मान प्रदान किया। राष्ट्रपति ने इस अवसर पर कहा कि यह पुरस्कार भारत की सांस्कृतिक परंपराओं और हमारी सभ्यतामूलक संपदा का एक महोत्सव है, चाहे यह साहित्य का क्षेत्र हो अथवा संगीत का, कला का हो अथवा नाटक का, शिल्पकला हो या हस्तकला, डिजाइन हो या डिजिटल कला। उन्होंने कहा कि हमारे देश के प्रत्येक क्षेत्र की एक विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान है, इसके बावजूद भी इसका सार यह है कि संस्कृति हमें विभाजित नहीं करती, बल्कि सभी भारतीयों और पूरी मानवता को एकता एवं भाईचारे के सूत्र में पिरोती है। सम्मान प्राप्तकर्ताओं के योगदान के बारे में चर्चा करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि राजकुमार सिंहजीत सिंह मणिपुरी नृत्य के सबसे बड़े पुरोधाओं में शामिल हैं। उन्होंने मणिपुर की सदियों पुरानी कला की इस विधा को न केवल आधुनिक संवेदनाओं से जोड़ा है, बल्कि देश के अन्य हिस्सों से भी जोड़ा हुआ है।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि छायानट एक ऐसा संगठन है, जिसने बांग्लादेश में गुरुदेव रबींद्रनाथ टैगोर के कार्यों और उनके दर्शन को बढ़ावा देने के साथ-साथ उनका संरक्षण भी किया है। उन्होंने कहा कि गुरुदेव की रचना ‘आमार सोनार बांग्ला’ बांग्लादेश की पहचान है, वहां का राष्ट्रगीत है, भारत और बांग्लादेश की इसी साझी सांस्कृतिक विरासत को छायानट ने और मजबूत किया है, छायानट के मानवतावादी और सांस्कृतिक मूल्य गुरुदेव की भावनाओं को अभिव्यक्त करते हैं। उन्होंने कहा कि श्रीराम वनजी सुतार एक ऐसे शिल्पकार और विद्वान हैं, जो कला की एक ऐसी परंपरा का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो हमारे हजारों वर्ष पुराने प्राचीन अतीत का हिस्सा हैं, इन दिनों वे स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के लिए काफी जाने जाते हैं। इनका चयन प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली जूरी ने किया था, जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एन गोपालस्वामी और भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के अध्यक्ष विनय सहस्रबुद्धे भी शामिल थे। कार्यक्रम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी संबोधित किया और कहा कि संस्कृति किसी भी राष्ट्र की जीवनदायिनी होती है, क्योंकि यह उस देश को पहचान प्रदान करती है। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत के पास तो हज़ारों वर्ष का एक सांस्कृतिक विस्तार है, जिसने गुलामी के लंबे कालखंड और बाहरी आक्रमण का बिना प्रभावित हुए सामना किया है, ऐसा गुरुदेव रबींद्रनाथ टैगोर और स्वामी विवेकानंद जैसे मनीषियों के योगदान के कारण संभव हुआ। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत की बहुआयामी विरासत गुरुदेव रबींद्रनाथ टैगोर के कार्यों में परिलक्षित हुई।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत का सांस्कृतिक सामर्थ्य एक रंग-बिरंगी माला जैसा है, जिसको उसके अलग-अलग मनकों के अलग-अलग रंग शक्ति देते हैं। उन्होंने कहा कि कोस-कोस पर बदले पानी चार कोस पर बानी यही भारत को बहुरंगी और बहुआयामी बनाते हैं। उन्होंने कहा कि भारत की इसी शक्ति को गुरुदेव ने समझा और रबिंद्र संगीत में इस विविधता को समेटा, रबिंद्र संगीत में पूरे भारत के रंग हैं और ये भाषा के बंधन से परे हैं। उन्होंने कहा कि गुरुदेव रबींद्रनाथ टैगोर की शिक्षाओं को कालातीत कहा जाता है और विश्व उनके कार्यों से बहुत कुछ सीखता है। उन्होंने भारतीय लोककलाओं और पारंपरिक नृत्यों को संस्कृति के संकेत के रूपमें मान्यता दी है। मणिपुरी नृत्य के प्रतिपादक राजकुमार सिंघजीत सिंह को वर्ष 2014 के लिए पुरस्कार प्रदान किया गया। बांग्लादेश के सांस्कृतिक संगठन छायानट को गुरुदेव रबींद्रनाथ टैगोर की कृतियों और बांग्ला कला के प्रचार में उसकी भूमिका के लिए 2015 का पुरस्कार दिया गया। प्रसिद्ध मूर्तिकार और विद्वान श्रीराम वनजी सुतार को वर्ष 2016 के लिए पुरस्कार प्रदान किया गया।
रबींद्रनाथ टैगोर की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में सरकार ने 2012 से सांस्कृतिक सद्भावना के लिए टैगोर पुरस्कार की स्थापना की थी। यह पुरस्कार प्रतिवर्ष प्रदान किया जाता है, इसमें एक करोड़ रुपये की राशि, एक प्रशस्तिपत्र, एक पट्टिका के साथ-साथ एक उत्कृष्ट पारंपरिक हस्तकला या हथकरघा वस्तु प्रदान की जाती है। नरेंद्र मोदी ने कहा कि गुरुदेव, लोककला और पारंपरिक नृत्यों को देश की एक संस्कृति का परिचायक मानते थे, वे हर सीमा से परे थे, वो प्रकृति और मानवता के प्रति समर्पित थे। गुरुदेव पूरे विश्व को अपना घर मानते थे तो दुनिया ने भी उन्हें उतना ही अपनापन दिया, आज भी अफगानी लोगों की जुबान पर उनकी काबुली वाला की कहानी है। उन्होंने कहा कि गुरुदेव का कृतित्व और उनका संदेश समय, काल और परिस्थिति से परे है, मानवता की रक्षा के प्रति उनके आग्रह को और मजबूत करने की आवश्यकता है, आज दुनिया में जिस तरह की चुनौतियां हैं, उसमें गुरुदेव को पढ़ा जाना, उनसे सीखा जाना और अधिक प्रासंगिक है।