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सामाजिक न्याय पर हुई सारगर्भित परिचर्चा

फोरम फॉर क्रिटिकल एंड प्रोग्रेसिव थिंकिंग का आयोजन

राजनीतिक, प्रबुद्ध और सामाजिक चिंतकों की भागीदारी

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Wednesday 17 April 2019 02:23:38 PM

discussion on social justice system

लखनऊ। फोरम फॉर क्रिटिकल एंड प्रोग्रेसिव थिंकिंग के तत्वावधान में उच्च न्यायालय, उच्चतम न्यायालय तथा निजी क्षेत्र में प्रतिनिधित्व और आरक्षण जाति जनगणना की महत्वपूर्ण जरूरत के विषय पर कैफ़ी आज़मी अकादमी निशातगंज लखनऊ में सारगर्भित परिचर्चा हुई। चर्चा में राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि, सामाजिक विचारक, चिंतक और समाज के विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले शामिल हुए। परिचर्चा में सामाजिक न्याय तथा इससे जुड़े तमाम मुद्दों पर देश, समाज, न्यायपालिका, विधायिका इत्यादि की भूमिका पर विभिन्न पक्ष रखे गए। मुख्य वक्ताओं में समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता अब्दुल हफीज़ गांधी ने कहा कि विविधता संविधान की मूल संरचना होनी चाहिए, सरकार के निर्णय लेने वाले संस्थानों में सभी समुदायों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व होना चाहिए तथा सार्वजनिक और निजी सभी संस्थानों में समाज के समग्र विकास के लिए सभी की भागीदारी होनी चाहिए।
मेराज अहमद आज़ाद ने कहा कि सभी लोकतांत्रिक और संवैधानिक संस्थानों में विविधता को बनाए रखना ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि राज्य संस्थानों में बेहतर प्रतिनिधित्व समाज, लोकतंत्र को मजबूत करेगा और समाज के समग्र विकास को सुनिश्चित करेगा। पसमांदा मुस्लिम महाज के प्रदेश अध्यक्ष नाहीदा अकील ने कहा कि पिछड़ों दलितों और मुसलमानों को लोकप्रिय रूपसे पसमांदा कहा जाता है, उन्हें उचित प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि पसमांदा मुस्लिम की पहचान अल्पसंख्यक शब्द की आड़ में छिपाई नहीं जा सकती। वरिष्ठ पत्रकार दिलीप सी मंडल ने कहा कि आरक्षण कोई विशेषाधिकार नहीं है, बल्कि अपरोक्ष रूपसे जो विशेषाधिकार कुछ जातियों को मिलते रहे हैं, उन्हें संतुलित करने की दिशा में उठाया गया क़दम है।
दिलीप सी मंडल ने कहा कि न्यायपालिका में आरक्षण की मांग लम्बे वक़्त से उठती रही है, बिहार में एक दौर ऐसा था, जब जातीय हिंसा ने ज़ोर पकड़ा, उसके बाद सजा देने के मामले में कोर्ट के रवैये को लेकर कई सवाल खड़े हुए, दो दशक के लम्बे संघर्ष के बाद वहां न्यायपालिका में आरक्षण लागू हुआ, आज फिर से एक बार कुछ एकतरफा फैसलों ने इस ओर इशारा किया है, सवाल यही है कि बगैर पक्षपातपूर्ण रवैये से निजात पाना क्या संभव है? प्रोफेसर खालिद अनीस अंसारी ने कहा कि नव-उदारवादी नीति और न्यायालय के सामाजिक न्याय से संबंधित कुछ फैसलों के कारण जन हस्तक्षेप ज़रूरी हो गया है। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय में विविधता के सिद्धांत को स्थापित करने कि ज़रूरत है, जिससे कि संविधान के आर्टिकल 16 (4) को पूर्ण रूपसे लागू किया जा सके और इसे निजी क्षेत्र में भी प्रतिनिधित्व कोटा के माध्यम से लागू किया जाना चाहिए, इस संदर्भ में कास्ट सेंसस बहुत ज़रूरी हो जाता है, यहां ये ज़रूरी है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति निर्णायक होगी।
सहायक प्रोफेसर रविकांत ने कहा कि लोकतंत्र की सफलता न्यायपालिका की लोकतांत्रिक संरचना पर निर्भर करती है। उन्होंने कहा कि कॉलेजियम प्रणाली को लोकतांत्रिक संस्था नहीं कहा जा सकता है, यह भी आवश्यक है कि जाति जनगणना को जारी किया जाना चाहिए, ताकि आरक्षण के मुद्दे को बेहतर तरीके से समझा जा सके, इससे राज्य संस्थानों में सुधार सुनिश्चित होगा। प्रोफेसर मंज़ूर अली ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ब्राह्मणवाद को बचाने के लिए अंतिम उपाय है। सर्वोच्च न्यायालय सर्वोच्च है, लेकिन अचूक नहीं है। कार्यक्रम का संचालन अब्दुल हफीज़ गांधी ने किया।

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