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Friday 07 June 2013 01:29:09 AM
एम्सटर्डम। दुनिया में ध्यान और योग की भारतीय पारंपरिक विधा की अनुभवातीत ध्यान आंदोलन के रूप में शुरूआत करने वाले महेश प्रसाद श्रीवास्तव यानि महर्षि महेश योगी अब नहीं रहे। मंगलवार को हालैंड में 91वें वर्ष की अवस्था में वह चिरनिद्रा में सो गए। भारत के जबलपुर (मप्र) शहर में 12 जनवरी 1918 को जन्में महर्षि महेश योगी इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र रहे हैं। उन्होंने विश्वविद्यालय से भौतिक शास्त्र से स्नातक और दर्शन शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि ली।
महर्षि महेश योगी को एक भौतिक विज्ञानी से आध्यात्मिक गुरू बनने तक पूरी दुनिया में खासी प्रसिद्धि हासिल हुई। उन्हें भारत में उतना सम्मान नहीं मिला जितना उनको भारत से बाहर जाकर सम्मान हासिल हुआ। उनकी ध्यान आंदोलन की लोकप्रियता तब शिखर पर पहुंची जब 1968 में प्रसिद्ध पश्चिमी रॉक बैंड बीटल्स भारत आया और उसने महर्षि के हिमालय आश्रम में एकाग्रचित होने की तकनीक सीखी। पश्चिमी जगत उनके ट्रांसिडेंटल मेडीटेशन का दीवाना हो गया और उसने महर्षि महेश योगी को अपना प्रमुख आध्यात्मिक गुरू का दर्जा दे दिया। महेश योगी 1941 में स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती के अनुयायी बने जिन्होंने उन्हें बाल ब्रह्माचार्य महेश नाम दिया। मद्रास में एक सम्मेलन में महर्षि ने ट्रांसेंडेंटल मेडिटेशन के माध्यम से पूरी दुनिया में आध्यात्मिक ज्ञान फैलाया। यही वह समय था जब महेश योगी ने इस दर्शन की स्थापना की कि ‘जीवन परम आनंद से भरपूर है और मनुष्य का जन्म आनंद उठाने के लिए ही हुआ है।’
यह कहावत महर्षि महेश योगी ने सिद्ध की है कि इज्जत उन्हें मिलीं जो वतन से निकल गये। महर्षि जब तक भारत में रहे वह यहां के राजघरानों और सत्ता के गलियारों में एक विवादास्पद आध्यात्म गुरू के रूप में ही जाने गये। लेकिन जैसे ही उनके पद पश्चिमी देशों में पड़े, उनको गजब की मान्यता मिलनी शुरू हो गयी। फिर महर्षि महेश योगी ने पलटकर नहीं देखा। आज उनके करीब 60 लाख शिष्य हैं जिनमें कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष और औद्योगिक घराने हैं। 1960 के दशक में बीटल्स, बीच, ब्वायज, सिंगर, डोनोवेन मशहूर निर्देशक क्लिंट ईस्टवुड और डेविड लिंच जैसे नाम उनके शिष्यों की सूची में हैं। उनके नाम पर दुनिया भर में अनगिनत लोक कल्याणकारी योजनाएं चल रही हैं। इलाहाबाद में उनके पार्थिव शरीर को उनके भतीजे ने पंचतत्व में विलीन करने की अंतिम क्रिया सम्पन्न की। इस मौके पर महर्षि के देश-विदेश के अनुयायी और भारत के प्रमुख राजनेता मंत्रीगण शिक्षाविद् और सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद थे। बाल ब्रहम्चारी होने के कारण उनके अंतिम संस्कारों से महिलाओं को दूर रखा गया था। महर्षि का अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ हुआ।